Wednesday, April 07, 2010

खुनी रेड हंट---कुछ टिप्पणियों की चर्चा----ललित शर्मा

बीते कल की सुबह 36 गढ के बस्तर क्षेत्र के ताड़मेटला के जंगलों में सुरक्षा बलों के लिए कहर बनकर आई, जिसमें नक्सली हमले मे 75जवान शहीद हो गये। इस कायरता पुर्ण घटना की सर्वत्र निंदा की जा रही है। सरकार अभी तक जागी नही है, प्रधानमंत्री सलाह कारों की सलाह पर कह रहे हैं कि सेना भेजने की कोई आवश्यक्ता नही है। मु्ख्यमंत्री इस घटना को कायरता की पराकाष्ठा कह रहे हैं, केन्द्रीय गृहमंत्री कह रहे हैं कि रणनीति में चूक हुई है, कुछ भी कहीं भी चूक हुई हो, लेकिन जवानों की जाने गई यह सत्य है, इस विषय पर कल रात से ही पोस्ट आनी प्रारंभ हो गयी थी। आज मै ललित शर्मा सिर्फ कुछ टिप्पणियों की ही चर्चा कर रहा हूँ............

सबसे पहले राजतन्त्र पर गिरीश पंकज जी की टिप्पणी पढ़िए.........
गिरीश पंकज Wed Apr 07, 11:24:00 AM 2010  
हत्यारों को पहचान पाना अब बड़ा मुश्किल है/ अक्सर वह विचारधारा की खाल ओढ़े मंडराते रहते है राजधानियों में या फिर गाँव-खेड़े या कहीं और../ लेते है सभाएं कि बदलनी है यह व्यवस्था दिलाना है इन्साफ.../ हत्यारे बड़े चालाक होते है/खादी के मैले-कुचैले कपडे पहन कर वे/ कुछ इस मसीहाई अंदाज से आते है/ कि लगता है महात्मा गांधी के बाद सीधे/ये ही अवतरित हुए है इस धरा पर/ कि अब ये बदल कर रख देंगे सिस्टम को/ कि अब हो जायेगी क्रान्ति/ कि अब होने वाला ही है समाजवाद का आगाज़/ ये तो बहुत दिनों के बाद पता चलता है कि/ वे जो खादी के फटे कुरते-पायजामे में टहल रहे थे/और जो किसी पंचतारा होटल में रुके थे हत्यारे थे./ ये वे ही लोग हैं जो दो-चार दिन बाद / किसी का बहता हुआ लहू न देखे/ साम्यवाद पर कविता ही नहीं लिख पते/ समलैंगिकता के समर्थन में भी खड़े होने के पहले ये एकाध 'ब्लास्ट'' मंगाते ही माँगते है/ कहीं भी..कभी भी..../ हत्यारे विचारधारा के जुमलों को/ कुछ इस तरह रट चुकते है कि/ दो साल के बच्चे का गला काटते हुए भी वे कह सकते है / माओ जिंदाबाद.../ चाओ जिंदाबाद.../ फाओ जिंदाबाद.../ या कोई और जिंदाबाद./ हत्यारे बड़े कमाल के होते हैं/ कि वे हत्यारे तो लगते ही नहीं/ कि वे कभी-कभी किसी विश्वविद्यालय से पढ़कर निकले/ छात्र लगते है या फिर/ तथाकथित ''फेक'' या कहें कि निष्प्राण-सी कविता के / बिम्ब में समाये हुए अर्थो के ब्रह्माण्ड में/ विचरने वाले किसी अज्ञातलोक के प्राणी./ हत्यारे हिन्दी बोलते हैं/ हत्यारे अंगरेजी बोल सकते हैं/ हत्यारे तेलुगु या ओडिया या कोई भी भाषा बोल सकते है/ लेकिन हर भाषा में क्रांति का एक ही अर्थ होता है/ हत्या...हत्या...और सिर्फ ह्त्या.../ हत्यारे को पहचानना बड़ा कठिन है/ जैसे पहचान में नहीं आती सरकारें/ समझ में नहीं आती पुलिस/उसी तरह पहचान में नहीं आते हत्यारे/ आज़ाद देश में दीमक की तरह इंसानियत को चाट रहे/ लोगों को पहचान पाना इस दौर का सबसे बड़ा संकट है/ बस यही सोच कर हम गांधी को याद करते है कि/ वह एक लंगोटीधारी नया संत/ कब घुसेगा हत्यारों के दिमागों में/ कि क्रान्ति ख़ून फैलाने से नहीं आती/ कि क्रान्ति जंगल-जंगल अपराधियों-सा भटकने से नहीं आती / क्रांति आती है तो खुद की जान देने से/ क्रांति करुणा की कोख से पैदा होती है/ क्रांति प्यार के आँगन में बड़ी होती है/ क्रांति सहयोग के सहारे खड़ी होती है/ लेकिन सवाल यही है कि दुर्बुद्धि की गर्त में गिरे/ बुद्धिजीवियों को कोई समझाये तो कैसे/ कि भाई मेरे क्रान्ति का रंग अब लाल नहीं सफ़ेद होता है/ अपनी जान देने से बड़ी क्रांति हो नहीं सकती/ और दूसरो की जान लेकर क्रांति करने से भी बड़ी/ कोई भ्रान्ति हो नहीं सकती./ लेकिन जब खून का रंग ही बौद्धिकता को रस देने लगे तो/ कोई क्या कर सकता है/ सिवाय आँसू बहाने के/ सिवाय अफसोस जाहिर करने कि कितने बदचलन हो गए है क्रांति के ये ढाई आखर जो अकसर बलि माँगते हैं/ अपने ही लोगों की/ कुल मिला कर अगर यही है नक्सलवाद/ तो कहना ही पड़ेगा-/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ नक्सलवाद...हो बर्बाद/ प्यार मोहब्बत हो आबाद/ नक्सलवाद...हो बर्बाद
आरम्भ पर अली जी की टिप्पणी.......... हर बार ऐसा ही होता है...फिर नये सिरे से स्यापा...फिर नक्सल उन्मूलन के हुंकारे...कुछ और बयान...धीरे धीरे रोते कलपते परिजनों के सुर डूब जायेंगे टीवी स्क्रीन में दौड़ती भागती सुर्ख़ियों के बीच...क्या पता कभी हमारी खुद की गिनती भी हो ७६...७७ ? संजीव भाई , वे राजनैतिक पौरुषहीनता और गलत रणनीतिक व्यूह रचना के शिकार हुय॓ हैं ! जमीनी हकीकतों से मुंह मोड़ने से क्या फायदा ? क्या यह कोई आमने सामने का युद्ध है जिसे वीर जवान जीत लेंगे ? मन में बहुत कुछ है पर ...अभी आहत हूं...हर मृत्यु एक गहरा ज़ख्म छोड़ जाती है मेरे अन्दर 
 
 
  • अमीर धरती गरीब लोग  पर कुछ टिप्पणियाँ 
  • PD said... मेरा मानना है कि जहाँ तर्क कि सीमा समाप्त होती है वहाँ हम कुछ ना कर पाने कि छटपटाहट गालियों कि सीमा शुरू करते हैं.. आज मेरा धैर्य चूकता नजर आ रहा है.. जी भर के गलियां देने का मन कर रहा है.. इसके आलावा कुछ और कर भी नहीं सकते हैं हम..
     
    खुशदीप सहगल said... अनिल भाई,
    हमारे पैरा मिलिट्री फोर्सेज के जवानों को सरकार ने सिटिंग डकस समझ लिया है...नक्सलवाद के तंदूर में भुनने के लिए छोड़ दिया है...तथाकथित मानवाधिकार कार्यकर्ता यही चाहते हैं न ये सिटिंग डकस चुपचाप भुनती रहे और आवाज़ भी न करें...
     

    डॉ महेश सिन्हा said... @#$%^&*()
     

    ललित शर्मा said... 
    बहुत ही कायराना कृत्य है,
    ये तथाकथित मानवाधिकारवादी मोमबत्तियाँ नही,
    दिये जला रहे होगें, 
    मैं तो इस घटना को
    सामुहिक हत्या मानता हुँ।
     
    एक बात मेरे दिल की आपके दिल तक पर 
     
    Anil Pusadkar said... आप जिन लोगों की बात कर रहें हैं उनमे से एक अरूंधति तो बस्तर जाकर सात दिनों का नक्सलियों की मेहमाननवाज़ी का आनंद ले चुकी है और बदले में उनकी तारीफ़ मे एक लेख भी लिख कर छपवा चुकी हैं।ये नही जलायेंगे मोमबत्ती अब।विदेशी फ़ंड पर मौज़ करने वाले इस देश मे मानवाधिकार की जब बात करते हैं तो बहुत गुस्सा आता है।
     
    ब्लॉग 4 वार्ता पर कुछ टिप्पणियाँ 
     
    'अदा' April 7, 2010 8:04 ऍम 
    शहीद जवानों को मेरी श्रद्धांजली ...
    बहुत दुःख की बात है...
     
    Udan Tashtari April 7, 2010 8:42 ऍम 
    शहीदों को श्रृद्धांजलि!! अति दुखद एवं अफसोसजनक घटना!!  

    विशेष टिप्पणी-चर्चा को देते हैं विराम---आपको राम राम

    10 comments:

    Akshitaa (Pakhi) said...

    खून-खराबा बहुत गलत चीज होती है. मैं तो इसे टी.वी पर देखकर भी डर जाती हूँ.

    _________________________
    'पाखी की दुनिया' में जरुर देखें-'पाखी की हैवलॉक द्वीप यात्रा' और हाँ आपके कमेंट के बिना तो मेरी यात्रा अधूरी ही कही जाएगी !!

    संगीता पुरी said...

    क्‍या कहूं .. नि:शब्‍द हूं !!

    IMAGE PHOTOGRAPHY said...

    अब कहने क्या बचा है ।

    Randhir Singh Suman said...

    nice

    ताऊ रामपुरिया said...

    बहुत दुखद, शहीदों को श्रद्धांजली.

    रामराम.

    डॉ. मनोज मिश्र said...

    नि:शब्‍द.

    Anil Pusadkar said...

    ललित बहुत दिनो से सोच रहा था था कि तुमसे कुछ कहूं आक लेकिन अवसर आ गया है कि इस बारे मे कुछ कहा जाये।अफ़सोस की बात है की तुम्हारे आपस के झगड़े ने ने छत्तीसगढ मे ब्लागरों को दो गुटों मे बांत दिया है।तुम लाख दुहाई दो की तुम इससे अलग हो मगर तुम्हारी चर्चा का पैमाना बता देता है की तुम लोगों का हिडन एजेंडा क्या है?आईंदा मेरी पोस्त का लिंक देने की मेहरबानी मत करना बहुत दिनो से देख रहा हूं तुम लोगों का घिनौना खेल।एक दूसरे की पी्ठ थपथपाओ बस्।मेरी पोस्टो की उपेक्षा का सुनियोजित षड़यंत्र समझ रहा हूं मैं।तुम्हे किसी से नाराजगी है तो उससे मधुर संबंध रखने वालों को किनारे करने का तरीका बहुत पुराना अपनाया है तुमने।बेहद अफ़सोस की बात है जो पोस्ट ब्लागवाणी मे टापे चल रही हो उसे ठिकाअने लगाने की गरज़ से आपने चर्चा टिपण्णी पर केन्द्रित कर दी और उस मे भी किसको आगे लाने है और किसे पीछे करना है तय कर लिया था आपने।ऐसी ही घटिया हरकतें ब्लाग जगत को कम्ज़ोर कर रही हैं।दम है तो इस टिपण्णी को पब्लिश्ज करके दिखाना और एक कृपा औएर करना मेरे ब्लाग का लिंक कभी मत देना मुझे तुमहारे षड़यंत्र से नफ़रत है।अपने साथियों को भी बता देना मैने उन्हे पहचान लिया है।अलविदा ललित्।

    Anonymous said...

    @ अनिल पुसदकर

    >> आपस के झगड़े ने ने छत्तीसगढ मे ब्लागरों को दो गुटों मे बांत दिया है।
    >> बहुत दिनो से देख रहा हूं तुम लोगों का घिनौना खेल।एक दूसरे की पी्ठ थपथपाओ बस्।
    >> मुझे तुमहारे षड़यंत्र से नफ़रत है।
    >> अपने साथियों को भी बता देना मैने उन्हे पहचान लिया है।

    मुझे आपकी इन बातों पर, इस भाषा पर अफ़सोस ही है। जानता हूँ कि यह आपकी फितरत नहीं लेकिन इससे अधिक कुछ कह नहीं पाऊँगा

    ललित शर्मा के साथिओं का नाम भी लिख देते तो बड़ी मेहरबानी होती। टिप्पणी की सार्थकता पूर्ण हो जाती

    बी एस पाबला

    बाल भवन जबलपुर said...

    शोक महाशोक
    पर ये क्या पुसद्कर जी
    ये क्या हुआ ?
    चलिये छोडिये
    सुमन जी के लिये ये भी नाइस रहा
    अब तो क्या कहें

    Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

    मन में बहुत कुछ है पर ...अभी आहत हूं...हर मृत्यु एक गहरा ज़ख्म छोड़ जाती है मेरे अन्दर

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