अंक : 77
चर्चाकार :डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन!
आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की " का शुभारम्भ चाचा नेहरू की पोस्ट से करता हूँ-
आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की " का शुभारम्भ चाचा नेहरू की पोस्ट से करता हूँ-
खो रहा है बचपन (बाल दिवस पर विशेष) - पं0 नेहरू से मिलने एक व्यक्ति आये। बातचीत के दौरान उन्होंने पूछा-’’पंडित जी आप 70 साल के हो गये हैं लेकिन फिर भी हमेशा गुलाब की तरह तरोताजा दिखते हैं। जबकि...
सिगरेट पीना हॉट है या कूल? वैसे तो धुआं पीना कई जगहों पर मना हो गया है। फिर भी पीने वाले को तो सिगरेट-बिड़ी पीनी ही होती है। भई, जिसको पीना है, वो कहीं भी जाकर अपनी तलब पूरी करेगा।...
गजल-- आख़िरी सलाम - खूने जिगर से लिख रहा हूं आखिरी सलाम इल्तजा बस जरा सी कबूल इसको कर लेना। इन्तजार करते करते हो गई इंतहा इंतजार की दिले खयाल तब आया नहीं नसीब में तेरा दीदार ह..
भालोबाशो शुधु भालोबाशो- हेमंत कुमार - बचपन में इस गाने को सुनती थी, एल.पी. रेकार्ड पर। आज ये आनलाइन मिल गई। हेमंत कुमार द्वारा गाया ये बंग्ला गीत- भालोबाशो शुधु भालोबाशो। इसके रचनाकार कौन हैं ..
दूरी - महल झोपड़ी की दूरी पर जो चिल्लाते हैं। तोड़ झोपड़ियों को अवसर पे महल बनाते हैं।। निर्धनता पर अच्छी बातें कहना उनकी फितरत है। और आचरण में निर्धन से जिनको बिल...
लड़ाई की हमेशा तैयारी रखो, इससे लड़ाई पास नहीं आती, जैसे अपनी लुगाई पास हो तो दूसरी लुगाई पास नहीं आती - लौ जी ! मुबारक हो ! ! आठ आने का मीठा हो जाए !!! मुंबई भी बच गई और गुजरात भी बच गया । फ़यान यानी वो खतरनाक समुद्री तूफ़ान चुपचाप खिसक लिया । वो चु..
रूठ के मो से कान्हा, मुख नाहीं मोड़ो रे - प्रस्तुत है एक भजन और "श्याम श्याम भजो" कैसेट से. रूठ के मो से कान्हा, मुख नाहीं मोड़ो रे प्रीत का बंधन कान्हा, बाँध के ना तोड़ो रे रूठ के मो से कान्हा, मुख..
भीगा चेहरा ... - मेरे आंसुओ से भीगा चेहरा तुम्हें कभी अच्छा नहीं लगता कि मैं रोऊं पर कारण जरूर बन जाते हो कभी देर से आने पर कभी बिना कुछ कहे चले जाने पर कभी कभी ...
सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का - (आलोक नंदन) एक फिल्म स्क्रीप्ट डिस्पले कर रहा हूं…फिल्म का नाम है राब्स, इसके साथ नीचे में इनवर्टेड कौमा में लिखा हुआ है, अपराध जगत में एक प्रयोगवादी जज...अ...
ये भी धोखे में है और वो भी धोखे में है - जो यह समझता है कि दुनिया के बिना काम चला लेगा, वह अपने आप को धोखा देता है, लेकिन जो ये समझता है कि दुनिया का काम उसके बिना नहीं चल सकता वह औ...
शुक्र की मंगल से होड़ - > आज कुछ पल सुकून के मिले थे शुक्रवार था .सप्ताहांत शुरू हो चुका था ,फुर्सत > के क्षण थे तो यादों के झरोखे खुल गए और कुछ खट्टे मीठे पल याद आते ही जहाँ ...
आपसे मिलकर - कुछ कदम ऐसे मिले जो अर्सों से दूर थे! कुछ बात ऐसी सुनी जो अर्सों से गुमशुदा थी! पुराने दोस्त लौट आए! पुरानी यादें लौट आई! ढूंढ रहे थे जिसे हम वो अब हैं मिल...
खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (112) : रामप्यारी - हाय….आंटीज..अंकल्स एंड दीदी लोग..या..दिस इज मी..रामप्यारी.. आज के इस खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी मे रामप्यारी और डाक्टर झटका आपका हार्दिक स्वागत करते है. और ...
महादेवी वर्मा की धरोहर
हंस’ पत्रिका के नवम्बर अंक में दुधनाथ सिंह, इलाहाबाद का एक पत्र छपा है जिस से पता चलता है कि प्रसिद्ध साहित्यकार महादेवी वर्मा की जायदाद को लोग हडपने की ताक में है। दूधनाथ जी का यह पत्र एक चेतावनी और ‘हंस’ के जुलाई अंक में छपे समाचार के उत्तर में है। दूधनाथ जी का वह पत्र यथावत यहां दिया जा रहा है :--
दिल्ली में दिखा भिलाई का एक ब्लॉगर: नीट ब्लॉगर मीट की संभावना अभी अभी मिली खबर के मुताबिक भिलाई का एक ब्लॉगर, दिल्ली में देखा गया है। ऐसीसूचना पहले से थी कि वह सिर्फ ब्लॉगिंग के नाम पर इस बार दिल्ली पहुँच सकते हैं। किसी संभावित अनौपचारिक ब्लॉगर मीट के नीट होने के इंतजाम किए जाने की खबरें भी मिल रही हैं।.......
जी अब तो ये तय हो गया है कि इस बार दिल्ली व्यापार मेले की शुरुआत के साथ ब्लोग्गर्स का स्टाल भी लगने जा रहा है...। लेकिन नहीं नहीं जी ...ट्रेड फ़ेयर के इटपो पार्क में नहीं ..उससे अलग ..।अरे भई कहने का सीधा सीधा मतलब ये कि रविवार के लिये जिस बैठक के आयोजन की चर्चा मैंने की थी ..
वैश्वीकरण के इस युग में संचार-क्रान्ति ने सारे विश्व को ही एक गाँव बनाकर रख दिया है । अब वसुधैव-कुटुम्बक्म् की भारतीय अवधारणा जहाँ सच होती नज़र आ रही है, वहीं दूसरी ओर इसे बिडम्बना ही कहा जाएगा कि भारतीय समाज खुद बिखराव की ओर अग्रसर दिख रहा है । बेवजह के क्षेत्रीय और साम्प्रदायिक विवादों ने आम आदमी का जीना दूभर किया हुआ है ।...
कविता, वो भी हिंदी में, युवाओं के मुख से और जगह दक्षिणी दिल्ली। इस परिचय पर सहज ही यकीन करना आसान नहीं लेकिन दरअसल हुआ यही।
निराला, मैथिली शरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, हजारी प्रसाद द्विवेदी और न जाने कितने ऐसे नाम जो इस हफ्ते दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक प्रतियोगिता में जैसे बरसों बाद सुनाई दिए तो मन कवितामय हो गया। दिल्ली के बेहतरीन कालेजों के छात्र दिल्ली के लेडी श्रीराम कालेज में जगह जमा हुए और वार्षिक प्रतियोगिता का हिस्सा बने। प्रतियोगिता के तहत कविता पाठ तो हुआ ही, साथ ही हुई साहित्यिक अंताक्षरी और प्रश्नोत्तरी।...........
भाई इदरिच मरेला है ना तुम्हारे पिच्छू...(ब्लाग-चर्चा)
अरे सर्किट..कहां मर गया रे तू?
भाई इदरिच मरेला है ना तुम्हारे पिच्छू...
अरे सर्किट...मेरे पेट मे दरद हो रयेला है...कुछ दवाई ला दे रे..
भाई अपुन के रहते दवाई का क्या काम?
ये ब्लाग रस की थोडी सी बूंदे टपका देता हूं ना तुम्हारे गले में..
अरे सर्किट जल्दी कर...पेट मे भौत गडबड हो रयेली है बाप..
चेहरा छुपा लिया है हमने नकाब में-20 कल की पहेली में एक साथ पन्द्रह चित्रों को देख कर आप सभी चौंक गए होंगे....दरअसल!...हुआ क्या कि कल मैँ थोड़ा जल्दी में था... एक पार्टी में जाना था भय्यी...उसके लिए पहले से ही लेट हो चुका था और निचली मंज़िल से पिताजी आवाज़ें पे आवाज़ें लगाए चले जा रहे थे जल्दी चलने के लिए लेकिन ये कम्बख्त ब्लॉगिंग पीछा छोड़े...तब ना...
ग़म
एक ग़म जो तुमसे मिला
उसके मिलने का अब क्या गिला
एक रहबर जो मुझे मिला
उसके बिन अब क्या काफिला .....
कितना आसान लगता था
कितना आसान लगता था
ख़्वाब में नए रंग भरना
आसमाँ मुट्ठी में करना
ख़ुश्बू से आँगन सजाना
बरसात में छत पर नहाना
कितना आसान लगता था........
जाने क्या समझा.TTTTTTTTTTTTदीपक 'मशाल'
तूने कहा था जाने को मगर, मैं इशारा जाने क्या समझा,
था तो इंकार तेरी जानिब से, ये ज़माना जाने क्या समझा.
पानी न था मेरी आँख में जब, वो पत्थर बुलाता रहा मुझे,
तेरी चुनरी ने अश्क सोखे तो, वो फ़साना जाने क्या समझा.
मेरी खता क्या है ये बता मुझे, साज़ मेरा नहीं गलत यारा,
मैंने छेड़ी थी तान उल्फत की, तू तराना जाने क्या समझा...........
इस पूरी सदी में किन लोगों की जन्मकुंडलियों में मंगल कमजोर थे ?? अभी आसमान में मंगल की एक खास स्थिति के होने के कारण मैं इसकी चर्चा करते हुए पिछले कई दिनों से मैं मंगल से संबंधित आलेखही लिख रही हूं। इनमे मैने बताया है कि जब मंगल कमजोर हो तो उस वक्त जन्म लेनेवाले बच्चों की जन्मकुंडलियों में मंगल की स्थिति कमजोर बन जाती है और इसके कारण उनका युवावस्था का वातावरण अच्छा नहीं बन पाता है। खासकर 24 वर्ष की उम्र से शुरू होनेवाली किसी न किसी पक्ष से संबंधित उनकी समस्याएं 30 वर्ष की उम्र तक बढती ही चली जाती हैं।वैसे 30 वर्ष की उम्र के बाद थोडी राहत तो मिलती है पर पूरा सुधार 36 वर्ष की उम्र के बाद ही हो पाता है , जब युवावस्था समाप्त होने को रहता है। ....
अपना दुख जब छोटा लगता है कभी कभी किसी का दुख देख कर अपना दुख बहुत छोटा सा लगने लगता है इस लिये सब के साथ कोई दुखदायी घटना बाँटने से शायद आपको भी लगी e kआपका कोई दुख किसी से बहुत छोटा है। लगभग 15 दिन पहले की घटना है जो हमारे शहर मे घटी यूँ तो इस से भी दर्दनाक एक घटना मुझे अब भी याद है जब सारी शहर मे चुल्हे नहीं जले थे। पटियाला के एक स्कूल के बच्चे छिटियों मे पिकनिक पर भाखडा डैम आये थे । ....
रिन्दों की है पाँत लगी और दौर चला पैमानों का
जिसको हमने शहर समझा जंगल है वो मकानों का
और पहचान कहाँ हो पाती है इंसान बने शैतानों का
मयखाने में साकी को अब क्या है ज़रुरत रहने की
रिन्दों की है पाँत लगी और दौर चला पैमानों का
रात जगी है रात भर शम्मा भी अब सोने चली
ऐसे में अब फ़िक्र किसे क्या हाल हुआ परवानों का ............
मुझे मिले ब्लोगवाणी पसंद ने फूलकर कुप्पा कर दिया मुझे ... पर क्या यह वास्तव में खुशी की बात है? यह तो अब सभी जानते हैं कि आज सुबह के मेरे पोस्ट "एक ब्लोगवाणी पसंद का सवाल ..." को बहुत ज्यादा पसंद मिली। क्यों? क्योंकि अधिकतर लोग यही समझे कि मैंने अधिक पसंद पाने के लिये मतलब आत्मतुष्टि पाने के लिये यह पोस्ट लिखा था। वो लोग यह समझे कि मैं उनसे अपने पोस्ट के पसंद बटन को क्लिक करने का अनुरोध कर रहा हूँ और उन्होंने मुझे दान के रूप में पसंद दे दिया,.....
दम्भ का महाकुम्भ यूं तो बारहों महीने वसंत है संतई में। पर इन दिनों गंगनगरी हरिद्वार में संतो का विराट् वसंतोत्सव आने को है। महाकुम्भ के रूप में संत बनने-बनाने का द्वादशवर्षीय दुर्लभ अवसर आने को है। रोज़गार के अवसर जुटनेवाले हैं। समाज को ऋणी होना चाहिए कि बेरोज़गारों को काम मिलने वाला है। उन्हें राज़ी-रोटी ही नहीं मुफ्त में पैसा और प्रणाम मिलने के दिन आने वाले हैं। उम्र की कोई सीमा नहीं है। बच्चे हैं तो बालयोगी या बालब्रह्मचारी और बड़े हैं तो 108 से 1008 तक श्रीयुक्त हो सकते हैं। जो अशक्त हैं, जो परित्यक्त है, जो घर-परिवार से विरक्त है, उन सबके लिये सशक्त ढंग से अभिव्यक्त और आश्वस्त होने का अवसर आ गया है। जाना कुछ है नहीं, बस आना ही आना है। कहावत पूरी होने को है, ''हींग लगे ना फिटकरी, रंग भी चोखा होय।''...........मिन नी घड्काई आज !
तन किलै रडकाई तिन सी, पीठी मकौ भारू,
मिन नी घड्काई आज, गोरख्याणी कू दारू,
मेरु क्वी नी दोष गैला दोष दग्ड्यों कु सारू,
भलु मन्खी बणिग्यों चुची, अब मी बिचारू,
तेरी कसम, तु जै का मर्जी सौं खिलै ली,
मिन आफु नि पिनी दग्ड्योंन पिलै ली,
यदि हर राज्य की शिक्षा प्रणाली में एक स्तर पर मौलिक समानता होती..कई जरूरी विभिन्नताओं के साथ तो... आज सोचा कुछ कैम्पस-चर्चा हो जाए. JNU की प्रवेश परीक्षा प्रणाली बड़ी अलहदा है. लगभग हर स्कूल के हर सेंटर की थोड़ी अलग-अलग. देश भर में और कुछ देश से बाहर भी इसके सेंटर बनाये गए हैं जहाँ प्रवेश परीक्षाएं एक साथ एक ही समय में लीं जाती हैं. एक खास आकर्षक अनुशासन के साथ यह परीक्षाएं संपन्न हो जाती हैं. अगले दो से तीन महीनों में परिणाम आ जाता है. ......
कार्टून : फटेहाल जीवन ब्यतीत कर रहे हैं ये !
आज के लिए इतना ही! अंत में इतना ही कहूँगा ...आज का अंक आपको कैसा लगा? अपनी राय बेबाक टिप्पणियों में दीजिये...... कल फिर आपकी सेवा में हमारे कोई साथी कुछ और चिट्ठों की चर्चाएँ लेकर उपस्थित होंगे.............................................धन्यवाद! नमस्कार !! |
17 comments:
बहुत उम्दा चर्चा. कई नये लिंक छूटे हुए मिल गये. आभार आपका.
कई चिट्ठों को एक साथ समेटने की एक बेहतरीन कोशिश आपकी शास्त्री जी। अच्छी चर्चा।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
बहुत कुछ इकट्ठा कर लेते हैं आप । आभार चर्चा के लिये ।
बहुत विस्तार से चर्चा की गयी है .. बहुत अच्छा !!
ये अच्छा है चर्चा के जितने मंच चर्चा का उतना विस्तार
वाह, मजा आ गया, सर ! बहुत खूब !!
आज भर गयी अपनी "हिंदी चिट्ठों की चर्चा"....सुखद..
मित्रों!
चर्चा तो कल भी विस्तृत ही की थी और
मन से की थी।मगर केवल शीर्षक और लिंक
ही दिये थे।
मुझे क्या पता था कि आपकी रुचि तो
चर्चा में ही पोस्ट पढ़ लेने की बन गई है।
देखते हैं कि पंकज मिश्र के अतिरिक्त हमारे कोई साथी चर्चा के लिए आते हैं या नही।
हो सकता है कि अपको कुछ दिन और
मुझे झेलना पड़े।
आपको चर्चा पसन्द आयी!
मैं धन्य हो गया!
aap ki charcha pasand aayei, aap ise jari rakhen....
"मुझे क्या पता था कि आपकी रुचि तो
चर्चा में ही पोस्ट पढ़ लेने की बन गई है।"
आदरणीय मयंक जी आप खासे नाराज लग रहे हैं, कल से दो बार आपने ये बात कही..क्षमा चाहूँगा यदि भावनाओं को ठेस पहुँची हो पर फिर दुहराऊंगा, यह ब्लॉग केवल 'चुनिन्दा ब्लोगों का एग्रीगेटर' नहीं है. आप इसमे चुनिन्दा चिट्ठों की की 'चर्चा' करते है न कि केवल उनका उल्लेख..
यह ब्लॉग हम सभी का है..टिप्पणी 'एकरस' में नहीं आ सकती और ना आनी चाहिए.
इसमे जो श्रम व समय लगता है उसका मुझे एहसास है...पर मै अपनी expectation का क्या करुँ..?
मयंक जी आप वरिष्ठ हैं, क्षमा चाहूँगा...
मयंक जी हैरान हूँ कि ये मेरी अक्तूबर की पोस्ट चर्चा मे कैसे आयी।[ापना दुख जब छोटा लगता है} मुझे तो लगता था कि नई पोस्ट ही चर्चा मे दी जाती है वैसे आज मैने नई पोस्ट भी डाली थी। उसे नहीं लिया गया । शायद मुझे ही कुछ कन्फूज़न है? धन्यवाद्
निर्मला बहिन जी!
मेरी सोच यह है कि उन चिट्ठों की ओर भी तो लोगों का ध्यान आकृष्ट होना चाहिए जिन की ओर ज्यादातर लोग नही जा पाते हैं।
वीर-बहूटी पर तो आपने आज ही नई पोस्ट लगाई है,
कल तक तो पुरानी ही लगी थी। इसलिए चर्चा मे नही आ पाई है।
अच्छा लगता है जब इतने विस्तार से चर्चा पढ़ने को मिलती है!
bahoot hi achhee charch hai ... naye naye logon se milna ho raha hai ...
आदरणीय शास्त्री जी, ज्यादातर लोग या तो इसलिए टिप्पणी करते हैं के अगली बार उनके चिट्ठे को भी स्थान मिले या इसलिए की उन्हें चर्चे में स्थान मिला हो इसलिए , शायद मैं भी इसी प्रवृत्ति का शिकार रहा होऊंगा, किन्तु भूल सुधार करते हुए आप से यही कहूँगा की आप इस नादान की पोस्ट सिर्फ तभी चर्चा में शामिल करें जबकि आप को ह्रदय से ये उस योग्य लगे, अन्यथा मैं ज़बरदस्ती महत्वपूर्ण चिट्ठों के बीच घुस के चर्चा का रूप नहीं बिगाड़ना चाहता.
इस तरह की चर्चा में आपको कितनी मेहनत लगती है इस बात का अंदाजा मुझे और बाकी सबको भी है, आज के इस 'मैं-मैं' के युग में आपके इस परमार्थ के कार्य की जितनी सराहना हो कम है.... सुन्दर चर्चा..
जय हिंद...
bahut sundar charcha..............
badhiya karigari...
badhaai !
नये ब्लागरों को प्रोत्साहित करेगी आपकी यह चर्चा। महादेवीजी के बारे में दूधनाथ सिंह जी का संज्ञान लेने के लिए आभार॥
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