अंक : 85
चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक" का सादर अभिवादन! आज की "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" में श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी की पहली और अद्यतन पोस्ट की चर्चा करता हूँ- ज्ञानदत्त पाण्डेय अपनी प्रोफाइल में लिखते हैं- "मैं रेल यातायात प्रबंधन से जुडा़ हूं। इस समय उत्तर मध्य रेलवे मुख्यालय, इलाहाबाद में हूं। I am involved in Rail Traffic Management. At present I am in North Central Railway Hq., Allahabad, India" इनकी पहली पोस्ट Tuesday, February 22, 2000 को प्रकाशित हुई थी। मेरी जानकारी के अनुसार तो ये शायद पहले ही भारतीय हिन्दी चिट्ठाकार ही होंगे। अगर कुछ भूल हो रही हो तो समझ लें कि पुराने चावल तो हैं ही। जिनकी खुशबू आज भी हम अनुभव कर रहे हैं। इन्होंने अपनी इस पोस्ट में बेबाक सन्देश दिया था कि टिप्पणी की नीति क्या होनी चाहिए।लीजिए पढ़िए इनकी पहली पोस्ट- पर यदि मेरे ब्लॉग पर की गयी किसी टिप्पणी से; किसी मशहूर हस्ती, पाठक, मुझे या ईश्वर को; भद्दे, क्रूर या असहनीय तरीके से निशाना बनाया जाता है तो मुझे वह टिप्पणी हटाने में कोई देर नहीं लगेगी. वह टिप्पणी चाहे कोई भी करे। कृपया इसे व्यक्तिगत न लें और उत्तेजित न हों। कृपया अप्रिय स्थिति न आने दे। सधन्यवाद, ज्ञानदत्त पाण्डेय Tuesday, February 22, 2000 से शुरू हुआ ब्लॉगिंग का काफिला आज तक जीवनरूपी रेल की पटरियों पर वेग के साथ दौड़ रहा है। Tweet this (ट्वीट करें)! मानसिक हलचल एक ब्राउन साहबी आत्मा का प्रलाप है। जिसे आधारभूत वास्तविकतायें ज्ञात नहीं। जिसकी इच्छायें बटन दबाते पूर्ण होती हैं। जिसे अगले दिन, महीने, साल, दशक या शेष जीवन की फिक्र करने की जरूरत नहीं। इस आकलन पर मैं आहत होता हूं। क्या ऐसा है? नोट - यह पोस्ट मेरी पिछली पोस्ट के संदर्भ में है। वहां मैने नीलगाय के पक्ष में अपना रुंझान दिखाया था। मैं किसान के खिलाफ भी नहीं हूं, पर मैं उस समाधान की चाह रखता हूं जिसमें दोनों जी सकें। उसपर मुनीश जी ने कहा है - very Brown Sahib like thinking! इस पोस्ट में ब्राउन साहब (?) अपने अंदर को बाहर रख रहा है। मेरे समधीजी कहते हैं – भईया, गांव जाया करो। जमीन से जुड़ाव महसूस होगा और गांव वाला भी आपको अपना समझेगा। जाने की जरूरत न हो, तब भी जाया करो – यूंही। छ महीने के अन्तराल पर साल में दो बार तो समधीजी से मिलता ही हूं। और हर बार यह बात कहते हैं - “भईया, अपने क्षेत्र में और गांव में तो मैं लोगों के साथ जमीन पर बैठने में शर्म नहीं महसूस करता। जो जमीन पर बैठे वो जम्मींदार और जो चौकी पर (कुर्सी पर) बैठे वो चौकीदार”! मैं हर बार उनसे कहता हूं कि गांव से जुड़ूंगा। पर हर बार वह एक खोखले संकल्प सा बन कर रह जाता है। मेरा दफ्तरी काम मुझे घसीटे रहता है।और क्या दमदार टिप्पणियां हैं पिछली पोस्ट पर। ऐसी परस्पर विरोधी, विचारों को खड़बड़ाने वाली टिप्पणियां पा कर तो कोई भी ब्लॉगर गार्डन गार्डन हो जाये! निशाचर जी तो अन्ततक लगे रहे नीलगायवादियों को खदेड़ने में! सारी डिबेट क्या क्या मारोगे और क्या क्या खाना छोड़ोगे की है! असल में समधान उस स्तर पर निकलना नहीं, जिस स्तर ने समस्या पैदा की है! और मैं जम्मींदार बनने की बजाय चौकीदार बने रहने को अभिशप्त हूं?! गांव जाने लगूं तो क्या नीलगाय मारक में तब्दील हो जाऊंगा? शायद नहीं। पर तब समस्या बेहतर समझ कर समाधान की सोच सकूंगा। संघ लोक सेवा आयोग के साक्षात्कार में केण्डीडेट सीधे या ऑब्ट्यूस सन्दर्भ में देशभक्ति ठेलने का यत्न करता है – ईमानदारी और देश सेवा के आदर्श री-इटरेट करता है। पता नहीं, साक्षात्कार लेने वाले कितना मनोरंजन पाते होते होंगे – “यही पठ्ठा जो आदर्श बूंक रहा है, साहब बनने पर (हमारी तरह) सुविधायें तलाशने लगेगा”! चयनित होने पर लड़की के माई-बाप दहेज ले कर दौड़ते हैं और उसके खुद के माई बाप अपने को राजा दरभंगा समझने लगते हैं। पर तीस साल नौकरी में गुजारने के बाद (असलियत में) मुझे लगता है कि जीवन सतत समझौतों का नाम है। कोई पैसा पीट रहा है तो अपने जमीर से समझौते कर रहा है पर जो नहीं भी कर रहा वह भी तरह तरह के समझौते ही कर रहा है। और नहीं तो मुनीश जी जैसे लोग हैं जो लैम्पूनिंग करते, आदमी को उसकी बिरादरी के आधार पर टैग चिपकाने को आतुर रहते हैं। नहीं, यह आस्था चैनल नहीं है। और यह कोई डिफेंसिव स्टेटमेण्ट भी नहीं है। मेरी संवेदनायें किसान के साथ भी हैं और निरीह पशु के साथ भी। और कोई साहबी प्रिटेंशन्स भी नहीं हैं। हां, यह प्रलाप अवश्य है – चूंकि मेरे पास कई मुद्दों के समाधान नहीं हैं। पर कितने लोगों के पास समाधान हैं? अधिकांश प्रलाप ही तो कर रहे हैं। और मेरा प्रलाप उनके प्रलाप से घटिया थोड़े ही है! आज के लिए इतना ही..बाकी कल........। |
---|
12 comments:
पुराने चावल का पूरा कट्टा हैं...पूरा एरिया गमक जाता है जी. लेकिन यह पोस्ट तो आज की है.
Tuesday, February 22, 2000
तारिख की कुछ गड़बड़ लगती है शाश्त्री जी !
शास्त्री जी अद्यतन पोस्ट तो है मगर पहली नहीं दिख रही है ..
ज्ञान जी की पहली और ताजा दोनों पोस्टे पढवा दी है जी आपने ! ताजा पोस्ट तो कल पढ़ी थी पर पहली वाली पोस्ट आपके सोजन्य से ही पढ़ पाए है | बहुत बहुत आभार !
अजय जी पहली पोस्ट ऊपर लिखी है " मेरी टिप्पणी की नीति "
अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
एक बेहतरीन अदा चर्चा की..इतिहास और वर्तमान की कसौटी पर अब हैं ब्लोगर...बेहतरीन आइडिया..मयंक जी बधाई...!!!
अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
बेहतरीन चर्चा । पहली पोस्ट को प्रस्तुत करना अच्छी पहल है । आभार ।
आदरणीय ज्ञान जी, एक महत्त्वपूर्ण परन्तु ज्वलंत समस्या पर पोस्ट लिखने के लिए धन्यवाद. यह चर्चा शायद लम्बी खिंचती यदि comment moderation न होता (कृपया इसे अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण न माने). इस प्रकार के अनछुए विषय आते रहें तो स्वस्थ एवं रचनात्मक बहस से ब्लागजगत के वातावरण को ज्यादा शुद्ध और "स्वच्छ" रखा जा सकता है. प्रणाम स्वीकार करें.
Gyan jee ki pahali post pahali baar padhi.
आभार.
मेरा ब्लॉगर का अकाउण्ट सन २००४ का है। टिप्पणी नीति तो सन २००७ में बनाई गई। यह पब्लिक परसेप्शन के लिये कम, स्वयं की गाइडलाइन के लिये ज्यादा दी। लिहाजा इसे कालपात्र की तरह मैने सन २००० में गाड़ का रख दिया।
उसका कोई पुराना होने का दावा मैने नहीं किया। :-)
लेकिन आपने रोचक मुद्दा पकड़/बनाया!
Post a Comment