आज के इस चर्चा में गांधी जयन्ती विशेष पोस्ट को शामिल किया जा रहा है .
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पूर्व और पश्चिम की संधि पर खड़े
युगपुरुष !
तुम सदैव भविष्योन्मुख हो,
मनुष्यत्व की सार्थकता के प्रतीक पुरुष हो,
तुम घोषणा हो
मनुष्य के भीतर छिपे देवत्व के
और तुम राष्ट्र की
भाव-प्रसारिणी प्रवृत्तियों का विस्तरण हो । हिमांशु भाई
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आज गांधी जयंती है। क्या यह संभव है कि आज के दिन हम खुद से वायदा करें कि
परिस्थितियां चाहे कितनी भी विपरीत क्यों न हो, अपनी बात मनवाने के लिए हम
हिंसा का सहारा नहीं लेंगे। अगर ऐसा संभव हो सके तो यह हमारी गांधीजी को
सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
-प्रतिभा वाजपेयी
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लालबहादुर शास्त्रीजी के गुणों की बात मैं नहीं कर सकती पर इतना अवश्य
जानती हूँ कि हिम्मत और मेहनत अगर ईमानदारी के साथ मिल जाए तो ग़रीबी पानी
भरती है और उँचाई नीचे गिर जाती है। प्रेमलता पाण्डेय
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बापू सिर्फ मेरे बापू ही नहीं हैं
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लकड़ी के डण्डों पर टिकी
मुरचहे टीन की छत , पोलीथीन की दिवारें !
जुलाई महीने की सड़ी उमस भरी रातों में
आसपास की बजबजाती नालियों में जवान हुये
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बापू आज फिर से हम ढोंग कर रहे हैं तुम्हारे गीत बेशर्मी के साथ गाये
जायेंगें हम कुछ भी कर ले पर तुम्हारी जयंती का ढोंग करना कभी नहीं भूलते
आख़िर हमें भी तो दुनिया को अपना मुंह दिखाना होता है कि हम ने अपने
राष्ट्रपिता को बहुत अच्छे से याद कर रखा है। वे हमारे तन मन में बसते
हैं... हमने घूसखोरी तक में तुम्हारे नाम का इस्तेमाल कर लिया है डा०आशुतोष शुक्ल
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वो झेल न पाये आँधी,
जो ले कर आये गाँधी,
बेकार हुई सब तोपें,
क्या खूब थी उनकी लाठी।
सदियों में वो दिन आया,
भारत ने हीरा पाया,
उसने जब आँख थी खोली,
इक नया सवेरा आया।
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आज गावों में विवादों के निपटारों के लिये मोबाइल कोर्टॊं की बात सामने
आयी है कि विवादों के निपटारों के लिये प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट वाली
अदालतों से निपटारा किया जायगा,ये अदालतें बसों से या सरकारी गाड़ियों से
गावों को जायगीं ।
इस संबंध में गांधी जी के विचारों का अवलोकन किया जाय तो स्पष्ट होगा कि
"हरिजन" (1939) में उन्होंने कहा था - "शक्ति का केन्द्र दिल्ली, बम्बई या
कलकत्ता जैसे शहरों में है मैं इसको सात लाख गांवो में बाट दूंगा ।"
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जल रहा है भारत,
जल रहें हैं गाँधी के सपने,
किसने लगायी यह खुशियों में
यह आग?
कितने विभाजन?
कितने आपातकाल?
कितने गोधरा?
और कितने अयोध्या?
क्यूँ है छदम-धर्म निरपेक्षता? महफूज अली
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जब खुशियाँ थी , तो पास कितने चेहरे थे ,
हमको लगता था, उनसे रिश्ते कितने गैहरे थे ,
दो घड़ी क्या मिला मैं ग़म से , साथी पुराने सभी मैं खो बैठा ।
हाथ लकीरों से भरे थे पहले , अब मगर छालो से भर बैठा ।
खूशबू सी आरही थी , जिन्दगी के गुलशन से ,
रोशन था हर नज़ारा , महके हुऐ चमन से ,
मुस्कुराते-मुस्कुराते क्या हुआ ,बस यूँ ही अचानक मैं रो बैठा ।
पत्थर तराशता एक शक्स , खुदा से मिलने की ज़िद कर बैठा । शुभम
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साली के बरतुहारी
अब हम अप्पन चउठकी साली के बिआह ला बरतुहारी के अनुभव सुनावइथी । इनखर
बरतुहारी में बहुत जगह जाय के मौका मिलल । बाकि दू जगह तो बड़ा अद्भुत
अनुभव होल । एगो जगह जब बातचीत चलित हल तब हम बातचीत के आखिरी दौर में
लड़कावाला के घर पर पहुँचली । हमरा साथे हमर ससुराल के चार बेकत हलन ।
हमरा पहुँचे के पहिले हमर ददिया ससुर आउ फुफेरा ससुर दु-तीन बइठकी
लड़कावाला के इहाँ कर चुकलन हल । जब हम अप्पन साथी सब के संगे भोर सात बजे
लड़कावाला के घरे पधारली तब लड़का के बाबूजी, हमनी के दरवाजा खटखटैला पर,
हाथ में एगो खाली तसला लेले आउ मुँह में कूची रगड़ते, केमारी खोललन आउ
बइठे ला इसारा कयलन । अँगना में मुँह से थूक-खखार फेंक के फिन ऐलन आउ ई कह
के चल गेलन कि हम दू मिनट में आवइथी । ऊ झटपट हमनी के मन बहलावे ला अप्पन
एगो दमाद के भेज देलका । घंटा-भर एन्ने-ओन्ने के बात होल, तब दमाद साहेब
फिन अन्दर चल गेला । लड़का के पिता जी से हमरा परिचय करावल गेल । पहिले तो
हम्मर ददिया ससुर जी रमायन के कुछ दोहा-चौपाई बाँचलन, दु गो उर्दू के सेर
सुनौलन, आउ अँगरेजियो में दु-चार गो बात कहलन । लड़का के पिता जी हाथ चमका
के आउ मुँह बिचका के कहलका - "हमरा दिमाग में ई बात के सुबहा बइठ गेल हे
कि टीपन गड़बड़ हे ।" हम उनखा हर तरह से समझइली, बाकि उनखा दिमाग से सुबहा
के कीड़ा नऽ निकलल । हमनी तब साफ कह देली कि खुद तकलीफ करके लड़की के देख
लेल जाय
कहानी एक मजनू के
सुनाता हूं तुमको मै दास्तां जुनूं की,
संग-संग वो दोनो बचपन से खेले थे
साथ ही सजाते अरमानो के मेले थे,
जब से था उन दोनो ने होश संभाला
दिलों मे थी उनकी चाहत की ज्वाला,
परिणय़ मे बंधने की जब बारी आई
अपनो को अपने दिल की बात बताई,
मगर रिश्ता ’बाप’ को यह मंजूर न था !
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अगर चिटठा जगत का सक्रियता क्रम देखे तो पहले ४० चिट्ठो के मालिक सब इतने
समर्थ जरुर हैं की १०० रुपए प्रतिमाह दे सके एक अग्रीगेटर की सुविधा उठाने
के लिये । रचना सिंह
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यह ख़बर वाक़ई हैरतअंगेज़ है कि चीनी दूतावास ने हाल ही में कुछ
कश्मीरियों को वीज़ा देने के लिए अलग पन्नों का इस्तेमाल किया है. यह
पासपोर्ट के ही पन्नों पर वीज़ा की मोहर लगाने की आम प्रक्रिया के बिलकुल
अलग है. हालांकि भारत ने इस पर सख्त ऐतराज़ जताते हुए चीन से शिकायत भी की
है...क़ाबिले-गौर है कि इससे पहले चीन ने ऐसी हरकतें अरुणाचल प्रदेश के
लोगों वीज़ा देने में भी की हैं.फ़िरदौस ख़ान
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कार्टून जगत
सत्य अहिंसा को पूजूँ या पूजूँ ए.के. सैतालीस को, झूठ खरीदे जाते अब तो,हिंसा की होती जय कारी,
स्वार्थ,मोह,माया से दबकर, मानव शब्द विलुप्त हुआ, दया किसी कोने में दूबका, तोड़ रही दम क्षमा बेचारी,
कितने बदल चुके है लोग,नर ही नर का दुश्मन है,दूभर हुआ साँस तक लेना,ऐसी मची है, मारामारी,
पता चला दो दिल रखते थे, वे भी अपने सीने में,छोड़ गये हमको दलदल में,कल तक बनते थे, हितकारी,
विनोद कुमार पांडेय
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जिसके आप हक़दार थे!अब देखिये ना आज ही आपका जन्मदिन है और सभी बस गांधी
जी के गीत गा रहे है!बापू से हमें भी बहुत प्यार है!पर सरकार है की सभी
कार्यक्रमों में आपको भूलती जा रही है!अब हम क्या करें ..जो आज ही दोनों
का जन्म दिन है!आप दोनों को हम कैसे भूल सकते है?पर माफ़ करना शास्त्री जी
आपको किसी पार्टी ने अपना आइडियल नहीं .माना तो..!
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कि आज अपने आप में तनहा है आदमी
अपने खुदा के नाम पर मरना तो है कबूल
इंसां से किस कदर यहाँ खफा है आदमी
अदा जी की रचना
सीने में इक सुराख है दर्दों के फौवारे
उठी है हूक दिल में ज्यूँ भरते हैं गुब्बारे
उनकी साफगोई के कायल हुए हैं हम
आँखों में झाँक कर कहा के तुम हो हमारे
न जाने कब उठे हैं, कितनी बार गिरे हैं
जीते हैं कितनी बार कितनी बार हम हारे
कुछ कह रही थीं आपके सीने की धड़कनें
नज़रें तो कर रहीं थी कोई और इशारे
ताऊ कौन है आखिर??
गुरु गुड़ रह गया और चेला शक्कर हो गया.
हमें देखो, तीन साल छः महिने हो गये कलम घिसते घिसते, तब कहीं जाकर कुछ ३४२ पोस्टें और एक रिकार्ड १५००० टिप्पणियाँ हासिल कर पाये और हमारे चेले ’ताऊ’ को देखो: १ साल से जरा ही उपर और ४०४ पोस्ट और शामिल हो गये आज गुरुजी के१५००० कल्ब में. हिन्दी ब्लॉग जगत में दूसरा बंदा, गुरु जी की राह पर चुपचाप चलता
हिंदी ब्लोगिंग मे प्रदुषण का लेवल बढा
अब चिठ्ठा-चर्चा भी विवादो से परे नही रही। कभी चर्चा में तो कभी टिप्पणी में, चर्चाकार शांतिप्रिय ब्लॉगर्स का नाम ले लेकर उन्हें उकसाने का काम लगातार करते रहते है ताकि वो भड़क उठें और बलवा मचे साथ ही साथ "इस चर्चा से अजी टिपण्णी चर्चा तो भूले बिसरे गीत बन चुकी है".. चच्चा टिप्पू सिंह बडे ही दुखी भाव से पोस्ट लिखते है, और ब्लोगिग की दुकान ही बन्द करना चाहते है। यह कैसी विडम्बना है की मुठ्ठी भर हिन्दी ब्लोगरो के संसार मे भी लोग मुखोटा लगाऍ हुऍ लिखियाते-टिपियाते घुमते है।
अब आज का नमस्कार
9 comments:
गांधी और शास्त्री जयंती पर ढेर सारी प्रविष्टियों में से चुनिंदा संकलन ।
अदा जी की कविता खूबसूरत है । आभार चर्चा के लिये ।
गांधी जयन्ती पर "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की"
बहुत सुन्दर रही है।
महात्मा गांधी जी और
पं.लालबहादुर शास्त्री जी को
उनके जन्म-दिवस पर नमन।
जबरदस्त चिट्ठाचर्चा.
चच्चा टिप्पू सिंह के दुख और क्षोब में हम शामिल हैं.
आपका आभार...बस, नियमित जारी रखे और टीम बनायें ताकि नियमितता बनी रहे. शुभकामनाएँ.
आज की शांति चर्चा अच्छी लगी.
अतिसुन्दर चर्चा ।
tippaniyon ka aur charchaoon ka ye daur...
..hindi blogging main kranit aane wali hai bhai...
tippu chacha se bhi kehna ki lage raho....
:0 ;) :) :P
...aur ismein se jo pasand aaiye chun lo....
ye tippani wahan jaake bhi de sakta tha....
...par isliye nahi di ki pata hai kal chap hi jaiyegi wahan bhi....
;)
आपका प्रयास बहुत ही सार्थक रहा, बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति के लिये आभार ।
बहुत अच्छी चिठा चर्चा मेरा सुझाव है कि आप किसी की चर्चा से इतेजित मत हो सब अपना अपना काम करते रहो आज कम से कम गाँधी ज्यंति पर तो शांन्त रहना चाहिये था? शुभकामनायें
आभार/ मगलकामनाऍ
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