आज सबसे पहले चर्चा की शुरुआत करते है हमारे अरविंद मिश्रा जी के ब्लॉग से , कल मिश्राजी के पिताजी का पुण्य दशाब्दि वर्षथा और मिश्रा जी के शब्दों में -
देखते देखते दस वर्ष होने को आयें उनसे विछोह के ! उनके व्यक्तित्व के कई
शेड थे -तत्कालीन कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में श्री
कल्याणमल लोढ़ा और आचार्य विष्णुकांत शास्त्री जी के साहचर्य में
विद्याध्ययन के बाद विगत शती के छठे दशक में वे गाँव क्या आये कि यहीं
गाँव के ही होकर रह गए ! उनकी रचनात्मक ऊर्जा कई दिशाओं में बिखरी -समाज
सेवा ,साहित्य प्रणयन ,संगीत की धुन- इन सभी दिशाओं में उनकी दखल बनती गयी
-मानस के अनन्य प्रेमी और रामकथा के प्रसार में पूरी तरह रमे हुए ! क्या
सरस्वती ,क्या धर्मयुग ,क्या दिनमान उनकी रचनाएं अपने युग की किन मशहूर
पत्र पत्रिकाओं में नहीं छपी -पर उन्हें चाकरी से एलर्जी थी ! हर कीमत पर
स्वतंत्र होकर जिए ! किसी की भी छत्रछाया नहीं स्वीकारी -आज उनके उस उद्धत
रूप और किसी मुद्दे पर हम बच्चों की मान मनौवल और उनका अपने स्टैंड पर
नुक्सान सह कर भी अडिग रहना आँखों में आँसू ला देता है !
शुभम आर्य ने हासिल किया द्वितिय महाताऊश्री सम्मान
ताऊ पहेली -२१, २२ और २३ को लगातार जीतकरपी सी गोदियाल साहब ने एक बुत ही काम का मुदा उठाया है और साथ में ये भी कहा है , डूब मरो चुल्लू भर दारु में
अन्नु भरि- भरि गे धानन की बाली मा ,
पिया पैंजनिया लैदे दीवाली मां ।
खैहैं मोहनभोग सोने की थाली मां ,
मोरी लक्ष्मिनियां चमकै दिवाली मां ।
तुम तो खुरपी - कुदरिनि मां ढ़ूंढ़ौ खुशी,
रोजु हमका चिढ़ौती है हमरी सखी,
चाव रहिगा न तनिकौ घरवाली मां ,
पिया पैंजनिया लैदे दीवाली मां ।
राकेश सिंह ने बात उठायी है शादी की आप भी पढ़ ले किस तरह कम उम्र के बच्चियों का विवाह आदमियों से कराय जा रहा है
फोटो में बच्चिया और उनके पति
आज उसके घर में चूल्हा नहीं जला
हांडी बर्तन सब कोसते रहे
अपने को
खैरात में मिला अनाज
लौटा जो दिया था...! हेमंत भाई
ईमानदारी और आस्था ने क्या दिया उसे
सिवाय आशा के
जी के अवधिया जी बात कर रहे है -
कांग्रेस के इतिहास को देखें तो स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है कि कांग्रेस ने सदा ही मुस्लिम तुष्टिकरण को बढ़ावा दिया है। सन् 1885 में, अंग्रेजी शासन व्यवस्था में भारतीयों की भागीदारी दिलाने के उद्देश्य से, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई। यह भारतीयों की संस्था थी। भारतीय का अर्थ है भारत में निवास करने वाला, चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान या अन्य।
किन्तु कांग्रेस के सदस्यों में मुसलमानों की संख्या बहुत ही कम थी।
मुसलमानों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए कांग्रेस ने बहुत प्रयास किए।
सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी के लिखे अनुसार - ”हम इस महान राष्ट्रीय कार्य में अपने मुसलमान देशवासियों का सहयोग प्राप्त करने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं। कभी-कभी तो हमने मुसलमान प्रतिनिधियों को आने-जाने का किराया तथा अन्य सुविधाएं भी प्रदान कीं।” सन्
1887 में बदरुद्दीन तैयबजी, 1896 में सहिमतुल्ला सायानी, सन् 1919 में
मोहम्मद बहारदुर, जो कि मुसलमान थे, कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने किन्तु
भारत के अधिकतर मुसलमान फिर भी कांग्रेस से नहीं जुड़ पाए।
अपने शास्त्री जी की एक और नायब प्रस्तुति -
जुगाड़ों में गुम हो गई प्राञ्जलता,
सिफारिस भी सीधे मड़क बन गई है।
नाजुक लता अब कड़क बन गई है।।
जहाँ न्याय, अन्याय पर ही टिका हो,
वो आजादी बेड़ा-गड़क बन गई है।
नाजुक लता अब कड़क बन गई है।।
फिर रहा था बादल बन गिरिशिखर के उपर,
देखी थी एक भीड़ अचानक से नीचे,
घेरे हुए थी एक स्वर्णिम नरगिस पुष्प को
नरगिस का पुष्प झील के किनारे, पेडों के बीच
वादा नही कर रही हूँ कोई तुमसे
क्यूंकी वादों की उमर बड़ी छोटी होती है
टूटने की खनक भी सुनाई नही देती
सारे सपने भी संग ले जाती है
चाहत का इरादा बाँध लाई हूँ
दिल में तुम्हारे लिएhttp://dusara-pahalu.
बिखर चुका है गरीबों का शिराजा बापू ।
कैसे रह पाये मुफ़लिस भी यहां जिन्दा बापू ।
पूँजीपतियों के अब चंगुल में है निजाम-ए-चमसलीम" src="http://kashivishvavidyalay.files.wordpress.com/2009/10/salim-002.jpg?w=300&h=225" alt="्सलीम शिवालवी" width="66" height="49">न ।
खुदकु्शी के सिवा अब कुछ नहीं चारा बापू । ।
ये चादर छीन लेते हैं, बिछौने छीन लेते हैं ।
हम गुनहगार हों, चाहे बीमार हों,
चाहे लाचार हों, चाहे बेकार हों,
जो भी हों चाहे, जैसे भी हों दोस्तों,
साथ ऐसे रहें, जैसे परिवार हों,
हरे पहले लार लार हुए
फिर सूख कर लटक गये
इंतेज़ार में,
जीभ पपड़ीदार हुए फिर
आस में भोजन के
मगर शर्म नही आयी उसे.
वो भीतर
आसन पे विराजमान
अपने
दप-दप करते चेहरे के साथ
मजे से
चढ़ावे खाता रहा.
चांदी सी रोशन वादी
सुर्ख लाल हो गयीं हैं,
सरहदें जोड़ती झेलम,
वादी में मौन हो गयी है
रहती थी जो अमन से यहाँ
जाने कहाँ वो शान्ति खो गयी है.
लगी है शायद नज़र कांगडी को
आंच से वो अब अंगार हो गयी है.
इश्क करे ऊ जिसकी जेब में माल बारे बलमूं
कदर गंवावै जो कड़का कंगाल बारे बलमूं
अरे इश्क करे ऊ जो दिल कै दिलदार बारे बलमूं
एजी राज़े इश्क क्या समुझै चुगुल गंवार बारे बलमूं
ज़र के बिना इश्क टें टें है, ज़र होवे तो जिगर बढ़ै
ज़र के बिना न रीझे गोरिया आशिक होय बेमौत मरै
घूमे आधी रात को चिडियाघर में!
चच्चा टिप्पू सिंहअब टेंपलेट का कहानी सुन लिया जाये....हमार
रोहित श्रीवास्तव आज सुबह सुबह ही एक ठो सीडी मा कुछ लेके आया और ऊ का
कोरेल उरेल ड्रा किये और डेढ मिनट मा इ ससुर टेंपलटवा बदल के धर
दिहिस..आपको पसंद आया क्या? और रोहित बाबा हमसे बोले..चच्चा अब हम पलक
झपकते ही बदल दिया करेंगे..आप कोनू टेंशनवा मत लिजियेगा. हम कहे कि हमें
का टेंशन है? टेंशन तो त ऊ मगरुरवा का है..ऊ टेंपलेटवा बदलेगा त तुम भी
बदल देना...
चच्चा टिप्पू सिंह की जय हो !! पंकज मिश्र
सतीश पंचम
हांलाकि यह पोस्ट मैंने Short Story के रूप में लिखा था, लेकिन नहीं जानता
था कि कभी इस तरह की छेडछाड वाली घटना कॉकपिट में वाकई घट सकती है।
फिलहाल ऐसी परिस्थ्ति में प्लेन को ऑटोपायलट मोड पर रख यदि दोनो ही पायलट
कॉकपिट से बाहर आ गये , ऐसे में यदि कॉकपिट के दरवाजे का ऑटोलॉक फिचर
काम कर गया होता तो प्लेन को बचाना मुश्किल था, क्योंकि तब दोनों में से
एक भी पायलट विमान की लैंडिंग कराने के लिये डैशबोर्ड तक नहीं पहुंच पाता।
देखा है ज़िन्दगी को कुछ इतना क़रीब से ।
चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से ।।
कहने को दिल की बात जिन्हें ढूंढ़ते थे हम,
महफ़िल में आ गए हैं वो अपने नसीब से ।
जनता बनाम पशु – एक व्यंग्य
भारतीय लोक तंत्र में कार्यपालिका और न्यायपालिका की समझ में थोड़ा फर्क
है। न्यायपालिका बार बार अपने निर्णयों में कहती रहती है कि संविधान के
अनुच्छेद 21 में जीवन के अधिकार का आशय पशुवत जीवन से नहीं है, अपितु
मनुष्य के प्रतिष्ठा-पूर्ण जीवन का अधिकार है। जबकि कार्यपालिका की समझ
कुछ अलग हट कर है। वह क्या है इसे खुल कर बताने की आवश्यकता नहीं है।
22 comments:
अति सुन्दर चर्चा।
आभार
हर बार की तरह चर्चा अच्छी रही । आभार ।
सातत्य रखिएगा । चिट्ठा चर्चा मेहनत वाला काम है । अभी तक आप करते जान पड़ते हैं ,कामना है करते रहें ।
आज तो बहुत ही विस्तृत चर्चा किये हैं, बहुत धन्यवाद,
रामराम.
chitthon ki mahfil sajaayein hain
aur charchaon ki barat bhi laayein hain..
bahut hi sahi chittha charcha rahi Pankaj ji...
बहुत सुन्दर चर्चा मिश्रा जी!
शुक्रिया!
चर्चा हिन्दी चिट्ठों की रोचक ही नही
अपितु सटीक और सामयिक भी रही है।
बहुत-बहुत बधाई!
चर्चा अच्छी है बस इस में रिक्त स्थान बहुत दिखाई दे रहा है उसे कम करने का यत्न करें।
विस्त्रत और बेहतरीन चर्चा.
nice
भाई वाह क्या बात है, लाजवाब रही अबकी ये चर्चा।
bahut badhiya charch hai .shub kamnayen
अच्छी रही यह चिटठा चर्चा भी ...!!
bahut achha laga.......hamesha aana bana rahega
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर है चिठ्ठा चर्चा .......बहुत बहुत धन्यवाद!
बारीक और विस्तृत चर्चा
सफ़ल बहुपक्षीय चर्चा
ज़ारी रहे अपनी सी
केवल अपनों तक
न जाने वाली चर्चा
{अन्य चर्चा कर्ता व्यक्तिगत न लें}
पंकज जी लेकिन इस चिठ्ठे की लम्बाई अमिताभ की तरह क्यो है इसे जरा एडिट करके दीजिये . पढ़ने मे तकलीफ होती है ।
बढ़िया चर्चा...प्रस्तुति तारीफे काबिल है जी..
खूब बढ़िया ढंग से सब बढ़िया चर्चा एक ही जगह पर उपस्थित कराया आपने..
बहुत बहुत धन्यवाद..सराहनीय प्रयास..बधाई!!!
बढ़िया चर्चा सब एक ही जगह, इस नाचीज़ के लेख को आपने अपनी चर्चा में जगह दी इसके लिए आपका हार्दिक शुक्रिया, मिश्रा साहब !
achchhi charcha........bhadhai
Post a Comment