नमस्कार , पंकज मिश्रा आपके साथ…..
अभी तो व्यथा के श्रृंगों
का आयतन
वर्तनी की आकृतियॊं में नापता हूं ! ! !
भावना के पारावार में
खो जायेगें दुख भी जब
तुम्हारे स्मरण की विस्मृत मधुकरी तब
मन के वातायनॊं पर सजाउंगा !
अरे नही भाई मै कहा इतना ग्यानी कि ऐसी बातें लिख पाउ ..ये तो है हमारे परिवार के नये सदस्य श्री मान “आर्जव” जी जो कि चिट्ठा चर्चा के नये सदस्य है …और उपर की चन्द लाईने मै उनके ब्लाग से रात के १:५५ मिनट पर चोरी कर रहा हु…वैसे चोरी नही कहू तो सही है क्युकि अभी हमारे युवा टिप्प्णीकार आकर यह कह देगे कि बाकी जगह से भी आप चोरी ही करते हो :)
चलिये आपको बताते है अपने नये सदस्य आर्जव जी के बारे मे ….जैसा कि उनका प्रोफ़ाईल बताता है ..मै अपने तरफ़ से क्या बताऊ आजकल तो लोग दिन भर मे चार बार प्रोफ़ाईल बदलते है जी …तो हमारे आर्जव साहब के बारे मे बात यह है कि
About Me
I like to explore experiment and invent.....everytime new approaches about archaic things and processes....!
और ब्लाग है
अब चलते है चर्चा की तरफ़ ……..
पहले पहल बात करते है अपने जनपद जौनपुर के बारे मे …आनंद देव जी ने लिखा है गंगा जमुनी तहजीब की अनूठी मिशाल है जौनपुर की सरज़मी
गुलामी से ले कर अब तक यूँ तो देश के कई हिस्सों में साम्प्रदायिक तनाव , दंगा फसाद और खून खराबा जैसी घटनाए हुई पर उत्तर प्रदेश का जौनपुर जनपद न सिर्फ ऐसी घटनाओं से अछूता रहा है बल्कि जाति , धर्म और सम्प्रदाय जैसी संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठ कर यहाँ के लोगो ने हर मौके पर एक दूसरे के सुख दुःख में हाथ बटा
कर दुनिया के सामने गंगा जमुनी तहजीब की एक अनूठी मिशाल पेश की है । यहाँ राम लीला के मंचन में अस्फाक, इस्लाम और फ़िरोज़ जैसे पात्र राम लक्षमण और सीता की भूमिका में मिल जाएगे तो दूसरी तरफ सरदार पंछी , महेंद्र, और रामकृष्ण जैसे लोगो को मुहर्रम के महीने में नौहा ,मातम तथा ताज़िया दारी करते देखा जासकता .करीब ४५ लाख की आबादी वाले इस जिले में मुस्लिमो की भी अच्छी खासी तादात है । लेकिन धर्म- सम्प्रदाय जैसी संकीर्ण भावनाओं से अछूते इस जिले की आबो हवा कुछ ऐसी है कि होली ,दिवाली ईद और मुहर्रम जैसे पर्व पर हर कोई एक दुसरे की खुसी और गम को बाटने में नहीं चूकता
चलिये बहुत हो गया जनपद की बात चलते है वीवेक रस्तोगी जी के पास देखते है कार्टून प्यार पहली नजर का – एक कार्टून - (Love at 1st Sight….)
सच्चा शरणम् पर हिमान्शु भाई छाये हुए है और रहेगे भी करुणावतार बुद्ध – 8 जारी है …जय हो भाई !!!
मनुष्य की बुद्धि बहुत थोड़ी दूर तक देख सकती है । जीवन की अखिल योजना परमात्मा के हाथ है । उसी को पूरी ज्यामिती का पता है । हमारे सम्पूर्ण जीवन के पूर्ण चक्कर को वह, केवल वही देख सकता है । पता नहीं कितने युगों से किस-किस रूप में हमारे जीवन की धारा बहती चली आ रही है । पता नहीं कैसे कैसे व्यतिरेक, विषमता, बाधा, दुख, आनंद, पुलक आदि में प्रवहित होती चली जा रही है और अनंत अंबुधि के वक्षस्थल में अपने को लय करके अपने स्रोत में सुख से सो जायेगी । हमारे इस जन्म के पहले भी तो हमारा जीवन-प्रवाह था और मृत्यु के अनंतर भी तो वह बना रहेगा । क्या उसे हम समग्र रूप में देख सकते हैं ? हमारा देखना अधूरा है, अपूर्ण है, अस्त-व्यस्त है, खंडित है, विकृत है । अतः ’क्या’, ’कैसे’, ’क्यों’ की हम व्यर्थ चिन्ता करके व्यग्र क्यों हों ? भविष्य को जिसने रचा है, वही उसकी सँभाल भी करेगा । तुम जिस गोरखधंधे में उलझे हो, जिस उलझन को सुलझाना चाहते हो उसमें और उलझना, सिर खपाना बच्चों-सी मूर्खता नहीं तो और क्या है !
हिमान्शु भाई आज तो नही पिच…………ना :)
भारतीय नागरिक की बात सुनिये और बताईये अगर आदमी बीमार न पड़ता तो क्या होता ??
समयचक्र महेन्द्र मिश्रा जी है और पहले किसी का सम्मान करना सीखो फिर खुद सम्मान पाने की आस करो ? सही कह गयी आप ! गये नही है जी :)
खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (156) : आयोजक उडनतश्तरी १५६ कडी हो गयी ..ताऊजी बधाई लिजिये !!!
एक आलसी का चिट्ठा है और मै भी आलसी नम्बर एक ..दो दिन बाद छाप रहा हु..अपणे गिरिजेश राव साहब है और बता रहे है बाउ और मरा हुआ सिध्धर -1 : लंठ महाचर्चा
नाटी शरीर में जैसे मास और पानी ही बचे थे। भूख के मारे बोलने की कोशिश भी फुसफुसाहट थी और साँस जैसे धौंकनी। बेरिया की अजिया सासु लाठी ठेकते गुड़ का रस अपने नाती के हाथ में थमाए उसके पास आई। रस पीने के बाद परबतिया के माई की इन्द्रियों ने काम करना शुरू किया और फिर बैस्कोप के माफिक गए जमाने की घटनाएँ एक एक कर आती चली गईं... मन जुड़ा गया। अपने गाँव जवार में आखिर वह पहुँच ही गई थी !बाउ के मामा को देखते ही बनमानुख याद आया। याद आई वह करिखही रात और फिर जीवधन बाबू के पैर पकड़ वह पुक्का फाड़ रो पड़ी। आवाज नहीं, हाँफ, सिसकी और विलाप का अजीब मिश्रण पूरी शरीर के मास परतों में हिचकोले खा रहा था।
जी के अवधिया जी है ….धान के देश मे नारीपोल याने कि अद्भुत वृक्ष जिसमें नारी फलते हैं
अवधिया जी कह रहे है क्या वास्तव में ईश्वर ने ऐसी विचित्र रचना की है या फिर यह कम्प्यूटर से जोड़ तोड़ कर बनाया गया चित्र है? चित्र में पेड़ के पत्तों को देखने से लगता है कि यह कदम्ब का पेड़ है।
और बाकी सबकी राय क्या है नीचे पढिये
ललित शर्मा said...
अवधिया जी जोहार ले,
पहिली घलो देख डारे हंव बबा। बने दिखथे।
संगीता पुरी said...
विश्वास नहीं होता !!
यदि ऐसे फल दुनिया में होते .. तो कभी तो चर्चा हुई होती .. मुझे तो कंप्यूटर द्वारा छेड छाड कर बनाया गया लगता है .. पर स्थान भी दे दिया है उन्होने .. जहां ये फल होते हैं!!
राज भाटिय़ा said...
नही हूबाहु नही हो सकते, जरुर यह किसी की शरारत है,
खुशदीप सहगल said...
अवधिया जी,
आदम-हव्वा के सेब खाने का ही नतीजा आज तक दुनिया भुगत रही है...और आप ये नए फल और ले आए हैं...वैसे मानना पड़ेगा जिसके दिमाग की भी उपज है, है बड़ा क्रिएटिव...उसे तो एड वर्ल्ड में होना चाहिए...
जय हिंद...
Udan Tashtari said...
इसके बारे में काफी पढ़ा था..शरारत मात्र है.
पं.डी.के.शर्मा"वत्स" said...
शरारती सिर्फ हिन्दुस्तान में ही नहीं पाए जाते :)
Suman said...
संजीव तिवारी .. Sanjeeva Tiwari said...
ऐसी ही एक जानकारी कुछ दिनों पहले दैनिक भास्कर के मुख्य पृष्ट में प्रकाशित हुआ था. अजब प्रेम की गजब कहानी है यह. आपने नेट में इसे ढूंढ निकाला, आपके खोजी मन को प्रणाम.
Tarkeshwar Giri said...
आवधिया जी आपको सबसे पहले नव वर्ष की बधाई ,
खुद तो कभी आप अवध गए नहीं और हमें घुमा दिया आपने बैंकाक । वैसे आप की जानकारी के लिए बता दूँ की ये सिर्फ कम्पयूटर जी का ही कमाल है, क्योंकि जो नारी फल आपने दिखायें हैं उनमे नारी के हाथ की मुद्रा अलग-अलग है।
डॉ टी एस दराल said...
अच्छी शरारत है।
कंप्यूटर का कमाल है।
प्रवीण शाह said...
.
.आदरणीय अवधिया जी,
यह किसी की खूबसूरत शरारत ही है...
विस्तार से इस बारे में जानने के लिये यहाँ पर देख सकते हैं।
आभार!
ज्ञानदत्त पाण्डेय G.D. Pandey said...
इण्टरनेटीय वृक्ष! :-)
दीजिये इजाजत……. नमस्कार
19 comments:
बेहतरीन चर्चा..अच्छा कवर किया है.
सुंदर चर्चा-आभार
सुंदर चर्चा
बढिया टिप्पणी चर्चा .. क्यूंकि पोस्ट से अधिक तो आज टिप्प्णियां हैं !!
एक निवेदन:
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
संगीता पुरी जी से सहमत. सुन्दर चर्चा
बढिया चर्चा, शुभकामनाएँ!
लवली चर्चा.
मैं भी मानता हूं कि ऐसे नारीफल उगते हैं, सच.
बहुत सुंदर चर्चा, आभार.
रामराम.
ओह..आर्जव का आना व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए मुझे बेहद अच्छा लगा..आर्जव की प्रतिभा का अब एक और नया रूप देखने को मिलेगा...!पंकज जी को अन गिन बधाइयाँ...!
चर्चा अच्छी लगी...!
यह नारी फल क्या खाने के लिए है -aवधियाँ जी क्या बताएगें प्लीज यहाँ ?
विविध आयाम लिये सतत चलायमान रहने के लिये आभार ।
बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
आर्जव जैसा चर्चाकार पाकर ब्लॉग - जगत
समृद्ध होगा .
चर्चा सुन्दर रही ..
नए सद्स्य का स्वागत
बी एस पाबला
अजीबो गरीब पैड
THE PHOTO GALLERY
http://mahaprem.wordpress.com/
12dec 2009
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं.........
स्वागत आर्जव !
चिट्ठा और टिप्पणी चर्चा दोनों एक साथ......
ये भी खूब रही!!
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