प्रस्तुतकर्ता : दर्पण साह "दर्शन "
अब तक छप्पन....
आज जब चिट्ठा चर्चा करने की सोची और ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत में विचरण किया तो एक चीज़ जो मन में 'क्लिक' हुई हर पोस्ट पढने पर, वो था चारों ओर बदलाव, अजीब सा...
..अच्छा या बुरा ? पता नहीं !! पता करना भी नहीं, क्यूंकि कुछ चीजें अच्छी या बुरी नहीं होती केवल होती हैं . और निरंतर होती हैं, ये बदलाव केवल ब्लॉगजगत में ही नहीं (ब्लॉग जगत तो अपने आप में ही लेखन शैली में हुआ परिवर्तन है) अपितु हर जगह दिखा, हाँ हाँ ये सत्य है की परिवर्तन तो अपरिवर्तनीय है, पर परिवर्तन अबकी बार बहुत 'Loud' था, या शायद मुझे लगा आप लोग भी बताएं
दोहे बदल रहे हैं
तन की सीमा से भली मन की सीमा जान।गीत बदल रहे हैं
मन को वश में कर सके वही असल इन्सान।।
आशा की किरणें जगी भले अंधेरी राह।
नीरवता सुख दे जिसे गजब है उसकी चाह।।
अभिनय करने में यहाँ नेता बहुत प्रवीण।
भाषण, आश्वासन सहित खींचे चित्र नवीन।।
बिक चुके इन्साफ ने जब फैसला उसका किया,कलरव बदल रहे है
सुन के वो तो हँस दिया मुंसिफ मगर रोने लगा.
थक गया पढ़ के खबर, सच्चाइयों के क़त्ल की,
कल से कुछ उम्मीद कर वो आज फिर सोने लगा.
नारी.......कलम बदल रही है.
त्याग और उत्तरदायित्वों से सराबोर
परंपरायें भी सिर चढ़ के बोलती हैं
हां तुम्हें नहीं मुंह मोड़ना
बरकरार रखना है अपनी परंपराओं को
बरबस ही कैसे बच सकती है
पनीली आखों में हैयायावरी बदल रही है
खवाब कई ...
कोई संजो लेता ..
इन में संवरने वाला
थरथराते लबों पर
ठहरा है लफ्जों का सावन
कोई तो होता ..
इनमें भीगने वाला
हल्द्वानी से नैनीताल पहुंचने में हमें लगभग 11 बज गये। भाईसाब ने घर तक छोड़ने के लिये कहा पर मैंने मना कर दिया। रात का चौकीदार सीटी पे सीटी बजाये जा रहा था पर असली समस्या तो तब खड़ी हुई जब पड़ोस के सारे कुत्ते एक साथ इकट्ठा हो गये और भौंकना शुरू कर दिया।
साक्षात्कार बदल रहे हैं.
दुनियां मे सबसे निकृष्ट चीज क्या है?समालोचना बदल रही है
ताऊ मन ही मन भुनभुनाते हुये बोला -- हुजुर निकृष्ट चीज भी कल सुबह आपकी पेशे खिदमत करुंगा. और ताऊ वहां से सोचते हुये निकल लेता है.
सच बात तो यह है कि ज्ञान का सपूर्ण स्त्रोत है ‘श्रीमद्भागवत गीता’। पर हमारे कथित धार्मिक ज्ञानियों ने उसका केवल सन्यासियों के लिये अध्ययन करना उपयुक्त बताया है। यही कारण है कि काल्पनिक फिल्मों के नायक और नायिकाओं को देवता के रूप में प्रतिष्ठत कर दिया जाता है।
व्यंग बदल रहे हैं
कार्टून:- देखा पट्ठे के दिमाग़ का कमाल !मौन बदल रहा है
आवाज़ बदल रही है
चुप सी रहा करती है
एकदम निःशब्द आँखें हैं
लाख निचोड़ लो,
नहीं मिलता एक भी सुराग
धर्म बदल रहा है.
ब्लांग जगत मै मेने कई ऎसे ब्लांगर देखे है जो खाम्खा मै दुसरो से पंगा लेते है, बिन बात दुसरे के बारे सही बात भी गलत बात सिद्ध करना चाहते है, अगर कोई टिपण्णी थोडी आलोचक ढंग से दे देते, टिपण्णी देने वाले या लेने वाले को तो कोई दिक्कत नही होती लेकिन किसी तीसरे को पता नही क्यो जलन होने लगती है.
आज मौक़ा मेरा आया है
चलो तोड़ डालें उसका सर
चलो जला डालें उसका घर
उसका धर्म मुझसे अलग है
भक्त बदल रहे हैं
आराध्य बदल रहा है.
सूर्य षष्ठी व्रत की प्रमुख कथा 'भविष्योत्तर पुराण' में संगृहीत है. सतयुग में 'शर्याति' नाम के राजा की 'सुकन्या' नामक पुत्री थी। एक दिन जब राजा शिकार खेलने वन में गए थे तो सुकन्या ने सखियों के साथ भ्रमवश तपस्यारत 'च्यवन' ऋषि की दोनों आँखें फोड़ दी थीं । मिट्टी से शरीर के ढँक जाने से च्यवन ऋषि एक टीले की भांति लग रहे थे और उनकी दोनों आँखें जुगनुओं की तरह चमक रही थीं। सुकन्या समझ न सकी और उत्सुकतावश काँटों से उसने दोनों आँखें फोड़ दीं। इस पाप से राजा एवं उनकी सेना का मल-मूत्र स्तंभित हो गया। फिर राजा शर्याति पश्चातापवश अपनी कन्या के साथ ऋषि के पास पहुंचे और अपनी कन्या का दान उन्हें कर दिया।
आराधना बदल रही है.
राम उजागिर की दीवाली इस बार उजियारी नहीं रही -नरक चतुर्दशी को ही नरक गामी हो गया वो ! बेटे ने मुम्बई से आकर धूम धाम से तेरही आयोजित की -अभी कल ही तो तेरही थी उसकी ! मेरे मुंह से निकल पडा चलो गाँव का एक काला धब्बा तो मिटा ! उसकी मीठी मीठी बाते और विनम्रता भी याद आई तो कुछ मिश्रित विचार भी मन में आये ! मगर हठात उन्हें रोका ! जो गलत सो गलत ! मुझे जैसे कुछ याद हो आया ! मैंने लोगों से पूंछा कि वह तो लखनऊ जेल में था न ? पुष्टि में लोगों ने सिर हिलाया और याद भी दिलाई कि डायिजेपाम की गोली के नकली निकल जाने से वह अभी कुछ मांह पहले ही तो आजमगढ़ स्टेशन पर यात्री के होश आ जाने से भीड़ द्बारा धर दबोचा गया था ! तब वह मरा कैसे ? शायद जमानत पर छूट गया था -लाश बड़ी ही विकृत अवस्था में सुल्तानपुर में पायी गयी ! भाईयों ने लाश की शिनाख्त करके पंचनामा आदि करा कर बनारस में दाह संस्कार किया पूरे विधि विधान से ! "हूँ " मेरी सक्षिप्त प्रतिक्रिया थी ! एक काले युग का अंत तो हुआ !
राजा के गहरे दुःख से द्रवित होकर आकाश से एक ज्योतियुक्त विमान में ब्रह्मा की मानस पुत्री 'षष्ठी देवी' उतरीं एवं अपने स्पर्श मात्र से शिशु को जीवित कर दिया। राजा प्रसन्न हो गए एवं देवी की स्तुति करने लगे। तब से षष्ठी तिथि की पूजा की परम्परा आरम्भ हो गयी.
परिभाषा बदल रही हैं.
तुम कहते हो कि मुझे दिखता नही कुछ प्रेम के सिवा।
मैंने आज कुछ और भी देखा।
साइन बोर्ड इक दुकान का,
जिसपे लिखा था तुम्हारे नाम जैसा इक नाम.......
फलसफे बदल रहे हैं
ये कैसे सारी की सारी अवाज़ें जिंदा हुईं,
ये कैसे सारे पुराने दरख्त फिर हैं हरे,
ये कैसे उठ के खड़े हैं वो पुराने मंज़र,
ये कैसे आँख में पुरनम से ख़ाब फिर हैं भरे।
वास्तविकता बदल रही है
आज और दिनों की अपेक्षा मुख्य मार्ग वाले बाज़ार में कुछ ज्यादा ही भीड़ भड़क्का है | कुछ वार त्योहारों का सीज़न और कुछ साप्ताहिक सोम बाज़ार की वजह से | भीड़ में घिच -पिच के चलते हुए ऐसा लग रहा है जैसे किसी मशहूर मन्दिर में दर्शन के लिए लाइन में चल रहे हों | इतनी मंदी के दौर में भी हर कोई बेहिसाब खरीदारी को तत्पर | सड़क के दोनों तरफ़ बाज़ार लगा है | अजमल खान रोड पर मैं जैसे-तैसे धकेलता-धकियाता सरक रहा हूँ | भीड़ में चलना मुझे सदा से असुविधाजनक लगता है, पर क्या करें, मज़बूरी है | अचानक कुछ आगे खाली सी जगह दिख पड़ी | चार-छः कदम दूर पर एक पागल कहीं से भीड़ में आ घुसा है | एकदम नंग-धड़ंग, काला कलूटा, सूगला सा |
स्वप्न बदल रहे हैं .
इस बीच कुछ ऐसे बेहतरीन मित्र बन गये जिनकी तलाश मेरे स्वप्न में थीं। ब्लोग मेरे रोज़मर्या जीवन का हिस्सा बन गया। जब भी उदास हुआ और ब्लोग सफर किया तो उदासी भाग गई। थकान से टूटते शरीर की 'आरोमा थैरेपी' इसी ब्लोग ने की। विचारों के तूफान को यहीं शांत किया। अपनी अल्प मतिनुसार शब्दों के साथ यहीं खेला। हां, मुझे ब्लोग पर देख कइयों ने इसे बकवास कहा। क्यों टाइम पास करता है? इससे तुझे क्या मिल जायेगा? समय क्यों खर्च करता है? अरे दुनिया कितनी आगे बढ गई है, लोग पैसा कमाने की सोचते हैं, तू इसमे अपना समय बिगाड रहा है।
प्रेम बदल रहा है
तुम्हें देखती हूँ तो लगता है ऐसे
के जैसे युगों से तुम्हें जानती हूँ
अगर तुम हो सागर -२
मैं प्यासी नदी हूँ
अगर तुम हो सावन मैं जलती कली हूँ
पिया तुम हो सागर
विरह बदल रहा है
तुम तक पहुँचने से पहले
लड़खड़ा कर गिर गए कुछ शब्द
घायल शब्दों की झिर्री से
बिखर गयी चाहत
बह गए एहसास
कुछ अधूरे स्वप्न
मिलन की प्यास
उफ़ ......... इन घायल शब्दों को
बैसाखी भी तो नहीं मिलती
मित्र बदल रहे हैं
और मित्रता भी बदल रही है
शिक्षा बदल रही है
>तो इस प्रेम पुजारी ने इस वर्ष आई आई . टी की प्रवेश परीक्षा के लिए अपनी पाँचवे नंबर की प्रेमिका के शहर का सेंटर भरा था, विभिन्न परीक्षाओं के फॉर्म भरना उसकी एकमात्र हॉबी थी, पोलीटेक्निक, बी .टेक . ,बी .बी .ए. के .के सभी फॉर्म "ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर " वाले भाव से भरे हुए थे ,ये फॉर्म उसके और उसकी पुरानी गर्लफ्रेंड्स, जो शादी के पश्चात अपने - अपने पतियों के साथ विभिन्न शहरों में चली गईं थीं, के मध्य सेतु का काम करते थे. यूँ शादी की उम्र तो लव गुरु की भी हो चुकी थी, लेकिन हर कक्षा में दो - दो साल रहने के कारण वह अभी भी स्कूल में ही बना हुआ है कभी कभी यूँ ही पर्यटन के उद्देश्य से वह गर्मियों के मौसम में वह ठंडी जगह, और ठण्ड के दिनों में गर्म जगह का सेंटर भरता था.
शिक्षक बदल रहे हैं,
विद्यार्थी तो बदल ही रहे हैं,
लड़ा तूफ़ान से वो खुश्क पत्ता इस तरह दिन भर
हवा चलने लगी है चाल अब बैसाखियों वाली
बहुत दिन हो चुके रंगीनियों में शह्र की ’गौतम’
चलो चल कर चखें फिर धूल वो रणभूमियों वाली
{1222-1222-1222-1222}
...ग़ज़ल यदि कहने लायक और जरा भी दाद के काबिल बनी है तो गुरूदेव के इस्लाह और डंडे से।
साथ में पाठशाला बदल रही है
एहसास बदल रहे हैं,
भावनाएँ बदल रही है
अभिव्यक्ति बदल रही है
जीवन की मुस्कान बदल रही है.
समाज बदल रहा है.
राजनीति बदल रही है
बचपन बदल रहा है
भारत बदल रहा है...
अब आज का "अतीत के झरोखे की " प्रस्तुती
आज के अतीत के पोस्ट पढ़कर आप वाकई मस्त हो जायेगे , ये पोस्ट है ताउजी की ताऊ द्वारा होली पर पोस्ट की छीछालेदर
मस्त है पूरी पढ़े
अब " नजर-ए-इनायत "
रामप्यारी का सवाल – 90-हाय….आंटीज..अंकल्स एंड दीदी लोग..या..दिस इज मी..रामप्यारी..कब टूटेगी ये बेरी !-नमस्कार मित्रों ! फिर जम गयी है चौपाल। आज चौपाल में हम बात करेंगे हमारी बेरियों की। बेरी जो कब से जकर रक्खी हमें। हमारी संस्कृति को। हमारी अभिव्यक्ती को। जी हाँ ! हम कर रहे हैं, भाषिक बेरी कास्वाभिमान का उदघाटन किया गया-सरकारी हैस्कुल करिम्बा के अई टी एवं हिन्दी विभाग संयुक्त रूप से तैयार किए गए स्वाभिमान नामक ब्लॉग का उदघाटन मन्नार्कड़ ब्लोक पंचायत के सदस्य श्री चामी मास्टर ने की । प्रस्तुत समारोह में करिम्बा ग्राम पंचायत के अध्यक्ष श्रीमती मेरी टीचर ने भी भाग ली । गुलाबी रंगत मौसम में भी है, माहौल में भी- भारतीय ओबामा 'राहुल गाँधी' की फ़तेह-तीन राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 3-0 से जीत दर्ज करने के बेहद करीब पहुंच चुकी है। महाराष्ट्र में वह बहुमत के करीब है, हिन्दी चिट्ठाकारी : एक और नई चाल? भाग एक-हफ़्तावारी मित्रो, गयी दिवाली की अंग्रेज़ी तर्ज पर (विलेटेड) और छठ की ताज़ी शुभकामनाएं! दोस्तों, शिमला स्थित भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा आयोजित हिंदी अध्ययन सप्ताह के दौरान आखिरी दिन पत्रकारों का टूटता भ्रम-क दौर था जब पत्रकार निजी न्यूज चैनलों में नौकरी के लिए लालायित रहा करते थे, किसी भी तरह किसी न्यूज़ चैनल की नौकरी पा लेना चाहते थे. बेसुध की सुधि लेवे कौन?-कंकरीली - पथरीली राह पर; एक बटोही चलते - चलते थक गया, जो कुछ उसके पास था वह लुट गया, समय की तपिश में सब झुलस गया. नियति के प्रहार से हो क्षत - विक्षत; रिक्त झोली फैला कर वह पूछता, हे विधाता महात्मा गांधी जी ने पत्र लिखा है, आप भी पढि़ए-प्यारे चेतन, एक भगत तो चेतन है । यह जानकर अच्छा लगा और इतना चेतन कि उसने मुझे ई मेल के इस क्रांतिकारी दौर में चिट्ठी लिखकर नि:संदेह एक क्रांतिकारी कार्य ही किया है। यह भारत की चेतनता है डेज़ी तुम्हें आखिरी सलाम! तुम बहुत, बहुत याद आओगी!-पिछली जनवरी में मेरा भिलाई जाना हुआ था। दो रात और तीन दिन पाबला जी के घर रहना हुआ। वहीं उन की पालतू डेज़ी से भेंट हुई। वह उन के परिवार की अभिन्न सदस्या थी। दीवाली पर पटाखों से उत्पन्न धूंएँ और ध्वनि के प्रदूषण ने उसे बुरी तरह प्रभावित किया पहली पोस्ट अमर उजाला में तो दूसरी दैनिक आज समाज में,, कैसे मानूं कि गंभीर लेखन कोई पसंद नहीं करता-मैंने जब ये नया ब्लोग बनाया था तो ...जैसा कि पहले ही कह चुका हूं कि सिर्फ़ एक ही मकसद था।सबकी शिकायत थी कि यहां ब्लोग्गिंग को गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है और कोई गंभीर विषयों को नहीं उठा रह है बालक-हर पल मांगे ध्यान तुम्हारा ध्यान न दो ,रो -रो घर भरे सारा नटखट बचपन को पहचानो बालक की जरुरत को जानो मै छोटा सा बालक हू माँ का आँचल ही पहचानू कदमो की आहात को जानू साँसों की खुशबु को पहचानू लो आ गया विंडो 7- आज का विचार : समय ही जीवन की आवश्यक संपत्ति है....-समय ही जीवन की आवश्यक संपत्ति है . दुनिया के बाजारों में से अभीष्ट वस्तुएँ समय और श्रम का मूल्य देकर ही खरीदी जाती है . प्रत्येक क्षण को बहुमूल्य मन जाए और समय का कोई भी अंश आलस्य-प्रमाद में नष्ट न होने पे इसका पूरा - पूरा ध्यान रखा जाए ख़ाक-ए-शायरी .....हिंदी शायरी इंग्लिश में...!!!क्या आपने कभी हिंदी की शायरी अंग्रेजी में पढ़ी हैं ??? क्या आप पेट पकड़ कर हंसने को तैयार है तो ठिठोली पर आपके लिए पेश है ख़ाक-ए-शायरी के अर्न्तगत...... शायरी की ख़ाक.....उप्प्स मतलब अच्छी अच्छी शायरी तेरी जीत में मेरी हार है-कैसे अपने दिल को मनाऊं मैं, कैसे कह दूं कि तुझसे प्यार है, तू सितम की अपनी मिसाल है, तेरी जीत में मेरी हार है। तू तो बांध रखने का आदी है, मेरी सांस-सांस आजादी है, मैं जमीं से उठता वो नग्मा हूं, कुंठित ब्लागर, बिगड़ैल साँड़ और टिप्पू चच्चा में से कौन ज्यादा खतरनाक है?-हम कोई मगरुरवा त हैं नही की बिल मा घुस के बैठ जायेंगे. चच्चा अगर गलती कर देत हैं त माफ़ी मांग लेत है पर मुंह जोरी अऊर किसी का इज्जत नाही खराब करत हैं.खुशदीप जी, आप सुझाये और हम न माने ऐसे तो हालात नहीं ... |
(टिप्पू चाचा सबको देख रहे हैं)
25 comments:
अब तक छप्पन नहीं, ये है चिट्ठी चर्चा की अमिताभ बच्चन...
जय हिंद...
अच्छा तो अंक छप्पन इसीलिए अब तक छप्पन ,मै तो सोचा क्या बात है :)
दर्पण भाई मजेदार चर्चा , सब कुक बदल रहा है
आज तो आपाने अतीत के झरोखे में होली जमा दी है , मस्त है भाई लगे रहो, जय हो
चर्चा तो बढिया रही,धर छ्प्पन का ध्यान
सार सहित चर्चा रही,लो धन्यवाद श्रीमान
वाह.....!
चर्चा में तो सभी जगह बदलाव ही नजर आया।
दर्पण साह "दर्शन" जी ने बहुत सुन्दर और बिल्कुल नये ढंग से
पोस्ट लगाई है। प्राचीनता में अर्वाचीनता का यह संगम बहुत अच्छा लगा।
शुभकामनाएँ!!
चर्चा बेहद सारगर्भित, रोचक एवं नवीन कलेवर के साथ प्रस्तुत की गयी। हार्दिक शुभकामनाएं।
पूरे छप्पन भोग से सजी है चर्चा की थाली
आपने चर्चा की है सबसे निराली
हम्म
दर्पण बचवा,,,
इ जो ५६ गो चिटठा करीने से सजाये हो
इनको का ५६ भोग का आइटम बनाये हो
कि अब तक ५६ का टार्गेट लगाये हो
कि सब को बदल जाने का अल्टीमेटम दे आये हो
अरे मज़ाक करत हैं हम बचवा....
इहाँ तो नित नूतन प्रयोग हो रहा है....आकर्षक है ...और रोचक भी...
बहुत मेहनत से लिखी गयी है चर्चा....
और बचवा दीमाग भी लगाया है....
जियो जियो...
दीदी
बदलने वालों का एक दल बनाया जाये
फिर उन्हें दलदल में घुमाया जाये
देखेंगे दलदल से कोई कैसे बचेगा
जो बचेगा उससे दलदल हटवाया जाये।
shandaar charcha... hmmmm.. charcha ka andaaz bhi badal raha hai...
चर्चा तो अच्छी रही, मजे दार
बाप रे ...इतना कुछ बदल गया ...हमें तो आप भी बदले बदले नजर आ रहे है ..
बहुत बढ़िया चिटठा चर्चा ...!!
56 bhog pasand aaya..........sach sab badal raha hai kyunki sansaar pratipal badal raha hai to sab kyun nhi badlega.
वाकी एक नया अंदाज और शानदार चर्चा है. मेहनत के अलावा आप की रचना धर्मिता की दाद देनी पडेगी. इतनी खूबसूरत चर्चा पढ कर दंग हूं. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
भूल सुधार
वाकी = वाकई
पढा जाये.
रामराम.
चर्चा का अंदाज़ बदल गया, टिप्पणी का अंदाज़ बदल गया पर है तो ब्लाग चर्चा ही:) अंदाज़ अपना अपना, खयाल अपना अपना:-)
अब तक छप्पन...दर्पण की स्टाईल भी...वाकई स्टाईल किंग हैं महाराज!! छा गये.
ये अतीत के झरोखे से और अतिथी पोस्ट का आईडिया धांसूं है भाई..बेहतरीन प्रारुप बनाया है चर्चा का. आनन्द आ गया. बहुत शुभकामनाएँ.
बहुत ही बढिया जी बहुत ही बढिया...कमाल हो रहा है अब तो..अब कोई कहे जरा कि हमारी चर्चा नहीं हो रही ..लगे रहिये जी....शुभकामना है
बदलाव की हवा के साथ ....बहुत बढ़िया चर्चा हुई .....
बहुत बढ़िया चर्चा बहुत बढ़िया लिंक मिले.
दर्पण जी को अनगिन बधाइयाँ....आय..हाय..हिंदी चिट्ठों की चर्चा भी तो बदल रही है....
इतनी सुन्दर चर्चा क्यों करते हैं भाई ? नज़र वज़र लगवाने के इरादे हैं क्या ख़ुद को ?
DARPAN JI .......
AAPKA CHARCHA KA BHI APNA ANDAAZ HAI .... JI BAHOOT HI LAJAWAAB HAI ..... AAP HAR VISHAY MEIN APNI CHAAP CHOD JAATE HAIN, BAS YAHI KHOOBI HAI AAPME .... MAZAA AA GAYA AAJ FIR ...
गजब..इधर भी कहर ढा दिये!!!
आज एकाएक यहाँ पर आई चिठ्ठा चर्चा के एक लिंक से. यह तो बडे गजब की चर्चा है दर्पण ! क्या थीम है ! क्या अन्दाज़ है लिखने का ! बधाई! आपके लेखन में यूँ ही नवीनता का वास हो यह कामना प्रेषित है.
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