अंक 52 प्रस्तुतकर्ता- डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
अभिवादन के साथ आपका अभिनन्दन!
"चर्चा हिंदी चिट्ठो की" के इस अंक में डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" आप सब का स्वागत करता है ...
अब चलते है चर्चा के पहले चिट्ठे की ओर ....ज्ञानदत्त पाण्डेय की मानसिक हलचल "उत्क्रमित प्रव्रजन" पर
एक योगी का आश्रम है, उस गांव के पास। बहुत सम्भव है कि मुझे एक नये (आध्यात्मिक) क्षेत्र की ओर रुंझान मिले उस गांव में रहने से। पर वह क्या एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है उत्क्रमित प्रव्रजन का?! एक प्रमादग्रस्त 28 BMI की काया बिना बेसिक मेटीरियल कम्फर्ट के स्पिरिचुअल डेवलेपमेण्ट कर सकती है। कितने का सट्टा लगायेंगे आप? :-गांवों से शहरों की ओर तेजी से आ रहे हैं लोग। होमो अर्बेनिस (Homo Urbanis) एक बड़ी प्रजाति बन रही है। पर हमारे शहर उसके लिये तैयार नहीं दीखते। शहर के शहरीपन से उच्चाटन के साथ मैने उत्क्रमित प्रव्रजन (Reverse Migration) की सोची। इलाहाबाद-वाराणसी हाईवे पर पड़ते एक गांव में बसने की। वहां मैं ज्यादा जमीन ले सकता हूं। ज्यादा स्वच्छ वातावरण होगा। पर मैं देखता हूं कि उत्क्रमित प्रव्रजन के मामले दीखते नहीं। लगता है कहीं सारा विचार ही शेखचिल्ली के स्वप्न देखने जैसा न हो।.....................................
सूर्यपुत्र महारथी दानवीर कर्ण की अद्भुत जीवन गाथा “मृत्युंजय” शिवाजी सावन्त का कालजयी उपन्यास से कुछ तथ्य
मृत्युंजय मतलब होता है मृत्यु पर विजय। मैंने अपना स्नातक हिन्दी साहित्य में किया इसलिये हिन्दी साहित्य पढ़ने में बहुत ज्यादा रुचि है। चूँकि साहित्यिक किताबें बाजार में बहुत ही दुर्लभ हैं और उस समय हमारी किताबें खरीदने की इच्छाशक्ति भी नहीं थी। हमारे पिताजी को शुरु से ही साहित्यिक किताबें पढ़ने का शौक था तो हर जिला मुख्यालय में शासकीय वाचनालय एवं पुस्तकालय होता है, बस वो लाते थे और हम भी पढ़ते थे, एक बार पढ़ने का सफ़र शुरु किया तो वो आज तक रुका नहीं है, हिन्दी के लगभग सभी साहित्यकारों को पढ़ा जिनकी किताबें पुस्तकालय में उपलब्ध होती थीं। कुछ किताबें ऐसी होती थीं जिसके लिये रोज चक्कर लगाने पड़ते थे।..................
-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-0-अब देखिए- अपने "सारथी" वाले शास्त्री जे.सी.फिलिप आपके लिए क्या लेकर आये हैं ?
पिछले कई दिनों से मैं भारतीय शिक्षा व्यवस्था की शोचनीय हालात के बारे में बता रहा था. शिक्षा की इस दयनीय हालत के लिये कई प्रकार के लोग जिम्मेदार हैं और इन में से एक है शैक्षणिक संस्थानों से संबंधित वे बाबू लोग और कर्मचारी जो बात बात पर अडंगा डालते हैं. उनको शिक्षादीक्षा से कुछ लेनादेना नहीं होता है, बस अपनी तनख्वाह सूतते रहते हैं और देश की बौद्धिक संपदा को कंपोस्ट में बदलते रहते हैं. मेरा एक अनुभव जरा सुन लीजिये.
मैं शुरू से ही विज्ञान और वैज्ञानिक अनुसंधान के प्रति समर्पित एक विद्यार्थी था. सन 1981 से लेकर 1990 तक कठोर अनुसंधान करने के बाद 1990 में अपने प्रोफेसर एव अन्य अध्यापकों की पूर्ण सहमति से थीसिस की तीन प्रतियां विभागीय कार्यालय में जमा कर दीं. एक हफ्ते के बाद कांउसलिंग में उन्नत अध्ययन के लिये वजीफे पर अमरीका जाना तय हो चुका था. भौतिकी विभाग ने उसी दिन थीसिस की तीनों प्रतियां विश्वविद्यालय पहुंचा दीं........................................................
आज दीवाली है, खासा अकेला हूँ. सोचता हूँ, ये दीवाली, किनके लिए है, किनके लिए नहीं. एक लड़की जो फुलझड़ियॉ खरीद रही है, दूसरी बेच रही है, एक को 'खुशी' शायद खरीद लेने पर भी ना मिले, और दूसरी को भी 'खुशी' शायद बेच लेने पर भी ना मिले. हम कमरे साफ कर रहे हैं, चीजें जो काम की नहीं, पुरानी हैं..फेक रहें हैं, वे कुछ लोग जो गली, मोहल्ले, शहर के हाशिये पे और साथ-साथ मुकद्दर के हाशिये पे भी नंगे खड़े रहते हैं, उन्हीं चीजों को पहन रहे हैं, थैले में भर रहे हैं...ऐसे देखो तो कबाड़ा कुछ भी नहीं होता...ये भी सापेक्षिक है. २०,००० हो तो एक कोर्स की कोचिंग हो जाए, पढ़ा पेपर में कि--२०,००० के पटाखे भी आ रहे हैं, बाज़ार में. दीवाली, होली तो जैसे कोई और बैठा कहीं से खेल रहा हो जैसे..हम पटाखे, बंदूख, पिचकारी, रंग बनकर उछल रहे सभी........................
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गोपू बना 'हनुमान'...खुशदीप
भगवान श्रीराम अयोध्या लौट चुके हैं...उनके स्वागत में घर-घर दीप जलाए जा रहे हैं...यही प्रार्थना है कि हमारे अंदर के राम भी हमारे अंतर्मन के अंधकार को दूर करें...अगर ये राम हमें मिल गए तो दीप से दीप जलते हुए दुनिया का अंधकार अपने आप ही दूर हो जाएगा...इसी कामना के साथ सभी ब्लॉगर भाई-बहनों को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएं...साथ ही पिछले दो महीने में ब्लॉग जगत में मुझे जो प्यार मिला...उसके लिए शब्दों में क्या कहूं...बस दिल की बात दिल से ही समझ लीजिए...
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और पराया देश से राज भाटिया जी लिखते है-
आप इस चित्र को बहुत ध्यान से देखे, इसे बडा कर के भी देख सकते है, यह जो लाईन साईड मै आ रही है लम्बी सी ऊपर से ले कर नीचे, यह है मेरी कठिनाई, पता नही क्यो आ रही है मेने अपना गार्फ़िक कार्ड भी चेक किया, यानि इन लेपटाप को मेने मोनिंटर से जोड कर देखा, तो वहां यह लाईन नही आ रही, तो क्या यह लाईन लेपटाप के मोनिंटर के कारण आ रही है, अगर इसे यहां ठीक करवाऊ तो उस से अच्छा तो मै एक नया लेपटाप ले लूं, लेकिन यह लेपटाप भी पुराना नही, करीब ३ साल पुराना है, ओर नया देखा विंडियो ७ पसंद भी आया, लेकिन मंहगा है करीब ८०० € का. ओर मेरे खर्च ओर भी बहुत से है, तीन बार तो भारत ही आ चुका हुं, क्या करुं?..................
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"नन्हा-मन" पर सीमा सचदेव आपको पते की बात बता रही है-
गोवर्धन पूजा
नमस्कार बच्चो , मजे तो खूब किए न दिवाली पर ,घर मे पूजा भी की ,चलो अब कुछ पेट-पूजा भी हो जाए अगर अच्छे पकवान खाना चाहो तो चलो मेरे संग.वृन्दावनसोच कर ही मेरे मुँह मे पानी भर आया आपको पता है न कल मैने बताया था आपको कि हर वर्षदीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा होती है और भगवान को छप्पन भोग (५६ प्रकार के पकवान ) लगाया जाता है उत्तरी भारत मे इसे अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता है और यह दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप मे भी मनाया जाता है विश्वकर्मा ने बहुत सारे नगर बनाए थे ,इस लिए आज का दिन उस की याद मे मनाया जाता है हम बात कर रहे थे गोवर्धन पूजा की तो चलो आज मै आपको वो कहानी सुनाती हूँ जिसके लिए हर वर्ष गोवर्धन पर्वत की पूजा बडी धूम-धाम से की जाती है:-...................................................................
उड़न-तश्तरी के समीर लाल जी तो कई दिनों से लगातार सभी चिट्ठाकारों को अपनी काव्यमय बधाई निम्नरूप में भेज रहे हैं-
Udan Tashtari ने कहा…
सुख औ’ समृद्धि
आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के
चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर
खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की
आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
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उड़न-तश्तरी के समीर लाल जी तो कई दिनों से लगातार सभी चिट्ठाकारों को अपनी काव्यमय बधाई निम्नरूप में भेज रहे हैं-
Udan Tashtari ने कहा…
आपके अंगना झिलमिलाएँ,
दीपक अमन के
चारों दिशाओं में जगमगाएँ
खुशियाँ आपके द्वार पर आकर
खुशी मनाएँ..
दीपावली पर्व की
आपको ढेरों मंगलकामनाएँ!
-समीर लाल 'समीर'
पागल बनारसी मुझे “फुकटपाश” का एक रोग लग गया है। महाजाल पर मुफ्त मे कई चीजे मिलती है। मेरा संगणक मेरे बेटे ने मुझे जन्मदिन भेट के रूप मे दिया है। उसपर बीएसएन एल का अनलिमिटेड कनेक्शन लगा रखा है जिसका ७५० रुपया महिना बिल आता है। बिजली, पंखा ये सब खर्चा मेरी बीबी देखती है। मैने महाजाल से कई चीजे फुकट मे डाउनलोड की हैं। इन अनुप्रयोंगों का मै नियमित उपयोग करता हूं। मै इस ब्लॉग पर कई अनुप्रयोगो के बारे मे लिखना चाहता हूं। जैसे कि ओपन आफिस, गुगल के कई अनुप्रयोग, आईबीएम के अनुप्रयोग, माईक्रोसॉफ्ट की मुफ्त सेवाये इ. इ |
एक धरा पीपल की छाँव एक धरा तुलसी के बिरवे जहाँ मोरे कान्हा का ठाँव तन दीपक मन बाती बारी सज सोलह सीण्गार खड़ी चौखट पर पंथ निहारु | सागर सी गहरी, झील सी नीली हैं तुम्हारी आंखें कितनी खुबसूरत और प्यारी हैं तुम्हारी आंखें जब भी नजर उठती है तडफ़ उठते हैं कई दिल हर दिल में अरमानों का तूफान उठाती हैं तुम्हारी आंखें राजकुमार ग्वालानी | सुबह-सुबह चाय पीते हुए उनींदे मन ये सोंच रहा हूँ कि आख़िर कुत्ते भी क्या करें उन्हें भी कहाँ वक्त मिलता है रोने के लिए ओम आर्य |
आपकी जरूरत के तमाम मुफ्त सॉफ्टवेयर- सॉफ्टवेयर
विज्ञापन की वजह अगर कोई साइट खुलने में दर कर रही हो, तो आप विज्ञापन के बगैर भी साइट खोल सकते हैं. इसके लिए आपको ऐड-मंचर इंस्टॉल करना होगा. एड-मंचर साइट से विज्ञापन को वैसे ही खा जाता है जैसे भैस घास.एवीजी विषाणुरोधी- कंप्यूटर में विषाणुओं के संक्रमण का खतरा है जब आप जाल का विचरण कर रहे होते हैं. ऐसे में आपको किसी मजबूत सुरक्षा तंत्र की सुरक्षा चाहिए. एवीजी वैसा ही मजबूत सुरक्षा तंत्र है. निजी उपयोग के लिए यह मुफ्त है. मैं पिछले दो सालों से उपयोग कर रहा हूं कही कोई शिकायत नहीं |
मुख्यमंत्री की इसके लिए सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने मिलावटखोरों के खिलाफ सख्ती बरतने और यहां तक कि उनके खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत कार्रवाई करने के आदेश दिए। ऐसे आदेशों के बाद यह आवश्यक हो जाता है कि मिलावटखोरों के खिलाफ जारी अभियान और अधिक गति पकड़े। वैसे भी यह लगभग तय है कि दीवाली के बाद भी मिलावटखोर अपनी हरकतों से बाज आने वाले नहीं हैं। निस्संदेह उनका दुस्साहस इसलिए बढ़ गया है, क्योंकि खाद्य एवं औषधि नियंत्रण सरीखे विभाग अपना कार्य सही तरीके से नहीं कर रहे हैं। होना तो यह चाहिए कि इस विभाग एवं पुलिस को ऐसा माहौल बना देना चाहिए कि मिलावटखोर हानिकारक खाद्य पदार्र्थो का निर्माण एवं बिक्री करने में भय खाएं। |
दीवालीआयेगी
ये रातअंधेरी भी
रोशन हो जायेगी
दीवाली आयेगी
खुशियोंके उजालों से
मनको भर जायेगी
मन में दीवाली है
दिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है
ये रातअंधेरी भी
रोशन हो जायेगी
दीवाली आयेगी
खुशियोंके उजालों से
मनको भर जायेगी
मन में दीवाली है
दिल दीप जलाया है
उस की उजियारी है
आया समय उर को मलिन जब तुच्छ इच्छा ने हरा जब मैं सजग निज लक्ष्य पाने हेतु दिखलायी त्वरा तुम दृष्टि ओझल हो गये तत्काल उस क्षण मति प्रवण - स्वीकृत न कर उनको बचाते हो मुझे तुम प्राणधन । | तेरी सरगम की पुकारों पर प्रेम रस बरसाती इठलाती,बलखाती आ जाउंगी बस तुम एक बार पुकारो तो सही मुझे वापस बुलाओ तो सही ज़िन्दगी | "हे रघुनन्दन! इतनी कठोर तपस्याओं एवं भारी संघर्ष के पश्चात् विशवामित्र जी ने यह महान पद प्राप्त किया है। ये बड़े विद्वान, धर्मात्मा, तेजस्वी एवं तपस्वी हैं।" संक्षिप्त वाल्मीकि रामायण |
अन्नकूट की सब्जी बनाने के लिये जितनी तरह की सब्जी बाजार में मिल जाय वो सब थोड़ा थोड़ा ले लेते हैं, कई दुकानदार थोड़ी थोड़ी सब्जी मिलाकर एक पैक बनाकर भी बेचते हैं. ये सारी सब्जी मिलाकर बनाई जाती है. सबसे पहले यह सब्जी भगवान को अर्पण की जाती हैं, और बाद में प्रसाद के रूप में घर के सभी लोग खाते हैं. उत्तरप्रदेश में गोवर्धन पूजा के दिन यह प्रसाद हर मन्दिर और ज्यादातर घरों में बनाया जाता है. आइये आज हम अन्नकूट (Annakoot Recipe) बनायें. |
मेरी आँखों का नूर हो तुम, सूरज की लाली तुमसे है. मेरे जीवन की ज्योत हो तुम, मेरी दिवाली तुमसे है. Dr Ankur | अत्याचार बढा था हमपर, बना था बोझ अंग्रेजी शाषण, अपने ही घर में अपमानित, हमने कहा था रंग दे बसंती... साठ साल अपना राज, अम्बरीश अम्बुज पिछड़े के पिछड़े हैं रहे हम, भरता जा रहा स्विस बैंक, अब न कहें क्यों, रंग दे बसंती.. | समझा समझा कर मैं, तुझको थक गया हूँ तेरी कसम मैं तो, बिल्कुल ही पक गया हूँ क्या हैं तेरे इरादे मुझको ये बतादे बहुत सता लिया मुझको, अब और न सता। ओओ दिल मेरे, सुन जरा, मत हो, यूँ फ़िदा। प्रेम फर्रुखाबादी" |
शब्द शब्द शब्द हवा में शब्द, फिजां में शब्द ये भी शब्द, वो भी शब्द शब्द भी शब्द, निःशब्द भी शब्द तू भी शब्द, मैं भी शब्द आ मायने बन कर इस कायनात में बिखर जाएँ | दुख की नदी बहुत है लम्बी बहुत ही छोटी नैया , छप-छप करती तिरती जाती पार पहुँचती भैया ! दूर किनारा ,गहरी धारा देख नहीं घबराएँ । आँसू और मुस्कान सभी का रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' | ज्योति से ज्योति जलाओ अंतर तिमिर हटाओ हे परमेश्वर हे सर्वेश्वर अवगुण दूर भगाओ हम बालक तेरी शरण में आये दिव्य दरश दिखलाओ हाथ जोड़कर करे आरती दिव्य प्रेम सुधा बरसाओ महेंद्र मिश्र |
क्या आपने अपने सुपीरियर को ये जानकारी दी हैं कि आप ब्लोगिंग करते हैं और आप के हर ब्लॉग पर विज्ञापन हैं जिनसे आप को आय होने की सम्भावना हैं ?
क्या हिन्दी ब्लॉगर जो सरकारी क्षेत्रो मे कार्य रत हैं और जिनके यहाँ " थ्रू प्रोपर चैनल " को प्रक्रिया लागू होती हैं वो इस प्रकार से एड दिखा कर नौकरी से सम्बंधित किसी कानून को तो नहीं तोड़ रहे हैं । प्रश्न ये नहीं हैं की आप की कोई कमायी इस प्रकार से गूगल एड सेंस या किसी भी प्रकार से ब्लॉग से हो रही हैं या नहीं , प्रश्न ये हैं की क्या अन्य जगह से पैसा कमाने के लिये आप कोशिश कर रहे हैं , इस बात के लिये आप ने " थ्रू प्रोपर चैनल " आज्ञा ली भी हैं या नहीं । |
भूतों के भय से ही जुडा एक किस्सा और भी सुनिए !!
मेरा फोटो" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiRa5tZj7OiL_VFLYmP5RxO7hfqGYKyn1nx-49lGFlVVs_s_DEWrvtaYnNwdAzy2psxZhYnS5GAokq6h-U2kmcEB2BUudTIwFhPnxzFyX70JSYToQG9cobiPn-stg4zX6dLA3HSPB1dYu0/s220/sangitapuri.jpg" style="border: 1px solid rgb(187, 187, 187); margin: 0px; padding: 0px; display: inline;" width="60" align="right" height="80">संभवत: यह घटना 1981 के आस पास की है। कलकत्ते में रहनेवाले हमारे एक दूर के रिश्तेदार पहली बार हमारे गांव के अपने एक नजदीकी रिश्तेदार के घर पर आए। पर वहां उनका मन नहीं लगता था , रिश्तेदार अपने व्यवसाय में व्यस्त रहते और उनकी पत्नी अपने छोटे छोटे बच्चों में। वे वहां किससे और कितनी देर बातें करतें , उनके यहां जाने में जानबूझकर देर करते थे और हमारे यहां बैठकर बातें करते रहते थे । बडे गप्पी थे वो , अक्सर वे हमारे घर पहुंच जाते थे और घंटे दो घंटे गपशप करने के बाद खाना खाकर ही लौटते थे। |
"श्रीमद भगवद्गीता से ..............."
श्रीमद भगवद्गीता के सातवें अध्याय का ४० वां श्लोक आज के सन्दर्भ में कितना सटीक है । आज इसका थोड़ा सा वर्णन लिख रही हूँ जो स्वामी रामसुखदास जी ने किया है । श्लोक श्री भगवन बोले -----हे पृथानन्दन !उसका ने तो इस लोक में और न परलोक में ही विनाश होता है क्यूंकि हे प्यारे ! कल्याणकारी काम करने वाला कोई भी मनुष्य दुर्गति को नही जाता । |
मन ही बादशाह
एक जंगल मे एक सूफ़ी फ़कीर रहता था. सूफ़ी फ़कीरों के बारे मे यह तो आप जानते ही होंगे कि उनका कोई कर्म ऐसा नही होता कि आप उनको पहचान सकें कि यह बाबा महात्मा है. फ़कीर अपना काम धंधा, गृहस्थी यानि सारी दुनिया दारी करता दिखाई देगा पर असल मे वो मर्म का जानकार होता है.बादशाह एक बार जंगल में भटकता हुआ इस फ़कीर के झौपडे पर पहुंच गया और इस फ़कीर का मुरीद ब्बन गया. अब वो इस फ़कीर को अपने महल मे निमंत्रित करता और आत्मज्ञान प्राप्त करता.
-अब तो अन्त में यही कहूँगा कि
"चर्चा हिंदी चिट्ठो की"
का आज का अंक आपको पसन्द आया हो तो
अपनी बेबाक-राय टिप्पणी के रूप में
अवश्य दें।
"चर्चा हिंदी चिट्ठो की"
का आज का अंक आपको पसन्द आया हो तो
अपनी बेबाक-राय टिप्पणी के रूप में
अवश्य दें।
38 comments:
बहुत बेहतरीन प्रयास है. इसे नियमित करें..
पूर्व टिप्पणी में समझने में कुछ भूल रह गई.
शास्त्री जी धन्यवाद आपने अपना कीमती समय दिया ...
अज तक की सबसे लम्बी चर्चा आपने कर दीधन्यवाद
nice
सुंदर चर्चा! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
अब तो इस चर्चा के आदि हुए हम, मयंक जी को बधाई चर्चा विस्तृत बनाने के लिए, क्योंकि चिट्ठों की छोटी चर्चा अच्छी नहीं लगती...पंकज जी को साधुवाद...
बहुत अच्छी रही चिटठा चर्चा ...कई अछे लिंक मिले हैं ...फुर्सत मिलते ही अवलोकन करने के लिए ...
बहुत आभार ...धन्यवाद ...!!
उम्दा चर्चा
बहुत विस्तृत चर्चा।
शास्त्री जी ने भी कर दी जोरदार चर्चा
नहीं छोड़ा कोई भी पर्चा
आप की चर्चा लाजवाब है, अगली चर्चा का इंतजार रहेगा
बहुत अच्छी रही चिटठा चर्चा
मयंक जी,
अनुभव अनुभव ही होता है...सार्थक और मेहनत से की गई चर्चा के लिेए साधुवाद...बाकी श्रीश जी और ग्वालानी जी से पूरी तरह सहमत...
जय हिंद...
"चर्चा हिंदी चिट्ठो की" लम्बी तो अवश्य ही हो गई है। लेकिन इसके पीछे कारण यह रहा है कि अधिक से अधिक साथियों की प्रविष्टियों को
चर्चा में लाया जी सके।
आपकी अमूल्य टिप्पणियों के लिए आभारी हूँ!
मेहनत से की गई विस्तृत और जोरदार चर्चा के लिेए धन्यवाद.
बेहतरीन चर्चा।
ाच्छी है चर्चा शुभकामनायें
behatareen charcha.... dhanyawad..
बढ़िया चर्चा
बहुत ही बढिया रही ये चर्चा....अति सुन्दर!!
शास्त्री जी धन्यवाद आपने अपना कीमती समय दिया ...
अज तक की सबसे लम्बी चर्चा आपने कर दीधन्यवाद
(Pankaj Mishra ji ki baat se sehmai)
चर्चा की लम्बाई ही श्रम की गवाही दे रही है । शास्त्री जी ने चर्चा कर इस चर्चा मंच में एक नया आयाम जोड़ा है । आभार ।
is blog ka to hamein pata hi nhi tha........aaj shastri ji ke madhyam se pata chala.........aabhari hun unki...........aur bahut hi badhiya aur sandeshpoorna laga .........ummeed hai aage bhi aise hi charchayein hamein milti rahengi...........shukriya shastri ji ,mere blog ko ismein shamil karne ke liye.
बढ़िया चर्चा
सुंदर चर्चा! दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ।
CHARCHA LAMBI JAROOR HAI PAR UPYOGI HAI.
शास्त्री जी
आपका रूप बहु-आयामी है।
चर्चाकार के रूप में भी आप सफल रहे है।
उपयोगी पोस्ट के लिए आभार।
शास्त्री जी को शास्त्री का प्रणाम!!!!
आप चर्चा अच्छी खासी कर लेते हैं और पाठक को काफी सामग्री मिल जाती है. चिट्ठों की बढती संख्या के कारण चर्चा करने वाले चिट्ठे और आलेख अब हम पाठकों के लिये काफी महत्वपूर्ण हो गये हैं. लगे रहें हम सब को काफी सामग्री मिल रही है इस तरह.
सस्नेह -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info
सुन्दर चर्चा शास्त्री जी ......... आज तो हम भी हैं इस चर्चा में .......... शुक्रिया ..........
बहुत विस्तृत चर्चा. शुभकामनाएं.
रामराम.
nice
विविधता पूर्ण और सम्पूर्ण ,व्यापक चर्चा -कितनी पोस्टें यहीं पढ़ ली -सब चिट्ठाकारों का भी आभार और चर्चा कार का भी !
SASTRY BHAI.
IS PREM FARUKABADI KA KAVITA ME AISA KYA HEI.
IS BLAGER KO TO LANA HI EK KALA TIKA POST ME LAGANA HEI. KOYEE BHI LADY BLAGER ISKE YAHA AANAA NAHI CHAHTA HAI.
achchi lagi yeh charcha
hangamaa aapko yaha aise hangaama nahe machana chahiye
kripaya aap pahale apan profile mention kariye fir bat kariye
aapka ip mere meter id me aa gaya hai
danyavaad
इस चर्चा के लिए मेरे पास एक ही शब्द है – जिंदाबाद।
ये तो पूरा अग्रीगेटर हो गया... बढ़िया चर्चा..
डा. रूप चन्द्र शास्त्री ’मयंक’ जी, मैं इस पोस्ट को पहले न देख पाया, ब्लॉग पोस्टें फीड रीडर से पढ़ने की आदत के चलते। बहुत श्रमसाध्य और उत्कृ्ट चर्चा है और इसे समय पर न देखने का मलाल है।
बहरहाल इसे फीड में संजो लिया है मैने - धन्यवाद।
शास्त्री जी
आपका साधुवाद है!
उत्तान गतिविधिओं पर आइना घुमाते हुए हर महफ़िल को सजाया है.
अम्बरीश अम्म्बुज की विकास नामक रचना वकास की विसंगेशन से आगाज़ कराती हुई अगर आपनी गूँज उन कानों तक पहुंचे ,जो सुनने के प्रयास में लगे हुए हैं.
बहुत धन्यवाद मेरी गज़लें शामिल करने के लिए
देवी नागरानी
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