नमस्कार , चर्चा हिन्दी चिठ्ठो के इस अंक के साथ मै पन्कज मिश्रा आपके साथ , आपके चिठ्ठो को लेकर …..
आज कुछ नया प्रयास किया हु आप हमे बताइयेगा कैसा लगा …
चर्चा की शुरुआत करने से पहले सुश्री अल्पना वर्मा जी के सवाल का जवाब -
अल्पना जी का सवाल था कि , पंकज यह चर्चा तुम अकेले करते हो या यहाँ भी टीम है ?
जवाब - अल्पना जी सबसे पहले तो आपको नमस्कार , अभी तक तो यह चर्चा मै अकेले करता आ रहा हु अगर कोई इसमे सहयोग करना चाहे तो मेरा निमंत्रण खुला है हमेशा बस मुझे एक टिप्पणी में बता दे मै उनका वो टिप्पणी पब्लिश नहीं करूगा ...... धन्यवाद ..
अब चलते है चर्चा की तरफ , रूपचंद शास्त्री , अदा जी , उन ब्लॉगर में से है जो अपनी एक ना एक रचना प्रतिदिन जरुर प्रस्तुत करते है .
तो चलिए शुरुआत भी यही से करते है ,,,,
माँ ने दी थी सीख, मिलकर साथ में रहना सभी, | बहुत पुरानी बात है | तभी तो, |
रूपचंद शास्त्री " मयंक " | अदा | सतीश पंचम |
अंशुमाली रस्तोगी जी है बरेली उत्तर प्रदेश से कह रहे है -गांधी नहीं, राहुल गांधी बनने की तमन्ना है
मैं गांधी नहीं बनना चाहता। गांधी बनना बहुत कठिन है। हाथ में लाठी। शरीर पर धोती। व्यवहार में सादगी। चाल में चपलता। बात-बात में अनशन। यह सब गांधी ही कर सकते थे, मैं नहीं। पहली बात। गांधी बनने को मेरा शरीर ही इज्जात नहीं देगा। गांधी अपने जमाने के 'संत-पुरुष' थे। मैं इस जमाने का 'सिर्फ पुरुष' हूं। गांधी ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। मैं अपने लिए ही नहीं लड़ सकता। इसलिए मैंने हर दम यह कोशिश की है कि मैं गांधी से कभी प्रभावित न हूं। दरअसल, उनसे प्रभावित होने के बढ़े खतरे हैं।
रुद्र की कहानी सुनिए -रूद्र आज सुबह नाश्ता करने बैठा तो उसे नास्ता पसंद नहीं आया.नाश्ते में पराठा, दही था शायद इसलिए ।
फ़िर तमाम जतन किए गए की कुछ तो खा ले लेकिन नहीं ....तब हार कर मम्मी ने ब्रेड टोस्ट , सेब
और अमरुद का जूस दिया गया तब जा कर महा महिम ने खाया । इसके बाद पापा जी की विशेष
टिपण्णी भी मम्मी जी को प्राप्त हुई ।" अरे भाई समझो ......यहाँ एक अंग्रेज पैदा हो गया है मम्मी का देसी नास्ता नहीं खायगा "
और दादी जी ताली मार कर खिलखिला उठी और मम्मी शर्मागई :)
अब आगे चलते है ..
ख्याल ही ... हमारा संचित धन है , उसी से ख़ुशी मिलती है, आंसू मिलते हैं, भूख मिटती है.... ख्यालों में सबकुछ कभी अपना, कभी जुदा होता है | जारी है.. रानी केतकी की कहानीकहानी के जीवन का उभार और बोलचाल की दुलहिन का सिंगार किसी देश में किसी राजा के घर एक बेटा था । उसे उसके माँ-बाप और सब घर के लोग कुंवर उदैभान करके पुकारते थे । सचमुच उसके जीवन की जोत में सूरज की एक स्त्रोत आ मिली थी । उसका अच्छापन और भला लगना कुछ ऐसा न था जो किसी के लिखने और कहने में आ सके |
संतोष सिंह जी बता रहे है भारत के दुर्दशा , कुछ इस तरह
सोच रहे हैं और डंके के चोट पर बोल भी रहे हैं। कभी पटना मेडिकल कांलेज देश ही नही दुनिया में ख्याति प्राप्त था आज भी अमेरिका और इंग्लैंड के बड़े मेडिकल कांलेज में यहां से पढे डांक्टर मिल जायेगे।वाकिया दो तीन दिनों पूर्व का ही हैं मेरा आंफ था आराम से घर पर मस्ती कर रहे थे और नानभेज बनने का इंतजार कर रहा था जैसे ही कुकर खुला डाईनानिंग टेबल पर बैठ गया जमकर खाया एक तो डियूटी पर नही जाने का सकुन था दूसरा प्रिय भोजन खाये जा रहा था इस बीच कई बार मोबाईल की घंटी बची लेकिन खाने की मस्ती में घंटी की आवाज मानो कान तक पहुंच ही नही रही थी।खाना खत्म करने के बाद जैसे ही विस्तर पर आराम करने पहुंचा फिर मोबाईल की घंटी बची। पुरी खबर वहा पढ़े जहां मुर्दे की भी बोली लगायी जाती हैं
मक्का एक लाख रुपए किलो ......राहुल बाबा अगर किसानों, गरीबों की जिंदगी की वास्तविक दिक्कतें समझना चाहते हैं और सही मायने में राजनीति को गरीबी हटाने से जोडना चाहते हैं तो उन्हें किसान की उपज और बाजार में उसके उत्पादों की कीमतों में हजारों गुने अंतर को पाटने पर काम करना होगा। राहुल से कांग्रेस के विरोध ी दलों के नेताओं को भी उम्मीद जगी हैं, लेकिन उम्मीद ये की जाना चाहिए कि उनकी यह दलित घरों में जाने की प्रायोजित किस्म की मुहिम वाकई बदलाव की वजह बन पाए। अन्यथा कलावती के यहां भी वे गए थे और कलावती खुश तो कम से कम नहीं ं ही है।
आदमी की पूंछ और पूंछ हिलाने की आदतअकबर इलाहाबादी ने एक शायरी में व्यंग्य करते हुए डार्विन के पुरखों के लंगूर होने पर सवाल उठाया था। हालांकि वैग्यानिक तथ्यों को मानें तो बहुत पहले आदमी को भी पूंछ हुआ करती थी। तब भगवान ने पूंछ की जरूरत महसूस की थी और सबको पूंछ दिया। बाद में भगवान को लगा होगा कि अब आदतें बदल गईं आदमी सभ्य हो गया, इसे पूंछ की जरूरत नहीं है और आदमी से पूंछ छीन ली।
पैंतरेबाजियां ड्रामेबाजियां लफ्फाजियां और चालबाजियां हर दल का दिनमान है सारे दलों का अपना-अपना योगदान है और दलों की इसी दलदल में अपना हिंदुस्तान है बगल में छुरी मूंह में राम हाथ में रम मन में काम अनाचार है ... | `तितली के पीछे जो भागी.. वो मेरी नानी की बिटिया झाडू, पोंछा, चूल्हा, बर्तन, जीवन भर चलती मेराथन आज भी पौ फटते उठती है चौके चूल्हे में जुटती है | किताबें बाट जोहती हैं |
योगिन्द्र मोदगिल जी | माँ की मैराथन.... | M VERMA |
सभ्य समाज के ऊपर तमाचा
उत्तर प्रदेश में आतंकवाद के नाम पर फर्जी गिरफ्तारियों को लेकर सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायधीश आर. डी. निवेश कमेटी का गठन किया था गिरफ्तारियों की जांच से आतंकवादी फर्जी गतिविधियाँ रुक गयीं तथा फर्जी एनकाउंटर्स भी लगभग बंद से हो गए कचेहरी सीरियल बम्ब विस्फोट कांड के अभियुक्त मोहम्मद खालिद मुजाहिद की गिरफ्तारी 22 दिसम्बर 2007 को बाराबंकी रेलवे स्टेशन पर आर. डी. एक्स व ड़िकोनेटर की बरामदगी के साथ दिखाई गई थी सूचना के अधिकार के तहत 15 सितम्बर 2009 को क्षेत्राधिकारी पुलिस मड़ियाहूँ जिला जौनपुर ने लिखित रूप से सूचना दी है कि 16-12-2007 को शाम 6:30 बजे एस टी एफ द्वारा खालिद मुजाहिद को मड़ियाहूँ बाजार जिला जौनपुर से गिरफ्तार किया था जो अपराधिक मामला बनता है इसलिए आगे की सूचना नही दी जा सकती है
जे.एन. यू में मेरी पहली anchoring जबरदस्त सराही गयी, माँ शारदा को प्रणाम. प्रो. घोष की रसिकता पर मैंने यूं चुटकी ली : "..बदन होता है, बूढा, दिल की फितरत कब बदलती है, पुराना कूकर क्या सीटी बजाना छोड़ देता है....." (संपत सरल) खूब compliments मिले. मुझसे जुड़े सभी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष को मेरा नमन, धन्यवाद. मुझे जो एक तरह की cultural भूख लगती रहती है, इसने संतृप्त किया. निष्क्रिय नहीं रहा इन दिनों. Research, Blogging आदि में उलझा रहा और बाकि समयों में चीनी खाने और गन्ना बोकर, चूसने में अंतर है, नायपाल जी.
नंगे के साथ क्यों हो रहे हैं नंगे
तो मित्रों हमें इस बात पर ध्यान देना बंद करना होगा कि कौन कितना गंदा लिख रहा है। हमें किसी ने एक बार एक बात बताई थी कि अगर कोई इंसान आप को गाली दे रहा है तो आप उसे कबूल ही न करें। जब आप उसकी गाली को कबूल ही नहीं करेंगे तो वह आपके आएगी ही नहीं। इसका मतलब है कि वह गाली उसी के पास रह जाएगी। अगर कोई किसी के धर्म के बारे में उल्टा-सीधा सोचता या फिर लिखता है तो किसी के लिखने मात्र से कोई धर्म कैसे खराब हो सकता है।
ये तस्वीरें आंखें गीली कर देती हैं !
इस स्लाईड-शो के बारे में मेरे पास कहने लायक कुछ भी नहीं है ----बस, केवल आप इसे इत्मीनान से देखें । यह देख कर अगर आप की आंखें भी नम हो जाएं तो मुझे क्षमा कीजिये।
"चोरो के पैसो पर ऐश करता एक देश !"
कितनी हास्यास्पद बात है कि हम लोग अपने देश से धन चोरी करके ले जाकर एक विदेशी देश के हवाले कर देते है और वह मजे में बैठकर हमारे उस चोरी के माल से अर्जित कमाई से ही मोटा सेठ हुए जा रहा है और ऐश कर रहा है ! आइये एक नजर कुछ उन आंकडो पर डाले !
२००६ में प्रकाशित कुछ आंकडो के हिसाब से स्विस बैंक में शीर्ष पांच चोरो में से भारत के चोर सबसे ऊपर थे :
स्विट्जरलैंड में जमा शीर्ष पांच देशो के खाताधारियों का धन :
नारी ब्लाग
दीपावली पर एक मुहीम चलाये - भेट स्वदेशी दे
आप से आग्रह हैं की हो सके इस दिवाली उन जगहों से समान ले जहाँ हमारे अपने लोगो की बनायी वस्तुए मिलती हैं । मै आज खादी ग्राम शिल्प से बहुत सा समान लाई । नैचुरल चीजों के फैशन को देखते हुए वहाँ तरह तरह के शैंपू , साबुन और सौन्दर्य प्रसाधन जो बहुत कम पैसे के हैं । एक नैचुरल साबुन की टिक्की महज ४० रुपए की हैं जो माल मे २०० रुपए की मिलती हैं क्युकी वो ईजिप्ट या ग्रीस से इंपोर्ट की होती हैं । गिफ्ट पेक भी मिल रहे हैं ।
एक क्यारी फूलों की | कहींपहेली नहीं औलाद की मेरे बिन औकात | एक अजीब सा खुमार छाया है , |
एक सपना परी का… | औटो चलो कपास | एहसास ... |
कैसा लगा हमारा आज का अंक ?
अब आज का नमस्कार!!
20 comments:
क्या बेहतरीन चर्चा की है...हमने तो ब्लॉगवाणी के डाऊन होने के चक्कर में यहीं से सब जगह फेरा लगाया. आभार. जारी रहिये. बढ़िया चर्चा कर रहे हैं. अब टीम बनाईये ताकि नियमित रहे.
पंकज भाई !
लोग साथ आते जांय और कारवां बनता जाय ।
चर्चा का नया अन्दाज बेहतर रहा ।
वाह....बहुत बढ़िया!
"चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" में तो आज दीपावली की जगमग
स्पष्टत: परिलक्षित हो रही है।
ईश्वर सबके जीवन को हमेशा इसी तरह खुशियों से जगमग करें।
नये रूप मे "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" बहुत सुन्दर बन पड़ी है।
पंकज मिश्र जी!
आपकी इस लगन और परिश्रम की मैं सराहना करता हूँ।
बहुत उच्च कोटि की चर्चा करते हैं आप. स्तर दिनोदिन उन्नत होता जारहा है. अन्य चर्चाकार साथ लेने की आपका फ़ैसला उत्तम है. शुभकामनाएं.
रामराम.
पंकज जी मैं भी अन्य मित्रों की तरह आपका और आपकी चर्चा का कायल होता जा रहा हूं। आप दिनोंदिन इस क्यारी को अपने अथक श्रम से सींच रहे हैं ये काबिलेतारीफ़ है, आप देखियेगा ये क्यारी, पहले उपवन, फ़िर बगिया, फ़िर बाग और बाद में चारों तरफ़ हरियाली फ़ैलाने वाला सुंदर वन साबित होगा।हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं। टीम में अपनी तरह ही कर्मठ ब्लोग्गर साथियों को साथ मिला कर इसे आगे बढाते रहें।
पंकज जी,
आपकी पोस्ट आज खूब जगमगाई है
अनेकों अनेक फुलझडी लगायी है
रंगों की मनोहर छटा बिखराई है
और संग संग चिटठा चर्चा चलाई हैं
आपको दीपावली की बहुत बहुत बधाई है
muhim ko yahaan daenae kae liyae thanks
चिट्ठा चर्चा करने में आपलोग बडी मेहनत कर रहे हैं .. पर हमारे लिए यह जानकारी बहुत उपयोगी होती है !!
आपकी चर्चा तो हमेशा ही धाँसू रहती है। कल किसी ब्लाग पर जा नहीं पाई तो आपके माधयम से देख लेते हैं आभार्
वाह....बहुत बढ़िया!
आपको दीपावली की बहुत बहुत बधाई .
अरे वाह, बेहतरीन चर्चा .. और दीपावली ले आउट के बीच खड़ी हैं, ’ रानी केतकी !’
रानी केतकी को अँतर्जाल पर रखने में मेरा मँतव्य सन 1801-1803 के दौरान बोली जाने वाली हिन्दी और किस्सागोई शैली की एक बानगी पेश करने का ही रहा है । यह अलग बात है कि तब तक हिन्दी लेखन के लिये देवनागरी को पूरी तौर पर अपनाया न जा सका था, और उर्दू लिपि का बोलबाला था । यानि की साड़ी में न सही, सलवार कुर्ते में ही यह है तो हमारी हिन्दी ही !
अरे वाह पंकज जी आपके प्रयासों से ये ब्लॉग तो 'must read' ब्लोग्स का बेहतर एग्रिगेटर बनता जा रहा है..वाकई...
अरे वाह पंकज जी आपके प्रयासों से ये ब्लॉग तो 'must read' ब्लोग्स का बेहतर एग्रिगेटर बनता जा रहा है..वाकई...
पंकज जी आपका तकनीकी ज्ञान भी अब चर्चा में चार चाद लगा और फुलझडिया छोड़ रहा है ! बहुत बढियां ~! दीपावली की शुभकामनाएं !
पूरी चर्चा के मध्य मैं यही सोचती हूँ कि कितनी बारीकी से आप हर ब्लॉग का निरीक्षण करते हैं ........
कलम सबकुछ समेट लेती है,और बहुत ही खूबसूरती से
AAJ KI CHARCHA BAHOOT HI JORDAAR RAHI PANKAJ JI .... BAHOOT SAMAY LAKAANA PADHTA HOGA ITNI CHARCHA KE LIYE .... AABHAAR HAI AAPKA
बहुत खूब!
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति.
कई ब्लॉग कवर कर लिए हैं आप ने.
मेरे सवाल का जवाब देने के लिए आभार,
शुभकामनायें हैं ki आप का यह प्रयास सफल हो आप का कारवां बने और आगे बढ़ता रहे.
वाह... चर्चा भी बढ़िया और प्रस्तुतिकरण भी बहुत उम्दा..
bahi alpna ji ke prashn ke madhyam se pata chala ki aap ye bhagarati prayas akale karte hain....
....aur formatting aadi to umda hain....
....diwali wali !!
kisi bhi prakar ke sahyog hetu bataiyen !!
नमस्कार पंकज जी,
व्यस्त रहने के कारण ब्लॉग जगत के चुनिन्दा लेखकों को पढ़ पाना भी मुशील होता है| थोडा बहुत समय लिखने के लिए ही निकल पता हूँ| और इसी बात के लिए आपका तहे दिल से धन्यवाद करता हूँ "चर्चा हिंदी चिट्ठो की" के लिए| सबको न पढ़ पौन पर इतना ज़रूर है की कहाँ क्या हो रहा है इसका मालुम अब आपकी चर्चा से हो जाया करेगा| मेरे ब्लॉग को चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद| मैं अपने एक और ब्लॉग का लिंक भेज रहा हूँ, हो सके तो इस पर भी एक नज़र ज़रूर डालियेगा... http://aawazein.wordpress.com
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