अंक : 115
आज "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" की में जानिए "शरद कोकास" को और पढ़िए इनकी पहली और अद्यतन पोस्ट:
Occupation: स्वतंत्र लेखन
परिचयःशब्दो से परिचय होने की उम्र में जब् शब्द जाने तो लगा जीवन के वे सब क्षण और स्थितियाँ भी तो कविता के विषय हैं जो बराबर कविता से बहस करते हुए उसके भीतर और बाहर रहते हैं, सहयोग और विरोध के द्वन्द को जीते हुए...शायद इसीलिए ज़िन्दगी से हटकर कविता और कविता से हटकर ज़िन्दगी हो ऐसा नहीं हो सकता यही मेरा यथार्थ है यही मेरा स्वप्न और यही आकांक्षा है जिसे मै हर मनुष्य के भीतर साकार होते देखना चाहता हूँ इसलिये कि मै हर मनुष्य को सुखी देखना चाहता हूँ उसके मनुष्य होने के गौरव और उसकी अस्मिता के साथ..कविता की जीवन मे यही भूमिका है..सिर्फ मेरे नहीं हम सभीके उनके भी जो नहीं जानते कविता क्या है..
अभिरुचियाँ:
लीजिए ये है इनकी पहली पोस्टः
Saturday, April 11, 2009
ITIHAS KYA HAI?
itihas to darasal ma ke pahale doodh ki tarah hai
jiski sahi khurak paidaa karti hamare bheetar
musibaton se ladne ki takat
dukh sahan karne ki kshamta deti jo
jeevan ki samajh banati hai vah
hamare hone ka arth batati hai hame
hamari pahchan karati jo hamin se
(PAHAL dwara prakashit SHARAD KOKAS ki lambi kavita PURATATVAVETTA se)
jiski sahi khurak paidaa karti hamare bheetar
musibaton se ladne ki takat
dukh sahan karne ki kshamta deti jo
jeevan ki samajh banati hai vah
hamare hone ka arth batati hai hame
hamari pahchan karati jo hamin se
(PAHAL dwara prakashit SHARAD KOKAS ki lambi kavita PURATATVAVETTA se)
और निम्न है इनकी अद्यतन पोस्ट:
Wednesday, December 16, 2009
कोई चेहरा गाज़र के हलुवे की प्लेट सा लगता है
सुबह सुबह मुँह खोलो तो निकलती है ढेर सारी भाफ़ ..ऐसा लगता है कोई चाय की केटली रखी हो दिल के भीतर । आलिंगन के लिये बढ़ते हुए हाथ गर्म कम्बल की तरह दिखाई देते हैं , सुबह की गुनगुनी धूप में मफलर से लिपटा हुआ कोई चेहरा गाज़र के हलुवे की प्लेट सा लगता है ।दोपहर , जल्दी बाय बाय कहकर चली जाने वाली प्रेमिका की तरह और शाम नकाब पहनकर आती किसी खातून की तरह लगती है । रात पेट भरने के बाद रज़ाई में घुसते समय सुख के अहसास में इतनी उछल कूद होती है मानो कोई ज़लज़ला आ गया हो ।
माफ कीजियेगा ..यह सारे सुविधाभोगी जीवन के बिम्ब हैं ।.लेकिन उन करोड़ों लोगों का क्या जिन्हे कड़कड़ाती ठंड में भी यह सब नसीब ही नहीं है । अभी उस दिन एक दोस्त ने कहा कि उसे ठंड अच्छी नहीं लगती ..सुबह सुबह अखबार में ठंड से मरने वालों की संख्या देखकर वह काँप जाता है ।
लेकिन कोई तो है ..जो इस भयानक ठंड से लड़ने के लिये तैयार बैठा है ..वह मेरे देश का आम आदमी है जिसे उसका दुश्मन नज़र तो आ रहा है ऐसा दुश्मन जिसके चेहरे पर शोषक की एक ठंडी मुस्कान है ..लेकिन इस ग़रीब आदमी के पास उसका मुकाबला करने के लिये कुछ नहीं है ..कुछ है तो बस दिमाग़ में विद्रोह की एक आग और समूह की ताकत .. लीजिये ..कविता पढ़िये ..
मैं नहीं गया कभी कश्मीर
न मसूरी न नैनीताल
दिल्ली क्या
भोपाल तक नहीं गया मैं
नहीं देखे कभी
तापमान के चार्ट
टी.वी.पर नहीं देखा
किस साल कितने लोग
ठन्ड से मरे
शहर से आये बाबू से
नहीं पूछा मैने
तुम्हारे उधर ठंड कैसी है
नहीं हासिल हुए मुझे
शाल स्वेटर दस्ताने और मफलर
मुझे नहीं पता
ठंड से बचने के लिये
लोग क्या क्या करते हैं
ज्यों ज्यों बढ़ी ठंड
मैने इकठ्ठा की लकड़ियाँ
और.....
पैदा की आग ।
- शरद कोकास
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)
आज के लिए बस इतना ही...!
12 comments:
बहुत बढिया, शरद भाई की पहली पोस्ट पढने मिली। शास्त्री जी-आभार
nice
ऋतु कोई भी हो, शरद के असर से अछूती नहीं रह सकती...
शरद भाई की पहली पोस्ट पढ़ाने के लिए शास्त्री जी आभार...
जय हिंद...
शरद जी की पहली पोस्ट ...यानि दुर्लभ पोस्ट पढवाने के लिए आभार ..
ब्लॉग जगत को कोकसिया चर्चा मुबारक हो !!!
बहुत आभार शाश्त्रीजी आपका शरद भाई की पोस्ट पढवाने के लिये.
रामराम.
शरद भाई की पोस्ट पढ़ाने के लिए आभार...
शरद जी की पहली पोस्ट पढवाने के लिए आभार ..
shastri ji pahli post padhwane ke liye shukriya..........aap bahut hi umda kaam kar rahe hain.........aapka ye andaaz bhi kabil-e-tarif hai.
शरद भाई हमारे यहां तो सर्दी बहुत हो रही है अभी दिन के १२,४० हुये है ओर बाहर -१४ c है, लेकिन आप की पोस्ट पढ कर थोडी प्यार की गर्मी मिली, बहुत सुंदर
बहुत ही बढि़या चर्चा
अरे शरद भैया, अब तो पहली पोस्ट का देवनागरी संस्करण लगा दें!
मयंक जी, धन्यवाद। शरद जी मेरे चहेते लेखकों में आते हैं।
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