अंक : 83 चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन! आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की " का आगाज करता हूँ- रिश्ता तुम्हारी खुशी से ही नहीं, गम से भी रिश्ता है हमारा, गीत कैसे लिखूं तीलियां घिसते घिसते थकीं उंगलियां, वर्त्तिका नींद से जाग पाई नही...... कोई मेरी मजबूरी भी तो समझो!! - कल अपनी एक फोटो *ऑर्कुट* और* फेस बुक* पर क्या चढ़ा दी कि हल्ला ही मच गया. दन दन कमेंट और ईमेल मय समझाईश कि इतना पीना ठीक नहीं. [image: drink] अब कैसे स... JHAROKHA टिक टिक घड़ी - * * *जीवन की अविरल चलती घड़ी कभी मुड़े ना पीछे बस आगे ही बढ़ी कभी दुख की घड़ी तो कभी खुशियों की लड़ी हर पल को सिलते बुनते हुये सतरंगी सपने .. हिन्दी साहित्य संगम जबलपुर संतोषी - *स रल, सरस, मधुमय वाणी से,* *................... जिनके हृदय सुशोभित हों।* *रो ज खुशी की भोर हो ऐसी,* *.................... सबके मन आलोकित हों॥* *ज ग मे... जज़्बात रोटियों की दीवारें ~~ - वे क़ैद हैं और उन्हें अपने क़ैद का अभास तक नहीं है। . जब कभी उन्होने सूरज की ओर देखा; जब कभी उन्होनें आक्सीजन से रूबरू होने की कोश... my own creation बस यूँ ही आज.... - काश कोई रिश्ता निभाना न पड़े, किसी को यूँ छोड़ के जाना न पड़े, यादों की शम्मा को जला के कभी, बेदर्दी से उसको बुझाना न पड़े, करीबी लोगो से रखना परहेज, कहीं... साधना सरगम के सुरीले कंठ से हास्यकवि अलबेला खत्री की करगिल शहीदों को भावपूर्ण शब्दांजलि - हिन्द की खातिर मिटने वालो ! हमको तुम पर नाज़ है ..... hasya kavi albela khatri's album "teri jai ho veer jawaan" नवगीत: कौन किताबों से/सर मारे?... आचार्य संजीव 'सलिल' - नवगीत: आचार्य संजीव 'सलिल' कौन किताबों से सर मारे?... * बीत गया जो उसको भूलो. जीत गया जो वह पग छूलो. निज तहजीब पुरानी छोडो. नभ की ओर धरा को मोड़ो. जड़ ... बताया था राकेट का अविष्कारक - 'मैसूर के शेर' के नाम से मशहूर और कई बार अंग्रेजों को धूल चटा देने वाले टीपू सुल्तान राकेट के अविष्कारक तथा कुशल योजनाकार भी थे। उन्होंने अपने शासनकाल मे... शहर का सपना और शहर में खेत रहना [आश्रय-23] - [image: Kolkata_cityscape] खे त का रिश्ता गांव से जुड़ता है मगर शब्द व्युत्पत्ति के रास्ते में* शहर* और *खेत* एक दूसरे के पड़ोसी नज़र आते हैं। बड़ी नगरीय ब... जज रमेश पंत और शराब चोर गोल्डी के सीन - *अख़बार की दुनिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और फिर सिनेमा तक तक़दीर की आजमाइश करते चले जाने वाले आलोक नंदन को सिनेमा के व्याकरण की अच्छी समझ है. हिंदी में सही... "हिन्दी भारत" क्या दिक (अंतरिक्ष) ही वक्र है ? - मौलिक विज्ञान-लेखन (साप्ताहिक स्तम्भ) गतांक से आगे क्या दिक (अंतरिक्ष) ही वक्र है ? विश्व मोहन तिवारी अंतरिक्ष में चाहे मन्दाकिनियाँ बहुत दूर दूर ... दरअसल : महत्वपूर्ण फिल्म है रोड टू संगम - -अजय ब्रह्मात्मज पिछले दिनों मुंबई में आयोजित मामी फिल्म फेस्टिवल में अमित राय की फिल्म रोड टू संगम को दर्शकों की पसंद का अवार्ड मिला। इन दिनों ज्यादातर... SADA हंसी में द्वेश ... - मैं आज बांटना चाहता हूं लोगो के गम देना चाहता हूं उनके होठों पे मुस्कान पर उन्हें मेरी इस बात पे यकीं नहीं होता जरूर किसी ने उन्हें धोखा दिया होग... परी कथाओं जैसा रोमांचक रहा है इन्टरनेट का सफर (इन्टरनेट ने ४० साल) - २ सितम्बर २००९ को इन्टरनेट ने ४० साल पूरे कर लिए है। अब से ४० साल पहले यानि २ सितम्बर १९६९ को लें क्लेंरोक और यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया लोस एंजेलेस की टीम... सब ओंछा ही ओंछा ! - *यों तो अक्सर यह शहर रेंगता ही रहता है, मगर कल तो देश की राजधानी का सेहरा सिर पर लिए यह शहर कुछ पलो के लिए ठहर सा गया था! अनुमान के हिसाब से करीब ६ लाख वाह... पतवार - हर पतवार में छिपा रहता है एक नाव का स्वप्न एक नदी की नींद एक नाविक का स्वप्न—सहवास। यह बात समझ नहीं पाते नाव में बैठे लोग समझ नहीं पाती हवा किस पतवार में ह. व्यंग्य-पद (45) धरम-करम अब तो धंधा है। इस धंधे के आगे भैया, हर धंधा लगता मंदा है. मालामाल यहाँ पर दिखता, भगवे में जो भी बंदा है।... "अभिलाषा" अभिलाषा छलs हमर एक , करितौंह हम धिया सँ स्नेह । हुनक नखरा पूरा करय मे , रहितौंह हम तत्पर सदिखन । सोचैत छलहुँ हम दिन राति ,की परिछ्ब जमाय लगायब सचार ।धीया तs होइत छथि नैहरक श्रृंगार ..... साईं इतना दीजिये जा में कुटुम समाये .... साईं इतना दीजिये जा में कुटुम समाये /मैं भी भूखा ना रहूँ ,साधू ना भूखा जाए कबीर का भाव यही रहा होगा -प्रकृति प्रदत्त पदार्थ के उपभोग की सूझ बूझ हम लोगों में ख़ुद ही होनी चाहिए प्रकृति से हम अपनी आवश्यकता के अनुरूप ही लें .,कुछ औरों के लिए भी छोड़े .लेकिन लोगों का बोध ही छीज गया ,नतीज़ा हमारे सामने है ,आज हमारे समुन्दर भी कार्बन फुट प्रिंट से हमारी हिफाज़त करने में असमर्थ होने लगें हैं । क्या ये नेता जनता को बिल्कुल मूर्ख समझते हैं? गत दिनों से देश में घटित कुछ घटनाओं से राजनेताओं की समझ पर एक ओर तो तरस आ रहा है और दूसरी ओर गुस्सा भी आ रहा है कि ये लोग जो स्वयं तो इतने अदूरदर्शी हैं कि इन्हें वह सच भी दिखाई नहीं देता जो एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी देख लेता है, वहीं ये जनता को इतनी मूर्ख मानते हैं कि जब ये जो कुछ भी कहेंगे उसे जनता मान लेगी। भारतीय नागरिक - Indian Citizen हंसने के लिए कुछ वाक्य जिनका प्रयोग आप अकेले में कर सकते हैं. - मैं यहां कुछ ऐसे वाक्य लिख रहा हूं जिनका प्रयोग आप अकेले में हंसने के लिये कर सकते हैं:- हम आतंकवाद से कड़ाई से निपटेंगे. अमेरिका से हेडली को प्रत्यर्पित किय... आज के लिए इतना ही पर्याप्त समझें। अभी तो आपको मुझे पाँच दिनों तक और झेलना पड़ेगा।! |
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Saturday, November 21, 2009
"तुम्हारी खुशी से ही नहीं, गम से भी रिश्ता है हमारा," (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)
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19 comments:
Wah ji wah... sundar charcha fir se.
Jai Hind...
बढ़िया रही आज की चर्चा |
वाह .. बहुत बढिया !!
बड़े भाई ये रंगबिरंगापन समझ नहीं आया। एकरंगी ही अच्छे थे।
ज़ाल-जगत के हिन्दी-चिट्ठा-चर्चाकार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन! सदा की तरह आज का भी अंक बहुत अच्छा लगा।
रंग-बिरंग
सुन्दर चर्चा मगर इतने ज्यादा रंग सुविधाजनक नहीं लगते ...!!
ज्यादा रंग हो जा रहे हैं माननीय...जरा सफेदा आंख को आराम देगा...मस्त रिपोर्ट..विस्तार से.
बहुत बढ़िया चर्चा किया है आपने और बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! मेरी कविता को शामिल करने के लिए धन्यवाद!
शास्त्री जी की नियमितता को सलाम । हाँ रंग-संयोजन में थोड़ी सावधानी जरूरी है ।
बढ़िया रही आज की चर्चा शास्त्री जी !
बढ़िया चर्चा शास्त्री जी
बहुत बढ़िया चर्चा !
मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका आभार !
ये झेलना क्यूं ?
shatriji,
sundar lagi चर्चा !
दिलचस्प चर्चा
बहुत सुंदर सुंदर रंगो से सजाया आप ने आज की चर्चा को धन्यवाद
शास्त्री जी की नियमितता को सलाम
बहुत सुन्दर दिलचस्प चर्चा!
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