Tuesday, January 05, 2010

एक गधा जब नेहरू से मिला. (चर्चा हिन्दी चिट्ठो की)

नमस्कार ..पंकज मिश्रा आपके साथ और चर्चा आपके द्वारा लिखे गये चिट्ठो की “चर्चा हिन्दी चिट्ठो मे …..मै हु आपके साथ आज के दिन ….

हिन्दु को राम राम, मुसलमान को सलाम

ईसाइ भाई को गुड मार्निग, और सिख सरदार को सत  श्री अकाल!

चर्चा मे पढिये एक रोचक लेख

एक गधा जब नेहरू से मिला...

imageमैंने लोगों से सुन रखा था कि पंडितजी से मुलाकात का समय सुबह साढ़े सात-आठ बजे से पहले का है। उसके बाद जो मुलाकातियों का तांता शुरू होता है तो फिर किसी सम य भी एक-आध मिनट के लिए बात करना असंभव होता है। यही सोच कर मैं उस दिन रात-भर जागता रहा और विभिन्न रास्तों से घूम-फिर कर पंडितजी की कोठी तक पहुंचने का प्रयत्न करता रहा। कोई छह बजे के लगभग मैं उनकी कोठी के बाहर था। संतरियों ने मेरी ओर लापरवाही से ताका। शायद मैं उन्हें बिल्कुल मामूली गधा नजर आता होऊंगा। पहले तो मैं दीवार से लग कर धीरे-धीरे घास चरता रहा और धीरे-धीरे दरवाजे की ओर सरकता रहा। जब मैं दरवाजे के बिल्कुल निकट पहुंच गया तो संतरियों ने हाथ उठा कर लापरवाही से मुझे डराया जैसे आम तौर पर गधों को डराया जाता है। मैंने सारी योजना पहले से सोच रखी थी। उनके डराते ही मैंने कुछ यह प्रकट किया कि मैं बिल्कुल डर गया हूं। अतएव मैं तड़प कर उछला और सीधा कोठी के भीतर हो लिया। संतरी मेरे पीछे भागे। वे मेरे पीछे-छे और मैं उनके आगे-आगे। जब मैं बाग तक जा पहुंचा तो संतरियों ने एक गधे का वहां तक पीछा करना व्यर्थ समझ कर माली को आवाज दे दी कि वह मुझ गधे को बाग से बाहर निकाल दे और यह कह कर वे बाहर गेट पर जा खड़े हुए, जहां उनकी ड्यूटी थी।

नीचे की दोकविताये एक तो रंजना जी के ब्लाग कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se **से और दुसरी WOMAN WORLD से

खो दिया तुम्हे सखा !

खो दिया मैंने ,

तुम्हे सखा

और खोया

एक हास परिहास

एक सरल राग।

खो दिया मैंने .....

खो दिया मैंने

एहसास (कुछ यूँ ही )

सर्दी का ...
घना कोहरा..
उसमें..
डूबा हुआ मन..
एक अनदेखी सी
चादर में लिपटा हुआ
और तेरी याद उस में
आहिस्ता से ,धीरे से
उस कोहरे को चीरती
यूँ मन पर छा रही है
जैसे कोई कंवल
खिलने लगा है धीरे धीरे

ललित शर्मा जी ने जोरदार आगाज किया है अपनी कविता बड़ी हवेली ढहने लगी है अब !! से बिल्कुल सही कह गये है जनाब आप भी जानिये उनका मिजाज

imageबड़ी हवेली

ढहने लगी है अब

किसी ने पलीता लगा दिया

(2 )


बर्फ का हिमालय

आज पसीने से नहा गया

ज्वाला मुखी जो फुट रहा है

चलते है डा. मिश्रा साहब जी के ब्लाग पर और पता करते  है कौन बताएगा पहली लाईन का अर्थ .......समर शेष है!

image "अब लगे हाथ  दिनकर स्पेशलिष्ट पहली वाली लाईन का मतलब भी  बता दें ....
तो शागिर्दगी कर लूँगा नहीं तो ...अब खुदैं फैसला कर लें अपने बारे में अब कुंजी वुन्जी मत देखियेगा भाई लोग.... यह ब्रीच आफ ट्रस्ट नहीं ब्लाग्वर्ल्ड में ..(..शागिर्दगी का मतलब जीवन भर टिप्पणी करता रहूँगा ऐसे विद्वान् की पोस्ट   पर जो इसका सटीक अर्थ बता देगा -मूल टिप्पणी में नहीं है यह वाक्य . )
नीचे क  सरल लाईन क व्याख्याकार और भाष्यकार कौनो कम नहीं हैं ,यानी बहुत हैं
मगर असली तेजाबी परीक्षा त  ई लाईन में है -
समर शेष है नहीं पाप का भागी केवल व्याध!"

और साथ मे है डा. मनोज मिश्रा जी काफ़ी दिनो बाद ब्लाग जगत मे वापसी किये है अपनी पोस्ट निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा – से और साथ मे सुन्दर गीत!image

इस व्रत की कथा लिखूंगा तो पोस्ट लम्बी हो जायेगी फिर भी इतना तो समझ ही लीजिये की हमारे धर्मं में अस्सी प्रतिशत व्रत कहीं न कहीं भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती से जुड़े हैं सो यह व्रत भी उन्ही से जुड़ा है ,जिसका सम्बन्ध पुत्र की लम्बी आयु से है|
हमारे समाज में पुत्र जन्म से लेकर संपूर्ण जीवन को सुखमय बनाने के लिए कितने उपाय किये गयें हैं| जन्म के समय गाये जाने वाले लोकगीत (सोहर)में कितनी उम्मीदें ,कितने सपने जुड़े होतें हैं | राजा और रंक दोनों के लिये एक ही गीत,एक ही उम्मीद और अभिलाषा | आज कितनें सपनों को पूरा कर पा रहें हैं हम और हमारे समाज के चरित नायक ?आज गणेश चतुर्थी के दिन इस आंचलिक लोक गीत को अवश्य सुनियेगा जिसे मैं बचपन से सुनता आ रहा हूँ , मुझे यह आज भी पहले जैसा ही लुभावना लगता है

गीत आप उनके ब्लाग पर जाकर सुनिये!

अंधड़ ! पर है पी सी गोदियाल जी और बता रहे है ब्लॉग,ब्लॉगर, ब्लॉगरी.... ?????

image अपने सुधि पाठको और मित्रों से दो बाते और कहना चाहता हूँ, एक तो यह कि कुछ दिनों से मानसिक तौर पर अस्वस्थ चल रहा हूँ, अत: जाने अनजाने कहीं कुछ गलत कह दिया हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ ! और दूसरे यह कि नियमित लेखन को कुछ हद तक फिलहाल सीमित कर रहा हूँ, कभी फिर वसंत लौटा तो नियमित लिखना फिर से शुरू करूंगा ! साथ ही हाँ, चूँकि हमारे ब्लोग्बाणी और चिठ्ठाजगत पर पाठको की सर्वथा कमी रहती है, इसलिए मैं लेखन की क्रिया को कम करके आपके "अंतर्द्वंदों" का एक नियमित पाठक बनने की कोशिश कर रहा हूँ !

खुशदीप सहगल जी छुट्टी से वापस आ गये है …खुशदीप जी आपसे हमारी बात हुई थी याद है ? :)ब्लॉगिंग से दूर रहकर हमने जाना ब्लॉगिंग क्या है...खुशदीप

और अगर आपका कहने का आशय ये है कि मुझ जैसे टटपूंजियों का लिखा अगड़म-बगड़म आपके कहे एक जुमले की बराबरी भी कर सकता है तो माफ कीजिएगा, डॉक्टर साहब मैं ये भ्रम पालने के लिए कतई तैयार नहीं हूं...और आपको पढ़ने के लिए अगर मुझे ब्लॉग पर खुद लिखना छोड़ना भी पड़े तो मैं उस हद तक जाने के लिए भी तैयार हूं.

"माँ होती तो”.... सचमुच कैसा होता ?

image जैसे मुक्कमल हसरतें दिल की सारी हो रही हो
ख्वाबों को हकीक़त में बदलने की तैयारी हो रही हो
माचिस के डिब्बों से एक छोटा सा घर बनाते हुए
मानो वो बचपन अपनी ही अदा भुला बैठा हो
महफूज़ सा कल भी कहीं खफा खफा बैठा हो
जूठे गिलास धोते हुए पुराने जूते चमकाते हुए

 

घर से भागी हुई एक लड़की का ख़त  पढिये 

पापा: image
आपके पिता होने में न सुंदरता है, न कोमलता, न कोई मीठा गीत। आपकी बेटी होना अपमान है, अपराध है, पाप है; आप मेरे स्त्री होने की सुंदरता पर हावी नहीं हो सकते। इसीलिए मैं आपको अपनी बाक़ी ज़िंदगी में से घटा देना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ आप शून्य हो जाएँ, मेरे वजूद में से बाहर हों, ताकि मैं खूबसूरत और मुकम्मल हो सकूँ।

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ब्लाग जगत मे चल रहे विवादो से दुखी है और कह रहे है ज्वालामुखी न फोड़ें....हाथ मिलाएं और दिल भी मिलाएं

image नाम नहीं लिखेंगे क्यों कि संदर्भ ऐसे हैं जिनके कारण आसानी से समझ आ जायेगा कि किस पोस्ट की चर्चा हो रही है। एक तो अलबेला खत्री के चयन को लेकर, सम्मान को लेकर सवाल उठाये गये हैं। ऐसा किसी एक ही पोस्ट पर नहीं है, दो एक पोस्ट और भी दिखीं। बहरहाल, हमारे लिए इस विषय पर कुछ भी कहना सूरज को रोशनी दिखाना हो जायेगा क्योंकि स्वयं अलबेला खत्री जी और अविनाश वाचस्पति जी काफी कुछ कह चुके हैं। अविनाश जी को पढ़ा तो लगा कि यही सही है और जब अलबेला जी की पोस्ट देखी तो वह सही दिखे। (परेशान हम क्योंकि हम तो कतार में हैं।)

अविनाश जी ! आपने अनजाने में एक भूल कर दी और लोग फ़र्ज़ी नामों से अपनी कुंठाएं निकालने में सफल हो गये

आपने मेरे द्वारा प्रस्तावित "ब्लोगर 2009 सम्मान" "टिप्पणीकार
2009 सम्मान" और "post of the year 2009" को
"अलबेला खत्री सम्मान" क्यों बना दिया भाई ? जब मैंने ही कहीं
इन्हें अपना नाम नहीं दिया तो आपने अपने ब्लॉग पर " सन्दर्भ -
अलबेला खत्री सम्मान " बता कर उन तत्वों को क्यों सक्रिय कर
दिया जो इस फ़िराक में ही थे कि कब लोहा गर्म हो

ताऊ जी डाट काम पर सुबह शाम चौपाल लगी है आप भी भाग लिजिये

दो प्यारे बच्चो के ब्लाग-

पापा…., तत्त्ता…. तत्त्ता लविजा

image वो ये की मेरे हाथ और  पैरों में कुछ मच्छरों ने काट लिया था और उसे शायद मैंने नाख़ून से खुरच दिया होगा तो एक मेरे imageहाथ में और एक पैर में छोटे छोटे दो जख्म बन गए हैं. और यही बताने के लिए तो मैं नींद से उठ गयी. मैंने स्वेटर का आस्तीन ऊपर किया और पापा को जख्म दिखाया .

 

 और दुसरे है माधव साहब -वर्षा दीदी और ऋतू दीदी के साथ

image image

दिजिये इजाजत …मिलते है कल फ़िर….जयराम जी की

नमस्ते…

 

21 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

15 चिट्ठों की चर्चा बहुत बढ़िया रही!

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुन्दर चर्चा पंकज जी ,जमे रहिये..

Himanshu Pandey said...

खूबसूरत चर्चा ! आभार ।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

पंकज जी सुंदर चर्चा, आभार

Arvind Mishra said...

समग्र संतुष्टिदायक .....

वाणी गीत said...

बढ़िया चर्चा ...!!

मनोज कुमार said...

बहुत सुन्दर चर्चा ...

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सुंदर चर्चा बन पडी है भाई,आभार

Randhir Singh Suman said...

nice

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर चर्चा.

रामराम.

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर चर्चा ...

रंजू भाटिया said...

अच्छी लगी चर्चा शुक्रिया

डा० अमर कुमार said...


बेहतरीन चर्चा !
इस प्रकार की सधी सँतुलित चर्चा से इस चर्चामँच का मान दिनोंदिन बढ़ता ही जा रहा है ।
कई दिनों से बगल-पट्टी में एकॉउँट इन-एक्टिव क्योंमुँह चिढ़ा रहा है ?

Mishra Pankaj said...

@ डा. साहब धन्यवाद


मुह चिढाने वाले को बंद कर दिया हु



सादर


पंकज

निर्मला कपिला said...

कई दिन बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। बहुत अच्छी लगी चर्चा। धन्यवाद नये साल की शुभकामनायें

रावेंद्रकुमार रवि said...

नए साल में चर्चा की शैली में कुछ परिवर्तन भी आवश्यक है!
ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", FONT लिखने के 24 ढंग!
संपादक : "सरस पायस"

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

अति सुन्दर कवरेज पंकज जी !

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अति सुन्दर एवं रोचक चर्चा.........

Gyan Darpan said...

बेहतरीन चर्चा !

Khushdeep Sehgal said...

पंकज भाई,
जिस दिन आपका फोन आया, उस वक्त बरेली में दरवार ब्लॉग वाले धीरू सिंह जी के घर पर ही बैठा हुआ था...बड़ा अच्छा लगा था आपसे बात कर...आपकी चर्चा ऐश्वर्या राय जैसी खूबसूरत है...काला टीका लगा कर रखिए...

जय हिंद...

माधव( Madhav) said...

सर मै ब्लोग दुनिया से दो महीने के लिए दूर था , सो जो आपने अपने ब्लॉग में मेरी चर्चा की उस पर कोई कमेंट्स नहीं दे पाया . अपने ब्लॉग पर मुझे जगह देने के लिए आपका धन्यवाद

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