आज दिन भर हंगामा था मायावती के नोटों की माला को लेकर, बस इतने सारे नोट एक जगह पर देखने को पहली बार मिले वह भी चित्र में। अब इनसे गरीबों का विकास होगा, उनके लिए रोटी कपड़ा और मकान जुटाया जाएगा। अब यह ना पुछना कि कौन से गरीब? नव रात्रि पर्व मे मातृ शक्ति स्मरण करते हुए आज चर्चा मे सिर्फ़ मातृ शक्ति को ही स्थान दिया है----पंकज मिश्रा जी छुट्टी मे हैं इस लिए मै ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज की चर्चा हिन्दी चिट्ठों की पर.....................
आज की चर्चा का प्रारंभ करते हैं उदयाचल से याने अरुणाचल से--यह सुरम्य वादियों का प्रदेश प्राकृतिक सौंदर्य लिए बहुत ही भाता है। प्रकृति की छटा अद्भुत है। अरुणाचल से ममता जी ने अपने ब्लाग पर जानकारी दी है तथा कुछ सुंदर चित्र भी लगाए हैं---अरुणाचल प्रदेश जिसे land of rising sun कहते है ये तो अब आप जानते ही है। यूँ तो अरुणाचल प्रदेश सुनकर लगता है की ये भी उत्तर पूर्व (N E ) का एक छोटा सा राज्य होगा पर ऐसा नहीं है अरुणाचल प्रदेश काफी बड़ा है। हाँ पर जनसँख्या यहां की काफी कम है (शायद 1० -११ लाख )।
डॉ अमिता नीरव अपने चिट्ठे अस्तित्व पर सृष्टि के गर्भाधान का उत्सव गुड़ी पड़वा के विषय मे रोचक जानकारी दे रही हैं--फागुन के गुजरते-गुजरते आसमान साफ हो जाता है, दिन का आँचल सुनहरा, शाम लंबी, सुरमई और रात जब बहुत उदार और उदात्त होकर उतरती है तो सिर पर तारों का थाल झिलमिलाने लगता है। होली आ धमकती है, चाहे इसे आप धर्म से जोड़े या अर्थ से... सारा मामला आखिरकार मौसम और मन पर आकर टिक जाता है। इन्हीं दिनों वसंत जैसे आसमान और जमीन के बीच होली के रंगों की दुकान सजाए बैठता है.... अपने आँगन में जब गहरी गुलाबी हो रही बोगनविलिया, पीले झूमर से लटकते अमलतास और सिंदूर-से दहकते पलाश को देखते हैं, तो लगता है कि प्रकृति गहरे-मादक रंगों से शृंगार कर हमारे मन को मौसम के साथ समरस करने में लगी हैं।
उल्लास पर मीनु खरे जी बता रही हैं माँ जगदम्बा के नौ रुप--- कुसुम ठाकुर जी ने कोहबर पर बासंती पुजा के विषय मे जानकारी दी है----चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से विक्रम संवत शुरू होता है जिसे हिंदू नववर्ष या नव संवत्सर भी कहते हैं । आज चैत्र शुक्ल पक्ष का प्रतिपदा है और विक्रम संवत २०६७ का आरम्भ। आज के दिन ही बासंती या चैत्र नवरात्रा आरम्भ होता है और आज के दिन ही चैत्र दुर्गा पूजा की कलश स्थापना की जाती है । नौ दिनों तक धूम धाम से चलने वाली इस दुर्गा पूजा का भी विशेष महत्व है ।
संवेदना संसार पर रंजना जी कह रही हैं--आरक्षण-रक्षण किसका? नेताजी बहुतै खिसियाये हुए हैं.आजकल जहाँ देखिये वहां चैनल सब पर चमक रहे हैं और सबको चमका रहे हैं...एलान किये हैं कि उनका लाश पर महिला आरक्षण बिल पास होगा.....नेताजी फरमाते हैं .....वे महिलाओं के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि वो तो इतना चाहते हैं कि महिला आरक्षण का लाभ पढी लिखी फ़र फ़र उडती फिरती परकटी बलकटी उन महिलाओं को नहीं ,बल्कि यह उन महिलाओं को मिले, जो नरेगा के अंतर्गत बोझा ढ़ोने का काम करती हैं,जो अल्पसंख्यक समाज से आती हैं,जो अत्यंत पिछड़े वर्ग से आती हैं..संसद में जा राज्य व्यवस्था चलाने का अधिकार उन महिलाओं को मिलना चाहिए जो शिक्षा से वंचित हैं,पारिवारिक सामाजिक अधिकार से वंचित हैं..
डॉक्टर मीना अग्रवाल अपने ब्लाग टमाटर पर कुछ मुक्तक लेकर आई हैं। पहेली हूँ मुझे सुलझा के देखो नजदीक से अब आ के देखो,समर्पण में मुझे सीता के पाओ,मुझे हर रूप में दुर्गा के देखो,मुझे इसका गिला कब तक रहेगा,कोई किस दिन मुझे चिट्ठी लिखेगा,जो सुख था प्यार की उन चिट्ठियों में,मज़ा वो दूर-भाषी सुख न देगा। ब्लाग सोचा न था पर नेहा शर्मा गुड़ी पड़वा पर एक लेख लेकर आई हैं---गुडी पडवा...चैत्र मास का पहला दिन...जो की हिंदी कैलेंडर के नए साल का पहला दिन है....इसे महाराष्ट्र में नए साल के रूप में मनाया जाता है....इस दिन को शादी,नए काम शुरू करने,गहने और नयी संपत्ति खरीदने के लिए शुभ माना जाता है..
सुधिनामा पर साधना वैद्य जी लिख रही हैं शक्ति रुपेण नारी--- अपने सभी पाठकों को नवसंवत्सर की शुभकामनायें देते हुए चैत्र मास की प्रतिपदा के दिन मैं उस आदि शक्ति को नमन करती हूँ जिसने इस संसार के सारे दुखों का नाश कर मानव मात्र को भयमुक्त किया है और उसको समस्त सुखों का वरदान दिया है ! ‘असहाय’, ‘बेचारी’, ‘दयापात्र‘, ’अबला नारी’, ‘कमज़ोर जात’,’दासी’,‘बाँदी’,‘गोली’,‘गुलाम’इन सारे नामों को सलाम !रजनी भार्गव जी रजनीगंधा पर नीम पर लिख रही हैं--कागज़ पर कुछ टेढ़ी मढ़ी लकीरें,नक्शे पर नीली, हरी लकीरें,बच्चों के मन में गढ़ गई थीं,आज लकीरें सुलग रही थीं,बनती बिगड़ती बटोही सी,भटक रही थीं।
स्पंदन पर शिखा जी ने एक कविता सजाई है अहसास---गीली सीली सी रेत में,छापते पांवों के छापों में,अक्सर यूँ गुमां होता है,तू मेरे साथ साथ चलता है, सुबह की पीली धूप जब,मेरे गालों पर पड़ती है,शांत समंदर की लहरें,जब पाँव मेरे धोती हैं, उन उठती गिरती लहरों में अब भी, मुझे अक्स तेरा दिखाई देता है। किरण राजपुरोहित जी भोर की पहली किरण पर लिख रही हैं ---ओ! चित्रकार----ओ! चित्रकार-- रंगों संग चलने वाले --आकृतियों में ढ़लने वाले--भावों के साकार--- ओ! चित्रकार-- सृष्टि से रंग चुराकर---मौन को कर उजागर-- रचते हो संसार---ओ! चित्रकार
प्रतिभा की दु्निया पर प्रतिभा जी लिख रही हैं---कौन था मोड़ पर---वो याद ही तो थी जो एक रोज मोड़ पर मिली थी. घर के मोड़ पर. वो याद ही तो थी जो गुलमोहर के पेड़ के नीचे से गुजरते हुए छूकर गयी थी. एक कच्ची सी याद उठी साइकिल की पहली सवारी वाली भी. वो भी तो याद ही थी जो हर शाम के साथ झरती थी छत पर. छत, जिसके बनने में भी हाथ लगाया था भरपूर. वो याद ही थी उन दीवारों में बसी हुई।----काव्य तरंग पर रानी विशाल जी रच रही हैं काव्य---तबदीलियाँ तो वक्त का पहला उसुल है--- चलते चलते सुनिए गीत ----- ये समा समा है ये प्यार का------
सभी को नव संवत्सर एवं नवरात्रि पर की बधाई-अब देते हैं चर्चा को विराम- सभी को मेरा राम-राम
13 comments:
nice
शुक्रिया
आयोलाल-झुलेलाल
चेट्रीचंड्र जूँ लख-लख वाधायूँ
बहुत ही व्यवस्थित व सुन्दर चर्चा .....धन्यवाद !!
उत्तम चर्चा..बधाई...
बहुत बढिया चर्चा.
रामराम.
badhiya charcha.
अच्छी चर्चा !!!
बहुत बढिया व सुन्दर चर्चा
बहुत ही व्यवस्थित व सुन्दर चर्चा .....धन्यवाद !!
बढ़िया रही चर्चा,आभार.
बहुत ही उम्दा चर्चा रही शर्मा जी ...सारे ही लिंक्स नहीं देखे थे ..बहुत बहुत आभार
अजय कुमार झा
कई लिंक्स मिले .. आभार !!
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