Wednesday, January 13, 2010

गंभीरता की देवी बोली - ......, ज्यादा जबान लडाता है (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की )

नमस्कार,  पंकज मिश्रा आपके साथ आपके चिट्ठो की चर्चा लेकर .

चलिये शुरुआत करते है कुछ प्रश्नो के द्वारा जो कि ताऊ रामपुरिया जी के द्वारा पुछा गया है!

१. क्या हमको पलायन करना चाहिये?
२. क्या हमे इधर उधर से मार कर ब्लडी, ईडियट, साला, ससुरा, शराब, सिगरेट जैसे शब्दों को डालकर गंभीर लेखन करने का नाटक करना चाहिये?

अरे ताऊ "गंभीर देवी तुमको जीने नही देगी और मुस्कान देवी तुमको मरने नही देगी."

gambir-erykah1 गंभीरता की देवी बोली - अरे शठ ताऊ, ज्यादा जबान लडाता है मुझसे? अरे मुर्ख ..इसमे कौन सी बडी बात है? जरा मुंह लटकाया हुआ फ़ोटो लगा ले. फ़िर गूगल मे से कोई जर्मन, फ़्रेंच, रुसी या अंग्रेजी भाषा का कम प्रचलित शब्द खोज ले. और उसको कोट करते हुये लिख डाल मुर्ख.... तेरी धाक जम जायेगी और तू जिम्मेदार और धीर गंभीर लेखक कहलाने लगेगा. और उस देवी ने ताऊ के गले को दबाते हुये पूछा - बोल क्या कहता है?

ताऊ बोला - हे मुस्कान देवी, आपकी बात सही है. मैं ये काम बहुत आसानी से कर सकता हूं. पर मुझे धीर-गंभीर लोग ऐसा करने से मना करते हैं. आप तो जानती ही हैं कि मैं तो पैदायशी सियार हूं और लोग अब ये फ़तवा दे रहे हैं कि सियारों, कायरो और कुत्ते बिल्लियों को ब्लागिंग छोड देना चाहिये. तो अब ये बताओ कि मैं बिना शेर, सियार, गीदड, कुत्ते और बिल्लियों के कैसे ब्लागिंग करूं. और ब्लागिंग नही करुं तो लोगों को हंसाऊं कैसे?

आगे रतन सिंहः शेखावत जी है और कह रहे है.जय सोमनाथ !

मंदिर की ईंट-ईंट बिखर गई | उसके सोने चाँदी के अलंकार व रत्न लादे जा रहे थे | लदे हुए ऊँटो ने अरडाट की - ' जय सोमनाथ ! '
धर्म के नाम पर धर्म कचोटा गया , धर्म के नाम पर धरती की कोख सूनी हो गई , धर्म के नाम पर बलिदान को बलि चढ़ा दिया गया , यज्ञ की अंतिम स्वाहा में पूर्णाहुति का मन्त्र गूंजा - ' जय सोमनाथ ! '
गुर्जर देश के सूर्य ने फिर बिस्तर में घुस कर लाल चादर ओढ़ ली | मंदिर शमशान बन चूका था और सियार चिल्ला रहे थे - ' जय सोमनाथ ! '
रात का सन्नाटा दबे पांव घूम घूम कर देख रहा था - संहार के वीर्य से उत्पन्न चिर शांति के एकछत्र साम्राज्य को - ' कौन है सम्राट ? कहाँ गया वह ? अँधेरे ने पहचान कर कहा - ' जय सोमनाथ ! '

शरद कोकाश जी पुछ रहे है -कबाड़ी आया क्या ? मुझे पुराना साल बेचना है ..।

मेरा फोटोशरद:        मुझे पिछला साल बेचना है
गिरिजेश: क्या बेंचोगे कोई खरीददार नहीं मिलेगा
                 गुजरे लम्हों के पास प्यार नहीं मिलेगा।
शरद:       ऐसी ही करती है यह  दुनिया  दिल्लगी
                दिल लेकर घूमोगे दिलदार नहीं मिलेगा
गिरिजेश: गुनाह   फिरा  करते  हैं   नंगे    ही  सड़कों पर
                 उजाले  अन्धेरे का कोई गुनहगार नहीं मिलेगा।
शरद:      फुटपाथ पर गुजर गई जिनकी ज़िन्दगानी
                उन्हे इस सदी में तो   घरबार नही मिलेगा
गिरिजेश: घूमते हैं घायल दिल हथेली पर लिए
                 दर्द है बहुत तीमारदार नहीं मिलेगा?
शरद:       भूख लगी है बहुत सुबह से कुछ खाया नही ..
                जाऊँ नहीं तो  रात का आहार नही मिलेगा
गिरिजेश: अरे महराज जाने से पहले  इसे चैट ग़जल नाम से छाप दीजिए। दोनों का नाम हो जाएगा।
शरद:       अरे... यह तो नया प्रयोग हो गया ...वाह!!!
गिरिजेश : और क्या! अभी पोस्टिया दीजिए।
शरद:        इसे सेव कर लीजिये और मुझे मेल कर दीजिये बाक़ी मै कर लूंगा

शास्त्री जी के साथ हुआ ये -“हमारी रचनाएँ भी चोरी कर ही ली गई” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक)

और साथ मे है स्मार्ट इंडियन  अनुराग शर्मा बता रहे है

सत्य के टुकड़े

फर्क बस इतना था कि
तब टुकड़े जोड़कर सीने की
कोशिश होती थी
पञ्च परमेश्वर करता था
सत्यमेव जयते
पांच अलग-अलग सत्य जोड़कर
विषम संख्या का विशेष महत्त्व था
ताकि सत्य को टांगा न जा सके
हंग पार्लियामेंट की सूली पर
सत्य के टुकड़े मिलाकर
निर्माण करते थे ऋषि

My Photo

रावेंद्रकुमार रवि जी भी कह रहे है मिलत, खिलत, लजियात ... ... .

मेरा फोटो

कहत, नटत, रीझत, खिजत; मिलत, खिलत, लजियात।

भरे भौन में करत हैं, नयन ही सों बात।।"

कविवर बिहारी द्वारा रचित इस लोकप्रिय दोहे में

किस अलंकार का प्रयोग हुआ है?

आप सब से अनुरोध है कि इस अलंकार से युक्त

कुछ अन्य उदाहरण प्रस्तुत कीजिए!

अगर स्वरचित उदाहरण प्रस्तुत करेंगे,

तो "हिंदी का शृंगार" अधिक अच्छा लगेगा!

धोखा रंजना [रंजू भाटिया}

एक साँस .....
जाने किस आस पर
दिन गुजारती है..
निरीह सी आंखो से
अपने ही दिए जीवन को,
पल -पल निहारती है
पुचकारती है, दुलारती है
अपने अंतिम लम्हे तक
उसी को ...
जीने का सहारा मानती है
सच है ...

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आर टी आई, माननीय जज और कुछ सवाल बता रहे है  डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

untitled क्या माननीय जज आदमी नहीं, जो उनसे उनके कार्यों के बारे में न पूछा जाये?
क्या सूचना अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत किसी से कुछ भी जानने का तात्पर्य उसके भ्रष्ट होने से लगाया जाता है?
माननीय जज साहब से यदि कुछ भी (संवैधानिक) पूछे जाने पर क्या देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो सकते हैं?
न्यायालयीन प्रक्रिया सीधे-सीधे आम आदमी की संवेदनाओं से जुड़ी होती है, क्या ऐसे में माननीय जज साहबों का सूचना अधिकार अधिनियम के दायरे में आना असंवैधानिक है

खबरो की खबर मे अजय भाई बता रहे है हाकी खिलाडियों से करोडों की फ़ैसिलिटी वापस ली जाएगी

खबर :- लौटें या कार्रवाई को तैयार रहें हाकी खिलाडी

नज़र :- हां , बिल्कुल ठीक बात है , यार हद है , बताओ भला राष्ट्रीय खेल के खिलाडी इस तरह से करेंगे तो कितना बुरा असर पडेगा मालूम है। बच्चे तो भूल भी जाएंगे कि राष्ट्रीय खेल हाकी है , और सब क्रिकेट के दीवाने हो जाएंगे । इसलिए इस कदम का समर्थन किया जाना चाहिए । मैं तो कहता हूं कि हाकी खिलाडियों को मिलने वाली तमाम सुविधाएं, लाखों करोडों का बैंक बैलेंस, उनका वो स्टार स्टेटस, विज्ञापन के इतने सारे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अनुबंध , और इस तरह की तमाम सुख सुविधाएं वापस छीन लेनी चाहिए .....। आयं , क्या कहा ...ये सब तो उन्हें मिल ही नहीं रही है .......अबे तो क्या खाक कार्रवाई करोगे बे...। जब दिया ही कुछ नहीं है तो लोगे क्या ..?????

कल मेल द्वारा सुचना मिला है कि

कल यानी बुधवार 13 जनवरी को रात्रि सात बजे  "श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता" का परिणाम घोषित किया जाएगा !

http://cmindia.blogspot.com

और अंत मे आज की कविता मे विनोद पांडेय जी है लेकर पावनता गंगाजल की, अपने अस्तित्व को जूझ रही.

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पावनता गंगाजल की, अपने अस्तित्व को जूझ रही,
बूँदों से स्पर्शित होकर, पापी मन पवित्र कहलाता,तरो ताज़गी उपजे तन में,निर्मल जल से जब धूल जाता,वह जल जिसका एक आचमन,स्वर्गद्वार के पट को खोले,अंजुलि भर जलधारा मानो,हरे विकार भक्ति रस घोले,
मंद पड़ गये भक्ति भाव सब,जल विकृत हो सूख रही,
भागीरथ के अथक प्रयासों से,ज़ो पृथ्वी पर आयी हैं,शिव की जटा सुशोभित करती,नीर धरा पर बरसायी हैं,हिमआलय की गोद से निकली,नदियों की

रानी स्वरूप,मगर आज धूमिल दिखती है,क्यों उनका प्राचीनतम रूप,
कलयुग के समक्ष नतमस्तक,मन ही मन सब बूझ रही,
गंगाजल की आज शुद्धता,धीरे धीरे क्षीण हो रही,दूषित 'कल' के जल से गंगा,निर्मलता से हीन हो रही,सोचो कुछ हे भारतवासी,हृदय से एक संकल्प उठाओ,गंगा माँ की पुनः शुद्धता,जननी को फिर से दिलवाओ,
जो प्रतीक थी पवित्रता की,आज वहीं अपवित्र हो रही.

15 comments:

मनोज कुमार said...

सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर चर्चा - आभार

Khushdeep Sehgal said...

क्या पंकज भैया,
आज बड़ी जल्दी में निपटा दियो चर्चा...क्या रात आफिस से देर से आयत रही...

जय हिंद...

डॉ. मनोज मिश्र said...

अच्छी रही चर्चा.

Gyan Darpan said...

बढ़िया चर्चा |
ताऊ जी के प्रश्नों का जबाब दे आयें है |

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर चर्चा.

रामराम.

तनु श्री said...

Nice----

Anonymous said...

बढ़िया!
कुछ ना पढ़ी गई पोस्ट्स मिल गईं

बी एस पाबला

रंजू भाटिया said...

शुक्रिया जी कुछ मेरी कलम से लिखे को लेने के लिए

दिगम्बर नासवा said...

लाजवाब चर्चा है ........

अजय कुमार झा said...

वाह पकंज भाई क्या झक्कास चर्चा की है , हम तो अभी तक आपके टैम्पलेट पे ही फ़िदा हुए जा रहे हैं ,
अजय कुमार झा

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

अति सुन्दर चर्चा!!!
आभार्!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

लोहिड़ी पर्व और मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!

शरद कोकास said...

बढ़िया चर्चा है भाई ।

Himanshu Pandey said...

हम साथ नहीं दे रहे, इसलिये निपटा दे रहे हैं जल्दी ही !
बेहतर चर्चा । आभार ।

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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