नमस्कार , इस रवीवारी चर्चा में आपका स्वागत है . चर्चा मै क्या करता हु , चर्चा तो अपने आप बन जाती है .
कभी कभी ऐसा भी होता है कि एक चिट्ठाकार की पोस्ट लगातार दो या तीन दिन भी हमारे ब्लॉग पर जगह दिया जात है जैसा कि आज हो रहा है .
ओम भाइ ने काफी सोचनीय बात कही है आप खुद पढ़ लो .
नींव में दबा दी गयी है
दुनिया की सत्तर प्रतिशत
कमजोर, कुपोषित और निशक्त आबादी
और बनाना चाह रहे हैं वे
तीस प्रतिशत लोगों के लिए
कुछ ऊंची मजबूत इमारतें
नादान !
- ओम भाई आपके बातो से सहमत हु . आज कल तो यही हर जगह चल रहा है गरीब रोटी के जुगाड़ में मर रहा है तो अमीर पैसे के नाते जान से हाथ धो रहा है , अगर ऐसा ही चलता रह गया तो हम लोग शायद एक दिन सभी सड़क पर आ जायेगे अमीर लोग पैसा बचाने के लिए और ग़रेब लोग पैसा लूटने के लिए . क्युकी खेल सब पैसे का ही है .
चलिए अगले चर्चा पर .
अरविंद मिश्रा जी कह रहे है फिल्म देखने के लिए और नामभी बता दी है फिल्म का वेक अप सिड. थोड़ी कहानी भी बता दियी है तो उत्सुकता ज्यादा हो रही है . आप भी देख लो .
वह लडकी,आई मीन नायिका (आयशा बनर्जी ) ,सिड की सहजता से प्रभावित तो है मगर उसे अपरिपक्व /बच्चा ही मानती है -एक दिन भावुक क्षणों में सिड को कह भी देती है कि तुम अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं हो -मुझे तो अपने पति के रूप मे कोई ऐसा चाहिए जो पूरी तरह परिपक्व हो-माको/माचो हो और जीवन के प्रति स्पष्ट मकसद रखने वाला हो ! और ऐसी झलक उसे अपने एडिटर इन चीफ में दिखती है लेकिन एक दिन अपने उसी एडिटर की झिड़क कि आयशा तुममे अभी भी पूरी मेच्योरिटी नहीं है से उसका मोहभंग होता है और वह फिर सिड की ओर उन्मुख हो जाती है -सिड भी तब तक बहुत बदल गया रहता है -आयशा के सामने अपने को साबित करने में दिन रात लगा रहकर काफी जिम्मेदार भी बन जाता है ,एक नौकरी भी पा जाता है -आखिर मुम्बई की बरसात में वे मरीन ड्राईव पर भींगते हुए जीवन भर के लिए आ मिलते हैं ! कहानी सुखांत है !
ताऊ जी पहेली बुझा रहे है अगर आप ने सही जवाब दिया है तो कल सोमवार को पढ़ लीजियेगा , ताऊ पहेली के विजेता ............... रिक्त स्थान की जगह अपना नाम लिख लीजिये .:)
वीर बहुटी पर निर्मला जी ने सारे स्त्री श्रृंगार केराहस्य बताये है खुबसूरत अंदाज़ में अप भी पढ़ लीजिये .
निष्ठामाँग माँ अक्सर कहतीअपने बालों मे इतनी लम्बी माँग मत निकाला करोससुराल का सफर लम्बा होता है. बाद मे जाना किइसका अर्थ् तुम तक पहुँचने मे एक कठिन और लम्बा रास्तातय करना है
बस मैने इस राह को सजा लियालाल् सिन्दूर सेताकि इस पर चलने मे मेरी ऊर्जा बनी रहेऔर तुम भी इस रंगोली पर चाव से अपने पाँव बढा सको और तब से मैने माँग मेसिन्दूर लगाना नहीं छोडा
बिन्दीशादी के बाद जान गयी थी कि मेरे माथे पर तुम्हारा नाम लिखा हैतुम ही मेरी तकदीर लिखोगे और माथे पर तुम्हारे हर आदेश के लियेपहले ही मोहर लगा दी
लेखन कारंत जी के लिये अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करना है । समग्र जीवन-दृष्टि के धनी कारंत वर्तमान को विगत के स्वीकार के साथ जीना चाहते हैं । पुरानी परिपाटी से उदाहरण लेना और फिर उसे वर्तमान जीवन की कसौटी पर कसना, प्रचलित मान्यताओं को ज्यों का त्यों न स्वीकारना बल्कि सातत्य में उनकी प्रासंगिकता का पुनरीक्षण करना आदि कारंत जी के व्यक्तित्व व उनकी सर्जना की अन्यतम विशेषताएं हैं, और इसीलिए वे विद्रोही हैं । विद्रोही हैं तो साहसी भी हैं - चौंतीस वर्ष की उम्र में तीन खण्डों के बाल-विश्वकोश का सम्पादन, उनतालीस वर्ष की उम्र में एक लघु शब्दकोश का निर्माण, सत्तावन वर्ष की उम्र में विज्ञान आधारित चार खण्डों का विश्वकोश विज्ञान प्रपंच का प्रणयन, तीन खण्डों की कृति ’भारतीय कला और मूर्तिकला’ की रचना आदि ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक.... क्यों अमावस में आशा लगाए हो तुम, चन्द्रमा बन्द है आज तो जेल में।तुम सितारों से अपना सजा लो चमन, आ न पायेगा वो आज तो खेल में। | रातों में तेरा ही ख्वाब ... जी.के. अवधिया | "प्यार" दिगंबर नासवा |
उसमें नहीं होता
ओजोन छिद्र का प्रभाव
नहीं होती है मात्रा
आर्सैनिक की पानी में
नहीं चिन्ता घटते जल स्तर की
नहीं है विषाक्त गैसों का प्रभाव
और कुछ भी नहीं होता क्षत-विक्षत......!
भोजपुरी गीतों में फूहड़पन की बात , सही भी है
गंवारों के लिए है भोजपुरी फिल्मों के गीत
अमिताभ श्रीवास्तव विवेचना कर रहे है ओबामा को मिली पुरस्कारों की.
ओम से नहीं, अब शांति ओबामा से मिलती है। इससे बडा चमत्कार और क्या हो सकता है कि जिसे दुनिया आठ-नौ महीने पहले तक जानती नहीं थी उसे शांति का सबसे बडा दूत बना दिया गया। जिसने अपने लिये, अपने कुनबे के लिये लडाई लड कर सत्ता हासिल की उसे दुनिया का महान शांति वाहक मान लिया गया। सच तो यह है कि अब मुझे काला जादू पर विश्वास होने लगा है। गोटियां फिट करने वाले फनकार की फतह कैसे होती है, जान गया हूं। यह भी समझ में आया कि दुनिया में नोबेल पुरस्कार आखिर नोबेल क्यों है? माफ करना 'बापू' आप गलत दिशा में थे, आपकी शांति, अहिंसा, सदाचार सबकुछ दुनिया के लिये, जनमानस के लिये था,
इसी कड़ी में गोदियाल साहब ने भी लिखा है कि -
नोबेल शान्ति पुरुष्कार २००९ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा को देने की घोषणा की खबर जनमानस के लिए यदि आश्चर्यजनक नहीं थी, तो सहज पचने योग्य भी नहीं थी ! एक वक्त था ,जब इस पुरुष्कार की सही मायने में एक अलग प्रतिष्ठा थी ! इंसान जिसे पाने के लिए अपने हुनर को तन-मन से अपने उद्देश्य में झोंक देता था, मगर कड़ी प्रतिस्पर्धा के बीच इसे बामुश्किल ही प्राप्त कर पाता था!
सावधान ! हे रघुवंश | हाथ जोड़ कर विनती करूँ मैं | |
अदा | अदा |
आगे दुबे जी है खिला रहे है जलेबी और बत रहे है जलेबी की विशेशताये---
सभी ब्लोगरो को आमंत्रण आयें और जलेबीयां खाये
जलेबी उत्तर भारत, पाकिस्तान व मध्यपूर्व का एक लोकप्रिय व्यंजन है। इसका आकार पेंचदार होता है और स्वाद करारा मीठा। इस मिठाई की धूम भारतीय उपमहाद्वीप से शुरू होकर पश्चिमी देश स्पेन तक जाती है। इस बीच भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, ईरान के साथ तमाम अरब मुल्कों में भी यह खूब जानी-पहचानी है। आमतौर पर तो जलेबी सादी ही बनाई व पसंद की जाती है, पर पनीर या खोया जलेबी को भी लोग बडे चाव से खाते हैं।
दिव्या की कुछ मीठी बातें मे आज बात कर रही है जानवर प्रेम की
ये ख्याल एक का एक मन में उत्पन होने हो रहे थे॥ समाज नही आ रहा था की क्या करूँ या क्या ना करूँ॥ फिर मैंने टेलीफोन डायरेक्टरी में डायल किया और उनसे एनीमल केयर वालो का नम्बर लिया और उनको फ़ोन करके बुलाया ॥ उनको आते आते लगभग आदा घंटा हो गया था और ऐसे में उस बछडे की हालत और कराब हो रही थी॥ गाये ने अपने बच्चे को और कस कर पकड़ रखा था मनो अभी वोह रो पड़ेगी ॥ उसकी आँखों से ऐसा साफ़ व्यतीत हो रहा था
वो छप छप की आवाज़
वो कोमल अहसास ठंडक दिलाता हुआ
मेरे पैरों के तलों को
वो नाजुक पत्तियां घास की
जिनसे लिपटी थी रात गिरी ओस की
वो बूँदें ||
--
सुन शब्द राम के | बम मिलते ही निष्क्रिय होने तक चूहा दो पैरों पर खड़ा रहेगा चूहे बोलें बम बम | जीवन-सूत्र"रास्ता खुद से बनाना चाहिए,लक्ष्य पर नज़रें जमाना चाहिए,है सदा संघर्ष जीवन |
दिन निकलता गया,
रंग भरते गये,
मैं निखरता गया ।
अब आज का नमस्कार !!!आपका आने वाला सप्ताह शुभ हो !! एक नजर बोदूराम के शयरी पर भी डालिये
जवाबी शायरी प्रतियोगीता बोदूराम के गाँव में
ना तो तू शायर है और ना ही शायर का भतीजा है ..
ना तो तू शायर है , और ना ही शायर का भतीजा ..
तू तो सिर्फ मेरी , एक भूल का नतीजा है ....
सामने से आये हुए पहलवान मौन धारण कर लिए और निकल पड़े .
अब बारी आयी दुसरे पहलवान की मतलब शायर बाज की , जो कि अभी नयी नयी लेटेस्ट टेक्नालाजी की शायरी शुरू किये है . आते ही फायर किया .
ना तो तेरी जात है शायर की ,
ना तो तेरी औकात है शायर की ,
बोदूराम बोले , आओ मौलबी साहब सुनाते है अपनी जात पात शायर की ...
16 comments:
सारे अच्छे पोस्टों की चर्चा हो गयी .. आभार!!
पकंज जी, आपकी ये चित्रों के साथ चिट्ठा चर्चा की प्रस्तुति इसे कमाल की बना देती है..आज भी बहुत बढ़िया मटेरियल सेलेक्ट करके लाएँ है आप...और धन्यवाद जी आज आपने तो हमारी भी फोटो चिट्ठा चर्चा पर चमका दिया..बहुत बहुत धन्यवाद पंकज जी..
भाई वाह बहुत खुब इस बार भी चर्चा मजेदार रही।
आज के चिटठा चर्चा की छवि मनोहारी है
पंकज जी अब तो मेरे टिपण्णी की बारी है......
"चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होती जा रही है।
आपका परिश्रम रंग ला रहा है पंकज मिश्र जी!
चर्चा में लगीं सभी पोस्ट स्तरीय हैं।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
SUNDAR CHARCHA HAI ..... AAJ TO HUM BHI SHAAMIL HAIN IS CHARCHA MEIN ... DHANYVAAD ...
AAPKE SHER BHI KMAAL KE HAIN ...
aapki charcha kai rachnaaon ke kareeb lati hai,shukriyaa
बहुत शानदार चर्चा और लिंक्स.
सुरुचिपूर्ण बटोरन और कड़ियाँ !
इस बहुत ही सुन्दर चर्चा के लिए धन्यवाद!
बढिया चर्चा..जिसके जरिए कईं अच्छे लिंक मिल गये....
vaahह आज तो चर्चा के साथ जलेबियाँ भी प्रोस रखी हैं हम ने तो कल ही खा ली थी। धन्यवाद चर्चा बहुत अच्छी लगी
क्या बात है..इतनी फ़ुलझड़ियाँ?? दीवाली कब है..कब है दीवाली? ;-)
अरे वाह, एक अनूठी चिट्ठाचर्चा यहाँ भी !
आज ही देखा, प्रसन्न तो हुये पर खिन्न भी हुये ।
हम आम ब्लागर्स और पाठकों को इसके प्रकाशन की सूचना से वँचित रहना पड़ा !
प्रयास रहेगा, पिछले सारी चर्चाओं को पढ़ने का, वैसे सरसरी बानगी तो एक स्वस्थ सँकेत दे रही है ।
अरे वाह !!! आज तो यहाँ मेरी भी चर्चा हो गयी, बहुत बहुत धन्यवाद पंकज जी और सारे लिंक्स अच्छे थे ।
बहुत ही सुन्दर और रोचक, हार्दिक शुक्रिया!
Post a Comment