नमस्कार , चर्चा हिन्दी चिट्ठो के अंक के साथ मै पंकज मिश्रा ……..कल किंचित कारण से चर्चा नही हो पायी थी …आज आप चर्चा पढिये और आनंद लिजिये ….
चर्चा की शुरुआत ताऊजी के ब्लाग से …..ताउजी ने आज गधा सम्मेलन स्थल से प्रथम अनोपचारिक रिपोर्ट पेश किया है …आप उसे ताऊ डाट इन पर पढ सकते है…
अब हुआ यह कि ताऊ, राज भाटिया जी और योगिंद्र मोदगिल जी यानि तीन तीन हरयाणवी एक जगह मिल गये तो फ़िर क्या कहने जब जगाधरी के घडे भी साथ हों? यूं भी तीनो काफ़ी दिनों बाद मिले थे सो प्रेम भी काफ़ी उमड घुमड रहा था सो तीनों ने एक ही तंबू मे ठहरना उचित समझा. तो तीनों ने एक साथ ही रहने ठाह्रने की व्यवस्था करली और कवरेज भी साथ साथ ही करने लगे.
जो अतिथी पहुंच चुके हैं उनका रहने ठहरने का माकूल प्रबंध किया गया है. अतिथियों के लिये एक बहुत ही बडी भोजन शाला सम्मेलन स्थल के नजदीक ही बनाई गई है. आईये हम आपको सबसे पहेले इस अथिति शाला के अंदर की झलक आपको दिखलाते हैं.
इसलिए हमने सोचा कि अभी तक लिखे में खुद ही छांट कर अलग कर दें इस टाईप के सुभाषित और फिर हर एक नियमित समयांतराल में करते चलेंगे. और कुछ ध्यान में न भी होंगे तो आप बता देना. इससे एक तो किसी और को मेहनत न करना पड़ेगी और महान बनने में सरलता रहेगी. बताईये, ठीक है क्या यह आईडिया?
चिल्लर की तलाश में रुपये गँवाने वालों को सलाह है कि वो सरकारी नौकरी प्राप्त करने की कोशिश करें.
लफ्जो में मैंने जिन्दगी समेट कर उतार दी है लफ्जो में मैंने जिन्दगी समेट कर उतार दी है | कहीं यह मेरे पैरों से.....राह पर चलता हुआ आदमी |
हमारे महानगरों के बहुत से बच्चों ने अब तक बकरी नहीं देखी है
बकरी भी दूध देती है और ज़्यादा मजबूर करे तो मेंगनियाँ भी दे डालती है | जिन बकरियों को शोहरते-आम ( लोकप्रियता ) और बकाए-दवाम (अमरत्व ) के दरबार में जगह मिली उनमें एक गान्धी जी की बकरी थी | और दूसरी 'अख़फश ' नामी बुज़ुर्ग की रिवायत है कि वह बकरी नहीं बकरा था ।
शायरी में औज़ान ( वज़न ) और बहरों (छन्दों) की जो बिदअत (जोड़) ,अख़फश साहब ही से मंसूब (सम्बद्ध ) की जाती है । बैठे बैठे फ़ाइलातुन - फ़ाइलात (फारसी छन्द ) किया करते थे । जहाँ शक हो तस्दीक के लिये बकरे से पूछ लिया करते थे कि " क्यों हजरात ठीक है ना ?"
वह बकरा - अल्लाह उसे जन्नत में जगह दे - सर हिलाकर उनकी बात पर सान्द ( स्वीकृति ) दिया करता था । कहते हैं कि उस बकरे की नस्ल बहुत फैली और सोत जागते उनके मुँह से "यस सर ", " जी हुजूर ",'जी जनाब ' बजा फरमाया ' वगैरह निकलता रहता है । उन्हे बात सुनने और समझने की ज़रूरत नहीं होती ।
क्या आप हिन्दू हैं ?
"शक एवं हूण आदि का बर्बर आंतक फैलेगा। अतः जो मनुष्य इनकी बर्बरता से मानवता की रक्षा करेगा वह हिन्दू है"। मेरुतन्त्र के अतिरिक्त भविष्य पुराण, मेदिनी कोष, हेमन्त कोसी कोष ब्राहस्पत्य शास्त्र, रामकोष, कालिका पुराण , शब्द कल्पद्रुम अद्भुत रुपकोष आदि संस्कृत ग्रंन्थो में इस शब्द का प्रयोग मिलता है। ये सभी ग्रंन्थ दसवीं शताब्दी के आस पास के माने जाते है।
सत्रहवीं शताब्दी में ब्रिट्रेन अर्धसभ्य किसानों का उजाड़ देश था
इंग्लैंड के किसान की व्यवस्था उस ऊदबिलाव के समान थी जो नदी किनारे मांद बनाकर रहता हो। कोई ऐसा धंधा-रोजगार न था कि जिससे वर्षा न होने की सूरत में किसान दुष्काल से बच सकें। उस समय समूचे इंगलिस्तान की आबादी पचास लाख से अधिक न थी। जंगली जानवर हर जगह फिरते थे। सड़कों की हालत बहुत खराब थी। बरसात में तो सब रास्ते ही बन्द हो जाते थे। देहात में प्रायः लोग रास्ता भूल जाते थे और रात-रात भर ठण्डी हवा में ठिठुरते फिरते थे। दुराचार का दौरदौरा था। राजनीतिक और धार्मिक अपराधों पर भयानक अमानुषिक सजाएं दी जाती थीं।
"उजड़ा है प्यारा उपवन" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")सोने की चिड़िया के कुन्दन पंख सलोने नोच लिए, | प्रेम का अनुबंध है विनिमय तो होना चाहिएसाथ है जो आपका सुखमय तो होना चाहिए |
आपके जीवन की डोर, मुनीरखान की १५६०० रुपयो की बोतल मे
मैने, मेरे मित्र से कहा- "कि वह क्यो नही डाक्टर मुनीर खान को दिखाकर उनकी दवाई ~बोडी रिवायव~ को ले."
मेरे मित्र ने कहा कि वो वर्सोवा स्थित उनके घर पर बने दवा खाने गया था. डाक्टर मुनीर खान से मिला भी. उन्हे मेरी सारी समस्याओ एवम पुर्व मे ली गई टीटमेन्ट की जानकारी देना चाहता था पर वो इतने व्यस्त थे की मेरी बात को सुनने को राजी नही. बस डाक्टर मुनीर खा साहब तो एक ही बात करते रहे आप दवा कि एक बोटल ले जाऎ व उस दवाई को लेना शुरु करे ठीक हो जाऎगे. डाक्टर मुनीर खा ने साथ हीदायत दी कि एलोपैथिक दवायो को पुर्ण रुप से बन्द कर दे."
BODY REVIVAL की एक बोटल १०० एम एल की कीमत है १५०००/ जो एक दिन छोड के रात सोते समय ५ एम एल लेनी होती है. कोई भी बिमारी हो उसमे एक ही तरह की इस बोटल को थमा दिया जाता है. एलोपैथिक दवायो को पुर्ण रुप से बन्द करने को भी कहते है.
विनय बिहारी सिंह नाइस, विक्स एक्शन ५०० जैसी दवाओं पर अब जाकर केंद्र सरकार की नजर पड़ी है। न जाने कितने वर्षों से लोग इन दवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ डाक्टरों की सलाह पर और कुछ बिना सलाह के। विभिन्न...
तुम प्यार से मनाने का तरीका सीख लो..........शब्दों के जाल में उलझने की बजाये , | सुर्ख होठों पे लिखा है नाम अब तुम्हारा, |
आशीष जी का रिलेटेड पोस्ट विजेट और ब्लॉग ट्रेफिक
जो नया टेम्पले ट लगाया वह देखने में तो खुबसूरत था पर उसमे वह कोड नहीं था जिसके नीचे हिंदी ब्लॉग टिप्स वाले आशीष जी का रिलेटेड पोस्ट वाले विजेट का कोड लगाया जाना था परिणाम स्वरूप ज्ञान दर्पण पर यह रिलेटेड पोस्ट वाला विजेट नहीं लग पाया | और इसका नतीजा यह निकला कि ज्ञान दर्पण पर जो पाठको आये वे उस विषय से सम्बंधित दुसरे लेख नहीं पढ़ पाए और उस विजेट की वजह से जो यातायात बढा था वह अचानक २०% से ज्यादा गिर गया और पेज व्यू कम होने से ब्लॉग अलेक्सा रेंक में भी पिछड़ गया |
खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी : (103) रामप्यारी
सवाल है : ये कौन सा चौपाया हैं?
भारतीय राजनीति पर भ्रष्टता का 'कोढ़' कह लो या 'कोडा' !
न कोडा महाशय ने क्या महान कार्य किया इसके बारे में कुछ नहीं कहूंगा, क्योंकि कुछ बहुत ही संवेदनशील किस्म के खबरिया माध्यम, जो इसी चिंता में पतले हुए जा रहे थे कि यहाँ बहुत दिनों से कोई धमाकेदार वारदात नहीं हो रही है, और उन्हें टीआरपी की चिंता खाए जा रही थी कि अचानक बैठे-बिठाए दो मुद्दे मिल गए, एक जयपुर तेल हादसा और दूसरा कोडा ! उन्होंने पिछले कुछ दिनों में इनके पूरे बंश का की काला चिठ्ठा खोल डाला है ! अतः इनके बारे में मेरे ज्यादा कुछ कहने की जरुरत नहीं ! झारखंड राज्य बनने पर इनकी किस्मत के सितारे बुलंद हुए और यह एक आम आदिवासी से महापुरुष बन गया ! कोडा ने जो भी महान कार्य किये, उनका चिट्ठा तो अब खुलता ही जा रहा है, मगर इन्हें पाप करने के लिए मौका किसने दिया? सवाल यह है!
आज के अतीत के झरोखे में !! लाल और बवाल --- जुगलबन्दी !!
दिल में .............(बवाल)वाह, क्या दीवान तेरा, नूर सा फबता हुआ ! |
अब " नजर-ए-इनायत "
क्या बताऊंक्या बताऊं इन आंखों ने क्या मंज़र देखा धरती के सीने में उतरता खंजर देखा जिस धऱती पे थे उगते फूल शफ़ा के उस धरती पे लहू का समंदर देखा क्या पूछते हो, क्यूं आंखें नम हैं उस समंदर को भीतर उफनते देखा दिल से हल्की सी इक आह निकली आह को बवंडर में बदलते देखा
व्यंग्य -भारतीय पीलिया पार्टी में वारयल फीवर-व्यंग्य भा रती य पीलिया पार्टी में वायरल फीवर वीरेन्द्र जैन अंग्रेजी में एक कहावत है कि अगर डाक्टर कहता है कि आपको वायरल फीवर है तो इसका मतलब होता है कि उसे भी आपकी तरह कुछ समझ में नहीं आ रहा
"ब्लोग्गिंग के वर्तमान हालातों पर बिलागर्स (ब्लोग्गर्स नहीं ) का थौरो चिंतन."
रे छोडिये सीधा सीधा ..झेलिये न ..कि दोनो बदल रहे हैं । ब्लाग्गिंग सम्मेलन ( देखिये ई भी अब तो शोध का विषय बन गया है कि ऊ ठीके में ब्लाग्गिंग सम्मेलन ही था न कि सब ठो ब्लाग्गर मजे मजे में संगम डुबकी लगाने के लिये गये थे ) हो रहा है , कहिये कि जोरदार हुआ । भूगोल , विज्ञान, और इतिहास सब एके साथ बन गया जी । इसके तुरंत बाद एक ठो और सम्मेलन करा दिये अपने ताऊ जी ने.....गधा सम्मेलन । गर्दभ सम्मेलन ...कि कहें कि गजब सम्मेलन ..। ई तो नहीं पता कि ई सम्मेलन भी ऊ सम्मेलन के समां
हमारे ऊपर राज करने वालो में अंग्रेजो की मानसिक गुलामी आज भी हम कर रहे है . राष्ट्रकुल खेल इसी का तो प्रमाण है .राष्ट्रकुल यानी अंग्रेजो के गुलाम देशो का समूह . जो आज भी अपने को धन्य मानते है की अंग्रेजो ने हम पर उपकार किया
राजस्थान पत्रिका में 'काव्य मंजूषा'
अक्टूबर 2009 को राजस्थान पत्रिका, जयपुर संस्मरण के नियमित स्तंभ 'ब्लॉग चंक' में काव्य मंजूषा की एक कविता
ब्लाग्जगत मे नये चिट्ठे -
प्रजा पिता ब्रह्मा कुमारी विश्व विद्यालय का ज्ञान !!चिट्ठाकार: Murari Pareek
"मर" गया?? "मर" क्या है जो गया ?
संस्कार : जो कार्य हमने किया उसका हमें क्या फल मिलेगा, अच्छा या बुरा जो भी मिलना है उसी वक़्त आत्मा में रिकोर्ड हो गया |
इन तीनो गुणों के साथ "मैं आत्मा" इस शरीर के मष्तिष्क में निवास करती हूँ जैसे एक गाडी चालक ड्राइविंग सीट पर बैठ के पूरी गाडी को कंट्रोल करता है, न की पूरी गाडी में वो मौजूद होता है ठीक उसी भांति आत्मा मष्तिष्क में बैठकर पुरे शरीर की क्रिया करती है, जैसे एक घर में रहने वाला व्यक्ति घर की खिड़की खोलता है दरवाजा खोलता है, साफ़ सफाई का सारा कार्य करता है|
आत्मा भी उसी प्रकार अपनी समस्त इन्द्रियों का संचालन करती है| कुछ पूर्व निशानिया जो इंगित करती हैं की मैं एक आत्मा हूँ!
हम टिका माथे के मध्य भाग में लगाते हैं क्यों ?
अब आज के लिये इजाजत
आज बस इतना ही ......तनिक धीरज रखें !(नायक -नायिका भेद -3)
पंच* कह रहे हैं कि बहुत भूमिका हो ली ( भाग -१,भाग -२) अब आगे बढा जाय ! बहुत से लोग वैसा ही समझते हैं जैसा मैं पहले समझा करता था कि श्रृंगार रस केवल सजने सवरने ,आभूषण और अलंकारिकता की सुखानुभूति से ही
चलिए मैं पहले नायिका भेद से ही शुरू करता हूँ ! इस विषय पर मुझे विस्तृत साहित्य के अवगाहन पर यही लगा कि डॉ .राकेश गुप्त जिनसे आप इस श्रृखला के पार्ट एक में मिल चुके हैं इस विषय के अद्यतन अधिकारी अध्येता रहे है और उनकी डी. लिट .भी इसी विषय पर है ! उन्होंने उपलब्ध साहित्य के आधार पर हिन्दी साहित्य की नायिकाओं बोले तो हीरोईनों को १६ भेदों में बाटां है -कई उपभेद भी हैं ! और यह वर्गीकरण नायिकाओं के नायकों के मिस /निमित्त रागात्मक सम्बन्धों , उनके मनोभावों ,विभिन्न अवस्थाओं और परिस्थितियों पर आधारित है !
24 comments:
हमेशा की तरह आज भी बेहतरीन और विस्तृत चर्चा |
बेहतरीन चर्चा पंकज भाई..अतीत के झरोखे में हमारे बवाल को देख अतिशय खुशी हुई!!
बहुत सुंदर , और कमाल चर्चा रहे पंकज भाई....सब को समेट लिया आपने ...जारी रहे ..एक दम टनाटन..अभी पसंद भी चटका देते हैं ...
विविधता में रंगी चिट्ठा चर्चा
बी एस पाबला
पंकज जी!
"चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" से जुड़े हेमन्त कुमार, हिमांशु, दर्पण साह "दर्शन" और इस परिवार के सभी सदस्यों योगदान करने के लिए आपके सहयोगी हैं। सुना है आपको परसों अटैक आ गया था। जिसके करण कल की चर्चा नही हो पाई थी।
आप परिश्रम कम किया करें।
आपके स्वास्थ्य-लाभ की कामना करता हूँ।
आज की चर्चा बढ़िया रही
गधों को मिठाई नही घास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
सभी चिट्ठाकारों को बधाई!
विविधता भरी समग्र चर्चा
pankaj ji-chittha charcha badhiya rahi -abhar
गहरे बोध वाली चर्चा ।
आभार ।
शास्त्री जी ठीक ही कह रहे हैं - मेहनत थोड़ी कम करो न भाई ! वैसे भी कल का दिन मेरा ही था न ! हम हैं ही लापरवाह, थोड़े नॉन-सीरियस इंसान ।
खयाल रखेंगे भाई अब तो !
चर्चा बेहतर रही । आभार ।
लाजबाब चर्चा फोटो सहित बढ़िया प्रस्तुति.....
copy pest thanks mishra ji
लाजबाब चर्चा फोटो सहित बढ़िया प्रस्तुति.....
हमेशा की तरह आज भी बेहतरीन और विस्तृत चर्चा ...........
सुंदर चर्चा! बधाई!
सुन्दर और विविधता पूर्ण चर्चा पंकज जी !
सदैव की भान्ती आज भी चर्चा लाजवाब रही!!
बहुत शानदार और विस्तृत चर्चा, शुभकामनाएं.
रामराम.
badhiya...
jaisa ki rup chanji kah rahehai aap ko attac aa gaya tha aur dusre din hi aap ne itti mehnat ki tazzub. aisa hai to himansu ji ki salah gakat nahi hai.
आपने सारे बेहतरीन ब्लोगो को एक जगह समेट कर बेहतरीन चर्चा की है , बधाई हो ।
behtreen chittha charcha.
good hai ji good hai...
Jai Hind..
बहुत ही सुन्दर चर्चा है ......
आपकी चर्चा बहुत रोचक होती है!
किन्तु हम भी यही कहेंगे कि पहले स्वास्थ्य की ओर ध्यान दें।
पंकज बाबू...
चिटठा चर्चा तो बहुते ....नीक बा....एकदम फस्ट किलास .
रंग-रोगन.....किसिम-किसिम के तेवर...
और रकम-रकम के बानगी.....
मागुर ताबियात्वा के तो धेयान रखे के पड़ी ना. !!
अपना खूबे धेयान रखल जावे बस...
चर्चा कहीं भागल नइखे जात...
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