नमस्कार ! पंकज मिश्रा आप सबके साथ ..आपके लिक्खे चिट्ठो की चर्चा लेकर !
कल ही वापस आया और आप सबने इतना प्यार दिया कि मन भर आया , और अच्छा लगा यह जानकर कि आप सब मुझको इतना प्यार करते है ..
समीर जी ने सवाल किया था कि रुद्रपुर कहां है ?
आदरणीय समीर जी रुद्रपुर उत्तराखण्ड के पन्तनगर जिले मे पडता है ! और यहा से आदरणीय रुपचन्द शास्त्री जी का घर ७० किलोमीटर है ..यहा पर सब कुछ अच्छा है बस एक तकलीफ़ बहुत बडी है कि मच्छर बहुते ज्यादे लगते है !
सारा कोशीश नदारद है इन नामुरादो के सामने ! जब मै यह सब लिख रहा हु तब भी साले मुझे ४ मच्छर काट रहे है अब समझ मे नही आता कि टाईप करु या इनको सम्भालू?
चलिये बाकी बातें तो होती ही रहेगी बात करते है श्री अरविन्द मिश्रा जी कि – मिश्रा जी कह रहे है कि वापस कीजिये प्लीज मेरी टिप्पणियाँ !
टिप्पणियाँ भी एक सृजनकर्म है -अगर मुख्य सृजन नहीं तो कोई गौंड भी नहीं -ब्लॉगजगत में चर्चा,प्रतिचर्चा और परिचर्चा की बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं टिप्पणियाँ -उनकी उपेक्षा कतई उचित नहीं हैं और नहीं उन्हें घूर घाट के किनारे लगाने की प्रवृत्ति होनी चाहिए .वे किसी भी तरह इतनी उपेक्षनीय नहीं हैं -टिप्पणीकार की मानस पुत्र और पुत्रियाँ है टिप्पणियाँ! उनकी इतनी बेकद्री मुझे तो कतई रास नहीं आई!स्वप्नदर्शी ने नर नारी में लैंगिक समानता दर्शाने की सक्रियता और उत्साह में पक्षियों -मुर्गों में लैंगिक निर्ध्रारण के एक उपर्युक्त वैज्ञानिक शोध को संदर्भित किया और जब मैंने टिप्पणी में यह बताया कि स्तन पोषी प्राणियों में जिसमें मनुष्य भी है ,लैंगिक निर्ध्रारण चिड़ियों से भिन्न है तो वह टिप्पणी तो छोडिये पूरी पोस्ट ही डिलीट कर दी गयी! क्या एक वैज्ञानिक से यही अपेक्षा है कि वह सार्थक चर्चा करने के बजाय इस तरह के थर्ड ग्रेड पर उतर आये?पूरी पोस्ट ही डिलीट कर देना अपनी इमेज बचाए रखने का 'क्राईसिस कंट्रोल' तो नहीं है ? हम विदेशों से अप संस्कृति तो सीख रहे हैं मगर वहां के कुछ सार्थक बातें क्यूं नहीं सीखते ? या हम अपने हिन्दी जगत और गोबर पट्टी को हमेशा ऐसे ही डील करने के आदी हो गए हैं? वहां कोई भी वैज्ञानिक ब्लॉगर अपनी गलती मानने में ज़रा भी नहीं हिचकता ओर पूरी सहिष्णुता से टिप्पणी पर चर्चा करता .आभारी भी होता .मगर यहाँ तो हमें हमारी टिप्पणियाँ बिना हमारी अनुमति के डिलीट कर हमें अपने गोबर पट्टी के होने की औकात बता दी गयी है
हमारे आपके सबके प्यारे ताऊ जी ने बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन की स्थापना की है दुख यह है कि मै भाग नही ले सकता क्युकि अभी तो मै जवान हु :)
लेकिन मुझे इस बात का घमन्ड नही है क्युकि पता है कल मै भी बुढा होने वाला हु तब यही बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन मेरे काम मे आयेगा …..
पहला तो ये कि आजकल किसी सेलेब्रेटी को ब्रांड अंबेसडर बनाना बहुत जरुरी है अत: हमने तुरंत मिस. समीरा टेढी जी से बात की "बुढऊ ब्लागर्स एशोसियेशन" की ब्रांड अंबेसडर बनने के लिये. और वो भी इस शर्त पर की वो इसके लिये जब भी मिटिंग होगी यहां पर आयेंगी. और साथ में यह भी कि बुढऊ लोगों को कहीं हार्ट अटेक ना हो जाये तो वो सफ़ेद बालों वाला विग और साडी में रहेंगी यानि भडकाऊ ड्रेस नही पहनेगी.
मिस. समीरा टेढी इस बात पर भडक गई. पर जब हमने उनको समझाया कि यह समाज हित का काम है सो थोडा त्याग भी करना चाहिये और आपको कौन सा रोज रोज आना है? बस मिटींग वाले दिन आना है जिससे मीटिंग मे सारे बुढ्ढे आपके दीदार के बहाने हाजिर हो जायें और हमारे इस BBA के मेंबर बन जायें. बडी मुश्किल से वो राजी हूई, पर आखिर हां भर ही ली.
आगे है शेफ़ाली पांडे जी और इनका कहना है कि आने दो हमें संसद में, क्यूंकि ....
दोनों की भोली भाली सूरत ही दिल को भाती है, दोनों की छवि जितनी गिड़गिडाती हुई, हो उतना जनता और समाज को सुकून मिलता है|
दोनों का हाथ पर हाथ धर के बैठे रहना कोई बर्दाश्त नहीं कर पाता| दोनों हर समय काम करते हुए ही अच्छे लगते हैं|
दोनों को तब तक नोटिस में नहीं लिया जाता, या महत्व को जानबूझ कर अनदेखा किया जाता है, जब तक वेबगावत या विद्रोह ना कर दें, या कहिये कि पार्टी बदल लेने और अपनी स्वयं की स्वतंत्र पार्टी बनाने की धमकी ना दे दें|
अजय झा जी ………………………..आह ! आह ! आह ! ( अमां तुमही तो कहे थे कि बधाई दीजीए ....ये इस ब्लोग की पांच सौंवी पोस्ट है ....मगर वाह नहीं कहिएगा तभी तो कह रहे है आह ! )
मैं खडा देखता हूं ,समय को ,
और समय देखता है मुझको ,
तुम चलाओ जब तक शैय्या बने ,
खत्म न हो जाए "शर" कहीं ?
टूटा तोडा गया कई बार,
हर बात तुम्हीं ने जोडा भी ,
बस डर इस बात का रहता है , इस टूट- अटूट में ,
कभी मैं भी न जाऊं ,बिखर कहीं .........
रतन सिंह शेखावत जी का फ़ैशन ब्रांड - धोती, कुरता और पगड़ी
तन पर धोती कुरता और सिर पर साफा (पगड़ी) राजस्थान का मुख्य व पारम्परिक पहनावा होता था , एक जमाना था जब बुजुर्ग बिना साफे (पगड़ी) के नंगे सिर किसी व्यक्ति को अपने घर में घुसने की इजाजत तक नहीं देते थे आज भी जोधपुर के पूर्व महाराजा गज सिंह जी के जन्मदिन समारोह में बिना पगड़ी बांधे लोगों को समारोह में शामिल होने की इजाजत नहीं दी जाती | लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इस पहनावे को पिछड़ेपन की निशानी मान नई पीढ़ी इस पारम्परिक पहनावे से धीरे धीरे दूर होती चली गई और इस पारम्परिक पहनावे की जगह पेंट शर्ट व पायजामे आदि ने ले ली | नतीजा गांवों में कुछ ही बुजुर्ग इस पहनावे में नजर आने लगे और नई पीढ़ी धोती व साफा (पगड़ी) बांधना भी भूल गई ( मैं भी उनमे से एक हूँ ) | शादी विवाहों के अवसर भी लोग शूट पहनने लगे हाँ शूट पहने कुछ लोगों के सिर पर साफा जरुर नजर आ जाता था लेकिन वो भी पूरी बारात में महज २०% लोगों के सिर पर ही |
और राजकुमार ग्वालानी जी का कहना है कि पैरा नेशनल गेम्स का आगाज हो छत्तीसगढ़ से
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त ने छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ के मुख्य सरंक्षक का पद स्वीकार करने के साथ ही छत्तीसगढ़ में पैरा ओलंपिक की तर्ज पर पैरा नेशनल गेम्स करने की बात कही है। इसके लिए उन्होंने भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव राजा रणधीर सिंह से फोन पर बात करके उनको छत्तीसगढ़ आने का आमंत्रण दिया है।
अनिल पुसादकर जी बता रहे है थानेदारों को भ्रष्ट कहना आपकी ईमानदारी नही बेबसी का सबूत है गृहमंत्री जी!
अपने क्षेत्र मे अवैध शराब की बिक्री न होने की घोषणा मंत्री ने बड़े गर्व से की।तो क्या वे सिर्फ़ अपने विधानसभा क्षेत्र के ही मंत्री हैं?क्या प्रदेश के अन्य हिस्सों से उन्हे कोई लेना-देना नही है?मेरा ये सवाल है कि अगर आप अपने क्षेत्र को सुधार सकते हो तो दूसरे क्षेत्र को भी ठीक कर सकते हैं।अगर आप ऐसा नही कर रहे हैं तो ये आपकी अक्षमता ही मानी जायेगी ना कि ईमानदारी।
मंत्री जी अगर आप ये मान रहे हैं कि थानेदारों का महिना बंधा है और अगर उनके खिलाफ़ कोई कार्रवाई नही हो रही है तो ये भी अपने आप मान लिया जायेगा कि वे भी कंही न कंही महिना दे रहे हैं।लेने वाला कोई भी हो सकता है?अगर आप कहें कि मैं नही लेता,अगर लेता तो उन्हे गालियां कैसे देता?तो मान भी लेंगे कि आप नही लेते।मगर कार्रवाई क्यों नही करते ये सवाल तो खड़ा ही है ना?आप नही लेते होंगे? तो भाई-भतीज़े लेते होंगे? नही तो दूसरे मंत्री लेते होंगे?,नही तो बड़े अफ़सर लेते होंगे?कोई ना कोई तो लेता ही होगा वर्ना मंत्री को पता होने के बाद भी कार्रवाई क्यों नही हो रही है?
सुमन जी का लेख -वादा लपेट लो, जो लंगोटी नहीं तो क्या ? ( माफ़ करियेगा फ़ोटो नही लग पाया )
इनमें अनाज सब से मुख्य है। गरीब को रोटी चाहियें, परन्तु हमारी खाद्य नीति ने गरीब को भूखा मरने पर मजबूर कर दिया। लगता है हमारे केन्द्रीय खाद्य मंत्री शरद पवार के भी कुछ निहित स्वार्थ थे जिसके कारण उन्होंने आयात निर्यात का मकड़जाल फैलाकर कुछ बड़ों को शायद फायदा पहुंचाने की कोशिश की। उन्होंने अक्सर ऐसे विरोधाभासी बयान दिये जिससे एक तरफ अनाजों के दाम बढ़े जिस से उपभोक्ता प्रभावित हुए परन्तु दूसरी तरफ उत्पादकों तक फायदा नहीं पहुंचने दिया गया। यह फायदा बिचौलिए ले उड़े। कभी कहा गया अनाज आयात किया जायेगा, कभी कहा गया गोदामों में अनाज इतना भरा हुआ है कि उनको आगे के लिये खाली करना जरूरी हो गया है। शक्कर के सम्बंध में भी गलती से या जानबूझकर उलटफेर वाली नीतियाँ अपनाई गईं। उपभोक्ता ऊँचे दामों पर शक्कर खरीदने पर मजबूर हुआ, दूसरी तरफ आयातिति खांडसरी बन्दरगाहों पर पड़ी सड़ती रही।
अब बारी कविताओ की दो कविताये -
१-कविताएँ और कवि भी..
२-“…..कण चाहता हूँ..” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
शुभ्र वसना ! शब्दों में रंग ना कैसे उतारूँ चित्र सना तुम्हारा अंग ना - कोरा सजना सज ना ! चंचल आँख ना पलक कालिमा घना सना नेह यूँ आखना मैं ताकता, ताक ना शुभ्र वसना सज ना |  नही कार-बँगला, न धन चाहता हूँ। तुम्हारी चरण-रज का कण चाहता हूँ।। दिया एक मन और तन भी दिया है, दशम् द्वार वाला भवन भी दिया है, मैं अपने चमन में अमन चाहता हूँ। तुम्हारी चरण-रज का कण चाहता हूँ।। उगे सुख का सूरज, धरा जगमगाये, फसल खेत में रात-दिन लहलहाये, समय से जो बरसे वो घन चाहता हूँ। तुम्हारी चरण-रज का कण चाहता हूँ।। |
अब दिजिये इजाजत , नमस्कार !