अंक: 101
चर्चाकार: डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों कोडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन!
आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" में
प्रस्तुत है श्री दिगम्बर नासवा की पहली-दूसरी और अद्यतन पोस्ट की चर्चा:-
Gender: Male
Industry: Accounting
Location: दुबई : United Arab Emirates
About Me जागती आँखों से स्वप्न देखना मेरी फितरत है .........
बुधवार, २७ दिसम्बर २००६ और शुक्रवार, २९ दिसम्बर २००६ की
एक झलक:-
बुधवार, २७ दिसम्बर २००६
शुक्रवार, २९ दिसम्बर २००६
देश से दूर दिवाली की एक रात
दिया जलेगा या बाती या तेल जलेगा
या मेरा दिल कोने मैं चुपचाप जलेगा
इस बार दिवाली पर न जाने कौन जलेगा
रंगोली जब मेरे आँगन सज जायेगी
लक्ष्मी मेरे द्वारे आ केर रुक जायेगी
मैं तो हूँ परदेस मैं टीका कौन करेगा
इस बार दिवाली पर.............................
खुशियाँ तो आयेंगी मेरे दरवाजे भी
गूंजेंगे घर मैं मेरे गाजेबाजे भी
मेरे घर गणपति पूजन कौन करेगा
इस बार दिवाली पर.............................
बैठी होगी कहीं ढूँढ केर वो कोना
उसका होगा दिल जाने कितना सूना
देस में उसकी रीती गागर कौन भरेगा
इस बार दिवाली पर............................
या मेरा दिल कोने मैं चुपचाप जलेगा
इस बार दिवाली पर न जाने कौन जलेगा
रंगोली जब मेरे आँगन सज जायेगी
लक्ष्मी मेरे द्वारे आ केर रुक जायेगी
मैं तो हूँ परदेस मैं टीका कौन करेगा
इस बार दिवाली पर.............................
खुशियाँ तो आयेंगी मेरे दरवाजे भी
गूंजेंगे घर मैं मेरे गाजेबाजे भी
मेरे घर गणपति पूजन कौन करेगा
इस बार दिवाली पर.............................
बैठी होगी कहीं ढूँढ केर वो कोना
उसका होगा दिल जाने कितना सूना
देस में उसकी रीती गागर कौन भरेगा
इस बार दिवाली पर............................
और ये है इनकी अद्यतन पोस्ट:-
सोमवार, ३० नवम्बर २००९
सोमवार, ३० नवम्बर २००९
इस व्यवस्था पर नहीं विशवास है
न्याय की आशा यहाँ परिहास है
कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है
बस उसी का नाम है इस जगत में
अर्थ शक्ति का जहां विकास है
समझ में आया हुई बेटी विदा जब
घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
न्याय की आशा यहाँ परिहास है
कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है
बस उसी का नाम है इस जगत में
अर्थ शक्ति का जहां विकास है
समझ में आया हुई बेटी विदा जब
घर का आँगन क्यों हुवा उदास है
आपके होठों पर इक निश्छल हंसी हो
बस यही इस ग़ज़ल का प्रयास है
आज के लिए बस इतना ही-
20 comments:
शास्त्री जी नमस्ते- गजल पढ्वान के लिए आभार्।
कल जहां दंगा हुवा था नगर में
गिद्ध चील पुलिस का निवास है
बढियां !
दिगम्बर बाबू के तो हम मुरीद हैं...वो मेरे व्यक्तिगत मित्र और भ्राता ही नहीं बल्कि प्रेरणास्त्रोत भी हैं.
जो मिलेगा उनसे, बिना उनका मुरीद हुए नहीं रह सकता..एक बेहतरीन इन्सान!!
जय हो उनको आपने कवर किया आज!! दिल बाग बाग हो गया!!
यह तरीका बेहतर है । यदि ब्लॉगर निरन्तर लिख रहा है, तो उसकी रचना-यात्रा का भी पता चलता है प्रथम और अद्यतन प्रविष्टि के युग्म से । आभार ।
दिगम्बर जी की गजले बहुत गहराई लिये होती है.
आभार
बहुत बढिया चुनाव है आपका !!
शास्त्री जी ......... नमस्कार
आपका बहुत बहुत आभार जो आपने मुझे इस लाएक समझा और मेरी रचना को आज की पोस्ट का पूरा स्थान दिया .......
सब ब्लॉगेर साथियों का भी शुक्रिया जिन्होने मुझे स्नेह और मार्गदर्शन दिया ........
nice
नासवा जी को ढ़ेर सारी शुभकामनायें । अच्छी चर्चा ।
दिगम्बर जी की रचनाएँ बहुत कुछ कह जाने का सामर्थ्य रखती हैं.....
शुभकामनायें
Digambar ji ki lekhni ne hamesha hi aakrisht kiya hai..
Badhai...
समीर जी की दरियादिली से अभिभूत हुईं .......... उनका बढ़प्पन है जो उन्होने इतना मान दिया ........
बढिया चर्चा...भई दिगम्बर जी तो गजल,कविताओं के मास्टर आदमी है ।
Digambar ji ki rachnayen abhivyakti mein shKsham aur saar-garbhit hoti hain..
Abhaar.
digambar ji ki rachnayein to hamesha hi ek se badhkar ek hoti hain..........bahut badhiya .
हम गुरुदेव समीर जी के मुरीद, समीर जी आपके मुरीद, इसलिए हम आपके डबल मुरीद...
जय हिंद...
बहुत सुंदर चर्चा
दिगंबर जी की कविता तो कमाल को है..बढ़िया चिट्ठा चर्चा..बधाई
अच्छी चर्चा। धन्यवाद। दिगम्बर जी की रचनाएं काफी प्रेरक होती हैं। उनको शुभकामनाएं।
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