नमस्कार..पंकज मिश्रा..
कविता मयी चर्चा कुछ ही ब्लागो की इसको अन्यथा ना ले समय की कमी है समझिये …
शुरुआत गिरिजेश राव जी के इस कविता से डॉन के साए में कविता. .
घर के सामने पसरी तरई भर धूप
निहाल रहती है -
बैठते हैं एक वृद्ध उसकी छाँव में
आज कल।
मैं सोचता हूँ -
कितनी उदास रही होगी
अकेली उपेक्षित धूप अब के पहले तक !
और साथ मे हिमान्शु भाई भी है लेकर
स्वर अपरिचित ...
बीती रात
मैंने चाँद से बातें की ।
बतियाते मन उससे एकाकार हुआ ।
रात्रि के सिरहाने खड़ा चाँद
तनिक निर्विकार हुआ ,
बोला -
"काल का पहिया न जाने कितना घूमा
न जाने कितनी राहें मैं स्वयं घूमा
और इस यात्रा में
- जीवन से मृत्यु की अविराम-
आज का जो प्रशन है वह कुछ इसी तर्ज पर है "विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक") नही तो जिस बाबू मोशाय का यह बात है वो मुझे थोडी ही याद करते
सुबह और शाम को मच्छर सदा गुणगान करते हैं,
जगत के उस नियन्ता को, सदा प्रणाम करते हैं।
मगर इन्सान है खुदगर्ज कितना आज के युग में ,
विपत्ति जब सताती है, नमन शैतान करते है।।
आज की ईस कविता मयी चर्चा मे बारी रश्मी प्रभा जी की उनकी कविता है ज़िन्दगी
ज़िन्दगी कभी समतल ज़मीं पर नहीं चलती
उस के मायने खो जाते हैं
तूफानों की तोड़फोड़
ज़िन्दगी की दिशा बनती है
रिश्तों के गुमनाम अनजाने पलों से
आत्मविश्वास की लौ निकलती है
योगेन्द्र मौदगिल जी की कविता मुल्ला देख या.....
मुल्ला देख या पण्डे देख. लिये धरम के डण्डे देख. आहट हुई इलैक्शन की, बस्ती-बस्ती झण्डे देख. राजनीत का प्रेत चढ़ा, खादी वाले गण्डे देख. कहे भारती रो-रो कर, पूत हुए मुश्टण्डे देख. जंगल का कानू.
साथ मे है वन्दना जी जिन्दगी पर लेकर
मैं नहीं आने वाली
अब मुझे
मत पुकारना
ना देना आवाज़
मैं नही आने वाली
लम्हा - लम्हा
युग बना
तेरा इंतज़ार
करते- करते
और युग
बीतते- बीतते
जन्म बदल गए
जन्मों के बिछड़े हैं
जन्मों तक
बिछड़ते ही रहेंगे
नमस्कार!!
21 comments:
यहाँ केवल चर्चा है ना ,आलोचना तो नहीं ?
nice
केवल कविता-प्रविष्टियों का होना अच्छा लगा । सुन्दर चर्चा । आभार ।
बहुत बढ़िया चर्चा लाये हैं पंकज भाई...कविता को अलग से लाना ..बहुत बढ़िया.
चर्चा में कविता का विचार मंथन लायक है।
सुन्दर चर्चा । आभार ।
क्या पंकज जी आप जबसे लौट कर आये हैं...बहुत शांत हैं...अब आप सारे गम भुला कर अपने फॉर्म में आ जाइए....हम सब आपके साथ हैं न....
आप हँसते हुए बहुत अच्छे लगते हैं...
बहुत बढ़िया चर्चा पंकज जी....
सुन्दर चर्चा । आभार ।
कवितामयी चर्चा के लिए बहुत आभार ...!!
कविता पर अलग से चर्चा को काव्य चर्चा नाम दिया जा सकता है। जैसे जैसे ब्लाग बढ़ते जाएंगे इस तरह की विषयवार चर्चा की आवश्यकता भी बढ़ेगी।
विषयवार चर्चा का यह लघु प्रयास बहुत सुंदर लगा, भविष्य मे इसे विस्तृत करने की और ध्यान दें, शुभकामनाएं.
रामराम.
अच्छी है चर्चा शुभकामनायें
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ब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की
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पंकजजी मिश्रा..
बढीया, अति उत्तम चर्चा
अब तक की चर्चाओ मे सबसे बढीया, लाजवाब चर्चा करी है.
बस आप यू ही लिखते रहे.
आभार
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निचे चटका लगाऎ
ब्लोगचर्चा मुन्ना भाई की
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
charcha ka ye tarika bahut badhiya laga.........vishaywaar charcha karne se kafi kuch mil jata hai naya padhne ko.........meri post ko jagah dene ke liye shuriya.
अच्छी लगी ये कवितामयी चर्चा....शुक्रिया
पंकज आप अपने पुराने फॉर्म में नही लौट पाए हैं अब तक, क्या कोई खास कारण है?
चर्चा की कलम में खुद को पाना
सुखद होता है.........
शुक्रिया
आपकी चर्चा तो आज कवितमय हो गयी ........... बहुत अच्छी लगी ........
बढिया चर्चा ।
बहुत बढ़िया!
फर्स्टक्लास चर्चा...
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