नमस्कार ......आज आपको फिर से आपको वरिष्ठ ब्लॉगर की पहली पोस्ट में सु.अल्पना वर्मा जी की पहली पोस्ट पढ़वा रहा हु ..
पहली पोस्ट एक होती है जिसे उस समय शायद कम ही लोग पढ़ पाते है हमारा प्रयास होता है उस पोस्ट को दुबारा आपको पढ़वाने का !!
सु.अल्पना वर्मा जी ने पहली पोस्ट लिखी थी अपने ब्लॉग Vyom ke Paar...व्योम के पार
पर सन २००७ , १३ सितम्बर को ....
अमलतास के पीले झूमर
जब भी देखा तुमको,
सोचा-
पूछूँ-
रंग चुराया धूप से तुमने
या फिर कोई रोग लगा है?
झुलसते जलते मौसम में
कैसे तुम लहराते हो?
खुश्क गरम हवाओं को भी
कैसे तुम सह पाते हो?
कैसे तपती धरती को
छाया दे बहलाते हो?
झूमर कुछ पल मौन रहे,
पर-
फिर भी यूँ बोल गये,
कड़ी धूप नहीं कोई समस्या
ये तो बस है एक तपस्या,
कठिन डगर जीवन की
जो ऐसे ही तय कर पाते हैं,
वो ही रंग और संग जीत का
जीवन में पा जाते हैं।
--अल्पना वर्मा
कैसा लगा हमारा प्रयास हमें अवश्य बताये .....
धन्यवाद
Tuesday, November 03, 2009
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36 comments:
ये प्रयास तो अति सुन्दर है. अक्सर प्रथम पोस्ट बिना पढ़ी रह जाती है. बहुत आभार आपका.
धन्यवाद, अल्पना जी की इस सुन्दर कविता को पढ़वाने के लिए !
ये तो गज़ब बात हुई भाई
पहली पोस्त की चर्चा ?
नया प्रयोग एवम प्रयुक्त पोस्ट
दौनो बेहतरीन...?
nice
नई शुरुआत का यह प्रयास भी बहुत अच्छा है | किसी भी ब्लोगर की पहली पोस्ट अक्सर बिना पढ़ी ही रह जाती है आपके इस प्रयास से वो पढ़ी जा सकेंगी |
अच्छी लगी यह पहल। जारी रखिएगा।
ACHHA PRYAAS HAI....
हमेशा की तरह सराहनीय प्रयास..धन्यवाद पंकज जी!!
पुरानी पोस्ट का उत्खनन .. मतलब पुरातत्ववेत्ता का काम आप भी करने लगे -शरद कोकास ?
सराहनीय प्रयास और अल्पना जी की पहली पोस्ट भी सुन्दर लगी....
regards
आपका प्रयास उत्तम है .. सुंदर रचना पढवाने के लिए आभार!!
वाह यह भी अति सुंदर प्रयास है. पहली पोस्ट पढवाने का आपका यह मौलिक आईडिया पसंद आया.
अल्पनाजी की पहली पोस्ट बहुत सुंदर और बेहतरीन लगी.
आपका आभार.
रामराम.
कड़ी धूप नहीं कोई समस्या
ये तो बस है एक तपस्या,
कठिन डगर जीवन की
जो ऐसे ही तय कर पाते हैं,
बहुत ही सुन्दर पंक्तियां, आपका आभार इनको पढ़वाने के लिये ।
अल्पना वर्मा जी को बहुत-बहुत बधाई!
इनकी यह पोस्ट तो मैंने सरस-पायस पर भी पढ़ी है।
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है।
sundar rachna, accha post...
bahut hi umda lekhan aur pahli hi post mein itna badhiya hai .........phir to kuch bhi kahne ke liye nhi rah jata........badhayi
पुरानी यादें, खासकर सुंदर यादें सभी को अच्छी लगती हैं। इसलिए आपके इस प्रयास की जितनी सराहना की जाए, कम है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
bahut hi sundar rachna... aur kaafi achha prayas kyunki meri saari purani nazmein to jaise unchuyin rah gayi hain :)
Hope kabhi wo bhi aa jayengi yahan par :D ...Nice initiative BTW
alpnaji ko dher sari badhai
अति सुन्दर प्रयास है pankaj जी ......... pahli post बड़े दिल से likhi जाती है और अक्सर कम ही लोग पढ़ paate हैं isko ............ बहुत आभार .........
aapne sahi kaha,hum aage badhte kram me hote hain pahli post padhakar bahut achha kiya
bahut achchci lagi yeh post......
अल्पना वर्मा जी की पहली पोस्ट जब भी छपी थी ...तब तो शायद न कह पाए हों कुछ .....आज कहते हैं ....
बधाई .!!!
और इसको पढ़वाने के लिए धन्यवाद कर रहे हैं पंकज बाबू आपको ......रख लीजिये तकिया के नीचे...
इस कोशिश की जो भी और जितनी भी तारीफ हम करेंगे कम ही होगा इसलिए बेकार है कोशिश करना...समझे कि नहीं आप !!!
अल्पना जी की कविता शानदार है. आपकी यह कोशिश भी प्रशंसनीय है,इसे बरक़रार रखें.
बहुत अच्छा प्रयास...अल्पना जी की कविता भी बहुत सुन्दर लगी!
अच्छा प्रयास !!
-पंकज जी मेरी पहली पोस्ट को यहाँ चर्चा में स्थान दिया उस के लिए आभारी हूँ.
मैं ने जब ब्लॉग शुरू किया था तब से मुझे एक साल तक हिंदी एग्रीग्रेटरों का ज्ञान ही नहीं था. २००८ में इन के बारे में मालूम हुआ तब मैं ने अपने ब्लॉग लिखना नियमित किया.
-आप सभी जिन्होंने इस पोस्ट को पसंद किया उनका भी दिल से आभार.
-इस नए प्रयास हेतु शुभकामनाएं.
अति सुंदर प्रयास.धन्यवाद
अल्पना जी की पहली पोस्ट पढ़वाने के लिए आभार।
अल्पना जी की पहली पोस्ट पढ़वाने के आभार।
सराहनीय प्रयास है,अल्पना जी की इस पोस्ट को पढने का मौका देने के लिये आभारी हूं आपका।
पहली पहली पोस्ट है
पहली पहली चर्चा है
पहली पहली बार है...
सच पहले प्यार का नशा ही कुछ और होता है...अल्पना जी को बालासुब्रह्मामण्यम के इस गीत के साथ ही सुरीली बधाई...
जय हिंद...
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जय ब्लोगिग विजय ब्लोगिग
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फिर भी यूँ बोल गये,
कड़ी धूप नहीं कोई समस्या
ये तो बस है एक तपस्या,
कठिन डगर जीवन की
जो ऐसे ही तय कर पाते हैं,
वो ही रंग और संग जीत का
जीवन में पा जाते हैं।
सन २००७,१३ सितम्बर,अल्पनाजी की लिखी पहली पोस्ट
पढकर मैने यह महसुस किया कि वो ही सुन्दर-प्राभावित करने वाली लिखाई का रंग है..और संग जीत का वो ही जुनुन है।
अल्पनाजी, के बारे मे मै इसलिऍ इतना लिखने की जरुरत कर सकता हू क्यो की इन्ही के ब्लोग 'Vyom ke Paar...'व्योम के पार' पर अल्पनाजी की दिल को छूने वाले अक्षरो ने मुझे इस हिन्दी चिठाकारी मे खिचा..... मैने पहले भी एक जगह कहा था-"हिन्दी चिठाकारी मे अल्पनाजी के समकक्ष बहुत कम
लोग है जिनकी लेखनी प्रभावित करती है।"
मैने जब 'हे प्रभू यह तेरापन्थ' ब्लोग बनाया था
तभी सबसे पहला हिन्दी चिठ्ठा 'व्योम' ही था जो मुझे इस और आकृष्ट किया।
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पहेली मे भाग लेने के लिऎ निचे चटका लगाऎ
कोन चिठाकार है जो समुन्द्र के किनारे ठ्हल रहे है
अणुव्रत प्रवर्तक आचार्य तुलसी
मुम्बई-टाईगर
बहुत सुन्दर लगा. अल्पना जी की सुन्दर कविता के लिये आभार
अल्पना जी की पहली पोस्ट पढ़वाने के लिए धन्यवाद.......... आपकी यह कोशिश प्रशंसनीय है
क्या बात है पंकज जी कोई चर्चा नही हुई आज..सब ठीक तो है?
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