Monday, November 30, 2009

"बिगाड़ के खाद से सुधार की फसल" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

अंक : 94

ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"" का सादर अभिवादन! 
अब  "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की"  का प्रारम्भ करता हूँ- 
बिगाड़ के खाद से सुधार की फसल जयन्त बोहरा और अशोक ताँतेड़ यह सब पढ़कर खूब खुश होंगे। दोनों को गुदगुदी होगी और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों एक दूसरे को बधाई भी दें। दोनों ने, सोलह नवम्बर की शाम को ही भविष्यवाणी कर दी थी कि मैं यह सब लिखूँगा।


क्या आप जानते हैं कि दादा साहेब फालके से पहले भी फिल्में बनाई गई थीं भारत में? 7 जुलाई 1886 को मुंबई (पूर्व नाम बंबई) के वाटकिंस हॉटल में ल्युमेरे ब्रदर्स ने छः लघु चलचित्रों का प्रदर्शन किया था। उन छोटी-छोटी फिल्मों ने ध्वनिविहीन होने बावजूद भी दर्शकों का मनोरंजन किया था।................

तीसरा खंबा मुस्लिम विधि का पदार्पण और अकबर का धार्मिक न्याय को अधीन करने का युग परिवर्तनकारी कदम -300 ईस्वी पूर्व से 12 वीं शती तक प्राचीन धार्मिक विधियों और अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के अनुरूप ही न्याय व्यवस्था चलती रही। धार्मिक और नैतिक नियम न्याय का...
मुझे शिकायत हे. अन्ताक्षरी 9 गीतो भरी - आप सबको राज भाटिया और अन्तर सोहिल की नमस्ते आप सबके सहयोग और हमारा हौंसला बढाने के लिये हम आप सबका हार्दिक धन्यवाद करते हैं। इस पूरे सप्ताह आपने जिस तरह से...
देशनामा सनक का राजकुमार...खुशदीप - कल पूरा दिन ब्रॉडबैंड ठप रहने की वजह से दिमाग भन्नाया रहा...न पोस्ट डाल सका और न ही कमेंट कर सका.. आज बड़ी मिन्नत-खुशामद कर बीएसएनएल वाले भाईसाहबों को पकड़..
"बाबा नागार्जुन का स्नेह उन्हें भी मिला था" -*बात 1989 की है।* *उन दिनों बाबा नागार्जुन खटीमा प्रवास पर थे। उस समय खटीमा में डिग्री कॉलेज में श्री वाचस्पति जी हिन्दी के विभागाध्यक्ष थे। बाबा उन्हीं के ...
रेडियो वाणी ख़ुश रहो अहल-ए-वतन हम तो सफ़र करते हैं--रामप्रसाद बिस्मिल की रचना, भूपिंदर सिंह की आवाज़ । - भूपिंदर सिंह हमारे प्रिय गायकों में से एक हैं । और 'रेडियोवाणी' पर भूपी जी पर केंद्रित एक पूरी श्रृंखला भी हो चुकी है । अगस्‍त की ही तो बात है, हमा...
अमीर धरती गरीब लोग पता नही ऐसा,कैसे कर लेते हैं लोग? - मोमबत्तियों वालो के पाखण्ड से खराब हुआ मूड अभी ठीक भी नही हुआ था कि एक और महापाखण्ड से सामना हो गया।लोगों का दोगलापन इतना ज्यादा ओरिजिनल था कि साले काले-का...
प्रेम  का दरिया अर्थवान की तलाश में निरर्थकता के दर्शन का लेखक - अल्बैर कामू - भारत में जिन विदेशी रचनाकारों को सबसे ज्यादा पढ़ा जाता है, उनमें अल्बैर कामू एक ऐसा नाम है, जिनकी रचनाओं का भारत की विभिन्न भाषाओं में अनुवाद हुआ है। 195...
सच्चा शरणम् करुणावतार बुद्ध -4 - कुछ चरित्र हैं जो बार-बार दस्तक देते हैं, हर वक्त सजग खड़े होते हैं मानवता की चेतना का संस्कार करने हेतु । पुराने पन्नों में अनेकों बार अनेकों तरह से उद्धृ...
अनवरत वित्तीय पूँजी ने आर्थिक ही नहीं सांस्कृतिक संकट भी उत्पन्न कर दिया है -डा. जीवन सिंह - *विश्वम्भर नाथ चतुर्वेदी ‘शास्त्री’ स्मृति समारोह में महेन्द्र नेह के कविता-संग्रह **‘थिरक उठेगी धरती’ **का लोकार्पण* *डा. जीवन सिंह, शिवराम व रमेश प्रजापत...
मानसिक हलचल अर्जुन प्रसाद पटेल - [image: Kheti6] कछार में सप्ताहान्त तनाव दूर करने निरुद्देश्य घूमते मुझे दिखा कि मेरे तट की ओर गंगाजी काफी कटान कर रही हैं, पर दूर कई द्वीप उग आये हैं जि...
क़ासिद अजीजन मस्तानी और बहुरुपिया का प्रदर्शन एनआरआई फिल्म फेस्टिवल 2010 में... - पत्रकार से फिल्म मेकर बने पंकज शुक्ल की दो शॉर्ट फिल्में अगले साल जनवरी में दिल्ली में होने जा रहे प्रवासी फिल्म समारोह यानी एनआरआई फिल्म फेस्टिवल में प्र...
एक आलसी का चिठ्ठा मिलना रस्सी में बाँध कर पकौड़ी छानने वाले से . . -बहुत बेचैनी है . . किसी की प्रतीक्षा है - ट्रांजिट हाउस के कमरे में सुबह सुबह। आलमारी खोल हैंगर गिनता हूँ - उन्हें ठीक करता हूँ ऐसे ही। चहलकदमी करता हूँ...
Samayiki निष्कर्षों में फटकार, सिफारिशों में पुचकार - बाबरी मस्जिद मामले की तफ़्तीश कर रही लिब्रहान आयोग की 17 साल बाद जारी रपट ने साजिश का पर्दाफाश तो किया पर देश को साम्प्रदायिक प्रलय की ओर ढकलने के लिए दोषी..
कस्‍बा qasba उदास मनों में झांकता फेसबुक - भारत में छह करोड़ लोग इंटरनेट के आभासी जगत की नागरिकता ले चुके हैं। आभासी और असली जगत के अंतर और अंतर्विरोध को जीने लगे हैं। आपसी रिश्तों के समीकरण बदल चुक...
इयत्ता टीवी क्राइम शो और उसके इफेक्ट को रिफ्लेक्ट करता फिल्म राब्स का सीन 5 - मित्रों आलोक जी ने यह एपिसोड समय से लिखकर सहेज दिया था, मैं ही अपनी निजी व्यस्तता के कारण इसे पोस्ट नहीं कर सका. बहरहाल, आशा है सुधी पाठक देर के लिए मुझे ...
शब्दों का सफर चक्रव्यूह, समूह और ऊहापोह - [image: View]* [शब्दों का सफ़र बीते पांच वर्षों से प्रति रविवार दैनिक भास्कर में प्रकाशित होता है]* Pictures have been used for educational and non profit...
जाते थे जापान पहुँच गए चीन...समझे क्या..... परसों एक टिपण्णी विशेष को मैंने मुद्दा बनाया था और आप लोगों से उस पर आपके विचार जानना चाहा था......शायद में अपनी बात ठीक तरीके से रख नहीं पायी थी...इसलिए बात भटक कर व्यक्तिगत आक्षेप पर पहुँच गयी...मैंने बहुत स्पष्ट रूप से कहा था की...यह टिपण्णी व्यक्ति विशेष द्वारा सखेद हटाई जा चुकी है.....और अब दोषारोपण का कोई तर्क नहीं बनता ....फिरभी कुछ लोगों ने उक्त टिपण्णी पर अपना रोष भी व्यक्त किया...और कुछ ने अत्यधिक रोष व्यक्त किया जैसे की 'अर्क्जेश जी'....अत्यधिक रोष में लिखी गयी टिपण्णी भी निसंदेह 'नारी' के पक्ष की बातों से लबरेज़ थी लेकिन भाषा में संयम की कमी स्पष्ट दृष्टिगत था ...
जिज्ञासुओं को शक्ति प्रदान करो प्रभु !! जिज्ञासु अनंत काल से आगे बढता जा रहा है। वह अपनी मंजिल स्‍वयं भी नहीं जानता, फिर भी अपने पथ पर अग्रसर रहता है। जिज्ञासु ठहरना नहीं जानता , क्‍यूंकि वह जानता है कि ठहरना मृत्‍यु है , जिसे वह वरण नहीं करना चाहता। आनेवाली हर लडाई को वह जीतता जा रहा है और अध्‍यात्‍म अमृत का पान करता हुआ उस अनंत से साक्षात्‍कार की पिपासा लि.....
मिसफिट जीवन के छियालीस साल 29-11-09  को 46 वर्ष की उम्र पूरी हो जाएगी पूरी रात कष्ट प्रद प्रसव पीड़ा में गुज़री सुबह नौ बजाकर पैंतालीस मिनिट पर जन्मा मैं अपने परिवार की चौथी संतान हूँ उस दौर में सामन्यत: 6 से 12 बच्चों की फौजें हुआ करतीं थीं, पिताजीयों  माताजीयों  के सर अपने बच्चों के अलावा कुटुंब के कई बच्चों के निर्माण की ज़िम्मेदारी भी हुआ करती थी जैसे ताऊ जी बेटी की शादी छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारियां रोग-बीमारियों में तन-मन-धन से  भागीदारी करनी लगभग तय शुदा थी गाँव के खेत न तो आज जैसे सोना उगलते थे और ना हीं गाँव  का शहरों और सुविधाओं से कोई सुगम वास्ता था .....
डायरी के कुछ पन्‍ने--'मां के जाने के बाद' । मां के अवसान को मन जैसे पूरी तरह स्‍वीकार नहीं कर पाया है । कंप्‍यूटर पर उनकी तस्‍वीर देखूं तो अचानक ही 'इनसे' कहने लगती हूं कि मां ऐसा कहती हैं, वो वैसा कहती हैं । 'हैं' से उनके अचानक 'थीं' हो जाने को कैसे स्‍वीकार करूं । इन दिनों जो डायरी लिखी, उसके पिछलेदो अंकों में मैंने अपनी मां के बारे में कुछ-कुछ बताया । अब थोड़ा-सा और कुछ इस अंतिम कड़ी में...... 
ऑन्लाइन कैट से हुई किरकिरी : रामप्यारी होती तो नहीं होती न खबर :- औन लाईन कैट से हुई किरकिरी ॥ नज़र :- लो जीअब तक हम समझ रहे थे कि औन लाईन चैट से ही किरकिरीहोती है ...अब तो मुंआ औन लाईन कैट से भी किरकिरी हीहो गई ....देखिये तो ॥क्या खाक इंजिनयर बनाएंगे जिनकीपरीक्षा ही नहीं ले पाए....सुना कई जगह तकनीकी खराबी होगई.....सर्वर खराब हो गए.....अबे कैसी औन लाईन कैट थीबे तुम्हारे पास ...ताऊ की औन लाईन कैट ....अरे अपनीसयानी बिल्लन ....रामप्यारी को ले जाते ॥फ़िर देखते कैसेझटपट हो जाता सब कुछ ....यकीन नहीं होता ....अबेउसकी पहेली ने टीप के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर डाले हैं.....कोई सर्वर खराब नहीं .....तुममें अक्ल होती तब न ....
शेर कुत्ते बने शेर कुत्तों के समान लड़ रहे हैं। एक दूसरे पर भोंक रहे हैं और जिस तिस को काटने को दौड़ रहे हैं। शेर चुनाव हार चुका है। शेर का भतीजा भी चुनाव हार चुका है। पर वो गर्व से फूल कर फटा जा रहा है। मीडिया ने उसे ऐसा हीरो बनाया जैसे उसकी सरकार बन गई हो। 13 सीटें जीतकर वो ऐंठ रहा है। जिनने सैकड़ों सीटें जीतीं और जो सरकार बना रहे हैं या बिगाड़ रहे हैं उनकी कोई पूछ नहीं है। जिनने शेर की पूंछ मरोड़ी उसकी पूछ है। .........

आज के लिए केवल इतना ही! बाकी कल.........!

Sunday, November 29, 2009

"ताऊ पहेली के गोल्डन जुबली के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ!" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"" का सादर अभिवादन! 
अब  "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की"  का प्रारम्भ करता हूँ- 

ताऊ पहेली के गोल्डन जुबली के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाऎ - ताऊ पहेली आज 50 वा सप्ताह में प्रवेश करने जा रही है. *"गोल्डन -जुबली*" तो हम सभी दिल खोल के ताऊ डाट ईन की इस उपलब्धी पर गर्व करते हुए हार्दिक शुभका...

ताऊ गोल्डन पहेली - 50 प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम. ताऊ पहेली *अंक 50 *में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका ...
प्रेम का दरिया   दिसंबर के एक सर्द सफर की याद लेखकों के साथ यूं तो बहुत-सी यात्राएं की हैं, लेकिन दिसंबर की कड़ाके की ठण्ड में किये गए दो लंबे सफर यादगार हैं। पहली याद दिसंबर 2005 की है, जब हम 25 लेख... 
मुक्ताकाश.... बर्फीली घाटियों का क्लेश... [ताड़-पत्र से ली गई एक और पुरानी कविता] मैं विवश हूँ सोचने पर मान्यताओं और आस्थाओं का ज्वार कब और क्यों भावनाओं के तट से टकराता है, एक साथ कई शून्य कब मस्ति...
मानसी श्रीकांत आचार्य- आमार शाराटा दीन बँगला गानों की शृंखला में, ये एक अत्यंत मधुर गीत आज, श्रीकांत आचार्य की आवाज़ में। मैंने इस गीत को पहली बार कुछ दिनों पहले ही, बंगाल से एक दोस्त के भेंट करन...

वीर बहुटी गज़ल ये गज़ल भी प्राण भाई साहिब के आशीर्वाद और संवारने से कहने लायक बनी है। हौसला दिल में जगाना साथिया देश दुश्मन से बचाना साथिया जो करे बस सोच कर करना अभी फि...
सबद... इयुजेनियो मोन्ताले : १ : इयुजेनियो मोन्ताले -*वैचारिक प्रतिबद्धता आवश्यक और पर्याप्त शर्त नहीं है* *नया *मनुष्य बहुत बूढा पैदा हुआ है. वह नई दुनिया को झेल नहीं सकता.जीवन की मौजूदा स्थितियों ने अब तक अ...
Films & Feni: Star Gazing STAR GAZING NOV 28, 2009 – A FILM FESTIVAL ISN’T EXACTLY THE PLACE you’d trawl for stars, so it was a refreshing change-of-pace to slip into Manoel de Oliv...
अंधड़ ! सांख्यिकी और संभाव्यता ! *ठुमकते हुए चलते, तुम्हारे पैरो के तलवों की सरगम * *और तुम्हारे नुपुर की मणियों की धड़कन से, दिल की गहराइयों में छुपे मेरे भावो को , गूढ़ शब्द-रूपी काव्यता ...
कबाड़खाना एक हिमालयी यात्रा: चौथा हिस्सा (पिछली किस्त से जारी)कैम्प का कमान्डैन्ट उत्तर भारतीय नौजवान है. उसकी यूनिट में दर्ज़न भर सिपाही हैं. शुरुआती जांच पड़ताल के बाद हमारे साथ उसका सुलूक दोस्ताना ...
खेती-बाड़ी चीन में जीएम चावल को मंजूरी, दो-तीन सालों में होने लगेगी वाणिज्यिक खेती कृ‍षि से संबंधित एक बड़ी खबर यह है कि चीन ने अपने यहां स्‍थानीय तौर पर विकसित किए गए आनुवांशिक रूप से संवर्धित (Genetically Modified Rice) चावल को मंजूरी द...
अनवरत वादा पूरा न होने तक प्रमुख की कुर्सी पर नहीं बैठेगी ममता यात्रा की बात बीच में अधूरी छोड़ इधर राजस्थान में स्थानीय निकायों के चुनाव परिणाम की बात करते हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बहुमत से कुछ स्थान कम मिल...
अनुनाद तुम्हारा नाम रेचल कोरी है - फ़ातिमा नावूत की एक कविता ** *भारतभूषण तिवारी द्वारा लगायी पिछली पोस्ट की एक कविता "दास्ताने -रेचल कोरी" के क्रम में प्रस्तुत एक और महत्त्वपूर्ण कविता...... * *अनुवाद एवं प्रस्तुति ...
नारी १९७७ - १९७८ १९७७ आल इंडिया इंस्टिट्यूट के डॉ क्वाटर्स डॉ पाठक का निर्जीव शरीर कारण दिल का दौरा उम्र ५६ साल cardiolojist हाथ मे फ़ोन का चोगा एक पेपर स्लिप मुझे लगता हैं ...
अंतर्मंथन पीया मैं जांगी मेले में ---गोरी तू मत जा मेले में --- -२१ वीं सदी के पहले दशक के नौवें साल के ग्यारहवें महीने का आज २८ वां दिन है। नए मिलेनियम की इस अवधि में मैंने इतने मुकाम हासिल किये, की कभी कभी ख़ुद को ख़ुद...
क्वचिदन्यतोअपि..........! एक और व्यथित नायिका है -विप्रलब्धा!(नायिका भेद-१०) अनूढ़ा और परकीया के अधीन ही एक और व्यथित नायिका है -विप्रलब्धा !नायक को पूर्व निश्चित किये गए समय पर संकेत स्थल पर न पाने वाली व्यथित नायिका ही विप्रलब्ध...
समाजवादी जनपरिषद आर.एस.एस , भाजपा को कुम्हला देने वाले आरोप , लेकिन कार्यवाही की सिफारिश – सिफ़र ! – सिद्धार्थ वरदराजन , डेप्युटी एडिटर – द हिन्दू द्वारा समाचार विश्लेषण हिन्दुस्तानी में कहावत है – खोदा पहाड़ निकली चुहिया – लम्बे तथा कठिन रियाज के बाद जब नतीजा अपेक्षतया बहुत कम निकलता है – उन हालात में इस मुहावरे का इस्तेमाल...
ज्ञान दर्पण बैंक खाते को मेलावेयर व हैकिंग से बचाने के लिए लिनक्स लाइव सी डी का इस्तेमाल करें आजकल नेट बेंकिंग व ऑनलाइन खरीददारी करने का चलन बढ़ता जा रहा है जब एक क्लिक पर घर बैठे कंप्यूटर से बैंक खाता संचालित किया जा सकता है तो हम बैंक जाकर वहां क्.. 
देशनामा क्या आप सिविल वॉर के लिए तैयार हैं...खुशदीप -पोस्ट का शीर्षक पढ़ कर चौंकिए मत...लेकिन आने वाले वक्त में ये हक़ीक़त बन सकता है...ये मैं नहीं कह रहा, ये स्टडी है यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के एक स्टडी ...
मेरे मन की मुझे भी बहुत गुस्सा आता है उन पर .......................इसलिए.......क्या कोई मेरा सन्देश उन तक पहुँचायेगा ? ? ? .. अरे कायर है ये आतंकी, खुद तो जीते नही है, दूसरो को भी नही जीने देते, तभी तो हमेशा अकेले मरने से डरते है, और मासूम लोगों का साथ चुनते हैं, अगर हिम्मत है -तो ...
कर्मनाशा 

मधुशाला' के रचयिता के जन्मदिन पर 'मधुशाला' -आज अपनी कैसेटॊ के कबाड़ में से एक कैसेट निकाली गई है और उसकी गर्द पोंछकर उस दिन / उन दिनों को याद किया गया है जब उसे खरीदा गया था। कैसेट पर तारीख पड़ी है :..
राजू बिन्दास! कुछ जज्बात जंगली से! *कुछ जज्बात जंगली से! चलिए आज आपको सच का सामना कराते हैं झूठ की स्टाइल में. मैं आज आप से एक शर्त लगाता हूं. आपने अब तक कम से कम एक हजार बार झूठ जरूर बोला ...
तीसरा खंबा कौटिल्य का अर्थशास्त्र और दीवानी विधियाँ : भारत में विधि का इतिहास-5 विधि और न्याय राज्य के महत्वपूर्ण अंग हैं। उन्हें राज्य से कभी पृथक नहीं किया जा सका है। इस कारण से जब भी राज्य नीति की चर्चा होगी। विधि और न्याय उस का महत...
उन्मुक्तवकीलों की सबसे बेहतरीन जीवनी - कोर्टरूम -सैमुएल लाइबोविट्ज़, २०वीं शताब्दी के दूसरे चतुर्थांश में अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध वकील थे। 'बुलबुल मारने पर दोष लगता है' श्रृंखला की इस चिट्ठी में, उनके जी...
बर्ग वार्ता - Burgh Vaartaa कुछ पल - टाइम मशीन में बड़े भाई से लम्बी बातचीत करने के बाद काफी देर तक छोटे भाई से भी फ़ोन पर बात होती है. यह दोनों भाई जम्मू में हमारे मकान मालिक के बेटे हैं. इन्टरनेट पर मेरे बच...
ज़िन्दगी निशा का दर्द - रवि और निशा कभी न मिल पाए संध्या माध्यम भी बनी मगर रवि ने तो सिर्फ़ संध्या को चाहा उसे ही अपना बनाया अपना स्वरुप उसमें ही डुबाया और निशा अपने दर्द को समेटे ह...
गुलमोहर का फूल   प्रेत विक्षिप्त सा जीता हूँ[image: DSC01467] एक ठण्डी सी जिन्दगी और मर जाता हूँ चुपचाप । होता है इतना सघन अँधेरा कि भटकती रहती है मेरी आत्मा तुम्हारी त..
रचनाकार शाहुल हमीद की कविता – हाय री दुनिया ** *[image: art10] * *हाय री दुनिया*** ** दिखने में जैसे दिखती मगर वैसी नहीं है - दुनिया । हँसाने के बाद रूलाती है - दुनिया । सच्‍चाई नही, झूठ पसन्‍द...Fulbagiya 

दाने चुन चुन खाना रे - चिड़िया के दो बच्चे थे।पिंकू और चिंकू। आज वे उड़ने के लिये पहली बार घोसले से बाहर निकले थे। मां उनके पीछे थी।दोनों ने पेड़ से नीचे झांका। “ऊं—हूं मैं नहीं उड़ूं..






अब आज्ञा दीजिए!
नमस्कार!!

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