Friday, April 16, 2010

मैंने अपने बॉस से ब्लागिंग शुरू करवाई ! पंकज मिश्रा ( चर्चा हिन्दी चिट्ठो की )

नमस्कार , मै पंकज मिश्रा - आप सब को प्रणाम !
जैसा कि आप कुछ दिनों से देख रहे है मै अपने इस चिट्ठा चर्चा पर ज्यादा समय नहीं दे पा रहा हु ! आप सबको ऐसा लगा होगा कि मै तो गायब ही हो गया लेकिन साहब जी ऐसी कोई बात नहीं है !
नई -नई नौकरी है और अभी पुरी तरह से मै यहाँ पर अपना व्यस्था भी नहीं बना पाया हु , रहने खाने का , इसीलिए कुछ कम नजर आ रहा हु आप सबके साथ !
लेकिन इन सब व्यस्तताओं के बावजूद भी मन में कही ना कही ब्लागिंग का भूत था और समीर जी की बात का असर भी
बात ये कि कम से कम किसी एक से एक ब्लॉग बनवाये !
तो अब आप सब जान लीजिये कि मै तो सीधे अपने बॉस को ही चुन लिया और उन्होंने हमारा ब्लॉग पढ़ने के बाद तुरंत ब्लॉग बनाने के लिए मुझसे बोले और मै आनन् फानन में उनका ब्लॉग अजनबी दुनिया
बनाकर तैयार कर दिया .

पेश है उनके ब्लॉग की पहले पोस्ट
हम सब अजनबी हैं के कुछ अंश .
३। इसके आगे जो सम्बन्ध दुनिया में सबसे करीबी है। वहां तो बात और गड़बड़ है।
पति पत्नी से वो भी शादी से १ साल बाद से जीवन के अंत तक यही सोचता है और शायद कबुही कभी आपने करीबी लोगों में बातें भी करता है । की यार न जाने में कुछ भी करलूं मेरी बीबी को मेरी ही बात समझ में नहीं आती। वहीँ पत्नी को आपने पति से साडी उम्र पति के कुछ आदतों को लेकर शिकायत रहती ही है जो वह अपनी सहेलियों के बीच में बोल पड़ती हेई। जैसे उनकी ऑफिस से आकर घर में कपडे कहीं भी रखने की आदत। इन्हें तो देखो बस मेरे ही हाथ का खाना पसंद नहीं आता। जब देखो दुसरे की ही तारीफ करते रहते हैं, में तो शादी से लेकर आज तक इनकी तारीफ सुनने को तरस गयी।
४। प्रेमिका को प्रेमी की देर से आने की आदत पसंद नहीं आती। प्रेमी को प्रेमिका का रोज कोफ्फे हाउस में जाने से मन करना नहीं भाता ।
५। भाई को भाई का अपनी जिंदगी के किसी पल में दखल पसंद नहीं आता।

तो साहब जी एक बात और भी है लोग अपने बॉस से छुप-छुप कर ब्लागिंग करते है और मै अपने बॉस से ही ब्लॉग बनवा दिया!
अगर आपको इसे कुछ साहस नजर आया हो तो मुझे यहाँ बधाई दे
और हां एक बात और मुझे टिप्पणी दे या ना दे लेकिन आज श्री दीपक जी के ब्लॉग - यहाँ परजाकर टिप्पणी अवस्य करे !
धन्यवाद

Wednesday, April 07, 2010

खुनी रेड हंट---कुछ टिप्पणियों की चर्चा----ललित शर्मा

बीते कल की सुबह 36 गढ के बस्तर क्षेत्र के ताड़मेटला के जंगलों में सुरक्षा बलों के लिए कहर बनकर आई, जिसमें नक्सली हमले मे 75जवान शहीद हो गये। इस कायरता पुर्ण घटना की सर्वत्र निंदा की जा रही है। सरकार अभी तक जागी नही है, प्रधानमंत्री सलाह कारों की सलाह पर कह रहे हैं कि सेना भेजने की कोई आवश्यक्ता नही है। मु्ख्यमंत्री इस घटना को कायरता की पराकाष्ठा कह रहे हैं, केन्द्रीय गृहमंत्री कह रहे हैं कि रणनीति में चूक हुई है, कुछ भी कहीं भी चूक हुई हो, लेकिन जवानों की जाने गई यह सत्य है, इस विषय पर कल रात से ही पोस्ट आनी प्रारंभ हो गयी थी। आज मै ललित शर्मा सिर्फ कुछ टिप्पणियों की ही चर्चा कर रहा हूँ............

सबसे पहले राजतन्त्र पर गिरीश पंकज जी की टिप्पणी पढ़िए.........
गिरीश पंकज Wed Apr 07, 11:24:00 AM 2010  
हत्यारों को पहचान पाना अब बड़ा मुश्किल है/ अक्सर वह विचारधारा की खाल ओढ़े मंडराते रहते है राजधानियों में या फिर गाँव-खेड़े या कहीं और../ लेते है सभाएं कि बदलनी है यह व्यवस्था दिलाना है इन्साफ.../ हत्यारे बड़े चालाक होते है/खादी के मैले-कुचैले कपडे पहन कर वे/ कुछ इस मसीहाई अंदाज से आते है/ कि लगता है महात्मा गांधी के बाद सीधे/ये ही अवतरित हुए है इस धरा पर/ कि अब ये बदल कर रख देंगे सिस्टम को/ कि अब हो जायेगी क्रान्ति/ कि अब होने वाला ही है समाजवाद का आगाज़/ ये तो बहुत दिनों के बाद पता चलता है कि/ वे जो खादी के फटे कुरते-पायजामे में टहल रहे थे/और जो किसी पंचतारा होटल में रुके थे हत्यारे थे./ ये वे ही लोग हैं जो दो-चार दिन बाद / किसी का बहता हुआ लहू न देखे/ साम्यवाद पर कविता ही नहीं लिख पते/ समलैंगिकता के समर्थन में भी खड़े होने के पहले ये एकाध 'ब्लास्ट'' मंगाते ही माँगते है/ कहीं भी..कभी भी..../ हत्यारे विचारधारा के जुमलों को/ कुछ इस तरह रट चुकते है कि/ दो साल के बच्चे का गला काटते हुए भी वे कह सकते है / माओ जिंदाबाद.../ चाओ जिंदाबाद.../ फाओ जिंदाबाद.../ या कोई और जिंदाबाद./ हत्यारे बड़े कमाल के होते हैं/ कि वे हत्यारे तो लगते ही नहीं/ कि वे कभी-कभी किसी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले/ छात्र लगते है या फिर/ तथाकथित ''फेक'' या कहें कि निष्प्राण-सी कविता के / बिम्ब में समाये हुए अर्थो के ब्रह्माण्ड में/ विचरने वाले किसी अज्ञातलोक के प्राणी./ हत्यारे हिन्दी बोलते हैं/ हत्यारे अंगरेजी बोल सकते हैं/ हत्यारे तेलुगु या ओडिया या कोई भी भाषा बोल सकते है/ लेकिन हर भाषा में क्रांति का एक ही अर्थ होता है/ हत्या...हत्या...और सिर्फ ह्त्या.../ हत्यारे को पहचानना बड़ा कठिन है/ जैसे पहचान में नहीं आती सरकारें/ समझ में नहीं आती पुलिस/उसी तरह पहचान में नहीं आते हत्यारे/ आज़ाद देश में दीमक की तरह इंसानियत को चाट रहे/ लोगों को पहचान पाना इस दौर का सबसे बड़ा संकट है/ बस यही सोच कर हम गांधी को याद करते है कि/ वह एक लंगोटीधारी नया संत/ कब घुसेगा हत्यारों के दिमागों में/ कि क्रान्ति ख़ून फैलाने से नहीं आती/ कि क्रान्ति जंगल-जंगल अपराधियों-सा भटकने से नहीं आती / क्रांति आती है तो खुद की जान देने से/ क्रांति करुणा की कोख से पैदा होती है/ क्रांति प्यार के आँगन में बड़ी होती है/ क्रांति सहयोग के सहारे खड़ी होती है/ लेकिन सवाल यही है कि दुर्बुद्धि की गर्त में गिरे/ बुद्धिजीवियों को कोई समझाये तो कैसे/ कि भाई मेरे क्रान्ति का रंग अब लाल नहीं सफ़ेद होता है/ अपनी जान देने से बड़ी क्रांति हो नहीं सकती/ और दूसरो की जान लेकर क्रांति करने से भी बड़ी/ कोई भ्रान्ति हो नहीं सकती./ लेकिन जब खून का रंग ही बौद्धिकता को रस देने लगे तो/ कोई क्या कर सकता है/ सिवाय आँसू बहाने के/ सिवाय अफसोस जाहिर करने कि कितने बदचलन हो गए है क्रांति के ये ढाई आखर जो अकसर बलि माँगते हैं/ अपने ही लोगों की/ कुल मिला कर अगर यही है नक्सलवाद/ तो कहना ही पड़ेगा-/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ प्यार मोहब्बत हो आबाद/ नक्सलवाद...हो बर्बाद
आरम्भ पर अली जी की टिप्पणी.......... हर बार ऐसा ही होता है...फिर नये सिरे से स्यापा...फिर नक्सल उन्मूलन के हुंकारे...कुछ और बयान...धीरे धीरे रोते कलपते परिजनों के सुर डूब जायेंगे टीवी स्क्रीन में दौड़ती भागती सुर्ख़ियों के बीच...क्या पता कभी हमारी खुद की गिनती भी हो ७६...७७ ? संजीव भाई , वे राजनैतिक पौरुषहीनता और गलत रणनीतिक व्यूह रचना के शिकार हुय॓ हैं ! जमीनी हकीकतों से मुंह मोड़ने से क्या फायदा ? क्या यह कोई आमने सामने का युद्ध है जिसे वीर जवान जीत लेंगे ? मन में बहुत कुछ है पर ...अभी आहत हूं...हर मृत्यु एक गहरा ज़ख्म छोड़ जाती है मेरे अन्दर 
 
 
  • अमीर धरती गरीब लोग  पर कुछ टिप्पणियाँ 
  • PD said... मेरा मानना है कि जहाँ तर्क कि सीमा समाप्त होती है वहाँ हम कुछ ना कर पाने कि छटपटाहट गालियों कि सीमा शुरू करते हैं.. आज मेरा धैर्य चूकता नजर आ रहा है.. जी भर के गलियां देने का मन कर रहा है.. इसके आलावा कुछ और कर भी नहीं सकते हैं हम..
     
    खुशदीप सहगल said... अनिल भाई,
    हमारे पैरा मिलिट्री फोर्सेज के जवानों को सरकार ने सिटिंग डकस समझ लिया है...नक्सलवाद के तंदूर में भुनने के लिए छोड़ दिया है...तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता यही चाहते हैं न ये सिटिंग डकस चुपचाप भुनती रहे और आवाज़ भी न करें...
     

    डॉ महेश सिन्हा said... @#$%^&*()
     

    ललित शर्मा said... 
    बहुत ही कायराना कृत्य है,
    ये तथाकथित मानवाधिकारवादी मोमबत्तियाँ नही,
    दिये जला रहे होगें, 
    मैं तो इस घटना को
    सामुहिक हत्या मानता हुँ।
     
    एक बात मेरे दिल की आपके दिल तक पर 
     
    Anil Pusadkar said... आप जिन लोगों की बात कर रहें हैं उनमे से एक अरूंधति तो बस्तर जाकर सात दिनों का नक्सलियों की मेहमाननवाज़ी का आनंद ले चुकी है और बदले में उनकी तारीफ़ मे एक लेख भी लिख कर छपवा चुकी हैं।ये नही जलायेंगे मोमबत्ती अब।विदेशी फ़ंड पर मौज़ करने वाले इस देश मे मानवाधिकार की जब बात करते हैं तो बहुत गुस्सा आता है।
     
    ब्लॉग 4 वार्ता पर कुछ टिप्पणियाँ 
     
    'अदा' April 7, 2010 8:04 ऍम 
    शहीद जवानों को मेरी श्रद्धांजली ...
    बहुत दुःख की बात है...
     
    Udan Tashtari April 7, 2010 8:42 ऍम 
    शहीदों को श्रृद्धांजलि!! अति दुखद एवं अफसोसजनक घटना!!  

    विशेष टिप्पणी-चर्चा को देते हैं विराम---आपको राम राम

    Sunday, April 04, 2010

    कहने को आज़ाद हो गए किन्तु गुलामी जारी है----"चर्चा हिंदी चिट्ठों की"--- ललित शर्मा

    नित नेताओं अफ़सरों के एक से बढकर एक घोटाले और भ्रष्ट्राचार के कारनामे सामने आते हैं। जनता की गाढी कमाई को अपनी पैतृक सम्पत्ति समझ कर हजम करने का काम बरसों से चल रहा है। जब भी किसी अधिकारी के यहां छापा पड़ता है तो करोड़ों की बेनामी सम्पत्ति सामने आती है। लेकिन इनका कुछ भी नही होता। उल्टे एक कमाऊ अधिकारी होने का तमगा जरुर हासिल हो जाता है। कहतें है कि भ्रष्ट्राचार की जड़ें बहुत गहरी हैं, लेकिन मैं कहता हुँ कि भ्रष्ट्राचार एक उल्टा वृक्ष है जिसकी जड़ आसमान में और डालियाँ जमीन पर, इसे जमीन पर खड़े होकर जितना काटेगें उतना ही तेजी से बढता है।इसलिए उल्टा होकर ही इसकी जड़ों में मठा डाला जा सकता हैं। अब मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हुँ आज के कुछ उम्दा चिट्ठों की चर्चा पर................

    लोगों का ईगो क्यों टकराता है आन बान और शान बस रखते इसका ध्यान बघारते हैं हम सभी अपना अपना ज्ञान (मैं भी वही कर रहा हूँ) पर एक बात खलती है हमें लोगों का ईगो क्यों टकराता है ब्लॉग जगत में देखा हमने किसी की भी पोस्ट हो, (भले ही वह आपको ...वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता में : श्री मनोज कुमार प्रिय ब्लागर मित्रगणों, हमें वैशाखनंदन सम्मान प्रतियोगिता के लिये निरंतर बहुत से मित्रों की प्रविष्टियां प्राप्त हो रही हैं. जिनकी भी रचनाएं शामिल की गई हैं उन्हें व्यक्तिगत रूप से सूचित कर दिया गया है. त...

    13 माह में 1200 पोस्ट हमारे ब्लाग राजतंत्र और *खेलगढ़* को मिलाकर 1200 पोस्ट का आंकड़ा पार हो गया है। ये पोस्ट हमने 13 माह के अंदर लिखी है। एक साल में ही हमने 1100 से ज्यादा पोस्ट लिख डाली थी। ब्लाग जगत से हमें एक साल में काफी प...कलयुग का आदमी  अब सोचता हूं क्यों न "कलयुग का आदमी" बन जाऊं कलयुग में जी रहा हूं तो लोगों से अलग क्यों कहलाऊं बदलना है थोडा-सा खुद को बस मुंह में "राम", बगल में छुरी रखना है ढोंग-धतूरे की चादर ओढ के चेहरे पे मुस्कान लाना ...

    कभी साथ बैठ गपियाओ , तो जाने --- मेरा मेरा करती है दुनिया सारी मोहमाया त्याग कर दिखाओ , तो जाने । दावत तो फाइव स्टार थी लेकिन भूखे को रोटी खिलाओ , तो जाने । रुलाने वाले तो लाखों मिल जायेंगे किसी रोते को हंसाओ, तो जाने । देवी देवता बसते ह... पं. माखनलाल चतुर्वेदी की यादें बिलासपुर जेल से*4 अप्रैल - जयंती विशेष* बिलासपुर में द्वितीय जिला राजनीति परिषद का अधिवेशन सन् 1921 में हुआ जिसकी अध्यक्षता अब्दुल कादिर सिद्धीकी ने की। स्वागताध्यक्ष यदुनन्दन प्रसाद श्रीवास्तव तथा सचिव बैरिस्टर ई. राघवे...

    बिल्कुल अपने बाप पर गया है लडकी - मम्मी ये पडोसी का लडका बार-बार मुझे पप्पी (किस) करके भाग जाता है। मम्मी (मुस्कुरा कर) - बडा शरारती है, बिल्कुल अपने बाप पर गया है। ------------------- ------- ---- ---------------------------------------... मौन मूर्खता को छिपाता है मौन रह कर लोगों को सोचने दो कि तुम मूर्ख हो या नहीं, मुँह खोल कर उन्हे समझ जाने का अवसर मत दो कि तुम वास्तव में मूर्ख हो! (Better to remain silent and be thought a fool, than to open your mouth and remove...

    दर कदम दर चल राही *रे राही ,रे राही रे* ** *ना कर अभिमान* ***दर कदम दर चल* ***नहीं तो* ***गिर तू जायेगा* ***ना सोच सीधे* ***सातवाँ आसमां पाने की* ***रे राही ,रे राही रे* ***धीरे चल* ***पायेगा तू हर आसमां* ***दर क... ये किस मोड़ पर ?..........भाग ३ गतांक से आगे ........................... अपने हालात के बारे में ना तो निशि किसी से कह सकती थी और ना ही सहन कर पा रही थी. उसे तो यूँ लगा जैसे स्वच्छंद आकाश में विचरण करने वाले पंछी को किसी ने घायल कर दिया ह...

    जनगणना मे यह जानकारी भी ली जानी चाहिये थी… जैसा कि सभी जानते है कि देश में जनगणना का काम एक अप्रैल से शुरु हो चुका है। इस बार इस जनगणना मे भरे जाने वाले फ़ार्म मे एक आम नागरिक के जीवन से समबन्धित बहुत सी बातों की जानकारी लेने का प्रयासकिया जा रहा है...कहने को आज़ाद हो गए किन्तु.. पिछले दिनों केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने हिम्मत का काम किया और पूरे देश को विचार के लिए एक रास्ता भी दिखा दिया. उन्होंने भोपाल के एक दीक्षांत समारोह के दौरान अपना गाउन को उतार फेंका और दो टूक कहा कि ''य...

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