Sunday, January 31, 2010

“एकता में अनेकता-अविनाश वाचस्पति” (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

पहचान लीजिए इन्हें-
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अविनाश वाचस्पति

About Me

भारतीय जन संचार संस्थान से 'संचार परिचय', तथा हिंदी पत्रकारिता पाठ्यक्रम पत्रकारिता। व्यंग्य, कविता एवं फ़िल्म लेखन प्रमुख उपलब्धियाँ सैंकड़ों पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। जिनमें नई दिल्ली से प्रकाशित दैनिक नवभारत टाइम्स, हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा, जनसत्ता और जयपुर की अहा जिंदगी मासिक इत्‍यादि। वर्ष 2008 में यमुनानगर, हरियाणा में आयोजित प्रथम हरियाणा अंतरराष्‍ट्रीय फिल्‍म समारोह में फिल्‍मोत्‍सव समाचार के तकनीकी संपादक। हरियाणवी फ़ीचर फ़िल्मों 'गुलाबो', 'छोटी साली' और 'ज़र, जोरू और ज़मीन' में प्रचार और जन-संपर्क तथा नेत्रदान पर बनी हिंदी टेली फ़िल्म 'ज्योति संकल्प' में सहायक निर्देशक। राष्ट्रभाषा नव-साहित्यकार परिषद और हरियाणवी फ़िल्म विकास परिषद के संस्थापकों में से एक। सामयिक साहित्यकार संगठन, दिल्ली तथा साहित्य कला भारती, दिल्ली में उपाध्यक्ष। केंद्रीय सचिवालय हिंदी परिषद के आजीवन सदस्‍य। 'साहित्यालंकार' , 'साहित्य दीप' उपाधियों और राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्त्राब्दी सम्मान' से सम्मानित। 'शहर में हैं सभी अंधे' स्‍वरचित काव्‍य रचनाओं का संकलन हिन्‍दी अकादमी, दिल्‍ली के सौजन्‍य से प्रकाशन। काव्य संकलन 'तेताला' तथा 'नवें दशक के प्रगतिशील कवि कविता संकलन का संपादन। संप्रति- फ़िल्म समारोह निदेशालय, सूचना और प्रसारण मंत्रालय, नई दिल्ली में कार्यरत्।

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पिताजी
Dev अजय कुमार झा गरिमा काजल कुमार Kajal Kumar वाणी गीत सुभाष नीरव पवन *चंदन* आलोक सिंह "साहिल" Murari Pareek अभिषेक प्रसाद 'अवि' अविनाश कविता वाचक्नवी Kavita Vachaknavee vinay आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'हिमांशु । Himanshu त्रिपुरारि कुमार शर्मा प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI ताऊ रामपुरिया राजीव तनेजा 25  more
खामोशी... बहुत कुछ कहती है
प्रबल प्रताप सिंह् Dhiraj arun c roy राजीव कुमार kanअभिषेक प्रसाद 'अवि' Ashish (Ashu) आवेश RAJIV MAHESHWARI सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi shama toshi gupta डॉ महेश सिन्हा
हरि शर्मा - नगरी-नगरी द्वारे-द्वारे
smrutirekha sahoo aanandita.anna HARI SHARMA
हँसते रहो हँसाते रहो
sanju आनन्द पाठक Shefali Pande राजीव तनेजा पवन *चंदन* सुशील कुमार छौक्कर अजय कुमार झा आलोक सिंह "साहिल" अविनाश सुशील कुमार Kirtish Bhatt, Cartoonist
partapsehgalkabl...
प्रताप सहगल
युवा सोच युवा खयालात
Kulwant Happy
प्रताप सहगल का ब्लॉग
प्रताप सहगल
अविनाश वाचस्पति
अविनाश
Ek sawaal tum karo
shama VIJAY TIWARI " KISLAY " Murari Pareek रश्मि प्रभा... डा गिरिराजशरण अग्रवाल knkayastha वन्दना अवस्थी दुबे शरद कोकास Sunita Sharma
sanjeevanii
Dr. Amit TYagi
महेश्‍वर प्रसाद वाग्‍मी
mpvagmi
बगीची
सृजनगाथा अविनाश पवन *चंदन* gyan chaturvedi
स्मृति-दीर्घा ...
काजल कुमार Kajal Kumar शैलेश भारतवासी सुभाष नीरवyehsilsila पवन *चंदन* राजीव रंजन प्रसाद सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi उमाशंकर मिश्र कथाकार Shefali Pandeश्यामल सुमन सुशील कुमार गरिमा shama राजीव तनेजा अजित वडनेरकर Arun Kumar Jha लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`डा०आशुतोष शुक्ल 15  more
तेताला
ललित शर्मा प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) संगीता पुरी अविनाश विजय प्रकाश सिंह सुभाष नीरव 'अदा' Gagan Sharma, Kuchh Alag sa राजीव तनेजा Sadhak Ummedsingh Baid "Saadhak "गरिमा डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक HARI SHARMA अजय कुमार झा shashisinghal विनोद कुमार पांडेय Vivek Rastogi "Aks"काजल कुमार Kajal Kumar
नुक्कड़
मनुदीप यदुवंशी श्रीकान्त मिश्र ’कान्त’ varsha डा०आशुतोष शुक्ल Jagdeep S. Dangi पत्रकार sareetha Vivek Rastogiप्रमोद ताम्बट prabhat gopal चण्डीदत्त शुक्ल Shefali Pandeअजित वडनेरकर सुशील कुमार पं.डी.के.शर्मा"वत्स" सतीश चंद्र सत्यार्थी तेजेन्द्र शर्मा पवन *चंदन* काजल कुमार Kajal Kumarज़ाकिर अली ‘रजनीश’ 50  more
पांचवा खम्बा
डॉ महेश सिन्हा संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari Vivek Rastogi Udan Tashtari PD बी एस पाबला Meenu Khareसंगीता पुरी निर्मला कपिला Sanjeet Tripathi Kanishka Kashyap anitakumar cmpershad Anil Pusadkar अजय कुमार झा डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
झकाझक टाइम्स
अविनाश HARI SHARMA
भारत ब्रिगेड
गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' Ankur Billore दिव्य नर्मदा divya narmada शरद कोकास महाशक्ति बी एस पाबला जी.के. अवधिया Doobe ji अजय कुमार झा महेन्द्र मिश्र दीपक 'मशाल'ललित शर्मा Administration महफूज़ अली Kulwant Happyबवाल Udan Tashtari
माँ !
ई-गुरु राजीव अजित वडनेरकर पंकज शुक्ल लोकेश Lokesh Mrs. Asha Joglekar ankit agrawal *KHUSHI* akshat saxenaDr. Pundir मिहिरभोज दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai DwivediPD Shastri JC Philip KK Yadav Manvinder RAJ SINHjyoti saraf Beji मीनाक्षी सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी 24  more
भारतीय शिक्षा - Indian Education
श्रद्धा जैन सतीश चंद्र सत्यार्थी Atul radhasaxena हर्षवर्धनShamikh Faraz PANKAJ UPADHYAY Shastri JC PhilipASHUTOSH प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi
मीडिया मंत्र (मीडिया की खबर)
मीडिया मंत्र - पुष्कर पुष्प विनीत कुमार Chandan kumar singh पत्रकार Kirtish Bhatt, Cartoonist RANJAN ZAIDI
चौखट
पवन *चंदन*
पहला एहसास
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" Dr. Harshendra Singh Sengar आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI डॉo लखन लाल पाल सुधाकल्प दीपक 'मशाल' डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगरRatan Singh Shekhawat Deepak "बेदिल" Srws भागीरथडा. श्याम गुप्त Dr.Aditya Kumar शैफालिका - ओस की बूँदअक्षय कटोच *** AKSHAY KATOCH डॉ महेश सिन्हा
सबद-लोक । The World of Words
सुशील कुमार
हास्य कवि दरबार
योगेन्द्र मौदगिल
चेतना के स्वर उजाले की ओर
varsha चेतना के स्वर
प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा
अजय कुमार झा प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI बी एस पाबला Shastri JC Philip दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi संजीव कुमार सिन्हा Shefali Pande हिंदी ब्लॉगर
आज प्रस्तुत हैं इनके ब्लॉग्स की 
कुछ अद्यतन प्रविष्ठियाँ-

बगीची

हिन्‍दी ब्‍लॉगर को पद्म पुरस्‍कार (अविनाश वाचस्‍पति)
क्‍या कोहरा कभी छंटेगा
और उससे देश को दिखेगा
हिन्‍दी ब्‍लॉगर कोई
जिसे दे सकें वे
पद्म पुरस्‍कार कोई
श्री,श्रीमती,सुश्री
भूषण, आभूषण,विभूषण।
सब चाहेंगे
उसे ही मिल जाये
पर मैं चाहूंगा
मिले आपको
जिससे हिंन्‍दी ब्‍लॉगिंग का
स्‍वरूप कोहरे से बाहर
निकल कर चमक दमक जाये।
प्रस्तुतकर्ता अविनाश वाचस्पति
झकाझक टाइम्स
माननीय शैल अग्रवात जी इसकी पुष्टि कीजिएगाः
क्या ये सच है?
[SHAIL.JPG]
[SHAIL+1.JPG]
नुक्कड़
साधक उम्मेद सिंह जी और प्रशांत उर्फ़ पीडी से एक छोटी सी मुलाकात चैन्नई में
आज की मुलाकात का विवरण बाद में, केवल एक फ़ोटो देखिये ..
00
साधक उम्मेद सिंह जी की कलम इस मुलाकात के लिये -
प्यारी सी यह सुबह, सार्थक भी लगती कुछ ज्यादा.
विवेक के संग प्रशान्त पाया, लिये अर्थ तात्विक सा.
लिये अर्थ तात्विक सा, चर्चा खुद की और जगत की.
ब्लाग पे क्या लिखते, क्यों लिखते? सारी बातें मन की.
कह साधक यह मुलाकात तीनों को याद रहेगी.
सार्थक भी लगती कुछ ज्यादा, यह सुबह प्यारी सी.

पिताजी

शुरूआत से संपन्‍न होने तक का सफर

स्मृति गीत / शोक गीत

याद आ रही पिता तुम्हारी

संजीव 'सलिल'
 
तेताला
 
"ललित की कविता का स्वंयवर” (शास्त्री “मयंक”)
प्रियवर अविनाश वाचस्पति के अनुरोध पर मैं डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
”तेताला” पर चर्चा करने के लिए आपके समक्ष हाजिर हूँ-
यदि आपको अपनी हिन्दी सुधारनी है तो “हिंदी का शृंगार” पढ़िए-
नवसुर में कोयल गाता है

माँ !

विश्व में माँ के योगदान को लोगों के समक्ष रखने वाला एक चिट्ठा!!

मेरी माँ
नये ज़माने के रंग में,
पुरानी सी लगती है जो|

aage बढने वालों के बीच,
पिछङी सी लगती है जो|

गिर जाने पर मेरे,
दर्द से सिहर जाती है जो|

चश्मे के पीछे ,आँखें गढाए,
हर चेहरे में मुझे निहारती है जो|

खिङकी के पीछे ,टकटकी लगाए,
मेरा इन्तजार करती है जो|

सुई में धागा डालने के लिये,
हर बार मेरी मनुहार करती है जो|

तवे से उतरे हुए ,गरम फुल्कों में,
जाने कितना स्वाद भर देती है जो|

मुझे परदेस भेज ,अब याद करके,
कभी-कभी पलकें भिगा लेती है जो|

मेरी खुशियों का लवण,
mere जीवन का सार,
मेरी मुस्कुराहटों की मिठास,
merii आशाओं का आधार,
मेरी माँ, हाँ मेरी माँ ही तो है वो
|

अविनाश वाचस्पति

कीबोर्ड का खटरागी

आइये दिल्‍ली की झांकी यहां पर देखें : गणतंत्र दिवस पर नहीं दिखाई जा रही है

>> मंगलवार, २६ जनवरी २०१०


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आखर कलश
हरिभूमि

पांचवा खम्बा

यह चिट्ठा चिट्ठाकारों के सम्मेलन , मिलन और उनकी गतिविधियों की सूचना के बारे में है . साथ ही ब्लॉग जगत संबंधित सूचनायें भी दी जा सकती हैं .
लखनऊ की पहली औपचारिक चिट्ठाकार भिड़ण्त में आप सादर आमंत्रित हैं।
ये मैं नहीं कह रहा ज़ाकिर अली रजनीश का स्नेह निमंत्रण है
ये बैठका गोखले मार्ग स्थित एन0बी0आर0आई0 के गेस्ट हाउस में प्रस्तावित है और उसकी तारीख है 30 जनवरी। समय रखा गया है, शाम के 06 बजे का
सबद-लोक । The World of Words
पप्‍पू का रिसेंट फोटो देखना मत भूलियेगा

Saturday, January 30, 2010


पप्‍पू ने बांध दिया
बांध दिया मजा
जा रहे थे सड़क
सड़क
लिखा देगा दीवार पर
कुछ कड़क
दिमाग गया पप्‍पू का
तुरंत सरक
... पढ़ने वाला गधा
वहीं रूक गये
कदमों में दम था
पर वहीं जम गये
जमे रहे कई घंटे
मौसम कई बदले
फिर बदला दिमाग
लिखी लाईनों को मिटाया
उनकी जगह जवाब जमाया
लिखने वाला गधा।
गधा सीधा सादा
पूरा नहीं आधा।
कैसा लगा आपको अविनाश वाचस्पति से मिलकर-
जवाब दीजिए अपनी टिप्पणियों के माध्यम से-
अगले सोमवार को फिर मिलूँगा!!

Saturday, January 30, 2010

एक नम्बर के कुत्ते अब्बू तुम्हारे-इक बुत बनाऊंगा“चर्चा हिन्दी चिट्ठों की” (ललित शर्मा)

आज कल पद्म श्री को लेकर काफी चर्चाएँ मीडिया और ब्लाग दोनों पर आ रही हैं. सैफ अली खां को पद्म श्री देने पर विश्नोई समाज ने अपना मुखर विरोध दर्ज कराया है तथा विरोध प्रदर्शन करते हुए पद्म श्री वापस लेने की मांग की है. सैफ अली द्वारा हिरण का शिकार करने के बाद भी पद्म श्री से नवाजे जाने से झुब्ध विश्नोई समाज अब प्रदर्शन पर उतर आया है. अब मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की हिंदी चिट्ठों की चर्चा पर................
आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं अदा जी की पोस्ट से वे पुछ रही है कौन है ??? बेनामी जी के लेखन से चकित हैं।आज कल ब्लॉग जगत में बेनामी जी   अपनी सही और सधी हुई बातों के लिए बहुत पसंद किये swapna जा रहे हैं...पहले दिन ही मुझे लगा कि ये ज़रूर मुफलिस जी हैं..उनसे मैंने पूछ भी लिया ...लेकिन ज़ाहिर सी बात है उनका जवाब ..'ऋणात्मक' था..हा हा हा..फिर मुझे लगा गिरिजेश राव हैं, उनसे भी पूछ लिया.. .उनका जवाब गोल-मोल था....आज गौतम राजरिशी की टिपण्णी देखी उनपर भी लोगों ने शक किया है... आज आप लोगों से पूछती हूँ कौन है ये 'बेनामी जी' ?? वैसे तो ये बेनामी ही रहे तो अच्छा है..क्यूंकि 'बेनामी' रह कर ये जो काम कर पा रहे हैं शायद 'नाम' के साथ नहीं कर पाते...मैं तो इनकी मुरीद हो ही गयी हूँ...आप लोग क्या कहते हैं...ज़रा अपने विचार दीजिये अखीर हैं कौन ये..? कोई महिला भी हो सकती हैं.. चलिए अब गेसियाइये  ज़रा.....हा हा हा
mithleshमिथलेश दुबे जी  आज कि पोस्ट में बड़ी  गंभीरता से कह रहे हैं कि शरीर दिखाने वाले कपडे पहनने को आजादी कतई नहीं माना जा सकता आजादीको परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। हर इंसान अपनी बुद्धि  का सही उपयोग करते हुए आजादी की सीमा तय करता है। हर व्यक्ति स्वतंत्र रहना चाहता है,परंतु इसकी अधिकता कभी-कभी नुकसानदेह साबित होती है। आज बेटी-बेटे को समानता का दर्जा दिया जाता है, लेकिन समाज का माहौल देखते हुए लडकियों की सुरक्षा की दृष्टि से माता-पिता उनकी आजादी की सीमाएं तय कर देते हैं, जो कि किसी दृष्टि से गलत नहीं है। यही बात बेटों पर भी लागू होती हैं।उन्हेंभी अनुशासित करने के लिए समय-समय पर उनकी आजादी की सीमाएं तय करना बहुत जरूरी है। आजादी में संतुलन बहुत जरूरी है। मेरे विचार से आजादी का सही अर्थ है-सामंजस्य।
राजकुमार सोनी जी भी एक से एक पोस्ट लेकर आ रहे हैं ब्लाग जगत को समृद्ध करने के लिए इनके  rajkumar soniलेखन के तो हम कायल हैं आज लाये हैं  केमिकल लोचा . कोई सही तरीके से बताने को तैयार नहीं है कि ‘केमिकल लोचा’ शब्द की उत्पति कहां से हुई है, लेकिन समझा जाता है कि राजकुमार हिरानी की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई में संजय दत्त ने इस शब्द की महिमा को अपने तरीके से समझाने का प्रयास किया था। मोटे तौर पर केमिकल का मतलब रसायन और लोचा का अर्थ लफड़ा होता है। कुल मिलाकर ऐसा विवाद जिसमें कई तरह की रासायनिक क्रियाएं शामिल हो गई हों उसे केमिकल लोचे की श्रेणी में रखा जा सकता है।बताते हैं कि जब आरएसएस का जुलूस निकल रहा था तो निगम में पत्नी की जगह स्वयं ही आमद देने वाले एक पार्षद ने श्रीमती नायक को भारतीय संस्कृति का हवाला देते हुए यह सुझाव दिया था कि वे पथ संचलन करने वाले लोगों का स्वागत जरूर करें। आनन-फानन में फूल एकत्रित किए गए और फूल बरसाओ कार्यक्रम संपन्न हो गया।
sangiv tivari संजीव तिवारी जी ने काहिरा में महफ़ूज़ और तिल्दा का चांवल दोनों से मुलाकात की ये काहिरा पहुँच गए और उनको वहां हमारे छत्तीसगढ़ के तिल्दा के चांवल की खुशबु आ गई और महफूज भाई के रेस्तरां में भी पहुँच गए जम के आन्नद लिया.पिछले दिनों ब्लॉग जगत में अदा जी के घर के चित्रों को ब्लॉग में प्रस्तुत करने के संबंध में प्रकाशित एक पोस्ट पर सबने दांतो तले उंगली दबा ली थी और जिस प्रकार पाबला जी ने कनाडा यात्रा की वैसी यात्रा करने के लिए अनेक ब्लॉगर उत्सुक थे. कल पाबला जी हमारे पास आये तो हमने भी बिना पासपोर्ट वीजा के कनाडा यात्रा के गुर के संबंध में पाबला जी से पूछा पर वे बाद में बतलाता हूं कह कर टाल गए. हमने अपनी जुगत और जुगाड लगाई. इन दिनो हिन्दी ब्लॉगजगत में आभासी दुनिया के भूगोल पर बडी-बडी विद्वतापूर्ण पोस्टें आ रही है सो हमने भी इस आभासी दुनिया का सहारा लिया और उड चले तूतनखामीन और पिरामिडो के देश मिश्र की ओर.
sunitaji फ़र्रुखाबादी विजेता (185) : सुश्री सुनीता शानुनमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और रिजल्ट बतायें.प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. इससे पहले की मैं आपको रिजल्ट बताऊं आप सवाल का मूल चित्र नीचे देख लिजिये जिससे की यह सवाल का चित्र लिया गया था.
RATAN SINGH-2 रतन सिंग जी इतिहास से सम्बन्धी विषय पर बहुत ही बढ़िया कहानी लिख रहे हैं. सुख और स्वातंत्र्य -२ यमराज ने एक 'वाह ' भरी और चित्रगुप्त ने उसकी और उडती निगाहों से देखकर पुन: कहना शुरू किया -' ऐसे कठिन समय में जब इसके समक्ष भिनाय की जनता ने आकर पुकार कि वे उसके शासक मादलिया के अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रहे है तब ' क्षतात त्रायते ' के मन्त्र को चरितार्थ करता हुआ यह शक्ति व्यय की बिना चिंता किये भिनाय में आ धमका | मादलिया के यहाँ महफ़िल चल रही थी , शराब के दौर में मानवता निगली जा रही थी और अचानक इस चन्द्रसेन की तलवार चमक उठी | प्याले टूट गए , पैमाने लुढ़क गए , सूरा के साथ मादलिया के जुल्मों की कहानी भी सदा के लिए भूमि पर छितरा गयी |'

......एक नम्बर के कुत्ते अब्बू तुम्हारे....
तुम गुलकन्द हो हमारी.....हम मीठे पान तुम्हारेYshvant mehta
.....१२० का तम्बाकू अब्बू तुम्हारे
तुम नदिया हो हमारी.....हम मछ्ली तुम्हारे
.....बेरहम मछुहारे अब्बू तुम्हारे
तुम खबर हो हमारी......हम अखबार तुम्हारे
.....कैचीं छाप एडिटर अब्बू तुम्हारे
तुम गज़ल हो हमारी.....हम सुर तुम्हारे
....बेवकूफ़ फ़नकार अब्बू तुम्हारे
तुम कविता हो हमारी......हम शिल्प तुम्हारे
....कचरा कवि अब्बू तुम्हारे
तुम शहनाई हो हमारी......हम तानपुरा तुम्हारे
....फ़टा हुआ ढोलक अब्बू तुम्हारे
तुम खुशबू हो हमारी.....हम परफ़्युम तुम्हारे
.....पसीने की बदबू अब्बू तुम्हारे
'' खिला गुलाब हँसाता है तेरी यादों को / हँसी के जिस्म में अफ़सोस ढल गया , जानां ! '' ......amarendra

'' तेरी निगाह की सूरत में पल गया , जानां !


मैं अपनी जीस्त में कितना बदल गया , जानां !
मुद्दतों बाद तेरी डरी - डरी 'कॉल' आयी 
म्हारे दिल का वो बच्चा उछल गया , जानां !
वो मुश्ते-ख़ाक थी,तुझ संग उड़ाई पुर्वा में
अब वक्ते-ख़ाक में चेहरा ही मल गया , जानां !
ख़ता की राह से हम दोनों बहोत दूर रहे
मंजिले-इश्क़ को क्यूँ कोई छल गया , जानां !
खिला गुलाब हँसाता है तेरी यादों को
हँसी के जिस्म में अफ़सोस ढल गया , जानां ! ''

“बादल घने हैं
कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में Rupchand बादल घने हैं।
दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।।
आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है,
कल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है,

“पिल्लू”

जब तुम थे प्यारे से बच्चे,
मुझको लगते कितने अच्छे.

मैं गोदी में तुम्हें खिलाता,
ब्रेड डालकर दूध पिलाता,

दस वर्षों तक साथ निभाया,
आज छोड़ दी तुमने काया,
इक बुत बनाऊंगा ...खुशदीप
इक बुत बनाऊंगा तेरा और पूजा करूंगा अरे मर जाऊंगा प्यार अगर मैं दूजा करूंगा...इक बुत बनाऊंगा... (असली नकली, 1962)किसी पत्थर की सूरत से मुहब्बत का इरादा है.परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा हैकिसी पत्थर की सूरत से...(हमराज,1967)ये दोनों गाने आज अचानक लब
क्‍या 'मितव्‍ययिता' का सही अर्थ यही है ??
मुझे वह समय पूरी तरह याद है , जब मैने मित्‍तव्‍ययिता शब्‍द को पहली बार सुना था। उस वक्‍त जाने पहचाने शब्‍दों पर ही लेख लिखने की आदत के कारण इस अनजाने शब्‍द पर लेख लिख पाना बहुत कठिन लग रहा था। घर आकर लेख लिखने की कई पुस्‍तकों में इस शब्‍द को ढूंढा ,

छह माह पहले आप ही ने तो यह कहा था .......
19 टिप्पणियाँ: Arvind Mishra ने कहा…आगे बढ़ते चलिए और इस जन्म को सार्थक करिए !स्वप्नदर्शी ने कहा…You can also visit my blog, I do write often about science, biotech and society and science often.बालसुब्रमण्यम ने कहा…यह बहुत अच्छा प्रयास
गर्भ में पल रहे शिशु को बना दूंगा अभिमन्यू
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसे सज्जन हैं जो यह दावा करते हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु को वे अभिमन्यू बना सकते हैं। वैसे ये सज्जन लोगों को पिछले जन्म का राज बताने का भी काम करते हैं। अब तक करीब तीन सौ लोगों को ये पिछले जन्म की सैर कराने की बात कहते

Veer Bahuti
गज़ल इस गज़ल को भी आदरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है।बेशक अभी गज़ल मे गज़ल जैसा निखार नहीं आया मगर सीखने की राह पर हूँ। आपसब के प्रोत्साहन से और भाई साहिब के आशीर्वाद से शायद कुछ कर पाऊँगी। तब तक पढते रहिये इन को । धन्यवाद्जो बनाये यूँ फसाने ये जवानी ठीक
मैंने कब कहा कि जिस पोस्ट में मैंने टिप्पणी नहीं की वह "व्यर्थ लेखन" या "निरर्थक पोस्ट" है
मैंने एक पोस्ट लिखा था "मैं टिप्पणी क्यों करता हूँ"। पोस्ट में मैंने सीधे सरल शब्दों में सिर्फ यह बताया था कि टिप्पणी करने के मेरे अपने क्या कारण हैं। पर वहाँ की कुछ टिप्पणियों
प्रीत का यह रूप
प्रीत का यह रूप मेरे अंतस को छू गया शायद आप भी पसंद करेंगे
रिकार्डतोड़ मिली टिप्पणियों की प्रस्तुति - आभार सहित
26 जनवरी को देश ने अपना गणतंत्र दिवस मनाया और हमने एक प्रकार का स्वतन्त्रता दिवस। एक पोस्ट लिखी थी जिसमें अब हमने टिप्पणी-द्वार बंद करने का निर्णय लिया था। आश्चर्य अपनी सबसे अच्छी समझी जाने वाली पोस्ट पर भी इतनी टिप्पणियां नहीं आईं जितनी इस एक पोस्ट पर

वसंतोत्सव में आज आठ दशक पूर्व मनाई गयी होली का दृश्य
साहित्य समय की सीमाओं में कभी नहीं बंधता . वह तो शाश्वत होता है . १९२४ की इस साहित्यिक रचना को आज के परिवेश में केन्द्रित कर देखें . क्या ७० वर्ष पूर्व की धड़कनें आज आपके चतुर्दिक फैले परिवेश में नहीं धड़क रही है ? आज की बात को सात दशक पहले ही रचनाकार ने

त्रिवेदी की फोल्डिंग और भटनागर की रजाई
डा. प्रदीप भटनागर उदयपुर पहुंच गए हैं लेकिन चंडीगढ़ की उनकी रजाई पराए की लुगाई की तरह पता नहीं कहां गुम हो गई है. अनिल त्रिवेदी अभी भी चंडीगढ़ में ही हैं और मेरी फोल्डिंग फिर उनके पास पहुंच गई है. जिंदगी की कुछ छोटी-छोटी बातें ऐसी होती हैं जो बार-बार याद

क्षणिकाएं
तुम मानो या ना मानोमुझे पता हैप्यार करती हो मुझेतुम स्वीकारो या ना स्वीकारोमुझे पता हैतुम्हारा हूँ मैंअश्क भी आते नहीदर्द भी होता नहीतू पास होकर भीअब पास होता नहीइक आती सांस के साथतेरे आने की आस बँधीऔर जाती सांस के साथहर आस टूट गयीतेरी पुकार में ही दम ना

एक सानिया सौ अफसाने
खबर आई है कि टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा की सगाई टूट गई है। कुछ के लिए यह खबर राहत देने वाली हो सकती है। खुद सानिया के लिए भी। नहीं तो सानिया खुद इस बात का ऐलान क्यों करतीं। खैर।बात सानिया की हो और अफवाहें जन्म न ले संभव नहीं। शायद सानिया और अफवाहों का

जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !
हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,न शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने !सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है , जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!यादों की गठरी को सीने पे रख कर,किया मजबूर चलने को हमें पातळ ने !क़दमों को अब तक संभाले हुए है, डगमगाया बहुत रास्तों के

अरे दीवानों मुझे पहचानो!!!
मैंने सोचा आज मैं भी जरा मौज ले लूँ!ना तो राजीव तनेजा जैसा कुछ कर रहा हूँ न ही कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा जैसा और न ही रचना सिंह जैसाआप तो बस इस ब्लॉगर को पहचानिएकोई हिंट, कोई बात, कोई पहचान नहीं बता रहा हूँ।आप बस नाम बताईए इनका और ब्लॉग बता सकें तो

रोज़ नए दर्द, संभालता हूँ मैं
हर पल,इक नया ,वक़्त ,तलाशता हूँ मैं॥जो मुझ संग,हँसे रोये,वो बुत,तराश्ता हूँ मैं॥मेरी फितरत ,ही ऐसी है कि,रोज़ नए दर्द,संभालता हूँ मैं॥परवरिश हुई है,कुछ इस तरह से कि,कभी जख्म मुझे, कभी,जख्मों को पालता हूँ मैं॥सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,एक गम आता है,

मैं पाबला जी को मैच नहीं कर सकता ...वे ... एक जुनूनी व्यक्ति लगते हैं
- ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandeyकल एक टिप्पणी मिली अमैच्योर रेडियो के प्रयोगधर्मी सज्जन श्री बी एस पाबला की। मैं उनकी टिप्पणी को बहुत वैल्यू देता हूं, चूंकि, वे (टिप्पणी के अनुसार) एक जुनूनी व्यक्ति लगते हैं ...मैं पाबला जी को मैच नहीं कर सकता ...

प्रतिष्ठित समाचार पत्र हरिभूमि के दिल्ली संस्करण में प्रकाशित मेरी एक और नई व्यंग- नेताओं का अपमान नहीं सहेगा हिन्दुस्तान.
मेरी यह दूसरी व्यंग जिसे हरिभूमि में स्थान मिला जिसके लिए मैं चाचा अविनाश वाचस्पति जी का भी बहुत आभारी हूँ, जिनके आशीर्वाद से आज यह कवि एक व्यंग रचनाकार के रूप

व्यवस्था ने न्याय देने से अपने हाथ ऊँचे कर दिए हैं
देश भर की अदालतों में मुकदमे बहुत इकट्ठे हो गए हैं।  निर्णय बहुत-बहुत देरी से आ रहे हैं, पूरी की पूरी पीढ़ी मुकदमों में खप रही है। जजों को बड़ा आराम है। वे अपने निर्धारित काम के आँकड़े से दो-ढाई गुना काम कर दे रहे हैं। लेकिन किए जाने वाला काम ऐसा है
महाराष्ट्र में इन्टरनेट के जरिये दर्ज होगी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज
आज एक खबर पढ़ी कि महाराष्ट्र में ई-कम्प्लेंट दर्ज होगी. अब व्यक्ति के लिए थाने जाने की आवश्यकता नहीं होगी, इन्टरनेट के जरिये ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो जायेगी तथा उसकी एक प्रतिलिपि मोबाइल पर उपलब्ध होगी. डीसीपी स्तर का अधिकारी शिकायत की जांच करेगा और
अब देता हुँ चर्चा को विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम

Friday, January 29, 2010

चिठ्ठाचर्चा डोमेन डकैतों द्वारा लूटा गया? (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की )

 

नमस्कार. पंकज मिश्रा आपके साथ !  चर्चा हिन्दी चिट्ठों के इस अंक मे मै आपका हार्दिक स्वागत करता हु! आज रतन सिंह शेखावत जी के माध्यम से काफ़ी IMG0040Aकुछ जानने का मौका मिला और उसी का नतीजा है हमारा यह नया वेब साईट जो कि मेरे बारे मे व्यक्तिगत जानकारी देता है आप इस साईट पर जाकर दो मिनट का समय दिजिये और यहा आकर बताईये कैसा लगा हमारा यह नया प्रयास?!

चलिये चर्चा की तरह चलते है .शुरुआत करते है आज कल चल रहे सबसे ज्वलंत मुद्दे पर चिट्ठा चर्चा डाट काम बनाम डोमेन ! आज इस बात को लेकर काफ़ी पोस्ट आयी है शुरुआत चच्चा टिप्पु सिंह जी के ब्लाग से . चच्चा पुछ रहे है चिठ्ठाचर्चा डोमेन डकैतों द्वारा लूटा गया? आप भी पढिये और बताईये!

आपका फ़रमाना है कि प्रथम दर्जे के लोग तो ब्रांड बनाते हैं.  तो आप क्या ई कहना चाह रहे हैं कि शुकुलजी अऊर मगरुरवा ने लोगों की इज्जत खराब करके ..उनकी मौज लेके ये ब्रांड बनाया है?  अऊर क्या इस ब्रांड की यही औकात है कि ये सडक पर पडा हुआ मिल रहा है? जरा किसी ब्रांड को आप खरीद कर तो बताईये.  जो डोमेन लिया गया है उसकी औकात ये है कि जैसे सडक पर पडा हुआ मिल रहा हो. अब भी उस से संबंधित ब्रांड तमाम सडक पर बिखरे माल जैसा उपलब्ध है।

हम कहता हूं कि जब एतना ही ब्रांडेड माल रहा त क्युं नाही संभाल कर रखा?  क्या आप अपना तिजोरी को सडक पर खुला छोड देंगे  अऊर ई उम्मीद करेंगे कि दूसरा  नेक नियती अऊर पुरातन के नाम पर कोई उसको उठायेगा नही?

और तभी बी एस पाबला जी का भी पोस्ट आया कि चिट्ठाचर्चा डॉट कॉम खरीदा गया तो अपराध की गर्त में चले गए!?

pabla-postवहीं मैंने स्पष्ट कर दिया कि यह डोमेन मेरा नहीं है, छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स का है, उनकी एसोसिएशन का है, इसकी घोषणा खुलेआम की गई है, चोरी छिपे यह कार्य नहीं हुया है। मंच से ही इस व्यवधान का समाधान पूछे जाने पर उपस्थित साथियों में से मात्र संजीत त्रिपाठी जी को छोड़ कर, अग्रिम पंक्ति के ब्लॉगरों ने इस डोमेन का उपयोग अन्यत्र किए जाने का विरोध किया। (इस संबंध में संजीत त्रिपाठी जी ने अपनी पोस्ट में कुछ प्रश्न उठाए हैं, जिनका उत्तर मैं व्यक्तिगत तौर पर अगली पोस्ट पर देना पसंद करूँगा।) उस समय इस मुद्दे पर अधिकतर ब्लॉगर उदासीन ही दिखे। बाद में आपसी बातचीत में मुझे ज्ञात हुया कि वे इससे अनभिज्ञ हैं, इस चिट्ठाचर्चा नाम की चिड़िया को जानते ही नहीं क्योंकि वह उनके घर (ब्लॉग) पर कभी आई ही नहीं! तब मुझे लगा इसे ले कर मेरा गंभीर होना शायद गलत है व नाहक ही इस नाम की अहमियत का ढिंढोरा पीटा जा रहा है।

समीर लाल जी के माताजी को हमारी श्रद्धांजलि।कहते हैं मेरी माँ की ५वीं पुण्य तिथि है आज!!

mummyलगता है कि कल ही उससे बात करता था. ये ५ साल, एक खालीपन, कब निकल गये मैं नहीं समझ पाया. अभी भी वो रोज मिलती है मुझे ख्वाबों में. कोई रात याद नहीं जब वो न आई हो. जाने क्या क्या समझाती है. मैं झगड़ता भी हूँ वैसे ही जैसे जब वो सामने थी... फिर नींद खुलने पर रोता भी हूँ मगर वो रहती आस पास ही है. तन से नहीं...मन से तो वो गई ही नहीं. चुप करा देती है. कोई जान ही नहीं पाता उसके रहते कि मैं रोया भी.

मैं उसके नाम के साथ स्वर्गीय लगाने को हर्गिज तैयार नहीं आज ५ साल बाद भी. वो है मेरे लिए आज भी वैसी ही जैसी तब थी जब मैं उसे देख पाता था. तुम न देख पाओ तो तुम जानो

और आगे चलते है अजब ग़ज़ब दुनिया  मे और जानकारी लेते है कि एड्स पीड़ितों के लिए वैवाहिक वेबसाइट की !

08-hiv-aids200 गुवाहाटी। देश के एचआईवी पीड़ितों के लिए एक अच्छी खबर है अब उन्हें भी अपना मन पसंद साथी मिल सकता है। जी हां एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए जल्द ही एक वैवाहिक वेबसाइट शुरु होने वाली है। (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट एचआईटीसीएचआईवी डॉट कॉम) नामक यह वेबसाइट इंडियन नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स (आईएनपी+) की ओर से शुरु किया जा रहा है।
असम में रहने वाली एक विधवा जुनाली देवी को एचआईवी-संक्रमित लोगों के लिए शुरू होने वाली देश की इस पहली वैवाहिक वेबसाइट का बेसब्री से इंतजार है। गुवाहाटी की 35 वर्षीय जुनाली (परिवर्तित नाम) पूर्वोत्तर भारत के हजारों एचआईवी-संक्रमित लोगों में शामिल हैं। जुनाली के पति की तीन वर्ष पहले एचआईवी/एड्स से मृत्यु हो गई थी और अन्य एचआईवी-संक्रमित लोगों की तरह ही वह भी वेबसाइट के जरिए अपने लिए उचित साथी खोजना चाहती

डा. अमर कुमार जी है और कह रहे है मुला चिट्ठाचर्चा से इसका कउनौ रिलेशन नहिं है!

chimgअमएक्ठो रहें बड़े ओहदे वाले बड़का ब्लॉगर.. सो डिस्केशन डिस्केशन में उनका डिलेवर भी ब्लॉग-श्लॉग लिख लेने लगा रहा । उनकी काम वाली बाई भी कुछ कविताई की बेहयाई कर ले ती रही, सो  वहू  ब्लॉगर को पकड़ लिहिस । उनका नौकर भी कहीं से कुछ टीप टाप कर एक रेजिस्टर में चेंप देता रहा, छापे में कौन छापता.. सो खुदै कम्पूटर नामक एकु मशीन में लिख कर टाँग देता रहा । ई-सब आदत पकड़  लिहै  से  उनकी  अकड़  की  तो  आप  पूछौ मति ! एहर साहब को डीप-रेस्सन का शौक रहा, जब वह गोली खाय के मूड़ झुकाय के बईठें, तो यहि देख के, ई दुईनो तीनों जन उनके ठियाँ पर जाँय अउर टिपिया आवत रहें । गँज़ी चाँद पर टिपियावै में नौकरी जाय का खतरा, पर ईहाँ टिपियाये पर पगार बढ़वाय का जतरा । दफ़तर जाये से पहिले साहब जी नाश्ते में एक छोटा-कप बीति-ताहि बिलागरस ज़रूर लेत रहें । कुल मिला कर ज़ायज़ा यह कि उनकी एक सुसम्पन्न ब्लॉगर परिवार की  छवि  बनती  रही..

पाल ले इक रोग नादां... पर है गौतम राजरिशी  जी !

1 (1) "love means not ever having to say you are sorry"...हम जैसे कितने ही आशिकों के लिये परम-सत्य बन चुकी इस पंक्ति के लेखक एरिक सिगल की मृत्य हो गयी इस 17 005302जनवरी को और मुझे इस बात का पता चला बस कल ही। यहाँ कश्मीर वादी के इस सुदूर इलाके में राष्ट्रीय अखबार वैसे ही एक दिन
विलंब से आते हैं और विगत कुछ दिनों से छब्बीस जनवरी के मद्देनजर से बढ़ी हुई चौकसी की वजह से अखबारों पे नजर नहीं फेर पा रहा था।...अचानक से कल निगाह पड़ी इस खबर पर तो धक्क से रह गयी धड़कनें एकदम से।
वर्ष 1993 की बात थी। सितम्बर या अक्टूबर का महीना। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में मेरा पहला सत्र। हम  कैडेटों को एक-एक प्रोजेक्ट मिला था करने को। मेरे प्रोजेक्ट का विषय था "20th Century's Best-sellers"...और अपने उसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में मेरा वास्ता पड़ा
LOVE STORY से। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...!!! जेनिफर औरओलिवर की इस अद्‍भुत प्रेम-कहानी ने मुझे मेरे पूरे वज़ूद को तरह-तरह से छुआ था और जाने
कितनी बार पढ़ गया था मैं इस सौ पृष्ठ वाले उपन्यास को। उपन्यास की पहली ही पंक्ति में लेखक नायिका को मार देता है और फिर इस ट्रेजिक प्रेम-कहानी का ताना-बाना कुछ इतनी खूबसूरती से बुना गया है...विशेष कर जेनिफर-ओलिवर के बीच के संवाद इतने मजेदार हैं कि आह...और अचानक से जो पता चला कि एरिक सिगल नहीं रहे तो दुखी मन मेरा ये पोस्ट लिखने बैठ गया। लव-स्टोरी की वो पहली पंक्ति याद आती है:

कुछ कल्पनाऐं, थोड़ा चिन्तन ओर बहुत सारी बकवास..पर चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान............

मूल्य सूची:---
1. कविता----मूल्य 100 रूपये
2.गजल----मूल्य पचास रूपये प्रति शेर के हिसाब से
3.कहानी---250 रूपये
4.कहानी(धारावाहिक)----200 रूपये प्रति किस्त के हिसाब से(न्यूतम 3 किस्तें), 5 किस्तों की कहानी पर कुल मूल्य पर 15% की छूट दी जाएगी।
5.सामयिक लेख----कीमत विषय अनुसार निश्चित की जाएगी ।
6 हास्य-व्यंग्य----मूल्य 250 रूपये
05
7 चुटकुले/लतीफे----मूल्य प्रति चुटकुला 20 रूपये (एक साथ 10 चुटकुलों के साथ में 1 पहेली फ्री)

डा. मनोज मिश्रा जी है अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया..........पर

तु म्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम।

और TSALIIM पर है ज़ाकिर अली ‘रजनीश जी कह रहे है .... का दूध पिया हो, तो सामने आओ।

एक किलो सोयाबींस से लगभग 10 लीटर दूध बनाया जा सकता है। यही कारण है कि यह सामान्य दूध की तुलना में सस्ता भी पड़ता है। हालाँकि सोया मिल्क के स्वाद में हल्की सी गंध होती है, जिसके कारण इसको बिना फ्लेवर के पीना मुश्किल होता है। इस दूध से आप पनीर भी बना सकते हैं। इससे बने पनीर को टोफू कहा जाता है। साथ ही सोया मिल्क का दही भी जमाया जा सकता है।
काफी समय पहले से सोया मिल्क चीन के जरिए भारत में प्रवेश पा चुका है। यह दूध भारत सहित लगभग पूरी एशिया में उपयोग में लाया जा रहा है। यहाँ तक कि जापान, कोरिया और मलेशिया जैसे देशों में तो सोया मिल्क के बहुत सारे खाद्य पदार्थ भी बनाए जाने लगे हैं, जिनमें सूप प्रमुख है।

और अंत मे चलते –चलते दो कविताये ताऊ डाट इन और काव्यमंजूषा से!

जीने दो मुझे (कन्या भ्रूण-हत्या )

जीने दो मुझे, मैं भी जिंदा हूँ

क्या दोष मेरा ? हूँ मैं अंश तेरा

ऐसे समाज पर, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ !!

कहलाती पराई सदा ही रही

जन्म मिला तो, मृत्यु सी पीर सही

हैवानो मुझ पर दया IMGA000JPG (1)

ना कुक्ष में कुचलो हया करो !!

अमानवीयता से, सदा मैं हार रही

सुन बिलख-बिलख कर, पुकार रही

तेरे भीतर नन्ही जान हूँ मैं

तेरी ममता का सम्मान हूँ मैं

माँ तू भी, मुझे क्यों मार रही !!!

नदी में उगा एक शहर- वेनिस!! : उडनतश्तरी

नदी में उगा एक शहर- वेनिस!!
अथाह जल राशि
और
उनके बीच ऊग आया
एक शहर..
ऐसा शहर
जिसमें मकान हैं
बाजार हैं
दफ्तर हैं
samam11
लोग हैं..
बस नहीं है
तो इन सबको
आपस मे जोड़ती
उलझती, बल खाती
रिश्ते निर्धारित करती
काली काली सड़के..
उनको जोड़ता है
यह तरल तार..
मद्धम थमा हुआ..
जिसका अपना कोई रंग नहीं..
चेहरे पर मुस्कराहट लिए..
रात चाँद उतरता है

Monday, January 25, 2010

“ये झूठ इतना खूबसूरत क्यूँ होता है?” (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

अंक : 134

चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक""

का सादर अभिवादन!

आइए “चर्चा हिन्दी चिट्ठों की” में कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठों की ओर

आपको ले चलता हूँ!


शेफाली पाण्डेय, हल्द्वानी (उत्तराखण्ड)

मास्टरनी-नामा

परिवर्तन की सुखद बयार
कई सालों के बाद कानपुर जाना हुआ तो स्टेशन पर उतरते ही सुखद अनुभूति हुई| सबसे पहले नज़र पड़ी जगह -जगह रखे हुए बड़े-बड़े कूड़ेदानों पर जिन पर 'परिवर्तन' लिखा हुआ था| जानने की उत्सुकता बढ़ी कि यह कौन सी संस्था है जो सरकारी प्रयासों से इतर शहर व स्टेशन………


nadeem

कोतुहल

ये झूठ इतना खूबसूरत क्यूँ होता है? त्रिवेणी की कोशिश!
यूँ बरसते हैं उसकी आँखों से आंसू,जैसे सीप से मोती निकलकर बिखर रहे हों,!!!
……………………….
ये झूठ इतना खूबसूरत क्यूँ होता है?….

हे प्रभु ये तेरा पथ

जैन:प्राचीन इतिहास-10
गतांक से आगे........महावीर की संघ-व्यवस्था और उपदेश -महावीर भगवान् ने अपने अनुयायियों को चार भागों में विभाजित किया-मुनि, आर्यिका, श्रावक और श्राविका। प्रथम दो वर्ग गृहत्यागी परिव्राजकों के थे और अन्तिम दो गृहस्थों के। यही उनका चतुर्विध-संघ कहलाया।…

इस तरह उड़ान भरते हैं हौसले
कभी लोगों से ताने सुनने वाले विकलांग ने दिया मूक-बधिर बच्चों को मजबूत सहारापैरों और एक आंख से नि:शक्त धन्नाराम पुरोहित के बारे में गांव के लोग कहा करते थे कि यह बेचारा जिन्दगी में क्या कर पाएगा, लेकिन आज उसी धन्नाराम ने सैकड़ों निज्शक्तजनों को धन्य कर रखा……..

अविनाश वाचस्पति

मैं लंदन नहीं गया : पर चित्र भी पहचानें (अविनाश वाचस्‍पति) - मेरे ऐसा कहते ही मेरे सुर में मिलाने सुर बहुत मिल गए इतने सुर सुने हम अंदर तक दहल गए। मैं लंदन नहीं गया परंतु कविता जी का सान्निध्‍य पा गया यह सब नेट का कम...

युवा दखल

हैप्पी बर्थडे टू मी!! - ( वेरा के बनाये तमाम कम्प्यूटर चित्रों में से एक) *आज पूरे पैंतीस साल हो गये!* पापा बार-बार फोन हाथ में ले बधाई देने की हिम्मत जुटा रहे होंगे। मां ने श...

ज़िन्दगी

प्यार , प्यार होता है -----------शरीरी नही होता - प्यार , प्यार होता है शरीरी नही होता क्यूँ प्यार का एक ही अर्थ लगाती है दुनिया प्यार बहन से, माँ से, पत्नी से , प्रेमिका से , बेटे से , बेटी से भी होता है म..

हिन्दी साहित्य मंच

बसंत --- (डा श्याम गुप्त ) - गायें कोयलिया तोता मैना बतकही करें , कोपलें लजाईं , कली कली शरमा रही | झूमें नव पल्लव, चहक रहे खग वृन्द , आम्र बृक्ष बौर आये, ऋतु हरषा रही| नव कलियों पै हैं,...

Albelakhatri.com

पैदा तो कर दिये मज़े मज़े में लेकिन पाल नहीं पा रहा हूँ, इसलिए तुम्हें मार रहा हूँ मेरे बच्चों ! मुझे माफ़ कर देना - लायी हयात आये, क़ज़ा ले चली चले न अपनी ख़ुशी आये, न अपनी ख़ुशी चले -हाली आज का दिन बहुत भारी है मुझ पर । जिन बच्चों को बड़े शौक से मज़े मज़े ले ले..

भीगी गज़ल

अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया - अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया नज़र मिली तो अचानक झुका के वो नज़रें मेरे सवाल के कितने जवाब छोड़ गया पलट के आने...

स्वप्न(dream)

छिपा हुआ जो एक गुण , सिर्फ उसी को देख - छिपा हुआ जो एक गुण , सिर्फ उसी को देख झूठे धोखेबाज़ को, लानत औ धिक्कार लेनदार होवें खड़े,आकर जिसके द्वार कसमें खा , फिर जाए जो, कितना है वो नीच करिए चौराह...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen

एलर्जी से उत्पन्न खांसी के लिये एक स्व-अनुभूत प्रयोग - मुझे एलर्जी है प्रोटीन से. अब प्रोटीन से बच पाना तो बहुत मुश्किल है. कोशिश करता हूं कि इससे बचा रह सकूं. कभी-कभी पन्द्रह-बीस दिन में सेट्रीजीन लेता हूं. इस..

चिट्ठाकार चर्चा

मिलिए अजय लाहुली से-चिट्ठाकार-चर्चा (ललित शर्मा) - अभी कुछ दिन पहले एक ब्लाग पर मेरी नजर पड़ी उसका नाम मुझे सुना हुआ लगा तो जिज्ञासा वश उस ब्लाग पर गया तो अद्भुत नजारा पाया. वह ब्लाग प्रकृति के चित्रों और न..

ललितडॉटकॉम

पापी ! तूने मुझे बेकार मरवा दिया.!! - हमारी दादी कहती थी कि इस जुबान का गलत इस्तेमाल मत करो क्योंकि इसका कुछ नहीं बिगड़ता, ये तो बोल कर अन्दर घुस जाती है और दांतों का सत्यानाश (तुडवा) करवा देती..

bhartimayank

"रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-17" (अमर भारती) - *रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-17 में * * * *आप सबका स्वागत है।* * * *आपको पहचान कर निम्न चित्र का* * * *नाम और स्थान बताना है।*

मानसी

ट्रैफ़िक टिकट - मेरे ड्राइविंग के कि़स्सों का ज़िक्र कर चुकी हूँ पहले। तो अब तो मैं एक्सपर्ट हो चुकी हूँ (ये और बात है कि हाइवे से अभी भी डर लगता है और पति हों साथ तो कभी .

An Indian in Pittsburgh - पिट्सबर्ग में एक भारतीय

आत्महत्या क्यों? - असुर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृताः। ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्ति ये के चात्महनो जनाः॥ ईशोपनिषद के इस वचन में आत्महनन करने वालों के गहन अन्धकार में जाने क..

हास्यफुहार

इतनी बड़ी खुशी !! - इतनी बड़ी खुशी !! अपनी गांठें ढीली करने शादी की सातवीं वर्षगांठ पर ख़ुशी के मारे श्रीमती के साथ श्रीमानजी एक बड़े होटल पधारे पत्नी की नज़र साम..

शब्दों का सफर

बहुधाः 9/11 के बाद की दुनिया - [image: book review]*बाल्मीकि प्रसाद सिंह* की ताज़ा किताब को *राजकमल प्रकाशन * ने प्रकाशित किया है। मूल्य है 550 रुपए और 450 पृष्ठ है। पुस्तक की भूमिका दल...

ज्योतिष की सार्थकता

27 जनवरी के पश्चात मौसम में हल्का सा सुधार किन्तु प्रबल शीतलहर से पूर्ण मुक्ति 6 फरवरी के बाद ही......... - संसार में कोई भी व्यक्ति,पदार्थ, जीव इत्यादि आकाशमंडल में भ्रमण कर रहे ग्रहों से अछूता नहीं हैं। सभी कही न कहीं किसी न किसी रूप में इन भ्रमणशील ग्रहों की क...

अंतर्मंथन

दिल दा मामला है----- कुछ ते करो जतन----- , - दिल दा मामला है , दिल दा मामला है कुछ ते करो जतन , तौबा खुदा दे वास्ते, कुछ ते करो जतन ---- दिल दा मामला है , दिल ---दा ------है। युवा दिलों की धड़कन , गुरद...

मसि-कागद

आज का रंग कुछ अलग ही है... देखने जरूर आइये अपने मसिकागद@मशाल.कॉम पर.... दीपक मशाल.. - दोस्तों आज आपके सामने कुछेक पुरानी कवितायेँ, जो कहीं प्यार सिखाती हैं तो कहीं दोस्ती के नए आयाम बतलाती हैं और आखिरी कविता जो बताती है कि आपके कल का असर आअ...

समय के साये में

मानसिक कार्यकलाप के भौतिक अंगरूप में, मस्तिष्क - हे मानवश्रेष्ठों, पिछली बार हमने मन, चिंतन और चेतना में अंतर तथा मानसिक और दैहिक, प्रत्ययिक और भौतिक को समझने की कोशिश की थी। इस बार हम मानव चेतना की विशिष...

मोहल्ला

गायब न हो जाए पायल की झनकार! - *अरविन्द शर्मा* आठ माह की इस मासूम के सपने उम्र से भी कई बड़े हैं, मगर सपनों के आड़े आ गई है तो उसकी बीमारी। वह चहकना और जीना भी चाहती है। लेकिन यह बीमारी ...

रेडियो वाणी

ये रातें ये मौसम ये हंसना हंसाना: पंकज मलिक की सोंधी आवाज़ - बरसों पहले की बात है । लता मंगेशकर का अलबम श्रद्धांजली जारी हुआ था । शायद 1992[image: Lata Mangeshkar - Shraddhanjali Front] में । वो कैसेटों का दौर था ।..

जोग लिखी

शिक्षा और प्रलय के बीच एक रेस - अपनी मेगा बेस्टसेलर थ्री कप्स ऑफ टी (अब तक 30 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं) में ग्रेग मॉर्टेन्सन ने पाकिस्तान के दुर्गम इलाकों में लड़कियों के लिए स्कूल बनान..

कुछ हम कहें

आगरा कैंट ( भाग 1) - मौसी के यहां से शादी का कॉर्ड आया तो हम समझ गये थे कि इस बार जाना अनिवार्य है। उत्तर भारत में शादियों का मौसम जाड़ों में ही पड़ता है और हर बार या तो छुट्टी..

देशनामा

मियांजी पधारो म्हारे ब्लॉगवुड...खुशदीप - बधाइयां जी बधाइयां...समूचे *ब्लॉगवुड *के लिए खुशियां मनाने का मौका जो आया है...आरतियां उतारो...मंगलगीत गाओ...आज हमारे बीच नया मेहमान जो आया है...नाम जानना ..

कस्‍बा qasba

रिपोर्टिंग के रिश्ते - सात साल की रिपोर्टिंग से न जाने कितने रिश्ते अरज लाया हूं। वो रिश्ते मुझे बुलाते रहते हैं लेकिन ऐसा संयोग हुआ ही नहीं कि दुबारा उस जगह या शख्स के पास लौटा ..

लिखो यहाँ वहां

कलाकार एक चेतना से परिपूर्ण सत्ता है - घुमकड़ी का शौक रखने वाले और कला साहित्य में खुद को रमाये रखने वाले रोहित जोशी ने यह साक्षात्कार विशेषतौर इस ब्लाग के लिए भेजा है। हम अपने इस युवा साथी के ...

नया ठौर

हो- हो- हो - *कार्टूनिस्ट पवन ने पिछले दिनों टीवी शो -राज पिछले जन्म का- और नये साल के मौक़े पर कुछ कार्टून बनाए थे। देखिये और मजा लीजिये। हां, कार्टून पर क्लिक करके...

ज़ब द्वारे पे आये है तो टिपिया के जाइये न!!!

बिना टैक्स वाली हंसी आज देख लीजिये !!

Murari Pareek

किलोमीटर से नहीं चलूंगा [सप्ताह का कार्टून] - अभिषेक तिवारी

रचनाकार परिचय:-

अभिषेक तिवारी "कार्टूनिष्ट" ने चम्बल के एक स्वाभिमानी इलाके भिंड (मध्य प्रदेश्) में जन्म पाया। पिछले २३ सालों से कार्टूनिंग कर रहे हैं। ग्वालियर, इंदौर, लखनऊ के बाद पिछले एक दशक से जयपुर में राजस्थान पत्रिका से जुड़ कर आम आदमी के दुःख-दर्द को समझने की और उस पीड़ा को कार्टूनों के माध्यम से साँझा करने की कोशिश जारी है....

ताऊजी डॉट कॉम

खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (181) : आयोजक उडनतश्तरी

बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका आयोजक के बतौर हार्दिक स्वागत करता हूं.

नीचे का चित्र देखिये और बताईये कि ये कौन है?



आज की चर्चा यहीं सम्पन्न होती है!

Sunday, January 24, 2010

"तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा"(चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

नमस्कार, पंकज मिश्रा  आपके साथ…चर्चा हिन्दी चिट्ठों की –मे

मुंबई बम कांड का अपराधी आजकल मराठी भाषा का बहुत प्रयोग कर रहा है ,,अदालत के सवाल जवाब मे भी वह मराठी भाषा का प्रयोग करता है..राज साहब ठाकरे तो बहुत खुश होगे कि कोई तो उनकी पीडा समझता है :)

न्युज चैनल अखबार समाचार सभी जगह कसाब के इस भाषा प्रयोग का चर्चा हो रहा है और उन खबरिया बाजार मे कोई भी माई का लाल ये पुछने की जुर्रत नही कर रहा है कि ऐसे अपराधी से जेल मे दोस्ती कौन किया है जो उसको मराठी भाषा और सभ्यता सिखा रहा है ..क्या यह एक नेक काम है कि आप जेल के समय मे उस्का टाईम पास कर रहे है भाषा सिखाकर ?

चलिये चर्चा की तरफ़ चलते है…

रतन सिहः शेखावत जी है आज के चर्चा पर और बता रहे है एलोवेरा (ग्वार पाठा ) के बारे में जानकारी के अन्तर्गत -shekhawatji

Aloe Vera Plant एलोवेरा लिलेक परिवार का पौधा है जिसका उपयोग मनुष्य हजारों वर्षों से करता आ रहा है | दुनिया में २०० से अधिक  प्रकार की किस्मो का एलोवेरा पाया जाता है | इसमें एलो बाबिड़ेंसिस को मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक मन जाता है | इस पौधे का रस बुढ़ापा प्रतिरोधी तत्व है | इसके प्रयोग से इंसान लम्बे समय तक अंदरूनी और बाहरी तौर पर जवान बना रह सकता है | पौधे का सबसे ज्यादा महत्वपूरण है इसका रस जिसे बाजार में एलो जेल के नाम से जाना जाता है | एलोवेरा का रस इसके पत्तों से तब निकला जाता है जब पत्ते तीन साल के हो जाते है | तभी उस रस में अधिकतम पोष्टिक तत्व मौजूद होते है | गवार पाठे का पौधा गरम और खुश्क जलवायु में पनपता है इसे ज्यादा खाद या सिंचाई की जरुरत नहीं होती | किसान अपनी खेतों के मेड़ों पर व बंजर पड़ी भूमि में भी इसकी खेती कर सकते है |

समीर लाल जी का व्यंग लेख कैसे सच का सामना??

policeप्रोग्राम हमारा है, यह स्टेटमेन्ट चैनल की तरफ से, याने अगर हमने कह दिया कि ’यह सच नहीं है’ तो प्रूव करने की 1447094209_600c819d47_oजिम्मेदारी प्रतिभागी की. हमने तो जो मन आया, कह दिया. पैसा कोई लुटाने थोड़े बैठे हैं. जो हमारे हिसाब से सच बोलेगा, उसे ही देंगे.

पहले ६ प्रश्न तो लाईसेन्स, पासपोर्ट और राशन कार्ड आदि से प्रूव हो गये मसलन आपका नाम, पत्नी का नाम, कितने बच्चे, कहाँ रहते हो, क्या उम्र है आदि. लो जीत लो १०००००. खुश. बहल गया दिल.

आगे खेलोगे..नहीं..ठीक है मत खेलो. हम शूटिंग डिलीट कर देते हैं और चौकीदार को बुलाकर तुम्हें धक्के मार कर निकलवा देते है, फिर जो मन आये करना!! मीडिया की ताकत का अभी तुम्हें अंदाजा नहीं है. हमारे खिलाफ कोई नहीं कुछ बोल सकता.

तो आगे खेलो और तब तक खेलो, जब तक हार न जाओ.

प्रश्न ५ लाख के लिए :’ क्या आप किसी गैर महिला के साथ उसकी इच्छा से अनैतिक संबंध बनाने का मौका होने पर भी नाराज होकर वहाँ से चले जायेंगे.’

जबाब, ’हाँ’

एक मिनट- क्या आपको मालूम है कि आज पॉलीग्राफ मशीन के खराब होने के कारण यहाँ उसके बदले दो पुलिस वाले हैं. एक हैं गेंगस्टरर्स के बीच खौफ का पर्याय बन चुके पांडू हवलदार और दूसरे है मिस्टर गंगटोक, एन्काऊन्टर स्पेश्लिस्ट- एक कसूरवार के साथ तीन बेकसूरवार टपकाते हैं. बाई वन गेट थ्री फ्री की तर्ज पर.

आगे है अनिल पुसादकर जी और कह रहे है चोर-डाकूओं को तो पकड़ पा नही रहे हैं,धूल-मिट्टी से परेशान जनता को मुंह ढांक कर घूमने से मना कर रहे हैं,कंही देखा है ऐसा सड़ेला सिस्टम!

My Photoधूल और धुयें के लिये शायद दुनिया भर के प्रदूषित शहरों को टक्कर दे रहे रायपुर मे लोगों ने इससे निज़ात नही मिलती देख,मज़बूरी में मुंह पर स्कार्फ़,रूमाल,गमछा या चुनरी लपेट कर अपना बचाव करना शुरू कर दिया था।ये सिस्टम सालों से चल रहा था मगर राजधानी की एक्सपर्ट पुलिस की जितनी तारीफ़ की जाये कम ही होगी।उसने हाल ही में अपनी नाकेबंदी के बावज़ूद बैंक लूट कर भाग रहे लूटेरों और दिनदहाड़े हत्या करके फ़रार होने वाले हत्यारों को पकड़ने मे असफ़ल रहने के लिये ज़िम्मेदार समझा मुंह ढांक कर धूल-धुयें से बचने के तरीके को।सो तुगलक भी शरमा जाये ऐसा फ़रमान जारी कर दिया।अब शहर के लोगों को धुल-धुयें को पुलिस की मेहरबानी से निगलते हुये जीना होगा और उससे बचने के लिये मुंह ढांक कर घुमने का तरीका छोड़ना होगा।छोड़ा तो ठीक नही तो पुलिस के मुस्टंडे हर चौक-चौराहों पर तैनात रहेंगे और आपसे बदतमीजी करके आपके मुंह पर पड़ा कपड़ा नोच कर देखेंगे कंही आप डाकू,हत्यारे,लूटेरे या कोई बड़े शातिर आतंकवादी तो नही है।


रंजना [रंजू भाटिया] जी है  कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** पर और एक चित्र कविता उनके ब्लाग पर [kuch+sawal.jpg]
आगे है गिरिजेश राव जी 
कविताएँ और कवि भी..पर पुरानी डायरी से -12 : श्रद्धा के लिए

तुम्हारा बदन

स्फटिक के अक्षरों में लिखी ऋचा 
प्रात की किरणों से आप्लावित
तुम्हारा बदन।
दु:ख यही है
मेरे दृष्टिपथ में
अभी तक तुम नहीं आई।
कहीं  ऐसा तो नहीं
कि तुम हो ही नहीं !
नहीं . . . .
पर मेरी कल्पना तो है -
"तुम्हारा बदन

स्फटिक के अक्षरों में लिखी ऋचा

प्रात की किरणों से आप्लावित

तुम्हारा बदन।"

निर्मला कपिलाजी है वीर बहुटी – पर और कहानी का अन्तिम भाग प्रस्तुत है

मुझ अतृप्त की कितनी बडी परीक्षा लेना चाहती थी आप। मैं निराश हो गया। आपका तर्क था कि अगर मैं काम मे व्यस्त रहूँगी तो सुधाँशू के गम को भूल पाऊँगी, दूसरा मैं तिम पर बोझ बनना नहीं चाहती।क्या यही दुख हम दोनो मिल कर नहीं बाँट सकते थी? मैने तो सुना था कि माँ बाप बच्चों पर बोझ नहीं होते । बच्चे कभी उनका कर्ज़ नहीं चुका सकते। मगर माँ वो आपकी सोच थी मैं ऐसा नहीं सोचता था। मुझे लगता था कि मैं आपका और आप मेरा बोझ बाँट लेंगी--- जीवन भर की अतृप्त इच्छाओं का बोझ। खैर सारी आशायें छोड मैं फिर से लखनऊ आ गया। आते वक्त पिता जी की कुछ फाईलें और एक डायरी आप से बिना पूछे उठा लाया था। इतना तो उन पर मेरा हक बनता था। मुझे लगा था कि शायद मैं फिर कभी लखनऊ न आ पाऊँगा।यहाँ भी मन नहीं लगता कई बार आपको फोन किया महज औपचारिक बातें हुयी। मैं उसके बाद घर न

आज मिलेगे दिल से दिल-सजेंगी रायपुर में ब्लागरों की महफिल राजकुमार ग्वालानी जी कह रहे है!मेरा फोटो
छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एक महफिल सजाने की योजना करीब 10 दिनों से पहले बनी थी। पिछले रविवार को प्रेस क्लब में मजमा लगने वाला था, लेकिन अचानक शनिवार को रविवार का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के चहेते और आदरणीय भाई अनिल पुसदकर जी उस दिन प्रेस क्लब की बैठक के साथ कुछ और कार्यक्रमों में बहुत ज्यादा व्यस्त थे। ऐसे में उनका महफिल में शामिल होना मुश्किल था। उन्होंने जब अपनी यह व्यथा हमें बताई तो हमने ब्लागर मित्रों से चर्चा की। सभी का एक स्वर में यही मानना था कि अनिल जी के बिना बैठक कदापि नहीं। वैसे भी बहुमत का जमाना है। जब बहुमत यही रहा कि अनिल जी के बिना महफिल नहीं सजेगी, मतलब नहीं सजेगी। सो महफिल स्थगित कर दी गई। इस स्थगन की सूचना यूं तो सबको दे दी गई, पर बिलासपुर के एक ब्लागर मित्र भाई अरविंद कुमार झा को संभवत: यह सूचना नहीं मिल सकी थी और वे रायपुर आ गए थे।

ताऊ पहेली – 58 अंक है आप भी मजा लिजिये अगले अंक के साथ अगले शनिवार

ये आप पढ सकते है तेरे बाप के पास तो मस्त पटाखा मॉल है न खुद चलता है न औरो को चलाने देता है।

मोहल्ले वाले कहते हैं की तेरे बाप के पास तो मस्त पटाखा मॉल है न खुद चलाता है न औरो को चलाने देता है। (एक छोटी सी बच्ची बोली) .अरे पागल वो सब तो तेरी माँ के बारे मैं कह रहे होंगे। उस छोटी सी बच्ची का बाप बोला। (मैं आप सभी लोगो से माफ़ी मांगता हूँ इसे लिखना नहीं चाहता था मगर लिखना पड़ा) ये शब्द हैं एक टी वी प्रोग्राम्म मैं एक छोटे से बच्ची की जो गंगुं बाई के रोल मैं सब को हँसाने का काम करती है।
काल शाम को बार बार टी वी मैं एड आ रही थी , मैंने भी ध्यान दिया तो पता चला की वाह रे भारतीय संस्कृत और व्यस्था, सब बड़े मजे से उस छोटी सी बच्ची के द्वारा कहे गए शब्दों के उपर हँसे जा रहे थे, हँसने वाले सब बड़े थे बच्चे नहीं। और उस बच्ची के माँ बाप भी थे।
परिकल्पना पर रवीन्द्र प्रभात

मैंने कभी महाप्राण निराला को नहीं देखा मगर एक व्यक्ति की आँखों में मैंने देखी है निराला की छवि
सुने नगमा ग़ज़ल की किताब आई थी जिसपर विस्तार से चर्चा हुयी . मैंने उन्हें उसी दौरान उन्हें सीतामढ़ी में होने वाले विराट कवि सम्मलेन सह सम्मान समारोह में आने हेतु ससम्मान आमंत्रित किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया ...आदरणीय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी के उस सान्निध्य को याद करते हुए इस अवसर पर प्रस्तुत है उनकी वसंत पर आधारित उनकी एक अनमोल रचना -  


जब भी वसंत की चर्चा होती है राधा और कृष्ण की चर्चा अवश्य होती है , इस सन्दर्भ में आचार्य जी ने कभी कहा था ,कि - - कृष्ण सबके मन पर चढ़ते हैं। जीवन के यथार्थ में राधा ने कृष्ण को आत्मसात कर लिया। इसीलिए राधा वाले कृष्ण सबको भाते हैं। कृष्ण में तन्मय होने के कारण  राधा ने स्वयं को अलग से जानने की जरूरत ही नहीं समझीं। स्वयं वही हो गयीं, यानी कृष्णमय हो गयी । राजनीति ने कृष्ण को भिन्न-भिन्न रूपों में बांटा, पर एकमात्र प्रणय ने राधा को कृष्णमय बना दिया। प्रेम का यही शाश्वत रूप सही मायनों में वसंत का रूप है ।

रंग लाए अंग चम्पई

नई लता के

धड़कन बन तरु को

अपराधिन-सी ताके

निरंतर पर महेन्द्र जी है और बता रहे है
नेताजी जयंती "तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा" नेताजी और जबलपुर शहर ....


तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद बोस की आज जयंती है. स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी का यह नारा आज भी जनमानस के दिलो पर छाया हुआ है जो दिलो में जोश और उमंग पैदा कर देता है . वे कांग्रेस के उग्रवादी विचारधारा के सशक्त दमदार नेता थे . उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को खुली चुनौती दी थी . महात्मा गाँधी ने नेताजी को दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर आसीन कराया था पर वे नेताजी की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट थे .दूसरे विश्व युद्ध के समय महात्मा गाँधीनिरन्तर अंग्रेजो की मदद करने के पक्ष में थे परन्तु नेताजी गांधीजी की इस विचारधारा के खिलाफ थे और उस समय को वे स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उपयुक्त अवसर मानते थे .
सुभाष चंद बोस का जबलपुर प्रवास पॉंच बार हुआ है . स्वतंत्रता के पूर्व सारा देश अंग्रेजो से त्रस्त था . स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने वाले वीर क्रांतिकारियो को चुन चुन कर अंग्रेजो द्वारा जेलों में डाला जा रहा था . नेताजी ने भूमिगत होकर अंग्रेजो से लोहा लिया और आजाद हिंद फौज का गठन किया . सबसे पहले सुभाष जी को पहली बार 30 मई 1931 को गिरफ्तार कर जबलपुर स्थित केन्द्रीय जबलपुर ज़ैल लाया गया और यहं उन्हें बंदी बनाकर रखा गया जहाँ की सलाखें आज भी उनकी दास्ताँ बयान कर रही है .. दूसरी बार 16 फ़रवरी 1933 को तीसरी बार 5 मार्च 1939 को त्रिपुरी अधिवेशन मे सुभाष जी का बीमारी की हालत मे नगर आगमन हुआ था.

तस्मै सोमाय हविषा विधेम! (वैदिक बूटी सोम ,सोमरस और सोमपान ).....ऐसा कहना है साहब जी का हमारे बडे भाई श्री मान अरविन्द मिश्रा जी का!

101_0482 अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईसा  के काफी पहले ही इस बूटी /वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गयी .ऐसा भी कहा जाता है किसोम[होम] अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों ने इसकी जानकारी आम लोगो को नही दी ,उसे अपने तक ही सीमित रखा और कालांतर मे ऐसे अनुष्ठानी ब्राह्मणों की पीढी/परम्परा के लुप्त होने के साथ ही सोम की पह्चान भी मुश्किल होती  गयी .सोम को न पहचान पाने की विवशता की झलक रामायण युग मे भी है -हनुमान दो बारहिमालय जाते हैं ,एक बार राम और लक्ष्मण दोनो की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर ,मगरसोम की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं:दोनो बार -लंका के सुषेण वैद्य ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं यानी आम नर वानर इसकी पहचान मे असमर्थ हैं [वाल्मीकि रामायण,युद्धकाण्ड,७४ एवं १०१ वांसर्ग] सोम ही संजीवनी बूटी है यह ऋग्वेद के नवें 'सोम मंडल ' मे वर्णित सोम के गुणों से सहज ही समझा जा सकता है .
सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक ,ओज वर्द्धक  तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है ,साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है .सोम केडंठलों को पत्थरों से कूट पीस कर तथा भेंड के ऊन की छननी से छान कर प्राप्त किये जाने वाले सोमरस के लिए इन्द्र,अग्नि ही नही और भी वैदिक देवता लालायितरहते हैं ,तभी तो पूरे विधान से होम [सोम] अनुष्ठान मे पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे , बाद मे प्रसाद के तौर पर लेकर खुद स्वयम भीतृप्त हो जाते थे .कहीं आज के 'होम'  भी उसी परम्परा के स्मृति शेष तो नहीं  हैं?  पर आज तो सोमरस की जगह पंचामृत ने ले ली है जो सोम की प्रतीति भर है.कुछपरवर्ती  प्राचीन धर्मग्रंथों मे देवताओं को सोम न अर्पित कर पाने की विवशता स्वरुप वैकल्पिक पदार्थ अर्पित करने की  ग्लानि और क्षमा याचना की सूक्तियाँ भी हैं

कल्पतरु पर है विवेक रस्तोगी जी चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।

आशीष खन्डेल्वाल जी तकनिकी ब्लाग-लगाइए सर्च को धार - रिफाइन सर्च के चंद फॉर्मूले

इंटरनेट पर मनचाही सामग्री की तलाश के लिए मदद ली जाती है सर्च इंजन की। सामग्री से जुड़े की-वर्ड को जैसे ही सर्च इंजन में डाला जाता है, हजारों रिजल्ट मिलते हैं। अब समस्या शुरू होती है कि इनमें से कौनसे पेज को खोलकर देखा जाए, जिसमें जरूरत के मुताबिक सामग्री मिल सके। एक-एक कर पेज खोले जाते हैं और उसी रफ्तार से बंद भी कर दिए जाते हैं। अगर किस्मत अच्छी है तो जल्द ही सामग्री मिल जाती है और अगर आप किसी खास चीज को तलाश कर रहे हैं, तो हो सकता है कि इसके लिए कई घंटे लग जाएं

खंडहर हुए इन्द्र प्रस्थ में धृतराष्ट्र की तरह राज करना!!

सुरेश शर्मा की तुलिका सेअभी महाराष्ट्र सरकार ने जो निर्णय लिया है उसके दूर गामी परिणाम होंगे. समुद्र के किनारे मुंबई को बसाने और बनाने में उत्तर भारतीयों का भी हाथ है. उन्होंने ने भी अपने खून और पसीने से इस शहर को सींचा है. जितना हक़ तुम्हारा बनता है उतना ही हक़ उत्तर भारतियों का भी है. क्या मराठी भारत में महाराष्ट्र में ही बसते हैं? और कहीं नहीं?. जरा अकल से काम लो. जिस दिन ये कामगार मजदुर मुंबई से चले जायेंगे उस दिन तुम्हे दाल आटे का भाव पता चल जायेगा. अगर पीने को पानी भी मिल जाये तो वह बहुत बड़ी बात होगी. मुंबई में मराठी भाषियों से अधिक अन्य भाषा-भाषी लोग रहते है. जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान,  गुजरात केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश से आते है.मुंबई के कल कारखानों को अपने पसीने और मेहनत के दम चलाने वाले यही लोग हैं.

और अंत मे दो कविता शास्त्री जी और विनोद पांडेय जी के ब्लाग से

“नवगीत” (ड़ॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक

नीड़ में अब भी परिन्दे सो रहे,
फाग का शृंगार कितना है अधूरा,
शीत से हलकान बालक हो रहे,
चमचमाती रौशनी का रूप भूरा

रश्मियों के शाल की आराधना है।

छा रहा मधुमास में कुहरा घना है।।

सेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा,

चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई,
खिल नही पाया चमन ऋतुराज में,
टेसुओं ने भी नही रंगत सजाई,

"अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-3"

कुछ ऐसे भी वीर हैं,भारतवर्ष में आज,जिनकी अम्मा रोरहीं,देख पूत के काज.
मलमल का कुर्ता पहिन,घूम रहें हैं गाँव,खबर नही क्या चल रहा,आटा-दाल का भाव.
आलस में डूबे हुए,इतने हैं उस्ताद,घर में आते हैंमियाँ,दिन ढलने के बाद.
बीड़ी व सिगरेट में,फूँक दिए कुल देह,बेच दिए बर्तन कई,घर में मचा कलेह.
नही कोई परवाह इन्हें,घर हो या परिवार,चाहे भैया फेल हो,या हो बहिन बीमार.
जिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,फ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.

दिजिये इजाजत मिलते है अगले अंक मे तब तक के लिये नमस्कार!

 

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