प्रस्तुतकर्ता : हिमांशु । Himanshu
"मैं
प्रयास केवल इसलिये नहीं करता
कि बस सफल ही हो जाऊँ
मैं
प्रयास इसलिये भी करता हूँ
कि सफलता से मेरी दूरी
मुझे कुछ कम लगे
निरर्थक, निरुद्देश्य जीवन
जीवन में गति कम न लगे
मैं प्रयास और प्रयास
इसलिये भी करता हूँ ।"
चर्चा के इस जिम्मेदारी भरे प्रयास को लेकर मन कई बार औचित्य-अनौचित्य के बीच झूलता रहा है । आज जब कुछ अवकाश के बाद चर्चा लेकर उपस्थित हूँ तो सामने 1000 प्रविष्टियों वाली चिट्ठा-चर्चा का बहुरंगा कलेवर सामने खड़ा हो गया है । अतीत का व्यामोह है ही ऐसा कि हम उससे निवृत्त हो ही नहीं सकते । परम्परा का आग्रह ही है जिसने मुझे इस कर्म में प्रवृत्त कर दिया है । चिट्ठा-चर्चा की हजारवीं पोस्ट लिखते हुए मेरी प्रिय चिट्ठाकार कविता जी जब यह लिखती हैं कि -
"चर्चा के इस मंच के इतिहास को इन अर्थों में बारम्बार दुहराना प्रासंगिक ही नहीं अवश्यम्भावी भी है कि आने वाले समय में इस नए इलेक्ट्रोनिक माध्यम को जनप्रिय बनाने वाले प्रत्येक व्यक्ति को अपनी परम्परा ( भले ही वह चार-छह-आठ-दस वर्ष पुरानी ही क्यों न हो) विदित होनी चाहिए | "
तो कहीं से भी इस परम्परा से विलग होने का जी नहीं करता । नामवर सिंह याद आते हैं (विवाद के लिये नहीं )। कविता के नये प्रतिमान की शुरुआत ही होती है इन पंक्तियों से -
"बौद्धिक जिज्ञासा यदि उच्च से उच्चतर स्तर पर अविश्रान्त भाव से आरोहण करती है और सत्य को स्पष्ट एवं स्पष्टतर रूप में देख पाती है तो इसका कारण पूर्व लेखकों द्वारा निर्मित चिन्तन की सोपान परम्परा है ।चर्चा का यह नवीन मंच भी वस्तुतः प्रकारान्तर से सत्य को स्पष्ट एवं स्पष्टतर रूप में देख पाने की एक कोशिश है और वस्तुतः वर्तमान से कदमताल करता हुआ भी परम्परा-संयुत यह मंच भविष्य की ओर उन्मुख होगा, इस विश्वास के साथ प्रस्तुत करता हूँ चिट्ठा चर्चा की हजारवीं पोस्ट की बधाईयों-केन्द्रित प्रविष्टियों का लिंक -
प्रमेय के सिन्धु को पार करने के प्रथम प्रयत्न, भले ही निरवलम्ब रहे हों, निश्चय ही विस्मयकारी हैं । परन्तु जब पूर्वसरियों ने सन्मार्ग दिखला दिया तो सेतुबंध अथवा पुर (नगर) की प्रतिष्ठा का कार्य विस्मयकारी नहीं रह जाता ।"
उड़न तश्तरी पर समीर लाल समीर और जोगलिखी पर संजय बेंगाणी - | |
चिट्ठाचर्चा और मैं.. | बहुत याद आता है धृतराष्ट्र संग बतियाना |
बहुत यादगार पल गुजरे चिट्ठाचर्चाकार मण्डली के सदस्य की हैसियत से. कभी मतभेद भी हुए, हिन्द युग्म में कॉपी पेस्ट का ताला लगा तो अच्छा खासा तूफान भी खड़ा किया इसी मंच से. फिर सब मामला रफा दफा हो गया. उस वक्त के विवादों में अच्छाई यह होती थी कि न तो कभी वो बहुत व्यक्तिगत हुए न ही कभी दीर्घकालिक. अनेक मुण्डलियाँ रची गई, लोगों द्वारा पसंद की गईं. | शुक्लजी ने यह प्रविष्टी जबरिया लिखवाई है :) कहा लिखो… तो क्या मजाल टाल देते…सो लिखी है. बाकी हम तो फ्लू से परेशान है, दर्द निवारक दवा निगल कर हिन्दी-मराठी जूतम पैजार पर अपने अलग दृष्टिकोण पर लिखने की सोच रहे थे, मगर मौका थोड़ा भावनाओं से जुड़ा हुआ था. अतः यह पोस्ट लिखी है. चिट्ठाचर्चा दीर्घकाल तक जारी रहे हमारी शुभकामनाएं. |
चिट्ठा चर्चा और मेरे अनुभव | बधाई की केक हाजि़र हैं |
मेरे कुछ सुझाव है : * चिट्ठा चर्चा का मासिक अंक निकालना चाहिए, जिसमे उस महीने के अच्छे चिट्ठों के बारे में उल्लेख हो। * ब्लॉग मेला, कहानी लेखन प्रतियोगिता टाइप के आयोजन चिट्ठा चर्चा के तत्वावधान मे किए जाने चाहिए। * नए चिट्ठाकारों को आगे लाने के लिए उनको चिट्ठा चर्चा मे शामिल किया जाना चाहिए। | पसंद चर्चा करने वालो की ही ना हो चर्चा करते समय , चर्चा हो उन मुद्दों की भी जिन पर ब्लॉगर बहस करना चाहते हैं । बहस को एक सार्थक बहस बनाने के लिये इस मंच को न्यूट्रल हो कर चर्चा करनी होगी और लोगो को आमन्त्रित करना होगा उस पोस्ट पर आ कर कमेन्ट मे चर्चा करने के लिये . |
ज्ञान जी ने सफाई-अभियान शुरु किया, अकेले अपनी अन्तःप्रेरणा से । खुद के भीतर से पैदा हुई कुलबुलाहट ने प्रवृत्त किया उन्हें । ज्ञान जी की प्रविष्टियों पर टिप्पणी करना कठिन लगता है मुझे, इसलिये भी कि वह सम्यक दृष्टि, वह आचरण अंशतः भी हममें नहीं । ज्ञान जी की प्रविष्टि सतीश पंचम जी के ई-मेले हुए ( संज्ञा को क्रिया बनते हुए देखिये) आख्यान से बन पड़ी है आज -
समसाद मियां - अथ सीक्वलोख्यान | |
हीरालाल नामक चरित्र, जो गंगा के किनारे स्ट्रेटेजिक लोकेशन बना नारियल पकड़ रहे थे, को पढ़ कर श्री सतीश पंचम ने अपने गांव के समसाद मियां का आख्यान ई-मेला है। और हीरालाल के सीक्वल (Sequel) समसाद मियां बहुत ही पठनीय चरित्र हैं। श्री सतीश पंचम की कलम उस चरित से बहुत जस्टिस करती लगती है। आप उन्ही का लिखा आख्यान पढ़ें (और ऐसे सशक्त लेखन के लिये उनके ब्लॉग पर नियमित जायें):- |
वन्दे मातरम पर फतवा, मराठी हिन्दी विवाद - सब अकुला गये हैं भीतर ही भीतर । हिन्दू भी,मुसलमान भी, हिन्दी भाषी भी, मराठी भाषी भी । यह सारे विवाद हमारे किसी काम के नहीं, किसी के किसी काम के नहीं । सब कुछ क्षणिक है । नीलोफर के ब्लॉग पर यह खबर पढ़ लीजिये -
देवबंद के फतवे को धता बताते हुए बैतूल बाजार की जामा मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल राजिक की अगुआई में मुसलमान समुदाय के एक समूह ने मस्जिद के सामने राष्ट्रगीत गाया। बैतूल बाजार की जामा मस्जिद के इमाम हाफिज अब्दुल राजिक के न्यौते पर इस सामूहिक गान को देखने के लिए मस्जिद के सामने विभिन्न संप्रदाय के कई लोग जमा हुए।धीरू जी ने इन विवादों पर अपनी दो टूक राय दी है, मेरी भी समझ में सच्ची और पक्की बात -
महंगाई सुरसा सा मुहं फाड़े खड़ी है . कोई उस और ध्यान ना दे इसलिए रोज़ एक नया विवाद . बेकार का विवाद - चीन के सैनिको ने घुसपैठ की , दलाई लामा की अरुणाचल यात्रा , देश की सीमा पर संकट , अल कायदा का अगला निशाना, कोडा के कारनामे और ना जाने क्या क्या . और अब १० -१५ दिनों के लिए राज ठाकरे .एक रोचक कार्टून पोस्ट किया है काजल कुमार ने हिन्दी-मराठी परिप्रेक्ष्य में (ऊपर देखें) और १५ साल से कलम-कंम्प्यूटर तोड़ने वाले खुशदीप का कोण भी निरखिये, हिंदी किस खेत की मूली है...-
हिंदी पिटी...बुरी तरह पिटी...अपने देश में ही पिटी...आखिर हिंदी है किस खेत की मूली...राष्ट्रीय भाषा कोई है हिंदी...जो महाराष्ट्र में चलेगी...जी हां, मैं भी इसी भ्रम में जी रहा था कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है...मैं क्या देश की आधी से ज़्यादा आबादी इसी मुगालते में होगी कि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है...हिंदी में ब्लॉगिंग करने वाले भी वहम पाले हुए होंगे कि हम तो राष्ट्र की भाषा में लिखते हैं...अरविन्द जी नायिका भेद लिख रहे हैं । यद्यपि पिछली श्रृंगार-विषयक प्रविष्टियों ने उन्हें डिगाया था, पर वे पुनः-पुनः प्रवृत्त होने वाले लोगों में हैं, स्वयं के प्रति ईमानदार, और शायद यही गुण उन्हें बहुप्रशंसित बनाता है । अरविन्द जी उस चिन्तन-परम्परा के चतुर चितेरे हैं जो मन से उत्पन्न हुए देवता को तनिक भी विस्मृत नहीं करती । यह वह देवता है जो आता है, छिप जाता है फिर मन में सुनहला दर्द पैदा होने लगता है । वर्षों के बंधन स्वतः ही खुल जाते हैं । मन का पंछी आकाश का प्रत्येक छोर छू लेना चाहता है ।
क्या यह अकारण है कि अरविन्द जी ने श्रृंगार-विषयक अपनी दूसरी श्रृंखला के प्रारंभ के लिये कार्तिक-मास की पूर्णिमा चुनी । कार्तिक मास को ऊर्जा-मास कहा गया है । नयी ऊर्जा से लबालब अरविन्द जी विष्णु के नये वर्ष के महीने अगहन (मार्गशीर्ष ) में अनवरत इस ऊर्जा का प्रसार कर रहे हैं । शायद यह बताने के लिये ही कि काम ऊर्जा है, ईश्वर का अधिष्ठान है । बस थोड़ी सावधानी चाहिये, अंधविरोध उचित नहीं । प्रविष्टियाँ सराहिये -
अरविन्द जी का नायिका-भेद | |
यह नायिका कहलाती है आगतवल्लभा ! | आज बात संयुक्ता की .. (नायिका-भेद) |
"प्रियतम के विदेश से अवश्यम्भावी वापसी की सूचना मिलते ही नायिका की खुशी का पारावार नहीं है -वह आह्लादित हो उठती है ! तन मन पुलकित है ,छाती भर आई है ,गालों पर लालिमा आ गयी है ! यह दशा देख सहेली आशयपूर्ण मुस्कराहट से कह पड़ती है ," सखि, लाओ यह दीन मलीन रूप तो साज संवार दूं " "रहने दो ,रहने दो ,ज़रा कंत भी तो देखें उनके विछोह ने मेरी कैसी गत दुर्गत कर डाली है ! " मगर फिर न जाने कुछ सोच कर अपनी सखी से प्रतिरोध नहीं करती और सखी उसकी साज संवार में लग जाती है! " | " चुपके से प्रियतम की आँखों को पीछे से आ ढँक लेने के बहाने प्रिय से आ लिपटी बाला ...... .फिर उसने मादक अंगडाई ले अपने अनुपम अंगों को दिखला डाला ......... प्रियतम ने तब भेद भरी बातों मे सहसा इक आग्रह कर डाला........ . शर्म से हुई छुईमुई बाला ने हँस कर बात को टाला ......... अगले ही पल बाला ने गले में प्रीतम के डाली बाँहों की माला "........... |
बकलम खुद में द्विवेदी जी का आत्मकथ्य लगभग पूर्ण होने की स्थिति में है । शब्दों का सफर शब्द-प्रेमियों का आवश्यक ठिकाना है, आश्रय है । प्रस्तुत हैं इस चिट्ठे की ताजा प्रविष्टियाँ -
सरदार की ब्लागरी शुरु [बकलमखुद] | मोहल्ले में हल्ला [आश्रय-21] |
तीसरा खंबा तक पहुँचने वाले पाठकों की संख्या बहुत कम थी। वह विषय आधारित ब्लाग था। सरदार ने कुछ पुराने ब्लागरों से पूछा तो सलाह मिली कि पाठक खुद ही जुटाने होंगे। कुछ दिन में महसूस हुआ कि ब्लाग जगत में ब्लागरों से अन्तर्क्रिया करना आवश्यक है अन्यथा यहाँ तुम्हें कोई नहीं गाँठने वाला। इस तरह कोई बाईस दिन बाद अनवरत का जन्म हुआ। अनवरत में पाठक आने लगे और अंतर्क्रिया भी खूब होने लगी। | आदिम मानव ने आश्रय की तलाश से पहले समूह में रहना सीखा। यानी समूह अपने-आप में आश्रय है। महल्ला mahallaभी एक समूहवाची शब्द है जिसमें आश्रय का भाव है। यूं इस शब्द का इस्तेमाल बसाहट के एक हिस्से के लिए होता है। हिन्दूवादी सोच के तहत महल या मोहल्ला की व्युत्पत्ति महालय से बताई जाती है। महा+आलय से बना है महालय। संस्कृत में महा यानी विशाल या बड़ा और आलययानी निवास। आशय हुआ विशाल भवन। |
राजकिशोर जी की एक वैचारिक प्रविष्टि आपके सम्मुख है । मुझे तो बहुत कुछ समझ में आया इस प्रविष्टि से । और भी जिन्हें समझना हो यहाँ पहुँचे और पढ़ लें -
दुनिया में जब से विषमता का सूत्रपात हुआ, तभी से समानता की भूख मनुष्य के मन में कुलबुलाती रही है। इसकी एक अभिव्यक्ति धर्म के रूप में हुई जो मानता है कि हम सब एक ही ईश्वर की संतानें हैं और इसलिए हम सभी का दर्जा बराबर है। लेकिन इस शिक्षा का पालन धार्मिक प्रतिष्ठान भी नहीं कर सके जिन पर धर्म का प्रसार करने की जिम्मेदारी रही है। ईश्वर के दरबार में राजा-रंक सभी की हैसियत बराबर होगी, पर धरती पर ईश्वर का राज्य तरह-तरह की विषमताओं से भरपूर है। यहां तक कि विचार करने की आजादी भी, जो मनुष्य को ईश्वर का सबसे बड़ा उपहार है, सभी को नहीं है। जो धार्मिक क्षेत्र स्वयं प्रदूषित रहा है, वह समाज और राजनीति में गैरबराबरी का समर्थन और पोषण क्यों न करता?एक नजर इधर भी डाल ही लें । पहली ही दृष्टि में शीर्षक (आग ,आटा और लोहा ) प्रभावित कर गया । आलेख तो खैर गजब है ही -
जब कभी दुनिया में वामपंथ के इतिहास की चर्चा होगी ये चर्चा भी जरुर होगी कि हिंदुस्तान के एक राज्य में २५ वर्षों तक राज्य करने के बाद कैसे एक वामपंथी सरकार अपने जैसे ही विचारधारा के लोगों की जानी दुश्मन हो गयी ,उस वक़्त ये भी चर्चा होगी कि कैसे एक देश की सरकार पहले तो अपने ही देश के गरीब और अभावग्रस्त लोगों की दुश्वारियों को जानबूझ कर अनसुना करती रही ,और फिर अचानक हुई इस जानी दुश्मनी का सारा तमाशा नेपथ्य से देखकर तालियाँ ठोकने लगी
मोटे लोग हमारी ब्लॉगिंग के शीर्ष-पर हैं (किसी का दिल तो नहीं टूटा?)। उनसे अनुरोध है कि वे अपने मोटापे को पहचान लें ! वे सेब हैं या नाशपाती ? क्योंकि मीडिया डॉक्टर साहब बता रहे हैं "मोटापा-सेब जैसा और नाशपाती जैसा ।" --
जो मोटापा कमर से ऊपरी हिस्से में होता है उसे Apple-shaped obesity कहते हैं और जो मोटापा कमर से नीचे वाले हिस्से में जमा होता है उसे नाशपती जैसा मोटापा ( pear-shaped obesity) कहा जाता है। यह तस्वीर देखने पर आप को अच्छी तरह से क्लियर हो जायेगा।तस्वीर वहाँ देख लें ।
अब कवितायें । रंजना रंजू भाटिया की कलम से भावना का अबाधित प्रवाह होता रहता है, वहीं अदा की काव्य-मंजूषा बहुप्रकार के रत्नों से समृद्ध है । झलक देख लें -
रंजना रंजू भाटिया की कविता सुनो और अदा की रचना दिल से - | |
सुनो ... | दिल से |
आसमान की तरह ""खाली आँखे "" धरती की तरह "चुप लगते "सब बोल हैं पर तुम्हारे कहे गए एक लफ्ज़ "सुनो "में जैसे वक्त का साया ठहर सा जाता है | है मुझको भी तेरे इश्क की खबर हम लिखने लगे ये फ़साना दिल से छपते ही रहे तेरे बयाँ हर सू अब पढने लगा है ज़माना दिल से आँखों में मेरे थे पड़े कई कोहरे तेरा उँगली से उन्हें हटाना दिल से तुम कहते रहे जाने कितनी बातें और मेरा वो सबकुछ सुन जाना दिल से |
कुछ और कवितायें -
पंकज शर्मा और सदा की कविता प्रविष्टियाँ - | |
रास्ते आते हैं जहाँ से जाते हैं वहाँ | कौन सा शब्द ...? |
रास्ते बदलने से गिरने से, संभलने से बचके निकलने से होता है कुछ कहाँ रास्ते आते हैं जहाँ से जाते हैं वहाँ | जाने कब कौन सा शब्द रच देता है इतिहास जिससे अमर हो जाती हैं रचनायें |
अब कविता जैसा कुछ-कुछ -एक मौसम खिल रहा है.. -
एक मौसम आसमान से उतर रहा था। एक मौसम शाखों पर खिल रहा था। एक मौसम पहाड़ों से उतर रहा था। एक मौसम रास्तों से गुजर रहा थाएक मौसम शानों पर बैठ चुका था कबका। एक मौसम आंखों में उतर रहा था आहिस्ता-आहिस्ता।
एक मौसम दहलीज पर बैठा था अनमना सा, एक मौसम साथ चल रहा था हर पल। न धूप... न छांव...न बूंदें... न ओस...न बसंत...न शरद बस एक याद ही है जो हर मौसम में ढल रही हैऔर लोग कह रहे हैं कि मौसम बदल रहे हैं...
जी०के० अवधिया भूत और भ्रम को अलग मानते हैं । हम तो अभी तक भ्रम को ही भूत समझते आये थे -
मैं शुरू से ही निशाचर टाइप का इंसान रहा हूँ याने कि रात में देर से सोने की आदत है मुझे, सोते-सोते लगभग एक डेढ़ बज ही जाते हैं। मैंने बैंक की लाइब्रेरी से "लोलिता" उपन्यास ईशु करा लिया था जिसे कि रात को सोने के पहले मैं पढ़ा करता था। उस रात भी मैं लगभग एक-सवा बजे तक पढ़ता रहा। फिर लाइट बुझाकर मच्छरदानी के भीतर घुस कर सोने का प्रयास करने लगा। कमरे में घुप्प अंधेरा था। एक दो मिनट बाद ही मुझे लगा कि सुब्रमनियम साहब के बेड, जो कि मेरे बेड के पास ही था और दोनों बेड के बीच एक टी टेबल रखा था, से खर्राटे लेने की आवाज आ रही है। उस समय मैं सोया नहीं था बल्कि सोने का प्रयास कर रहा था। मैं सोचने लगा कि यह आवाज कैसी है?
प्रश्न तो और भी हैं । प्रश्न रखने, समाधान खोजने के आतुर जाकिर अली रजनीश जी की प्रविष्टि देखिये , छ: साल के लड़के के लिए प्रेम पत्र का क्या मतलब है? -
मैं अपने बड़े बेटे अहल की बात कर रहा हूँ। उसकी उम्र है 6 वर्ष और वह वर्तमान में के0जी0 का विद्यार्थी है। यह घटना अभी पिछले सप्ताह की ही है। हुआ यूँ कि वह एक काग़ज़ पर कोई ड्राइंग बना रहा था। अपनी ड्राइंग को पूरी करने के बाद उसने अपनी मम्मी से अन्नपूर्णा शब्द की स्पेलिंग पूछी। अन्नपूर्णा उसके क्लास की ही एक लड़की है और स्कूल की बातों के दौरान घर में अक्सर उसका जिक्र आता रहता था। स्पेलिंग पूछने पर मिसेज़ चौंकीं और उसका कारण पूछा। पहले तो बेटा शर्मा गया, फिर उसने सकुचाते हुए बताया कि हमें अन्नपूर्णा को एक लेटर देना है, इसलिए उसमें उसका नाम लिखना है। मिसेज़ ने कहा ठीक है और उसे स्पेलिंग बता दी।
चर्चा समेटते-समेटते ब्लॉगवाणी पर नजर डाली तो पूजा जी सबसे पहले दिखीं, यद्यपि कह रहीं हैं कि दुनिया की भीड़ में सबसे पीछे हम खड़े -
हेमन्त ने भी अपनी उपस्थिति दे दी थी रुकते-रुकते, उन्हें यहाँ पढ़ लें - कितना उचित है ?सुबह बंगलोर में बारिश हो रही थी...बारिश क्या बिल्कुल फुहार...ऐसी जो मन कोभिगोती है, तन को नहीं। बहुत कुछ पहले प्यार की तरह, उसमें बाईक चलाने का जो मज़ा था की आहा...क्या कहें। और आज सारे ट्रैफिक और बारिश और सुहाने मौसम के बावजूद मैं टाईम पर ऑफिस पहुँच गई तो दिल हैप्पी भी था। उसपर ये प्यारा गीत, काम करने में बड़ा मज़ा आया...जल्दी जल्दी निपट भी गए सारे।
बार-बार अपने होने का बिगुल फूकना
बुद्धिमत्ता का परिचायक कहां से है..
राष्ट्र-भाषा की सशक्त उपस्थिति को
कैसे खण्डित कर सकता है कोई.....?
अब बस ! सामर्थ्य से अधिक की कोशिश हास्यास्पद बना देती है । बाकी अगली बार !
35 comments:
बहुत विस्तृत चर्चा की है. मेहनत स्वतः उजागर है. बहुत बधाई. जारी रहें.
गहन चर्चा| बधाई !
और हाँ, धन्यवाद भी |
अभी देखा, मेरी प्रोफाइल के लिंक में असमंजस है | चाहें तो इसे दे दें -
http://www.google.com/profiles/kavita.vachaknavee
बहुत विस्तृत चर्चा
बहुत से चिट्ठे को समेटने की सुन्दर कोशिश।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
इसे कहते हैं चर्चा! हिन्दी ब्लॉगरी के विभिन्न रंगों को समेट लिया और आप की अपनी बातों के तो क्या कहने !!
एक अनुरोध है - चिट्ठाजगत/ब्लॉगवाणी पर नए चिट्ठों के सूचना रहती है। सम्भावनाशील चिट्ठों को नए कॉलम के अन्दर स्थान दे दिया करें। चर्चा पूरी हो जाएगी।
दूसरा काम यह किया जा सकता है कि चर्चा में कवर होते जा रहे ब्लॉगों का एक डाटाबेस बना कर अद्यतन किया जाता रहे। इससे चर्चा के विस्तार और विविधता की माप जोख होती रहेगी।
___________________
भई, रोज बिन माँगे ही 5-6 सलाह/राय देना हर भारतीय का राष्ट्रीय कर्तव्य है। हम अपने को खाँटी भारतीय मानत हैं, जे लिए राय देने माँ आलस नाहीं करत हैं। बाकी मानना और न मानना पंच परमेश्वर के उपर। जो मानेगा वह भुगतेगा, यह आसान काम थोड़े है।
हम तो आपकी विनम्रता के कायल हैं हिमांशु ! आज की चर्चा की प्रस्तावना ने मुझे मानस के इस दोहे की याद दिला दी -
अति अपार जे सरित बर जौ नृप सेतु कराहिं
चढि पिपिलिकऊ परम लघु बिनु श्रम पारहिं जाहिं
एक साहित्यकार में तुलसी की यह उदार विनम्रता ही
मैं खोजता फिरता हूँ ! आत्मश्लाघा का निर्लज्ज उद्घोष नहीं
अब यह पिपीलिका श्रम नए सेतुओं का निर्माण करे -यही मनोकामना है !
और इंगित सेतु भी इस पिपीलिका से कुछ सीखे बल्कि बहुत कुछ सीखे !
दिल से की गई चर्चा के लिए दिल से शुक्रिया..
जय हिंद...
चर्चा बहुत बढ़िया रही!
हिमांशु जी ! चर्चा में मेहनत तो जो है सो है पर चुने गए विषयों की पसंद ने मुझे सबसे ज्यादा प्रसन्नचित्त किया ! बहुत सलीके से आपने प्रस्तुतीकरण किया | आपका चर्चा से जुड़ना अलग रंग दिखा रहा है!
विस्तृत व व्यापक सारगर्भित चिटठा चर्चा ....!!
आज की चर्चा को विस्तृत रुप से देखते हुये ऐसा लगता है कि चर्चा का यह स्वरुप बिल्कुल नयनाभिराम है. कोई अतिशयोक्ति नही, ना किसी प्रकार का दंभ और आ ना किसी पर कटाक्ष.
इस संतुलित और लाजवाब चर्चा के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद.
रामराम.
बहुत मेहनत से की गयी चर्चा है .. धन्यवाद !!
badhiya laga.
good complilation of links
इस चिटठा चर्चा आपने सचमुच दिल लगाया है
देखिये न कितना सार्थक मनोरम और विस्तृत बनाया है.....
जय हिंद...
सुंदर ..आपसे ऐसी ही उम्मीद थी.
लेखनी हिमांशु जी की हो तो आश्वस्त हो उठता है मन की अब बरबस कुछ खास मिलने वाला है...
kuch bhi to nahi bhule aap chrcha karte samy
लोगों ने इसे विस्तृत चर्चा कहा है, लेकिन आज की हिन्दी ब्लागरी में कोई चर्चा विस्तृत हो ही नहीं सकती। हाँ इसे सारगर्भित कहा जा सकता है। इस में बहुत कुछ समेटा गया है जो महत्वपूर्ण है।
चिटठा चर्चा का आपका यह अंदाज प्राचीन परम्परा से हट कर है, इसलिए ज्यादा पसंद आ रहा है।
हिमान्शु भाई नमस्कार ....गांव आया हु और अरहर के मेड पर बैठ कर आपको टिपिया रहा हु ..याद आ रहा पहले की बात जब यहा बैठ्कर हाथ मे किताब लेकर धूप लेते पढते रहते थे ...और आज देखो ..क्या बात है...
आपने तो गजब की चर्चा की है मस्त है भाई आप जैसे लोग रहेगे तो जरूर हमारे चर्चा की भी एक दिन हजारवी पोस्ट पढने के लिये मिलेगी ...आप हम शास्त्री जी...हेमन्त भाई और अपना युवराज- दर्पण शाह " दर्शन" को बधाई ...अभी से :)
बहुत मेहनत से की गयी है चर्चा ..शुक्रिया मेरे लिखे के लिंक को लेने के लिए
अति सुन्दर चर्चा करके चिट्ठों सार देने के लिये धन्यवाद!
आपको पढ़ना, चाहे कविता हो या चर्चा, हमेशा से मेरे लिये मेरा पसंदीदा कार्य रहा है हिमांशु जी।
जैसा कि द्विवेदी जे ने कहा, वाकई सारगर्भुत चर्चा!
ांच्छी लगी चिठा चर्चा बधाई
मै भी कह सकता हूँ कि आपको पढने का मौका नही खोता हूँ !
भई वाह ! मान गये
चर्चा का नया कलेवर वह भी अभिनव रूप में
हर चर्चाकार को नये मायने तलाशने को उन्मुख करती हुई
सशक्त व गहरी चर्चा ..
हां एक बात और
गिरिजेश भाई की बातों में दम है
हम चाहेंगे आने वाली चर्चा में ऐसा संभव हो सके !
तहे दिल से मेहनतकश भगीरथ प्रयास के लिये साधु-साधु...!
आभार...!
हिमांशु जी बिलकुल आप की कविता की तरह मधुर रही आप की यह चर्चा भी. धन्यवाद
har charcha achhi......ek jagah bahut kuch
यह तो अद्भुत रही चर्चा। बहुत श्रम लगा होगा। कितना समय देना पड़ा?
बहुत अच्छा लगा यह चर्चा पढ़कर। सुन्दर। मन खुश हो गया। बधाई!
भई हिमाँशु जी, आप तो बड़े गुनी निकले, भाई !
एक परिपक्व और सारगर्भित चर्चा देकर आपने सबके कान काट लिये,
नाक को बख़्श देना, मेरे भाई !
पुनःश्च- आपके दिये सभी लिंक तो न देख सका, पर आप द्वारा उद्धृत मज़मून से ही उन लिफ़ाफ़ों का अँदाज़ हो रहा है ।
विस्तृत और सारगर्भित चर्चा.बधाई!
बेहद विस्तृत विवेचना. आदर.
Post a Comment