अंक : 87
चर्चाकार : पंकज मिश्रा
नमस्कार, पंकज मिसिर आप लोग के बीच आ गया हु …काफ़ी व्यस्तता है लेकिन आज मन नही माना तो मै सोचा कि चलो दो-चार पोस्ट की चर्चा कर ही देता हु..क्या होगा देखा जायेगा …ये लहजा है एक श्री मान जी का ..और देखते ही देखते दो ठू खुल्ला साड पैदा हो गये है ब्लाग जगत मा …….इ खुल्ला साड लोग छुपा खेल शुरु कर दिये है …तो सुन ले कि जितना खेल खेलना है मुस्किल से १० दिन अउर खेल पायेगे ..इसके बाद ? अरे भाया हम आ जायेगे वापस और बान्ध देगे दोनो बन्धुओ को…..
अब चलिये चर्चा कर लेते है नही तो कही हमे भी कोइ बिमार फ़र्मा ना बोल दे :)
शुरुआत अनिल जी के पोस्ट ….हे भगवान,अगले जनम मे तू मुझे सींधी या सरदार ही बनाना!अबे मुसलमान भी जोड ना,उसको क्यों छोड़ रहा है से …….अनिल जी लिखते है….
मुझे शरद भाई की बात बुरी नही लगी बल्कि उसने मुझे एक मज़ेदार किस्से को आपसे शेयर करने का मौका दे दिया।बुरा नही मानने वाली बात इसलिये कि मैं खुद ही कई बार बिना समझे निकल पड़ता हूं सिंग से निशाना लगाकर सिर नीचे किये हुये।खैर जाने दिजिये।हां तो मै क्या कह रहा था।हां बात कालेज के दिनो की है मदिरा,मैं मदिरा ही कहूंगा शराब नही,शराब थोड़ा चीप लगता है,तो हम लोगों ने उन दिनो छुप-छुप कर मदिरापान शुरू कर दिया था।कम्बाईन्ड स्टडी और हास्टल के कमरों मे धमा चौकडी भी होती थी और इसकी फ़्रिक्वेंसी भी क्लास बढने के साथ बढती चली गई।हास्टल मे इस लिये पीते थे कि वो पीने के बाद बस्साने(मदिरा का साईड इफ़ेक्ट,खुश्बू)के कारण पकड़ाने के रिस्क से बचाता था।मदिरा पान के बाद सब वंही सो जाते थे।
मजबूरी मे आदमी एकदम से मजबूर हो जाता है ..जैसे कि मै…अब इतना मजबूर हो गया हु कि एक पोस्ट भी नही लिख पाया …ऐसे ही मजबूर है अपने समीर लाल जी..और लिखते है अपने मजबूरी की बात …….कोई मेरी मजबूरी भी तो समझो!! सामने है बीयर और समीर जी …मे बी ईन फ़ीयर…आय डोन्ट नो डीयर ..
वैसे कई लोगों ने कहा कि इतनी सारी अकेले पियेंगे क्या? अब पहले तो यह जान लें कि एक बंदा तो तस्वीर खींचने वाला है ही जो इसी में से पीने वाला है और तीन फोटो में दायें बायें कट गये हैं और फोटू में फंसे हम अकेले.
वैसे भी साईज के हिसाब से या तो वो तीन ही आ लेते फोटो में या कि हम. उन तीन की फोटो का तो हम क्या करते सो अपनी धरे थे वो ही चिपका दिये. हाँ, तो हम कह रहे थे कि हमें पीना यूँ तो पसंद नहीं मगर जब मजबूरी आन सामने ही खड़ी हो जाये तो क्या करें?? इन्हीं मजबूरियों को दर्शाते हुए एक रचना लिखी थी ताकि किसी को कन्फ्यूजन न रह जाये, वही फिर से सुना देते हैं ताकि सनद रहे और वक्त पर काम आये:
पी.सी.गोदियाल जी है और लिखते है अपनी यादे …ब्लाग के माध्यम से ..आप उनके ब्लाग अंधड़ ! पर जाकर ..
फिर शरद ऋतु आई है,
अलसाये से मौसम ने भी
ली अंगडाई है !
आज फिर से कुछ यादे,
ताजी होकर,
सर्द हवाओं संग
चौखट से अन्दर घुसी तो
फूल बगिया मे सब,
कुम्हला से गये है !
दिमाग मे हरतरफ़
वो श्याम-श्वेत चल-चित्र
चहल कदमी करने लगे
हेमन्त भाई बीमारी से जूझ रहे है लेकिन कविता गजब की बना लेते है तभी तो अपने बीमारी मे भी लिख दिये है ये बेहतरीन कविता …आप खूदही पढ लो जी जब जब उठने का अवसर मिला
जब जब उठने का अवसर मिला | असर पड़त्ता है मनोदशा पर |
हिमान्शु जी चर्चा परिवार के सदस्य भी है आज से शुरु किये है एक लम्बी कहानी जो की तीन भाग मे प्रकाशित होगी ,,आज है पहली कडी ….पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ (पानू खोलिया)-१
समाधिस्थ आदमी वह, मुक्त हंस ।
सारे प्रभावों से मुक्त । शुद्ध-बुद्ध-चित्....निर्विकार -
वह है । अपने में सम्पूर्ण । निरपेक्ष ।
सारे ’हैं-ओं’ से निरपेक्ष । हम से भी ।
इतने तमाम क्रूड-क्रूर सचों के अन्दर धँसा हुआ
एक क्रूड-क्रूरतम सच ।
बाक़ी दुनिया है माया....झूठ ।
और वह अन्दर के अन्दर, के अन्दर,
के अन्दर, के अन्दर का आदमी -
कि जिसकी आँखें नहीं, कान नहीं, नाक नहीं,
जीभ भी नहीं ही -- एक त्वचा है जरूर,
मगर गैंडे की ।
अदा बहन आज लिखी है कि 'अदा'.....तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है....
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
ये उठें सुबह चले, ये झुकें शाम ढले
मेरा जीना मेरा मरना इन्हीं पलकों के तले
तेरी आँखों के सिवा ...
ये हों कहीं इनका साया मेरे दिल से जाता नहीं
इनके सिवा अब तो कुछ भी नज़र मुझको आता नहीं
ये उठें सुबह चले ...
ठोकर जहाँ मैने खाई इन्होंने पुकारा मुझे
ये हमसफ़र हैं तो काफ़ी है इनका सहारा मुझे
ये उठें सुबह चले ...
रतन सिंह शेखावत जी ने आज एक सामाजिक काम किये है आज शेखावत जी ब्लाग जगत मे एक नये मेहमान को आखिर फाँस ही लिया हमने रामबाबू सिंह को हिंदी ब्लोगिंग जाल में
चिट्ठाजगत से मिलने वाली डाक में समीर जी का सन्देश पढने के बाद कि नया हिंदी चिट्ठा शुरू करवाए तब से हिंदी ब्लोगिंग को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मेरी अक्सर कोशिश रहती है कि किसी मित्र से नया हिंदी ब्लॉग शुरू करवाया जाय पर मेरे मित्रों में ज्यादातर
"खटीमा में स्वाइन-फ्लू तथा बाघ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मुझे तो आज पता चला कि यहा भी ब्लाग चर्चा होता है मस्त है लगे रहिये …बहुत बहुत शुभकामनाये !!
आज भी बहुत फ़ुरसत मे नही हु बाकी चर्चा आप यहा से पढ सकते है ….महेन्द्र मिश्रा जी की चर्चा ..
चिठ्ठी चर्चा - तब ऐसे में मैं खुश होकर बस प्यार की झप्पी लेता हूँ...
अब दिजिये इजाजत ..कुछ दिन और मै उपस्थित नही हु …शास्त्री जी को इस खुले मंच से हमारी तरफ़ से धन्यवाद …निरन्तरता बनाये रखने के लिये आशा है आगे भी शास्त्री जी का आशिर्वाद प्राप्त होता रहेगा …धनयवाद …..
नमस्कार
22 comments:
लाजवाब चर्चा है
आईये आईये बेसब्री से इंतज़ार है -और ये साड़ क्या दगैले हैं -बाण भट्ट !
वाह पंकज जी आप लौट आये बहुत बहुत बधाई पोस्ट अच्छी है शुभकामनायें
पंकज जी सर्वप्रथम बहुत दिनों बाद पधारने के लिए आपका स्वागत , और बढ़िया चर्चा के लिए शुक्रिया!
बहुत दिनों बाद आए .. छोटी पर अच्छी चर्चा की !!
अच्छी रही चर्चा।
बहुत दिनों बाद आए |
मिसिर जी के दर्शन हुए..मन गार्डेन -गार्डेन हो गया..चर्चा बेहतर.!
वाह बडी लाजवाब चर्चा की आपने. शुभकामनाएं.
रामराम.
पंकज जी,
छूट्टी वगैरह सब चलता रहता है पर अनुपस्थिती की वजह कोई विशेष तो नही जरा देखियेगा।
चर्चा बड़ा मस्त रहा बा।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
पंकज जी!
आपको चर्चा करते हुए देखकर आश्चर्य और हर्ष भी हुआ!
दिन तो मेरा ही था चर्चा का!
चलिए दोनों की ही हाजिरी हो गई!
यह तो बता दो कि नियमित कब से हो रहे हो?
आपने गाल का आप्रेशन कराया था, अब तो ठीक ही होंगे।
ब्लॉग की ओर से निश्चिन्त रहें। चर्चा चलती ही रहेगी।
मैं जिम्मेदारी का निरवहन करना जानता हूँ।
एक भी दिन नागा नही हुई है।
बहुत सुंदर लगी आज की अप की चर्चा, सुना है कही गये थे आप?
अच्छी चर्चा......बहुत सारे दृष्टिकोण दे जाती है
आप आ गये ! खुश हुआ । कहाँ हो भाई ? क्या वापस चले गये ?
चर्चा ने सुखद अनुभूति दी । आभार ।
बेशक बहुत दिनों से आये पर आते ही चर्चा बहुत लाजबाब की है आपने | आभार |
भई मिश्रा जी हम तो आपकी चर्चा को कईं दिनों से मिस कर रहे थे....अब आ गए हैं तो हर रोज ऎसी ही मजेदार चर्चा किया कीजिए ....
वाह पंकज जी आप वापस आये बहार आई....अब शुरू हो जाईये सारी पिछली कसर पूरी किजीये ...वैसे आपकी काबिल टीम ने बखूबी संभाले रखा ..आप सबको शुभकामना ..
मिश्र जी काफी दिनों के बाद आपकी चर्चा पढ़ने मिली . बहुत बढ़िया चर्चा की है . आभार.
पंकज जी,
बहुत बहुत आनंददायी चर्चा की आपने। पर ये बतलाएँ कि इस चर्चा में झलकने वाला अपनापन आप कहाँ से लाए ?
हा हा!! समीर लाल इन फीयर....:)
बहुत उम्दा चर्चा. अब लम्बा इन्तजार न करायें..जारी रखें नियमित चर्चा.
पन्कजभाई!
लगता है आप गाव से लोट आऎ है! नही तो शास्त्री अन्कल तो हम बच्चो को भूल ही गऎ थे.
आपकी चर्चा मे मेरे ब्लोग, ब्लोग चर्चा मुन्नभाई को स्थान मिला. आभार! वैसे एक बात है आपकी चर्चा भी कम मजेदार नही है मिश्राजी! बस यू ही सहयोग बनाऎ रखे ताकी हिन्दी ब्लोग जगत को आपके नेतर्त्व मे विकास का मोका मिलता रहे.
आभार
मुम्बई टाईगर
ब्लोग चर्चा मुन्नाभाई की
पंकज जी आपके प्रस्तुति का स्टाइल ही अलग होता है..बेहद सुंदर प्रस्तुति.. धन्यवाद
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