Saturday, November 07, 2009

देख लो कितना काम करते हैं हम.... (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की )

अंक - ७०                चर्चाकार - हेमन्त कुमार

आज की चर्चा के साथ मैं हेमन्त कुमार आपके सामने हूँ । प्रस्तुत है आज की चर्चा । यह रही पहली पोस्ट -

ज्ञानदत्त पाण्डेय ने आज हीरालाल की नारियल साधना में  लिखा है कि -

"सिरपर छोटा सा जूड़ा बांधे निषाद घाट पर सामान्यत बैठे वह व्यक्ति कुछ भगत टाइप लगते थे। पिछले सोमवार उन्हें गंगा की कटान पर नीचे जरा सी जगह बना खड़े पाया। जहां वे खड़े थे, वह बड़ी स्ट्रेटेजिक लोकेशन लगती थी। वहां गंगा के बहाव को एक कोना मिलता था। गंगा की तेज धारा वहां से आगे तट को छोड़ती थी और तट के पास पानी गोल चक्कर सा खाता थम सा जाता था। गंगा के वेग ब्रेकर जैसा।"

प्रभाष जोशी जी की मृत्यु पर जगदीश्वर चतुर्वेदी जी कहते हैं-
हि‍न्‍दी पत्रकारि‍ता के शि‍खर पुरूष प्रभाष जोशी नहीं रहे। कल रात उन्‍हें भारत-आस्‍ट्रेलि‍या मैच देखते हुए हृदय का दौरा पड़ा और उसके बाद उनकी मौत हो गयी। उनकी उम्र 73 साल थी। पांच दशक से भी ज्‍यादा समय से वे हि‍न्‍दी पत्रकारि‍ता में सक्रि‍य थे। प्रभाष जी के जाने से हि‍न्‍दी ने अपना सबसे बड़ा जुनूनी हि‍मायती खो दि‍या है।
 एक और महत्वपूर्ण प्रविष्टि दी है जगदीश्वर जी ने ’हि‍न्‍दी के 'ई लेखकों' की चुनौति‍यां” - 
'ई' लेखन हि‍न्‍दी की सर्जनात्‍मक उपलब्‍धि‍ है। यह लेखन का मूल्‍यवान रूप है। इसमें थोड़ा सा इति‍हास,थोड़ी सी प्रकृति‍, थोड़ी सी वास्‍तवि‍कता,थोड़ा सा सामाजि‍क परि‍वेश खूब आ रहा है। यह हमारे 'ई'सर्जक की अभि‍व्‍यक्‍ति‍ का श्रेष्‍ठतम रूप है।  हमारे 'ई' लेखकों ने 'ई' पाठकों तक बहुत कुछ ऐसी जानकारि‍यां दी हैं जि‍से लोग पहले नहीं जानते थे।
अब आगे पढ़ाते हैं दो बाल चिट्ठाकारों के चिट्ठों की पोस्ट । पहले देखिये लविजा के शेरू का रूप -


मेरे दोस्त शेरू से मिलेंगे ? ये शेर खान है. जब मैं दादू के घर गए थे ये मुझे वहां मिला था ।
अब अक्षयांशी सिंह सेंगर के चिट्ठे पर पहुँचे - "देख लो कितना काम करते हैं हम" -


हम हो गए हैं अब बड़े,
इसलिए काम भी करते हैं बड़े-बड़े।
आप ही देख लो, हम अपना बिस्तर ख़ुद ही बिछाते हैं। वैसे घर में हम बहुत से काम अपने हाथ से ही करते हैं। खाना भी अपने हाथ से खाते हैं ये बात और है कि कई बार इस चक्कर में मम्मा से डांट पड़ जाती है।
दो ब्लॉग्स का जन्मदिन था कल, लोकेश का अदालत  दो वर्ष का हुआ। नीरज जाट के ब्लॉग ने भी कल जन्मदिन मनाया -
वस्तुत: इसे लेखन न कह कर संकलन कहना ज़्यादा उचित होगा। फिर भी विभिन्न संचार माध्यमों से एक ख़ास विषय की सूचनायों को एकत्र करना, विभिन्न भाषायों के शब्दों को हिन्दी में अनुवाद कर सामने लाना, ज़रूरी लिंक लगाना, विषय अनुरूप चित्र संलग्न करना, संपादित करना, समय पर प्रकाशित करना सामाजिक-पारिवारिक-आजीविका के दायित्वों के बीच काफी दुरूह कावस्तुत: इसे लेखन न कह कर संकलन कहना ज़्यादा उचित होगा। .....अदालत ।
आज के दिन मैंने अपने लिए एक क्रांतिकारी खोज की थी। वह खोज थी - अपना ब्लॉग बनाना। उत्साह-उत्साह में लगातार चार छोटी-छोटी पोस्टें भी डाल दी थी। लेकिन अगले दिन कोई टिप्पणी नहीं आई। उन दिनों मैं टिप्पणी पाने के लिए लिखता था। पहली टिप्पणी आई 6 दिन बाद यानी बारह नवम्बर को ताऊ की और वो पोस्ट थी - क्या ऐसे ही होते हैं जाट? .....मुसाफिर हूँ यारों
मृतकों का जन्मदिन क्यों मनाते हैं ? - बहुत सहज प्रश्न ----

हमारे एक मित्र ने अचानक एक सवाल किया कि यार यह बात समझ नहीं आती है कि लोग मृतकों का जन्म दिन क्यों मनाते हैं। उनके इस सवाल के बाद हम भी सोचने पर मजबूर हो गए हैं, कि वास्तव में जहां अपने देश में आधी से ज्यादा आबादी भूखी और नंगी है और लोगों के पास न तो खाने के लिए पैसे हैं और न तन ढ़कने के लिए कपड़े हैं, उस देश में बड़े-बड़े लोगों के जन्मदिन मरने के बाद भी क्यों मनाए जाते हैं। कुछ बड़े लोगों के जन्म दिन का जरूर यह फायदा हो जाता है, कि उस दिन गरीबों को कपड़े बांटे जाते हैं और खाना खिलाया जाता है, पर कितने लोग ऐसा करते हैं।
आपको पढ़वाते है रितु की कविता मर्यादा -
मर्यादा की सीमा का कुछ तो परिचय दो
बहु बेटी की मर्यादा का अलग हिसाब तो न रखो
देवी सीता ने भी अग्नि परीक्षा दी  थी
मर्यादापुरोशोतम  राम के कारन



 और प्रीती टेलर की कविता ये इश्क भी ...
लरज़ते होठों पर मेरा नाम था
पर वो बता ना सके ,
ये हया थी या कोई डर था ,
नज़र उठ उठ कर झुक जाती थी .....
 दो और कवितायें -

मेरे थिरक उठे हैं पांव..............ललित शर्मा
हरियाली  के चादर ओढे, देखो मेरा  सारा गांव ,
झूमके बरसी बरखा रानी,मेरे थिरक उठे हैं पांव,
मेरे  थिरक  उठे हैं पांव..

वृद्ध इंसान हूं मैं
जीवन बढ़ रहा अंत दिशा में,
हर्षोल्लास के रंग खो रहे निशा में,
यादें धुंधली पड़ रही हैं,
धड़कनें घड़ी से लड़ रही हैं।
गिरिजेश जी  एक आलसी का चिट्ठा पर -

'वन्दे मातरम'
हे शब्द समूह ! तुम्हें किसी जड़ मान्यता के भाष्य की आवश्यकता नहीं है।
 तुम स्वयंसिद्ध हो प्रात: उगते सूर्य को देख उपजे आह्लाद, सम्मान और विनय की तरह।
तुम स्वयंसिद्ध हो हमारे जीवन को ले धमनियों में दौड़ते रक्त प्रवाह की तरह। 
तुम स्वयंसिद्ध हो हमारे मन में उमड़ते पुरनियों के प्रति सम्मान की तरह।
हमारी आगामी पीढ़ियाँ भी तुम्हें साँसों में ऐसे ही घुलाए रखेंगी - जीवन की दुलार की तरह।
हमारी पीढ़ियाँ कृतघ्न नहीं होंगी।
उन्हें मूर्तिपूजक होने पर गर्व रहेगा
हे शब्द समूह, हम उन्हें ऐसे संस्कार देंगे।
वन्दे मातरम।
वृद्धावस्था की संवेदना को यहां देखिये-
अब वृद्ध भी अपना रहे लिव-इन रिलेशनशिप-
लिव-इन रिलेशनशिप स्वीकार करने वाले अधिकांश वृद्धों के फैसले की वजह एकाकीपन, समाज का डर, आर्थिक पक्ष, देखभाल तथा उम्र के आखिरी पड़ाव पर संतानों की उपेक्षा व इससे होने वाली पीड़ा आदि मुख्य कारण हैं। साथ ही उम्र के आखिरी पड़ा में विवाह विच्छेद जैसी पीड़ादायक स्थिति से बचने की गणना के साथ भी कई वृध्दजन ‘लिव-इन-रिलेशनशिप’ संबंध को तरजीह दे रहे हैं।
अशोक पाण्डेय जी परिचित करा रहे हैं-

तो अब चलें ब्‍लॉगर डैशबोर्ड से गूगल डैशबोर्ड की ओर..
अब समय आ गया है कि हम ब्‍लॉगर डैशबोर्ड की जगह सीधे गूगल डैशबोर्ड पर जाकर ब्‍लागरी या अन्‍य संबंधित काम करें। जी हां, गूगल ने नित नए उत्‍पाद और सेवाएं मुहैया कराने की अपनी कोशिशों को विस्‍तार देते हुए अब गूगल डैशबोर्ड लांच किया है, जो निश्चित तौर पर इंटरनेट प्रयोक्‍ताओं के लिए उपयोगी प्‍लेटफार्म साबित होगा।


सचिन तेंदुलकर का मैं घोर प्रशंसक हूँ । एक और प्रशंसक मधुकर उपाध्याय के उद्गार देखिये भारतनामा पर -

हिंदी में दो शब्द हैं। बिल्कुल आसपास की ध्वनि वाले। नियत और नियति। उर्दू जोड़ लें तो एक शब्द और। नीयत। इनके अर्थ भिन्न। प्रयोग जुदा। पर एक जगह तीनों एक साथ। नीयत ठीक। नियति पहले से ही नियत। यानी की तयशुदा। जैसे सचिन तेंदुलकर। क्रिकेट में महानता। वही नियति है। तय है। नियत है कि होना है एक दिन। इसलिए कि नीयत कांच की तरह साफ। न कोई खरोंच। न गंदगी। धूल-धक्कड़। बीस साल के अंतरराष्ट्रीय झंझावात में। सत्रहवें शिखर पर रहता। चमकता। बल्कि पहले से कुछ और ज्यादा दमकता।

बढ़िया प्रविष्टि लिखी है वाणी गीत ने - एक खुला खत दीदी के नाम -अंतिम किश्त   और अब निशांत जी के ब्लॉग पर माइकलेंजेलो की कलासाधना -

जिन लोगों को इटली के सिस्टाइन चैपल (गिरजाघर) में जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वे उसकी भीतरी छत पर अंकित कलाकृतियों को देखकर दांतों तले उंगली दबा लेते हैं. बाइबिल में वर्णित सृष्टि की पूरी कथा वहां पर चित्रों में अंकित है. ‘क्रियेशन ऑफ़ एडम’ चित्र विश्व के अत्यंत प्रसिद्द चित्रों में गिना जाता है और अद्भुत है. चैपल की छत पर तीन सौ से भी अधिक चित्र हैं जिनमें से कुछ तो अठारह फुट तक लम्बे हैं.
चलते- चलते चचा की टिप्पणी चर्चा -
तो आज हम होगवा हूं ६४ का…अऊर हमका बडा मजा आवा जब शुकुल की महराज ने हमको अजय झा बता दिया…हमरा लिये तो इ झुश होने का बात रहा..कारण हम तो बुडौती मा जवान हुई गवा..पर झा जी कहिन कि चच्चा ई तो हमारे लिये गाली है…हमका ऊ बुड्ढा बताय रहे हैं भरी जवानी मा…त शुकुल जी महराज..अजय झा से हमरी उम्र दोगुनी है आप कोनू चिंता नाही करो।
चचा को बधाई । हमारी चर्चा को विराम । 

35 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर चर्चा के लिए
हेमन्त कुमर जी को बधाई!

Gyan Darpan said...

बढ़िया चर्चा :)

Arvind Mishra said...

हेमंत जी आये सुन्दर चर्चा लाये

वाणी गीत said...

हमने भी मान लिया...आप चिटठा चर्चा का काम बहुत अच्छे से करते हैं ..
बहुत बढ़िया ..आभार ...!!

श्यामल सुमन said...

कई रचनाओं को एक साथ समेटने की आपकी लाजवाब कोशिश।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Himanshu Pandey said...

हेमन्त ने शुरुआत कर दी । अच्छा लगा ।

चर्चा सुन्दर है ।

राजकुमार ग्वालानी said...

लाजवाब चर्चा है आपकी

Mishra Pankaj said...

hello unable to write in hindi from this place so given coment in english
I am feeling very nice to see you today on this portal....
thaks&Best regards,
Pankaj Mishra

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर चर्चा है।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर और संतुलित चर्चा, आपका यह प्रयास सराहनीय है. आप नवयुवकों का यह जज्बा भविष्य के लिये आशाएं बंधाता है. शुभकामनाएं.

रामराम.

Ashok Pandey said...

सुंदर व सार्थक चर्चा। इस महत्‍वपूर्ण प्रयास के लिए हेमंत जी व चर्चाकार मंडली के अन्‍य साथियों को बधाई।

Meenu Khare said...

हेमंत जी आपकी चर्चा अच्छी लगी. बढ़िया लिंक्स मिले. धन्यवाद.

रंजन (Ranjan) said...

सार्थक चर्चा.. मैं चला गुगल डेशबोर्ड देखने..

Mithilesh dubey said...

बहुत ही सुन्दर चर्चा रही। बहुत-बहुत बधाई

स्वप्न मञ्जूषा said...

हेमंत जी,
आपकी पहली सफल चिटठा चर्चा के लिए ढेरों बधाई.!!!..

दिनेशराय द्विवेदी said...

सफल और सुंदर चर्चा!

Gyan Dutt Pandey said...

बहुत बढ़िया। अनूप सुकुल एण्ड को थोड़ा सुस्ता सकती है!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुंदर चर्चा!

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

सुन्दर चर्चा हेमन्त जी ।

Unknown said...

shandar...

बाबा निठ्ठल्लानंद जी said...

@ ज्ञानदत्त पाण्डेय| Gyandutt Pandey said...बहुत बढ़िया। अनूप सुकुल एण्ड को थोड़ा सुस्ता सकती है!

आपने सत्य कहा श्रीमान। आजकल चिठ्ठा चर्चा पर सिवाये गाली गलौज के कुछ नही हो रहा है। वो अपने एक सलाहकार की हरकतों और उसकी निजी कुंठाओं के चलते उस मंच को गर्त मे ले जा चुके हैं। अब कोई भी वहां जाना नही चाहते।

अब वहां सिर्फ़ रोज टेंपलेट बदलना और टिप्पणियों मे गाली गलौज करना ही शेष बचा है।

ईश्वर उन्हें सदबुद्धि दे और इन नादान सलाहकारों से पीछा छुडवाये जिससे पुराने दिन वापस लौटे।

कल्याणम अस्तु!

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

bahut sundar charcha

Arvind Mishra said...

@ज्ञान जी और ज्ञानी जी से सहमत ,ज्ञान जी अब कोई प्रति टिप्पणी मत कर दीजियेगा ! वृथा न जाय संत ऋषि वाणी !

दिगम्बर नासवा said...

सुन्दर चर्चा है .......... बहुत से नए चिट्ठे पता चल गए .......

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही बढिया रही चर्चा.....

Anonymous said...

अरे वाह !! यहाँ तो लविज़ा भी है...

सुन्दर चर्चा..

सुनीता शानू said...

हाँ भई काम ही नही कमाल करते हैं...:)

समयचक्र said...

सुन्दर चर्चा लाये

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

इतनी विशद चर्चा और सजा कर प्रस्तुत करने में काम तो बहुत करना ही पड़ता है। गुणवत्ता का अलग से ध्यान रखना पड़ता होगा नहीं तो हवन करते हाथ जलाने वाला संकट खड़ा हो सकता है।
मैंने बस एक बार अपनी टिप्पणियों को संजो कर एक पोस्ट किया था। उसके बाद पहला काम किया कि टिप्पणियों को सेव करना बन्द किया। न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। बहुत थकाऊ काम है, बाप रे!

इसीलिए आप सभी टिप्पणी चर्चा और ब्लॉग चर्चा वाले हाई डिग्री प्रशंसा के पात्र हैं।

विनोद कुमार पांडेय said...

बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार..सुंदर चर्चा..

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

vaakai mehnat ka kaam hai. BADHAI

मनोज कुमार said...

good

Anonymous said...

बढ़िया चर्चा
किन्तु

लोकेश का अदालत दो वर्ष का हुआ। नीरज जाट के ब्लॉग ने भी कल जन्मदिन मनाया

वाले वाक्य में लिंक्स गलत हैं :-)

बी एस पाबला

Ambarish said...

badhiya charcha... waapas aate hi sabse pahle yahin aaye.. sab pata chal gaya, kya kya hua do din mein...

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...
This comment has been removed by the author.

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