Monday, November 16, 2009

"पहली पहली पाती : सुन मेरे बन्धु ,पढ़ मेरे साथी" (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

अंक : 79
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन!
आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की " की में डॉ.सिद्धेश्वर सिंह की पहली पोस्ट की चर्चा करता हूँ-


डॉ.सिद्धेश्वर सिंह राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, खटीमा में हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं और एक वरिष्ठ ब्लॉगर हैं। इनका ब्लॉग "कर्मनाशा" है। जिस पर इन्होंने शनिवार, १७ नवम्बर २००७ को अपनी पहली पोस्ट प्रकाशित की थी। जो निम्नवत् है-
शनिवार, १७ नवम्बर २००७
पहली पहली पाती : सुन मेरे बन्धु ,पढ़ मेरे साथी
कर्मनाशा में सभी का स्वागत है ।
एक अनजानी ,अनचीन्ही -सी नदी का नाम है। देश -दुनिया के नक्शे को खंगालने , थोडा जूम करने पर संभव है कि इसकी निशानदेही का कुछ अनुमान हो जाय लेकिन इसमें दिलचस्पी कोई ठोस वजह तो होनी चाहिए ! यह अपनी कर्मनाशा कोई बड़ी ,वृहद,विशालकाय नदी तो है नहीं , छोटी-पतली-कृशकाय,अपने आप में सिमटी हुई । इसके तट पर न कोई नगर है ,न मंदिर , न कोई मठ न ही अन्य कोई पुण्य स्थल जहां साल -दो साल में कोई मेला -कौतुक लगे । और तो और इसके आजू-बाजू कोई बड़ा कल-कारखाना भी नहीं जिससे निकलने वाला कूड़ा-कचरा इसके `सौन्दर्य ´ को बनाता-बिगाड़ता हो ।
तो कर्मनाशा में है क्या ? इसका जवाब बड़ा सीधा-सा है मामूली चीजों में आखिर होता क्या है ।उनका मामूली होना ही उन्हें खास बनाता है । ऐसा मेरा मानना है । अपने मानने न मानने को साझा करने की चाह है और यह ब्लाग उसी की एक राह है ।
बहुत सारे करम किए
कुछ छोटे ,कुछ बड़े ,कुछ आम,कुछ खास
बुन न सका लाज ढांपने भर को कपड़ा
कातता ही रह गया मन भर कपास ।
खूब सारी मिट्टी गोड़ी
खूब निराई खरपतवार
खूब छींटे किसिम -किसिम के बीज
पर उगा न एक भी बिरवा छतनार ।
फिर भी क्या सब अकारथ
सब बेकार ???

अब आज्ञा दीजिये!
अंत में इतना ही कहूँगा ...आज का अंक आपको कैसा लगा? अपनी राय बेबाक टिप्पणियों में दीजिये......
कल फिर आपकी सेवा में हमारे कोई साथी कुछ और चिट्ठों की चर्चाएँ लेकर उपस्थित होंगे.............................................धन्यवाद! नमस्कार !!

19 comments:

Gyan Darpan said...

परिचय के साथ पोस्ट चर्चा का यह अंदाज भी बढ़िया लगा |

Udan Tashtari said...

ये बढ़िया रही, इस पोस्ट की चर्चा हो गई.

श्यामल सुमन said...

मेरे हिसाब से चर्चा का यह तरीका सुन्दर है, जिसमें ब्लागर के परिचय के साथ उनकी पुरानी रचना भी है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

Randhir Singh Suman said...

nice

संगीता पुरी said...

चर्चा का यह भी अंदाज अच्‍छा रहा .. धन्‍यवाद !!

Himanshu Pandey said...

कर्मनाशा एक महत्वपूर्ण ब्लॉग है - अर्थपूर्ण व सृजनात्मक । सिद्धेश्वर जी की लेखनी तो खैर अद्भुत ही है ।

कर्मनाशा की चर्चा अच्छी लगी । आभार ।

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर !!!!

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया.

रामराम.

vandana gupta said...

shastri ji ,
aapka ye andaaz bhi bahut hi pasand aaya.

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

ये अन्दाज भी बढिया रहा....

दिगम्बर नासवा said...

परिचय और पोस्ट की चर्चा .... ये अंदाज़ भी भा गया .....

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुन्दर जी

Dr. Shreesh K. Pathak said...

वाह..मयंक जी यह अंदाज भी कुछ कम नहीं,,,शुभकामनायें...

siddheshwar singh said...

* शुक्रिया डा० शास्त्री जी इस पोस्ट के लिए.

*आपने 'कर्मनाशा' पर मेइ पहली पोस्ट को बहुत अच्छी तरह से पुनर्प्रस्तुत किया यह देख भला लगा. साथ ही एक अनुरोध है कि यदि इसी बहाने 'कर्मनाशा' की समीक्षा के संदर्भ में भी कुछ लिखा गया होता तो मुझे अपनी कमियों को दूसरों के नजरिए से देखने में मदद मिलती.मैं खुद असमंजस में रहता हूँ कि जो कुछ भी लिख रहा हूँ और शब्दों के मार्फत हिन्दी ब्लागिंग की दुनिया में मेरे हस्तक्षेप का कोई मूल्य भी है क्या ?

*भाई हिमांशु जी 'कर्मनाशा' आपको 'अर्थपूर्ण व सृजनात्मक ' लगता है जान खुशी हुई, आभार !

*एक बार फिर धन्यवाद !

रावेंद्रकुमार रवि said...

सिद्धेश्वरजी नई कविता के सशक्त हस्ताक्षर हैं!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद said...

कर्मनाशा में कबीर भी तो है:)

स्वप्न मञ्जूषा said...

बहुत सुन्दर !!!!

Unknown said...

bahut khoob !

sundar post !

दीपक 'मशाल' said...

Bahut sahi... ye bhi ek achchha tareeka hai charcha ka..
Jai Hind...

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

Followers

जाहिर निवेदन

नमस्कार , अगर आपको लगता है कि आपका चिट्ठा चर्चा में शामिल होने से छूट रहा है तो कृपया अपने चिट्ठे का नाम मुझे मेल कर दीजिये , इस पते पर hindicharcha@googlemail.com . धन्यवाद
हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सौजन्य से

Blog Archive

ज-जंतरम

www.blogvani.com

म-मंतरम

चिट्ठाजगत