Tuesday, February 23, 2010

मुर्गी तो जान से गई और खाने वाले को मजा नही आया--"चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" (ललित शर्मा)

मौसम बादल रहा है वातावरण में हलकी सी गरमाहट आने लगी है. शर्म होते ही ठंडी हवा के साथ फूलों की खुशबु के साथ वातावरण गमक उठता है. बड़ा ही अच्छा मौसम है. पलास भी अब अपनी रंगत पर आने लगे है. उसके भी फ़ूल लालियाने लगे है. गेंहूँ -चने की फसल भी पक कर तैयार होने लगी है. और हमारे आम के पेड़ों पर तो कोयल ने अब स्थायी डेरा डाल लिया है.......सुबह शाम कुहू-कुहू की मधुर तन मन को मोह लेती है....अब लगाने लगा है कि सही मायने में हम होली के त्यौहार तक पहुँच गए है.......होली का त्यौहार अब दरवाजे पर दस्तक देने लगा है...होली टिप्पणियाँ भी ब्लॉगों तक पहुँच रही है........कुल मिला कर बुरा ना मानो होली का सार्थक उपयोग हो रहा है.......अब मैं ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज के चिट्ठों की चर्चा पर ...........

चर्चा की शुरुवात करते हैं अजय झा जी की पोस्ट "तो आप ही बताईये ब्लागिंग क्या है?" अब ये तो बहुत बड़ा सवाल ही नहीं सवाला है............. मगर मुझे तो फ़िलहाल यही समझ में नहीं आ रहा है कि यदि जो सब ऊपर मैंने कहा है यदि वो सब ब्लोग्गिंग नहीं है तो फ़िर भईया आखिर है क्या ब्लोग्गिंग , हमे कोई ठीक ठीक बताए कि ब्लोग्गिंग क्या है ....हिंदी की सेवा तो कर नहीं रहे , लोगों से मिलने मिलाने के पीछे भी हमारा कोई छुपा एजेंडा है ..जरूर कोई गुप्त गुट बना रहे हैं हम ....हो सकता है हमारे गुट का उपयोग अगले साल हम राहुल गांधी को हराने के लिए कर दें 
भाई गिरीश बिल्लौरे जी ने जब से पोडकास्ट शुरू किया है...........वो की बोर्ड से लिखना ही भूल गये है.....अब बात भी पॉडकास्ट की भाषा में होती है...............बस दिन रात का एक ही काम रह गया है पॉडकास्ट......तो भैया समय हो तो कभी लिख भी लिए करो आज पॉडकास्ट में धमाल है विवेक रस्तोगी के साथ......सुनिए.......और गुनिये......... पदम् सिंग  जी प्द्मावली पर एक बहुत विचारनीय स्मरण लेकर आये हैं......रेलवे स्टेशन पर घटी एक घटना ने इन्हें लिखने को मजबूर कर दिया.......छोटा सा बडप्पन......जब भी उधर से गुजरता हूँ , नज़रें ढूंढती रह जाती हैं उसे लेकिन फिर कभी नहीं दिखा मुझे वहां, उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़  शहर के रेलवे स्टेशन का जिक्र करता हूँ….. Friday, ‎February ‎24, ‎2006 दोपहर के बाद का समय था…हलकी धूप थी. गुलाबी ठण्ड में थोड़ी धूप अच्छी भी लगती है और ज्यादा धूम गरम भी लगती है … स्टेशन पर बैठा इंतज़ार कर रहा था और ट्रेन लगभग एक घंटे बाद आने वाली थी ….. बेंच पर बैठे बैठे जाने क्या सोच रहा था …

इधर ताउ जी ने खाट के नीचे आग लगा दी है, बस फिर क्या था जो खाट पर था वो उठ कर भाग लिया......क्यों नहीं भागेगा भाई ....उसे तो भागना ही पड़ेगा...........आईये पढ़िए......  आजकल के माहोल से त्रस्त होकर हमने एक पोस्ट "मेहरबां फ़रमाईये किस पर लिखूं?" लिखी थी. क्योंकि सच मे समझ नही आता कि क्या लिखें और क्या ना लिखें. लोगबाग चीरफ़ाड करने को उधार ही रहते हैं. असल मे वस्तु या कथ्य तो एक ही होता है परंतु हर आदमी उसका अवलोकन अपने नजरिये से ही करता है. जैसे हाथी को देखकर कोई कहेगा यह बहुत विशालकाय है..कोई कहेगा ..ये तो काला है...यानि हर किसी की अपनी नजर होती है.और खासकर ब्लागजगत में तो ताऊ के लिखे को देखकर लोग यही कयास लगाते हैं कि आज ताऊ ने ये किसके बारे में लिखा? कुछ लोग पूछते भी हैं और सलाह भी देते हैं कि ताऊ लौट आवो पुरानी गलियों मे. यहां सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं...अब ये ताऊ ना हुआ..कश्मीर का आतंकी होगया जो बहक कर फ़ैसलाबाद चला गया और एक रियायती पैकेज ताऊ को मुख्य धारा में लौटाने के लिये सरकार ने दिया हो?अब आप बताईये..ताऊ कहीं गया हो तो लौटे भी...ताऊ तो यहीं बैठा अपनी ताऊगिरी कर रहा है..अब ये अलग बात है कि कुछ लोग गलत फ़ेमिली से और कुछ लोग बहकावे मे आकर ताऊ के ठिये से चले गये हैं तो ताऊ का क्या दोष? ताऊ तो पहले भी उन पर जान छिडकता था अब भी छिडकता है. पर उनको ही ताऊ की जान की कद्र नही है. ये तो वही बात होगई कि "मुर्गी तो जान से गई और खाने वाले को मजा नही आया".

 
ब्लागर  मिलन स्थल पर योगाभ्यास 
इधर अवधिया जी कुछ कह रहे है.........और कुछ समझा रहे है.............बेवकूफ ब्लागर अब टिप्पणी पर पोस्ट लगा रहे हैं........क्या करे.......लिखने को कुछ बचा  ही नहीं .........उस्ताद जी ने टिप्पणी की है उनके पोस्ट में जाकर, हम चाहे जो भी टिप्पणी करें सामने वाला पढ़ता तक नहीं है बल्कि हमारी टिप्पणी पाकर खुद को सम्मानित समझता है। पर ऐसे लोगों को क्या कहें जो टिप्पणी का अर्थ निकालना चाहते हैं। भई टिप्पणी तो शान होती है पोस्ट की! उसका भी कुछ अर्थ होता है क्या? हमारे टिप्पणी करने का एहसान मानना तो दूर उल्टे हमारी उस टिप्पणी पर भी पोस्ट निकाल लेते हैं कि ऐसी टिप्पणी क्यों किया तुमने? हमारी टिप्पणी ही उनको चिपक जाती है और उसी पर पोस्ट तान देते हैं। अब कहाँ तक हम सफाई दें उनको? सफाई देते भी हैं तो उस सफाई पर भी एक पोस्ट लिख देंगे। लोग तो अधिक से अधिक टिप्पणी पाने के लिये तरसते हैं और ये ऐसे बेवकूफ हैं कि कहते हैं टिप्पणी में क्या धरा है? पाठक बढ़ाओ। अब आप ही बताइये कि दूसरे ब्लोगर पाठक नहीं होते क्या?
 तुम प्रेम का आधार हो प्रिय तुम प्रेम प्रतीक होतुम प्रेम का आधार होतुम ही तो हो पथ प्रेम कातुम ही प्रेम का द्वार होसर्द सुलगती रातों मेंशीतल मृदु अहसास तुममधुर स्वप्न हो नयनों केजटिल जीवन की आँस तुमजलती बुझती चाहों मेंतुम एक अमर अभिलाषा होघोर निराशा के रुक्ष्ण क्षणों मेंतृप्त........'उत्‍पादकता' से 'प्रकृति' महत्‍वपूर्ण, ये बात गांठ बांध लो सभी !! डायरी के एक पन्‍ने में मुझे यह कविता दिखाई पडी। पढने पर मुझे याद आया कि पर्यावरण दिवस पर आयोजित किसी कार्यक्रम में बोलने के लिए बेटे को कविता लिखना सिखलाते हुए मैने यह तुकबंदी की थी । यह पन्‍ना इधर उधर खो न जाए , इस ख्‍याल से इस यादगार कविता को यहां......अमीर बनना है, इसे पढ़िए...खुशदीप अमीर बनने का नुस्खा आपको बताऊंगा...ऐसा नुस्खा जिसमें आपकी धन-दौलत छिनने का कभी डर ही नहीं रहेगा, लेकिन पहले ज़िंदगी...जिंदगी कैसी है पहेली हाय, कभी ये रुलाए, कभी ये हंसाए...इस पहेली को सुलझा तो नहीं सकता लेकिन आज आपको विद्वान पुरुषों के अनमोल ख़जाने से,........ 
मैं खुले आकाश में उड़ना चाहती हूँ चौदह साल की रिंकू अपने खिलंदड़े स्वभाव के लिए घऱ-स्कूल में जानी जाती थी। किसी की कोई भी समस्या हो रिंकू के पास उसका समाधान रहता था। घर में मम्मी-पापा के अलावा एक बड़ा भाई था। घर में कभी उसको इस बात का अहसास नहीं कराया गया कि लड़की होने के कराण वह लड़कों..........मेरे शब्द ...यह पोस्टिंग पढने के लीये "design" पर क्लिक करें ...!फागुन फागुन ......फागुन फागुन (1) फागुन ने चूमाधरती को -होठ सलवट भरा रास रस। भिनसारे पवन पी गया चुपके से -.. खुलने लगेघरों के पिछ्ले द्वार । (2) फागुन की सिहरन छ्न्दबद्ध कर दूँ !कैसे ?क्षीण कटि - गढ़न जो लचकी ..कलम रुक गई। बालम मोर गदेलवा....फागुनी रंग को और गाढ़ा करनें के लिए आज आपके सामनें एक बहुत पुराना फाग गीत प्रस्तुत कर रहाहूँ,प्रश्न-उत्तर के रूप में वर्णित पूरी रचना शुद्ध अवधी में है ,जिसमें तत्कालीन पर्यावरण का भी कितना सुंदर चित्रण दीखता है..गांव की मिट्टी की महक लिए ऐसे गीत......

हैप्पी अभिनंदन में ललित शर्मा हैप्पी अभिनंदन में आज आपको जिस ब्लॉगर हस्ती से रूबरू करवाने जा रहा हूँ, वैसे तो आप उन्हें अच्छी तरह वाकिफ होंगे, लेकिन किसी शख्स के बारे में जितना जाना जाए, उतना कम ही पड़ता है। वो हर रोज किसी न किसी ब्लॉगर का चर्चा मंच ,चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!!....... माँ मेरे गीतों में तू मेरे ख्वाबों में तू,इक हकीकत भी हो और किताबों में तू।तू ही तू है मेरी जिन्दगी।क्या करूँ माँ तेरी बन्दगी।।तू न होती तो फिर मेरी दुनिया कहाँ?तेरे होने से मैंने ये देखा जहाँ।कष्ट लाखों सहे तुमने मेरे लिए,और सिखाया कला जी सकूँ मैं........गिरीश पंकज का व्यंग्य : शाम को उसे ‘टच’ मत करना बहुत दिनों से इच्छा थी कि  गपोडूराम के घर  जा कर  मिलूँ, कुछ बतियाऊं. कुछ उसकी सुनूं, कुछ अपनी सुनाऊँ, लेकिन टीवी देखने से मुझे फुरसत मिले तब न। जब से टीवी ने टीबी की  बीमारी की तरह जोर पकड़ा है,

होली का तरही मुशायरा :-सनम की गली में जूते खाने आज आ रहे हैं पाठशाला के तीन छिछोरतम विद्यार्थी गौतम राजरिशी, रविकांत पांडे और वीनस केसरी ।( वैधानिक और संवैधानिक सूचना :- इस ब्‍लाग के लिखने वाले ने किसी प्रकार की कोई भांग या अन्‍य नशीला पदार्थ का सेवन नहीं किया है । और पढ़ने वालों को इस बात पर विश्‍वास करना ही होगा । विश्‍वास न करो तो भाड़ में जाओ । ) हम कल से ही कह रहे थे कि भांग ऊंग खइबे,................1100 पोस्ट 364 दिन-राजकु्मार ग्वालानी-"चिट्ठाकार चर्चा" में (ललित शर्मा) संसद का बजट सत्र शुरू हो गया है और राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में कहा है कि मंहगाई रोकना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है...अब मंहगाई काम करने को सरकार ने अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में शामिल कर लिया.....पर अभी तक सरकार क्या कर रही थी?


दिल में लड़कियों के लिए प्यार नहीं सिर्फ घृणा और नफरत बचेगी....आज कल बुद्धू बक्से पर एक शो बहुत चर्चा में है... राहुल दुल्हनिया ले जायेगा... दुल्हनिया ले जाये या नहीं पब्लिसिटी जरूर ले जा रहा है. राहुल महाजन... एक ऐसा नाम जो रातों रात फेमस हो गया. एक सेलेब्रिटी बन गया. पर मैं जानना चाहता हूँ कि आखिर उसका अतीत क्या................आदमी है सबसे बड़ा डिस्पोजेबल........!! इधर देख रहा हूँ कि देश में कई स्थानों पर प्लास्टिक थैलियों के खिलाफ जन-आन्दोलन वैगरह चल रहे है,और लाखों-करोड़ों-अरबों लोगों द्वारा प्रतिदिन उपयोग की जाने वाली यह चीज़ प्रदुषण का कारण बन चुकी है और यह सही भी है कि हमने अपने द्वारा इसका बे-इन्तेहाँ.............कुम्भ नहा आये..   मेरे मेला विभाग के दोस्त कुम्भ नहा आये। गए थे विज्ञापन को समेटन लगे आशीष ! गलत भी क्या है। गप श मैं मालूम चला की मेले मैं अनेक तरह के लोग थे। सबसे पहेल वह जो आर्थिक पुण्य मैं लगे थे जैसे की हम। फिर वह जो इंतजाम मैं लगे थे ,

‘‘मोबाइल फोन’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) पापा ने दिलवाया मुझको,सेल-फोन इक प्यारा सा। मन -भावन रंगों वाला,यह एक खिलौना न्यारा सा।।रोज सुबह को मुझे जगाता,मोबाइल कहलाता है।दूर-दूर तक बात कराता,सही समय बतलाता है।।नम्बर डायल करो किसी का,पता-ठिकाना बतलाओ।मुट्ठी में इसको पकड़ो और,संग कहीं भी ले...............रुचिप्रिया भारतीय आपके स्नेह और आशीर्वाद की पात्र है   प्यारे मित्रो !28 अप्रेल 2009 को मैंने अपना पहला ब्लॉग बनाया और धीरे धीरे कब मेरे ब्लोग्स की संख्या २२ हो गई पता ही नहीं चला । सभीब्लोग्स पर अलग-अलग मैटर डालता रहता हूँ और सक्रिय रखताहूँ हालाँकि समयाभाव के कारण ये मुश्किल है कोई मुझे बतायेगा…..वो कौन थी……. जून जुलाई की गर्म मैं करीब चार बजे दुपहर बाद मैं अपने क्लिनिक पर बैठा बार बार  पहले से ही गीली हो चुकी रुमाल से अपना चेहरा पोंछता  कैन फोलैट के पिलर्स आफ अर्थ मैं माथा गङाये हुए बैठा मरीजों का इंतजार कर रहा था….एक नये डाक्टर के लिए इससे ज्यादा........

अब देता हुँ चर्चा को विराम-----सभी को मेरा राम-राम.





25 comments:

Unknown said...

वसन्त की शीतल-मन्द-सुगन्ध से सुवासित सुन्दर चर्चा के लिये धन्यवाद ललित जी!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बढ़िया और विस्तृत चर्चा ललित जी !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बढ़िया और विस्तृत चर्चा .....

Mithilesh dubey said...

बढ़िया और विस्तृत चर्चा

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत ही नायाब और विस्तृत चर्चा, आभार.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया said...

वाह बहुत ही नायाब और विस्तृत चर्चा, आभार.

रामराम

दिगम्बर नासवा said...

बढ़िया और विस्तृत चर्चा .......

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह जी आज तो फोटो ने ही चर्चा संपन्न कर दी :)

vandana gupta said...

bahut badhiya charcha.

shikha varshney said...

bahut hi badhiya.suruchipurn

स्वप्न मञ्जूषा said...

aapka jawaab nahi lalai ji..
bahut dhaansoo charcha..

डॉ. मनोज मिश्र said...

बढ़िया..

girish pankaj said...

itanee mehanat bhi mat karo bhai, ki nazar lag jaye.. badhai... blog roopi sagar khangaalane k liye..

drsatyajitsahu.blogspot.in said...

बहुत ही मजेदार कार्टून है
बहुत अच्छा लेख है
सराहनीय प्रयास आपको बधाई

अजय कुमार झा said...

हमेशा की तरह एकदम झक्कास चर्चा ठोके हैं ललित भाई ...लगे रहिए एकदम अईसे ही ..आज सोच रहे हैं कि एक ठो चर्चा हम भी कर ही डालते हैं ..गौर किया जाए...पटरी नहीं चर्चा फ़रमाये हैं ...ठेलते हैं जल्दी ही मूड बना के
अजय कुमार झा

रानीविशाल said...

बढ़िया और विस्तृत चर्चा....आभार!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर चर्चा!

राज भाटिय़ा said...

बढिया जी ओर बहुत बढीया. राम राम

बाल भवन जबलपुर said...

Damdaar charcha ji

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! अति सुन्दर चर्चा!!

सूर्यकान्त गुप्ता said...

बहुत अच्छा लागथे
तोर चर्चा ल देख के
संगवारी मन के बारे मा मालूम पड़त जाथे

Unknown said...

bahut khoob

Akanksha Yadav said...

दिलचस्प चर्चा...अगली चर्चा का इंतजार.

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

बाप-रे-बाप......इस पढ़ाकू के बारे में हम कहें तो क्या कहें....ये तो हमसे भी बड़ा पढ़ाकू है.. ऐसी चर्चा भला हमसे क्यूँ ना हुई....!!

शरद कोकास said...

साल भर भी नही हुआ और आपने 22 ब्लॉग बना लिये । अब और किसी से पूछने की ज़रूरत क्या है कि ब्लॉगिंग क्या है ।

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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