अंक : 99
चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"" का सादर अभिवादन!
आज "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" की प्रस्तुत हैः-
उड़न तश्तरी ....जूता विमर्श के बहाने : पुरुष चिन्तन - कल ही नीलिमा जी को पढ़ता था कि कामकाजी महिलाओं के लिए *आरामदायक चप्पल* मिलना कितना मुश्किल है. जल्दी मिलती ही नहीं, हर समय तलाश रहती है. आज बरसों गुजर गय...
खामोशियां ... - खामोशियां गहरी होती गई जितनी वह तन्हाई में सिमटती गई उतनी ख्यालों को बुनती कभी पर वह उलझ जाते यूं एक दूसरे में वह सुलझाये बिना फिर नये सिरे से...
बेजुबानों पर कहर का भी प्रचार - कई दिन से उद्वेलित थी, परेशान थी। बकरीद के अगले दिन सुबह उठी तो समाचार पत्र में ऊंट की बलि की खबर देख ली। उद्वेलित इसलिये थी कि कुछ लोग कैसे ...
सादगी से भरा बंगाली विवाह - अभी 29 नवम्बर को एक विवाह में सम्मिलित होने भोपाल गए थे। समधियों के यहाँ लड़की की शादी थी। बारात बंगाली परिवार की थी। बारात शाम को पाँच बजे आने वाली थी तो ...
शब्दों का सफर तंगहाली और आतंक का रिश्ता - [image: images] [image: dar] गरीबी अपने आप में डरावनी है हि न्दी में फ़ारसी से आया *तंग* शब्द खूब प्रचलित है और इसके कई मुहारवरेदार प्रयोग मिलते हैं जि...
Alag sa लो, कर लो बात !! दुर्योधन का भी मन्दिर है भाई - हमारे देश में सबसे बड़ा खलनायक माने जाने वाले रावण के समर्थकों का एक अच्छा खासा वर्ग है। वाल्मिकि जी के अनुसार उसमें बहुत सारे गुणों का होना ही उसे कहीं-कही...
वीर बहुटी - गुरू मन्त्र **कहानी मदन लाल ध्यान ने संध्या को टेलिवीजन के सामने बैठी देख रहें हैं । कितनी दुबली हो गई है । सारी उम्र अभावों में काट ली, कभी उफ तक नही की । ...
युवाओं के लिए खुशखबरी लेकर आएगा 5-6-7 दिसम्बर 2009 - आज बहुत ही माइक्रो, पर सटीक पोस्ट से अपना काम चलाएं ... कुछ दिनों से मैने दो तीन महीने से आसमान में मंगल की खास स्थिति के कारण युवाओं पर इसके बहुत अधिक प्...
रेडियो वाणी हरियाणा की लोकरंग में रंगा--'तू राजा की राजदुलारी मैं सिर्फ़ लंगोटे वाला सूं' : मास्टर राजबीर की आवाज़- 'रेडियोवाणी' पर 'नीरज' का जिक्र बार-बार होता रहा है । लेकिन आज एक फिल्मी-गीत के बहाने हो रहा है । मज़े की बात ये है कि ये गीत नीरज जी ने नहीं लिखा है । ...
मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay. अन्ताक्षरी 11 गीतों भरी - आदरणीय जी के अवधिया जी ने पूछा- "कृपया यह भी स्पष्ट करें कि सिर्फ फिल्मी गीतों की अंताक्षरी है या इसमें कविताएँ, गीत, गज़ल, छंद जैसे कि दोहा, चौपाई आदि भी द...
Samayiki गैस आंदोलन ने दी अपारंपरिक शिक्षा - भोपाल गैस त्रासदी के 25 वर्ष पर यूरिग सैनदरेट बता रहे हैं कि किस तरह से गरीब और निरीह जनता ने नित्य प्रति जीवन में दमन के प्रति पहले लचीलापन दिखाया और इसे ...
कस्बा qasba एक सुबह की आत्मकथा - जितना कहता हूं,उतना ही अधूरा रह जाता है। जितना मिलता हूं,उतना ही अकेला हो जाता हूं। ऐसा क्यों होता है कि दिल्ली में रहना अक्सर याद दिलाता है कि ...
देशनामा अलविदा, अलविदा...खुशदीप - अलविदा, अलविदा...कितने जानलेवा हैं ये शब्द अलविदा....आप के सफ़र में कोई साथी बन गया हो...रोज़ आपका उससे वास्ता हो...और फिर अचानक वो कह दे, अलविदा...ये शब्द..
Gyan Darpan ज्ञान दर्पण एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्दति - शरीर के विभिन्न हिस्सों खासकर हथेलियों और पैरों के तलवों के महत्वपूरण बिन्दुओं पर दबाव डालकर विभिन्न रोगों का इलाज करने की विधि को एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्...
आदित्य (Aaditya) बाबु ये तो गिरने वाली हरकत है... - टेबल हल्की है और मेरे खेलने के लिये perfect.. जब मुड़ होता है इसे पल्टी मार कर खेलना शुरु.. आदि बाबु एसे दम लगाओगे तो गिर जाओगे.. जरा संभल के मेरे दोस्त.....
कर्मनाशा प्रेम कई तरह से आपको छूता है : कविता और कलाकृति की जुगलबंदी - *कुछ समय पहले मैंने 'कबाड़खाना' पर रानी जयचन्द्रन की कविताओं के कुछ अनुवाद प्रस्तुत किए थे। इन कविताओं के चुनाव के पीछे मंशा यही थी कि समकालीन भारतीय अंग्र...
मानसिक हलचल शराब पर सीरियस सोच - [image: Mallya Point1] प्रवीण जिस शराब के गंगा की रेती में दबाये जाने की बात कर रहे हैं, वह शायद अंग्रेजी शराब है। यहां शिवकुटी के माल्या-प्वाइण्ट पर डाल...
लहरें बौराए ख्याल - --------------------लड़की--------------------आजादी हमेशा छलावा ही होती हैं...कितना अजीब सा शब्द होता है उसके लिए...आजाद वो शायद सिर्फ़ मर के ही हो सकती है।--...
मेरी छोटी सी दुनिया बैंगलोर में मार-कुटाई की बातें - दो लोग मेरी जिंदगी में ऐसे भी हैं जिन्हें देखते ही धमाधम मारने का बहुत मन करने लगता है.. पता नहीं क्यों.. एक को तो अबकी पीट आया हूं और दूसरे को धमका आया हू...
अनुनाद सभ्यता के गलियारे में रखे हुए टायर: मार्टिन एस्पादा- कविचित्र यहाँ से साभार ** ** *सभ्यता के गलियारे में रखे हुए टायर* --चेल्सिया, मैसाच्युसेट्स "जी हुज़ूर, चूहे हैं" मालिक-मकान ने जज से कहा, "पर मैं किरायेदा...
Science Bloggers' Association अदभुत है हमारा शरीर.... - दुनिया में कितनी ही अजीब चीजें हैं किसी को कुछ अजीब और विलक्षण लगता है किसी को कुछ। सभी के अपने तर्क अपने विचार हैं पर सबसे अधिक विलक्षण यदि कुछ है तो विज्ञा..
मुझे शिकायत हे. Mujhe Sikayaat Hay. अन्ताक्षरी 12 गीतों भरी - आज सुबह की आप सब को प्यारी प्यारी से नमस्ते, सलाम सुनिये केसा मुड है आप सब का? अजी अच्छा ही होगा, नास्ता तो कर ही लिया होगा ना, तो चलिये अन्तर सोहिल ओर रा...
अभिव्यक्ति यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है - यहाँ से वहां तक कैसा इक सैलाब है मेरे तो चारों तरफ आग ही आग है!! कितनी अकुलाहट भरी है जिन्दगी हर तरफ चीख-पुकार भागमभाग है!! अब तो मैं अपने ही लहू को ..........
"हिन्दी भारत" इंदौर दूरदर्शन की 2 फिल्मों का राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामांकन - इंदौर दूरदर्शन की 2 फिल्मों का राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए नामांकन...........
जीवन के पदचिन्ह मैं रोता हूँ, तो रो लेने दो !! - बड़ी मुद्दत के बाद आज तन्हा हूँ, मैं रोता हूँ, तो रो लेने दो !! आंसू न पोछो, मुझे धीर न दो मैं रोता हूँ, तो रो लेने दो !! अपनों को परखने की, मुझको न...
मेरी भावनायें... बस मैं हूँ ! - महत्वाकांक्षाओं के पंख लिए मैं ही धरती बनी बनी आकाश हुई क्षितिज झरने का पानी गंगा का उदगम सितारों की टिमटिमाती कहानी चाँद सा चेहरा पर्वतों की अडिगता नन्ही...
रायटोक्रेट कुमारेन्द्र अपना कान अपने दांतों से दबाने की तरकीब - थोड़ी सी मस्ती हो जाए!!!- कई बार ऐसा होता है और सभी के साथ ही ऐसा होता होगा कि जब मन में मस्ती करने का ख्याल आता होगा। अपने कार्य, अपने पद, अपनी प्रतिष्ठा, सामाजिक प्रस्थिति के कारण...
युवा दखल सैमसंग से कौन डरता है? - जनसत्ता के पिछले रविवारी में वरिष्ठ कवि तथा आलोचक विष्णु खरे का आलेख अभी * सबद* में प्रकाशित हुआ तो मुझे लगा कि समर्थन में टिप्पणियों की भरमार हो जायेगी। ज...
स्वप्न(dream) धीरे-धीरे वंशी की धुन, चुरा रही है मेरा दिल - धीरे-धीरे वंशी की धुन, चुरा रही है मेरा दिल धीरे-धीरे वंशी की धुन, चुरा रही है मेरा दिल कहाँ छुप गया मनमोहन तू, जली जा रही मैं तिल तिल धीरे-धीरे वंशी की ...
जज़्बात रोटियाँ उदास हैं ~~ - बहुरूपिये खयाल हैं फेंकते जाल हैं . ज़मीर बेच दिया अब ये मालामाल हैं . रोटियाँ उदास हैं रूठ गये दाल हैं . फुसफुसा रहे दरख़्त गहरी कोई चाल है . ड...
saMVAdGhar संवादघर गालियों और लात-घूंसों के साथ जूठन भी प्राकृतिक स्वभाव !? -*मटुकजूली के ब्लाग** से चली यह बहस **रा. सहारा** और **गीताश्री के ब्लाग**से होती हुई मुझ तक आ पहुंची है क्यांकि एक टिप्पणी मटुक जूली के ब्लाग पर मैंने की...
गोल गोल रसीले,
अरे ये तो हैं रसगुल्ले,
जो भाये मन सबका,
ये मिठाई है गज़ब का !.......
अरे ये तो हैं रसगुल्ले,
जो भाये मन सबका,
ये मिठाई है गज़ब का !.......
19 comments:
वाह क्या बात है शास्त्रीजी! आपने इतना बढ़िया चर्चा किया है और विस्तारित रूप से जो पढ़कर बहुत आनंद मिला! मेरी कविता को शामिल करने के लिए धन्यवाद!
शास्त्री जी, बहुत गजब का विस्तार दिया है चर्चा को. आनन्द आ गया. कितनी मेहनत की है आपने, साधुवाद. जारी रखे.
बढ़िया ! लेकिन आपके कवित्त किधर गये शास्त्रीजी?
सुन्दर संकलन!
nice
हमेशा की तरह बेहतरीन चर्चा
चलिए हम भी चर्चित तो हुए...आभार...
जय हिंद...
भाई आप बहुत परिश्रम करते हैं, इतने सारे चिठ्ठों की चर्चा एकसाथ करना कोई हँसी मजाक नहीं है। आपको शुभकामनाएं।
श्रम में दबे कवित्त शुक्ल जी! फुरसत नही मिली थी।
इसीलिए कविता गीतों की, कलियाँ नही खिलीं थी।।
सुंदर चर्चा-आभार
अच्छा संग्रह.. आभार..
बढ़िया चर्चा ,सुन्दर संकलन !
बहुत अच्छी चर्चा। हर चर्चा कुछ चिट्ठों पर पहुँचा देती है।
शास्त्री जी आज तो बहुत विस्तार से चर्चा की बधाई
बढ़िया रही यह चर्चा .शुक्रिया
शास्त्री जी, लगता है कि शायद आपने चर्चा के लिए चिट्ठों का चुनाव फिक्स किया हुआ है...
बहरहाल चर्चा बढिया रही !
बढ़िया चिट्ठा चर्चा...
सुन्दर चर्चा । आभार ।
गन, गुलेल, गोली की घमासान रही :)
Post a Comment