Friday, November 27, 2009

"....चाहते क्या हैं? महान स्त्रियों के बारे में बताना या स्त्रियों को नीचा दिखाना?" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की )

अंक : 91
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"" का सादर अभिवादन! आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" का प्रारम्भ करता हूँ-
"चिट्ठाकार निडर होकर के कुछ ऐसे ललकार रहे हैं!
भइया जी उत्तर दो इनको, ये तुमको फटकार रहे हैं।।"

कुमारेन्द्र सेंगर चाहते क्या हैं?महान स्त्रियों के बारे में बताना या स्त्रियों को नीचा दिखाना?  कभी कभी हम कोई अच्छा काम करना भी चाहते हैं तब भी यदि हमारी नीयत साफ न हो तो वह प्रयत्न व्यर्थ जाता है। यही सेंगर जी के प्रयास के साथ हुआ। वैसे यह भी मुमकिन है कि वे अच्छा नहीं करना चाहते थे  इसीलिए अच्छे उपाय अपना कर उसमें उलझ गये हैं ।मैं महिला नहीं हूँ लेकिन नारीवादी होने के नाते इस पोस्ट पर अपनी राय देना चाहता हूँ । सेंगरजी ने इस पोस्ट को लिखने के लिए यह सूची जुटाई है । उनके स्रोत अंग्रेजी के रहे हैं क्योंकि Chaudhary या Chaudhury को देवनागरी में वे दो नामों के साथ चैधरी लिख रहे हैं । इन दो नामों के साथ उन्होंने ’चैधरी ’ ट्रान्सलिटरेशन द्वारा जोड़ लिया है । कुमारेन्द्र सेंगर के बुझौव्वल प्रस्तुत करने के इस दम्भपूर्ण और फूहड़ तरीके के कारण ही कुछ महिला साथी प्रतिक्रिया में ..........

"गंगा मइया है पवित्र, उसको मैला मत होने दो।
नारी कोमल है उसको मत, भारी बोझा ढोने दो।।" 
सार्थक प्रयास कर चुकीं महिलाओं के बारे में जानना-बताना अपराध हो गया स्त्री-विमर्श से जुड़ी हुई एक पुस्तक पढ़ी थी जिसमें समूची पुस्तक को दो भागों में बाँटा गया था। उसमें से एक शीर्षक को नाम दिया गया था ‘हंगामा है क्यों बरपा थोड़ा सा जो जी लेते हैं।’ कुछ इसी तरह की बात हुई हमारी पिछली पोस्ट पर जो चोखेर बाली पर लगाई थी। भारतीय स्वाधीनता से सम्बन्धित कुछ महिलाओं के नामों के बारे में चर्चा कर ली तो हंगामा सा मच गया।
"न्यायाधीश आँखवाले हैं, पर अन्धा कानून।
आतंकी को फाँसी देने का, है नही जुनून।।"  
बंधे हुए लफ्ज़ .... 1: )आतंक के हाथ, क़ानून से ज्यादा लंबे हैं.......
2:)सुनो , आज कुछ लफ्ज़ दे दो मुझे, ना जाने मेरी कविता के, सब मायने...कहाँ खो गये हैं?
"बहलाया भी फुसलाया भी, और चलाया सम्मोहन।
ओबामा की चालों में, नही फँ पाये हैं मनमोहन।।"
राजनीति में भावुकता का सहयोग लेने का सिलसिला बहुत पुराना है। अगर हम सिकन्दर और पुरू के बीच में हुये युद्ध के बाद पुरु को राज्य वापिस मिलने की घटना को याद करें या हुमायुं को राखी भेजने की घटना की ओर दृष्टि दौड़ायें तो पाते हैं कि जो काम तलवार से सम्भव नहीं हुये वे भावुकता से हो गये हैं। 
तीदांग, न्यौली, टोपी शुक्ला, बारिश वगैरह
भुवन ने पूरा मकान किराए पर लिया हुआ है - सौ रुपया महीने पर. दरवाज़ों-खिड़कियों की लकड़ी पर महीन नक्काशी है और यह मकान समूची दारमा घाटी में देखे गए सुन्दरतम मकानों में से एक है. भीतर उसने कमरा अपने हिसाब से जमा रखा है. परम्परागत शौका घर में तमाम तरह के ऊनी कालीन, खालें, टोकरियां वगैरह होती हैं पर भुवन के कमरे में एक मेज़ है और दो घिसी हुई कुर्सियां. मेज़ पर कागज़-पत्तर-किताबें हैं और फ़िलिप्स का तीन बैण्ड वाला रेडियो..... 
"दूर हैं पर वो पास लगती हैं,
रंग और रूप से ये ठगती है।
जो कभी सन्तुलन बनातीं थीं-
वो पहाड़ी उदास लगती है।।"
ये बूढ़ी पहाड़ियां अक्सर उदास सी क्यों लगती हैं? जब कभी किसी हिल स्टेशन पर घूमने जाता हूं तो वहां की पहाड़ियां अक्सर मुझे बहुत उदास सी लगती हैं.. लगता है जैसे कुछ कहना चाहती हों.. अपना दर्द किसी से बांचना चाहती हों, मगर उन्हें सुनने वाला वहां कोई ना हो.. लम्बे-लम्बे देवदार के अधिकांश अधसूखे, अधमुर्झाये और जो पेड़ साबूत........ 
"विचलित मन" जब होता है, तो उलटी सीख सिखाता है। कवि व्यंगों के बाण साघ कर. सोये सुमन जगाता है।।" 
"विचलित मन"अब अपने नन्हें-बच्चों को पाठ विनम्रता का न पढ़ाना ! आने वाले कल की ख़ातिर सत्य -अहिंसा नहीं सिखाना !!..
"राम और रहमान का अन्तर बताना पड़ रहा है।
क्यों हमे गुजरा हुआ इतिहास गाना पड़ रहा है??" 
हाँ....मैं मुसलमान हूँ.... एक दो ग्रहों ने मुझ पर नज़रें क्या टेढ़ी की, पूरा ज़माना दुश्मन हो गया। सबसे पहला शिकार हुआ मालिक का। मकान मालिक ने अचानक कह दिया घर खाली कर दो। अपन भी ठसन बाज । निकल पड़े मकान ढूँढने । आज तक किसी की सुनी नहीं। किसी के लेन देन में नहीं पड़े , अपनी बीवी तक का तो ट्रान्सफर नहीं करा पाया, बस जीते रहे, मिशन की पत्रकारिता करते रहे, मेरे सामने आए पत्रकारों ने मकान क्या फ्लैट बुक करा लिए , कार ले ली।। जिन जूनियरों के लिए अधिमान्यता की लड़ाई लड़ी, वो आज अधिमान्य पत्रकारों पर फैसला देते हैं। इसीलिये वहां भी आवेदन देने का मन् नहीं करता। सबको डांटते रहता हूँ ये वाली पत्रकारिता, ज़्यादा दिन नहीं चलेगी। कुछ सीख लो। पढो रे..अच्छा लिखो, कुछ नया करने की कोशिश तो करो। मालिकों के तलुए चाटता तो आज दैनिक भास्कर में संपादक नहीं तो स्थानीय सम्पादक तो रहता ही।...शायद मैं मुद्दे से भटक गया। बात हो रही थी हाँ मैं मुसलमान हूँ की........
"सजग-सजग चिल्लाने से कब कोई सजग हो पाता है?
यहाँ संविधान का रखवाला, दारू पी कर सो जाता है।।"
बार बार सजग होने का पैगाम आनन्द राय, गोरखपुर
आज २६ तारीख है. देश की छाती पर आतंकियों ने इसी तारीख को पिछले साल ऐसा जख्म दिया जिसके घाव अभी तक हरे हैं. यह एक ऐसी विडंबना है जिस पर न तो आंसू बहा सकते और न ही अपने गम को छुपा सकते. यह भारत की बुलंद तस्वीर को बचाए रखने की गाथा भर नहीं है, यह तारीख तो हमें बार बार सजग होने का पैगाम भी है. यह तारीख इस बात का सबूत भी है कि अगर हम चुके तो हमारी हस्ती को मिटाने वाले आगे बढ़ जायेंगे. यह अलग बात है कि भारत की धरती वीरों से खाली नहीं है.......... 
"26-11-2008 के शहीदों को नमन करता हूँ!


धिक्कार है इस अन्घे संविधान को कि 
आज तक दोषियों को सजा नही मिल पाई है!"

26/11 का सच, आईने से अलग (नजरिया) आज २६ नवम्बर यानी कि मुंबई हमले को पुरे साल होने जा रहे हैं, आज ही के दिन हिन्दुस्तान के मुंबई में आतंकियों ने हमला बोला था, और हमारे जवानों और जांबाजों की बदौलत हमने न सिर्फ़ इस हमले को नाकाम किया .........

आज के लिए केवल इतना ही-
बाकी कल के लिए-.

17 comments:

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

शास्त्री जी! नमस्ते,आज बड़ी जल्दी मे समेट दिये, आभार

Himanshu Pandey said...

हाँ थोड़ी संक्षिप्त तो है, पर अकेले चर्चा का काम नियमिततः करना प्रशंसनीय़ है । आभार ।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

प्रशंसनीय़

Udan Tashtari said...

"चिट्ठाकार निडर होकर के कुछ ऐसे ललकार रहे हैं!
भइया जी उत्तर दो इनको, ये तुमको फटकार रहे हैं।।

-स्वस्थ परंपरा है हिन्दी चिट्ठाजगत के लिए..शायद आप भी यही दर्शाना चाह रहे हैं.


-सुन्दर चर्चा!!

वाणी गीत said...

संक्षिप्त मगर स्वस्थ चिटठा चर्चा ...!!

Randhir Singh Suman said...

nice

अजय कुमार said...

सुंदर, सार्थक चर्चा

Mithilesh dubey said...

सुन्दर चर्चा

vandana gupta said...

ACHCHE AUR GAMBHEER MUDDE UTHAYE HAIN.

Dr. Zakir Ali Rajnish said...
This comment has been removed by the author.
Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मयंक जी, सुंदर चर्चा चलाई है।
वैसे दिखाने वाला क्या दिखा रहा है, इसका कोई मतलब नहीं होता। असली बात यह होती है कि देखने वाला देखना क्या चाहता है। यही मानवीय प्रवृत्ति है।

------------------
क्या धरती की सारी कन्याएँ शुक्र की एजेंट हैं?
आप नहीं बता सकते कि पानी ठंडा है अथवा गरम?

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

सुन्दर किन्तु संक्षिप्त चर्चा.....

अनूप शुक्ल said...

शास्त्रीजी, कविता/आशु कविता आपकी सहज ताकत है। इसको ऐसे ही चर्चाओं में लिखते रहें। अच्छा लिखा आपने। अक्षर सब एक ही आकार के रखें तो बेहतर।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर चर्चा. शुभकामनाएं.

रामराम.

siddheshwar singh said...

आप बहुत बढ़िया काम कर हैं!
अच्छी चर्चा

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर said...

फटकारने वाले को क्या कहा जाये? जो जहाँ कहना था कह चुके.........
आपका आभार जो यहाँ भी चर्चा के लिए (स्वस्थ चर्चा के लिए) स्थान बना रखा है....

राज भाटिय़ा said...

शास्त्री जी बहुत अच्छा लिखा, असल मै आज मेडम थोडा वीजी है दुसरी तरफ़, वरना ब्लांग पर नारी शव्द देख कर भागी भागी आती है, ओर फ़िर लठ्ठ दे दनादन, यानि नामी ओर अनामी टिपण्णियां,समझने वाले भी समझ गये होगें... राम राम हम तो चले

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