प्रस्तुतकर्ता : पंकज मिश्रा
नमस्कार जी, आज की चर्चा में फिर से मै पंकज ही हु , का करे हेमंत भाई की बारी थी लेकिन हेमंत जी अभी अभी इलाहाबाद से वापस आये है तो मै बोला आज आप आराम कर लीजिये , काहे के कि सम्मलेन से वापस आये है न ...........सम्मलेन में का का हुआ है आप तो जान ही रहे है .....
अगर नहीं जान रहे है तो यहाँ डॉ. अरविंद मिश्रा की लाइव तो नहीं लेकिन एक रिपोर्ट लिखी गयी है पढ़ लीजिये ....पसंद आयेगी .......का ,.... गारंटी ? चलिए गारंटी भी दे देता हु न पसंद आये तो एक कमेन्ट और कर जाना हमारे ब्लॉग पर :)
अरविंद मिश्रा जी उन ब्लागरो में सही जिसके लिए विनीत ने कहा कि आज हिन्दी में भले महावीर प्रसाद द्विवेदी न हों लेकिन तमाम रेणु, तमाम प्रेमचन्द छोटे-छोटे ताजमहल के रूप में उभर रहे हैं.....
मिश्रा जे ने लिखा है कि ---इलाहाबाद से लौट कर :कुछ खरी कुछ खोटी और कुछ खटकती बातें !
अब ये पढ़ लीजिये , दोस्त-दोस्त न रहा
सतीश जी ने भी बताया कि-बुद्धि और विवेक का गूढ अंतर......है या नहीं है..... है....बहुत है।
यही हाल हमारे अर्थशास्त्रज्ञों और निति नियंताओं का भी है। वो गणना करके यह मानते ही नहीं कि महंगाई बढी है। उनके गणनानुसार मुद्रा स्फिति निगेटिव है। सभी आंकडे महंगाई के काबू में होने की बात कह रहे होते हैं । गौर से देखा जाय तो इन नीति निर्माताओ का भी हाल उसी व्यापारी की तरह है जो गणना करके औसत आदि निकाल कर अपने को बुद्धि वाला मानता था। यहां हमारे मंत्री -अफसर भी उसी की तरह विवेक नहीं लगा रहे हैं। उन्हें कौन समझाये कि सरकारी बाबूओं द्वारा उपलब्ध आंकडे तो उस लकडी की तरह हैं जिससे व्यापारी ने बुद्धि लगाकर नदी की गहराई नापी थी। लकडी ने कहीं दाल नापी, कही पर शक्कर, एक जगह भूसा नापा, एक जगह आलू तो कहीं बिना कुछ नापे ही आंकडे भर दिये। यहां ध्यान देने की बात है कि सरकारी रौबदाब में लकदक आंकडेबाजी की लकडी वैसी की वैसी ही रही। न घटी न बढी, लेकिन जीवनरूपी नदी तल की गहराई जरूर कम ज्यादा होती रही।
राजेय शा जी ने भी कुछ यु फरमाया है-हमने जिन्दगी की डगर यूं तय की
हमने जिन्दगी की डगर यूं तय की, |
अमिताभ श्रीवास्तव-सवाल आपसे हैं, उनसे नहीं जो सवाल पैदा कर रहे हैं
कल मुम्बई में अफरा-तफरी मच गई। मध्य-रेल अचानक ठप्प हो गई। सुबह के उस समय यह सब हुआ जब लाखों लोग अपने कार्यस्थल की ओर रवाना होते हैं। एक निर्माणाधीन पुराना पाईपलाइन वाला पुल टूट कर लोकल ट्रेन पर गिर जाता है, हाहाकार मच जाता है। मचे भी क्यों नहीं आखिर ट्रेन हादसे मे मौत भी हुई और घायल भी हुए। ऐसा लगा मानों किसी परिवार के मुख्य व्यक्ति को हार्ट अटैक आया और परिवार वालों में भगदड मच गई। बदहवासी छा गई। सारा कामकाज रुक गया। सबकुछ उलट-पलट सा गया। मुम्बई की लोकल ट्रेन को भी तो जीवन रेखा ही माना जाता है। यही वजह है कि कल लोग किस हाल में थे, और किस हाल में घर पहुंचे..बडी करुणामयी कहानी है। |
कविता - तुम ही दीप जला जाती हो
सूने कमरे, सूना आँगन | ""भारत-माता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")"प्राणों से प्यारी माता के लिए, मैं सागर हूँ देव-भूमि को, |
पहेलिया ताउजी की तरफ से ....भाई मै तो जीतता नहीं आप ट्राई कर लो :)
| सवाल है : नीचे के चित्र में यह पौधा काहे का है? इस पौधे के पास आपको कोई जीव, जानवर, पशु या पक्षी दिखाई दे रहा है क्या? अगर दीख रहा हो तो उसका नाम बताईये! |
आशीष खंडेलवाल जी का सन्देश गूगल के नाम-गूगल, यूं हिंदुस्तानियों के साथ खिलवाड़ न करो
प्रिय गूगल,
इसमें कोई संदेह नहीं कि तुम हर इंटरनेट यूजर की ज़रूरत हो और इंटरनेट पर उसके सबसे अच्छे दोस्त हो। यह भी सही है कि तुमने इंटरनेट पर क्रांति का सूत्रपात किया है और इंटरनेट को नए तरीके से परिभाषित किया है। इसी वजह से आज तुम इंटरनेट पर सबसे बड़े खिलाड़ी के रूप में काबिज हो।
लेकिन क्या इस ताकत ने तुम्हें इतना बड़ा बना दिया है कि तुम सम्प्रभु देशों की भौगोलिक सीमाओं को भी अपने हिसाब से बदल सको? दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को इतना कमज़ोर समझो कि उसकी भौगोलिक सीमाएं दूसरे राष्ट्रों को समर्पित कर दो।
रतन सिंह शेखावत जी का जुगाड़ -जुगाड़ ब्लॉग एग्रीगेटर का
अब बारी टिप्पू चच्चा की , इलाहाबाद से वापस आये और रिपोर्टिंग पेश कर दी एकदम से तेज आपभी पढ़ लो ! जय हो टिप्पू चच्चा की ...
आये थे सम्मलेन में लोटन लगे लोट्वास,:इलाहाबाद से लौट कर
सबसे पहले तो चच्चा की तरफ़ से टिप तिप ..टिप टिप संभालो जी। अब आप ये पूछेंगे कि चच्चा दू दिन कहां गायब हो गये थे? त हम अप लोगन का पूछने से पहले ही बता देता हूं कि हम इलाहाबाद कुंभ मा गये रहिन….अब आप फ़िर पूछेंगे कि इ कुंभ अभी कहां से आ टपका? त भाई इ ब्लागर कुंभ रहा… अब हम इस पर का रिपोर्ट करें? पल छिन की रिपोर्टवा त आपको मिल ही रहा है..यानि लाइव टेलीकास्टवा त चल ही रहा था न? कैसन सब बडकवा छुटकवा लोग इतरा रहा था ऊ सब त आपको मालुम चल ही गया होगा ना? अऊर एक खास खबर ई है कि आजकल मगरुरवा भीख मांगत फ़िरत हैं…अरे भाई समझत काहे नाही हो? मतबल ई कि जिन लोगन की खिल्ली उडाने काम ऊ करत रहत थे उन लोगन से आजकल कवि बनने का खातिर भोट मांगत फ़िरत हैं…उनका जी टाक मा भीख मा भोट मांगत फ़िर रहे हैं…पहले काहे नाही सोचा ? लोगों का खिल्ली उडाने से पहले सोचने का था कि कभी कवि बनने का लिये भीख भी मांगनी पड सकत है. |
अब बारी अतीत के झरोखे की
आज अतीत के झरोखे में प्रस्तुत है श्री मनोज मिश्रा जी का लेख-
दीप की लौ मचल रही होगी |
सच कहते हैं बड़े - बुजुर्ग ज़माना बदल गया ...
अदा जी ने प्रस्तुत किया है संस्मरण
गा दिए हैं हम.... 'ये है रेशमी जुल्फों का अँधेरा'......
एक तो हम लड़की पैदा हुए, दूसरे मध्यमवर्गीय परिवार में, तीसरे ब्रह्मण घर, चौथे बिहार में और पांचवे थोडा बहुत टैलेंट लिए हुए, तो कुल मिला कर फ्रस्ट्रेशन का रेसेपी अच्छा रहा. याद है हॉल में सिनेमा देखने को मनाही रही......काहे कि उहाँ पब्लिक ठीक नहीं आती है.... सिनेमा जाओ तो भाइयों के साथ जाओ....तीन ठो बॉडीगार्ड ...और पक्का बात कि झमेला होना है...कोई न कोई सीटी मारेगा और हमरे भाई धुनाई करबे करेंगे....बोर हो जाते थे...सिनेमा देखना न हुआ पानीपत का मैदान हो गया...इ भी याद है स्कूल से निकले नहीं कि चार गो स्कूटर और मोटर साईकिल को पीछे लग जाना है...हम रिक्शा में और पीछे हमरी पलटन...स्लो मोसन में .... घर का गली का मुहाना आवे और सब गाइब हो जावें....एक दिन एक ठो हिम्मत किया था गली के अन्दर आवे का.
अनिल पुसदकर-दिखा-दिखा!अरे यार,छा गया तू तो, पक्का ये किसी लड़की की राईटिंग है!
एक शाम ऐसे ही मस्ती का दौर चल रहा था कि उस समय का महान खबरी बाबा (प्यार का नाम) आ टपका।वो मेरे साथ कालेज मे पढने के अलावा उस समय दैनिक भास्कर मे काम भी करता था।उसे वाईल्ड कार्ड एंट्री मिली हुई थी और उसका पूरा ध्यान उस समय किसका चक्कर किसके साथ चल रहा है और शहर की खूबसुरत लड़कियों की अपनी डायरेक्ट्री को समृद्ध करने मे लगा रह्ता था।अच्छे भले टापिक पर चल रही बकर(बहस) को वो अबे ये कंहा रह्ती है?अबे उसका नाम क्या है?अबे इसका चक्कर उससे है क्या जैसे टिपिकल सवालो से निपटा देता था। |
स्मार्ट इंडियन-चौथी का जोडा (खंड २): इस्मत चुगताई
कुछ जाने पहचाने, कुछ अनजाने : चिट्ठों को हम लगे सजाने (चिट्ठी चर्चा )- इतने सारे फ़ुरसतिये, निठल्ले, ब्लागियों का संगम हो गया है । मैं तो रपटें पढ पढ के और सबकी फ़ोटुएं देख देख ही यहां से सबको अर्घ्य दे रहा हूं। बहुत अच्छा लगता है जब चारों तरफ़ खुशी का माहौल होता है ...इश्वर करे यूं ही ये कारवां चलता रहे । |
लवीजा " हम सबकी प्यारी "--मेरा गाँव, मेरा देश और मेरी मस्ती
अब " नजर-ए-इनायत "
यह कांग्रेस की जीत तो कतई नहीं है-विकल्पहीनता की स्थिति में जनता ने कांग्रेस को वोट दिया तीन राज्यों की विधानसभा चुनाव में मिली जीत का श्रेय कांग्रेसियों और कुछ कांग्रेसप्रस्त मीडिया संस्थानों ने सोनिया और राहुल गांधी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन को दिया है ब्लैक फ्रिंज-अब असुविधा पर अपनी कविताओं के साथ-साथ हिन्दी के महत्वपूर्ण रचनाकारों की रचनायें पढवाने का भी विचार है। इस क्रम में आज कवि कथाकार विजय गौड़ की कहानी । हिन्दी की कहानियों में विविधता के अभाव को देखते हुए विज्ञान केंद्रित यह कहानी ख़ास लगती है नेह मनुज को मिल जाता तो..-गीत... नेह मनुज को मिल जाता तो, यह जीवन बेकार न होता. होकर भी सुन्दर-सुखकारी, अर्थहीन संसार न होता.. प्रिय रूठे तो लगता जैसे, जग ही हमसे रूठ गया है. कौन क्या भूला !!!आकाश - ok then, बाद में बात करते हैं. अनुष्का - अरे sorry यार. रुको. ये लो काम बंद कर दिया. आकाश - bbye... take care.. अनुष्का - अरे please रुक जाओ यार.. हँस के जीवन काटने का मशवरा देते रहे-हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे. धूप खिलते ही परिंदे, जाएँगे उड़, था पता बारिशों में पेड़ फिर भी, आसरा देते रहे जो भी होता है, वो अच्छे के लिए इलाहाबाद ब्लॉग ओवर...खुशदीप-ब्लागरों के लड़ने झगड़ने की आदत यहां भी नहीं गयी इलाहाबाद से लौट कर :कुछ खरी कुछ खोटी और कुछ खटकती बातें ! इलाहाबाद ही क्यों , अहमदाबाद या हैदराबाद क्यों नहीं ? जानबूझकर दूर रखे गये हिन्दूवादी ब्लागर रोड इंस्पेक्टर-पापा ये शंकर अंकल क्या काम करते हैं' छोटू अपने पापा की गोद में चढ़कर बोला। 'क्यों क्या हुआ?' पापा ने गंभीर होकर पूछा। 'बस ऐसे ही ...। अंकल कितने अच्छे हैं ना। हमें सारे दिन साइकिल पर घुमाते हैं निर्मला कपिला जी की श्रेष्ठ रचनाएं-मुझे तलाश थी एक प्यास थी |
ब्लागजगत में नए चिट्ठे
बेधड़क आवाज-वेद प्रकाश
आज मेरा मन परेशान सा लग रहा था .आचानक मन में प्रश्न उठा मैं कौन हूँ ?
कहाँ से आया हूँ? जाना कहाँ है ? आख़िर इस संसार का रहस्य क्या है ?
तभी अचानक मेरी नजर रसोई में रखी प्याज पर गयी और समाधान भी मिलता नजर आया .आप सोचेंगे प्याज से संसार के रहस्य का समाधान ?शायद वेद का दिमाग फ़िर गया है ।
हर किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता-kashyap kishor mishra
ये किस मुकाम पर हयात मुझको ले के आ गई
हर कोई अपनी जिन्दगी के तमाम मुकाम तय करता है, हर एक प्रत्येक मुकाम उसे कुछ न कुछ ऊंचाई दे कर जाते है, पर ऐसा भी होता है, कि हम अपने आपको उस मुकाम पर पाते है , कि ख़ुशी या ग़म सब अपने इख्तियार से बाहर नज़र आता है । क्या ये हमारी आदमियत कि सीमाये है, या इस्वर का दिशानिर्देश कि बस यही तक यही तक हमारा बस है हम पर
अब दीजिये इजाजत कल आपसे रूबरू होगे हमारे चर्चा परिवार के " श्री रूपचंद शास्त्री जी " .........रात के 2.30 बज गए है ....ये सब लिखते लिखते ..अगर किसी भाई का ब्लॉग छुट रहा हो तो हमें सूचित करे इस पते पर ....hindicharcha@googlemail.com
धन्यवाद , नमस्कार
26 comments:
धन्य हैं पंकज भाई आप , आपकी बारी नहीं थी फिरभी आपने इतना दिल लगा कर यह चर्चा प्रस्तुत की है । पुराने सभी ब्लॉगर्स को बधाई इस चर्चा के लिये और नये ब्लॉगर्स वेद प्रकाश और कश्यप किशोर को शुभकामनायें - शरद कोकास ,दुर्ग छ.ग.
bahut achchhe charcha ...kai chitthon ko dekh aae ...
पंकज मिश्र जी!
आज की चर्चा पढ़कर तो मन प्रसन्न हो गया।
"आये थे सम्मलेन में लोटन लगे लोट्वास," और
"अरविंद मिश्रा जी उन ब्लागरो में सही जिसके लिए विनीत ने कहा कि आज हिन्दी में भले महावीर प्रसाद द्विवेदी न हों लेकिन तमाम रेणु, तमाम प्रेमचन्द छोटे-छोटे ताजमहल के रूप में उभर रहे हैं....."
चलिए कोई तो खड़ा हुआ,
दादा-गिरि के विरुद्ध गांधी-गिरि करने के लिए।
"चर्चा हिन्दी चिट्ठो की" में स्थान पानेवाले श्री अनूप शुक्ल जी एवं
अन्य सभी को शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ"
पंकज भाई राम-राम-आपने ढाई बजे तक मेहनत की,इससे ज्यादा चिट्ठा जगत के लिए समर्पण क्या होगा, जिस तरह अंग्रेजो के राज मे कहते थे कभी सुर्यास्त नही होता वैसे ही अपने "चिट्ठा साम्राज्य" मे कभी सुर्यास्त नही होता,जब हम सोते हैं तब तक हमारे अमेरिका, लंदन वाले साथी जाग जाते हैं टिप्पणियों का दौर चलता ही रहता है- आपके जज्बे को प्रणाम-बहुत ही अच्छी चर्चा रही-समय होतो एक-पान हो जाये, आभार
पंकज बाबू,
आज तो गुड मोर्निंग की बेरा है
चिटठा चर्चा बस चका-चक है
आपकी कलम ने गजब जादू फेरा है
शुक्रिया पंकज -सच को कहना ही पड़ेगा -काल बली है !
पंकज जी बेहतरीन लगी चर्चा...
चर्चा सुंदर है।
अच्छी रही ये चिटठा चर्चा भी ..!!
ललित भाई, पंकज जी को एक पान मेरी तरफ से भी खिला दीजिए,
गुलकंद डाल कर...समझा कीजिए खुश रखना पड़ता है भाई...
जय हिंद...
kabhi idhar bhi nazar dalen...
http://chavannichap.blogspot.com
पल्टू साहब ने कहा है :
"गारी आई एक से, पल्टे भई अनेक
जो पल्टू पल्टे नही, रहै एक की एक"
सच कहा अरविंद मिश्राजी ने "काल बलि है!" काल के आगे सब बेबस हैं.
रामराम.
पंकज जी,
बढिया रही आज की चर्चा. पढ़कर मन आनंद आनंद छायो हो गया.
यह पोस्ट सम्मेलन ही अच्छा है
इलाहाबाद से अच्छा तो अपना यह ब्लॉग है
इसमें पोस्टों की
मन की
विचारों की आग है
एक मन भावन राग है।
चर्चा सुंदर रही.
वैसे तो नजर रखे हूँ पूरे घटनाक्रम पर मगर सब का निचोड़ यहाँ देख अच्छा लगा और भी जानकारी हाथ लगी. मंच की सजगता और साहस देख दिल खुश हुआ. ऐसे ही जारी रहें, शुभकामना.
सभी ब्लागों का सार-सारांश देकर सभी को पढने का अवसर दिया है। अच्छी प्रस्तुति है, बधाई।
बहुत सुन्दर चर्चा पंकज जी !
एकदम बढिया चर्चा !!!
मिश्रा जी का कहना बिल्कुल सही है !!
Pankaj bahi aap aur tippu chacha to sarv gyani ho ....
aap dekh sakte ho ki 3-4 din se na kuch likha hai ,aur tippani bhi bahut kum ki hai....
...Par aapke blog (apne blog) main tippani karne zarror aata hoon....
...post bhi sabki padta hoon...
isliye aapke blog ke madhyam se sabse kshama prarti hoon !!
:(
dekho kab tak rehta hai ye tehrav.
अत्यंत मनमोहक चिटठा चर्चा
आपने बहुत मेहनत से इसको तैयार किया है
आपका आभार
sundar charcha...
बहुत बढिया।
चर्चा अच्छी रही ......... मज़ा आ गया ......
अच्छी चर्चा....
बहुत खूब ..सुंदर चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद
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