Wednesday, October 21, 2009

चाहता तो बच सकता था, मगर कैसे बच सकता था (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!!)...

अंक : 54
प्रस्तुतकर्ता : हिमांशु । Himanshu

"चाहता तो बच सकता था
मगर कैसे बच सकता था ?
जो बचेगा
कैसे रचेगा ?"

श्रीकान्त वर्मा की यह पंक्तियाँ हर काम कराती रहीं मुझे । चिट्ठाकारी में आना, ठहरना, रचने लगने का आभास करना- सब इन पंक्तियों का टेम्पटेशन है । राह की चर्चा करना आसान है, पर उस पर चलना मुश्किल । चिट्ठा-चर्चा का सम्मोहन बहुत ज्यादा है मुझ पर ! उससे मुक्त नहीं हो पाता ! वहाँ सुमेरु पुरुषों के जमावड़े में अपने पाँव लचक गये । मन में एक अतृप्त इच्छा थी, चर्चा करने की । पंकज ने कहा - उत्सुक हो स्वीकार कर लिया मैंने । पर डर, अतृप्ति शायद समय के पार की चीजें हैं- जाती नहीं । मनुष्य जहाँ भी अपनी प्रवृत्ति करे- पीछा करती जाती हैं । कुछ डर अभी भी समाये हैं, उनका उल्लेख नहीं करुँगा । ले-देकर चर्चा को समोत्सुक हूँ - साग्रह । स्वीकृत हो !

कई बार उल्लेख कर चुका हूँ, रवीश जी की नई सड़क ने ब्लॉगिंग की राह दिखायी ।  आज भी एक प्रविष्टि दिख गयी उनकी - लोग लिख रहे हैं । लोग मतलब मुस्कान टेलर्स के प्रो० शाहिद मास्टर जैसे लोग । हम आपको थमा दे रहे हैं पूरी की पूरी पोस्ट ही -



लोग लिख रहे हैं...
ये इंदिरापुरम के शिप्रा रिवियेरा के एक गेट के बाहर से ली गई तस्वीर है। अंग्रेजी के शब्द पहले बोलचाल में हिंदी के हुए और अब लिखनचाल में घुस रहे हैं। आम लोगों के द्वारा लिखी जाने वाली हिंदी।

लोग लिख रहे हैं, और बहुत लिख रहे हैं । किसी के लिखने पर लिख रहे हैं, किसी के न लिखने पर लिख रहे हैं । टिप्पणी का बाजार गर्म है । पिछले कुछ दिनों से देख रहा हूँ (यद्यपि निस्पृह भाव से देखते रहना इस टिप्पणी-पोस्ट व्यापार को कटघरे में खड़ा करता है ), समझ नहीं पा रहा हूँ - मुद्दा क्या है ? मुझे तो समझ में नहीं आता । ठेठ कविता-आलेख वाला ब्लॉगर हूँ, यह पोस्ट-प्रतिपोस्ट, टिप्पणी-प्रतिटिप्पणी पल्ले नहीं पड़ती मेरे । तैत्तरेय ब्राह्मण का श्लोक याद करने लगता हूँ -
"धूम एवाग्नेर्दिवा ददृशे नार्चिस्तस्मादर्चिरेवाग्नेर्नक्तं ददृशे न धूमः ।"
(दिन में आग का धुआँ ही दिखायी दिया, धधक नहीं; रात में धधक ही दिखायी दी, धुआँ नहीं ।)
खैर, आप तो यह पोस्ट (बहस में टिप्पणी का जवाब नहीं दिए जाना क्या अशोभनीय माना जाएगा ?) पढिये और पंकज के सवालों के जवाब दीजिये। और भी बहुत-से सवाल-जवाब वहाँ लिंकित मिलेंगे ।

ब्लॉगिंग की क्रिया-प्रक्रिया पर बात रोके नहीं रुकती । शास्त्री जी (सारथी ) कुछ कह रहे हैं, सदैव ही कहते रहते हैं -



चिट्ठाकारों को नंगा करने की साजि
पांच हजार चिट्ठों में पचास से अधिक नहीं है जो गंदगी फैला रहे हैं. उन में भी मुश्किल से पांच है जो लिखनाकरना कुछ नहीं चाहते (क्योंकि उनके पास देने के लिय कुछ नहीं है) लेकिन वे चिट्ठाजगत की नस नस पहचानते हैं. एक दक्ष ओझा के समान वे किसी एक “ग्राहक” को पकड कर चुपके से उसकी कोई नस दबा देते हैं. जैसे ही वह आह करता है वैसे ही ओझा को “काम” मिल जाता है.
यदि चिट्ठाकार मित्र इन पांच लोगों को पहचान लें तो चिट्ठाजगत में शांति हो सकती है.


बात दूसरी, संदर्भ दूसरा, पर हिन्दी ब्लॉगिंग की धमक अभी भी बरकरार है । ज्ञान दत्त जी की प्रविष्टियों से हतप्रभ होता रहा हूँ, मुझे उनमें रचनाकार की आत्म-शक्ति दिखती है । मैटर ऐसा-वैसा-जैसा भी होकर एक प्रविष्टि का रूप लेता ही है । लगने लगता है उपादान (मैटर) रचना की आत्मा नहीं हो सकता । ज्ञानजी की प्रविष्टि का पारायण करें -



चप्पला पहिर क चलबे?
छोटे के पैर में चप्पल होना उसे हैव-नॉट्स से हटा कर हैव्स में डाल रहा था; और लड़की के व्यंग का पात्र बना रहा था।
    चप्पला हो या न हो – ज्यादा फर्क नहीं। पर जब आप असफल होंगे, तब यह आपको छीलने के लिये काम आयेगा।
कितनी बार आप अपने को उस छोटे बच्चे की अवस्था में पाते हैँ? कितनी बार सुनना पड़ता है - चप्पला काहे पहिर कर चलते हो! आम जिन्दगी और सरकारी काम में तो उत्तरोत्तर कम सुनना पड़ता है अब ऐसा; पर हिन्दी ब्लॉगिंग में सुनना कई बार हो जाता है।

दीवाली की खुमारी उतरी नहीं अभी । द्विवेदी जी ने दीवाली के बाद की उदासी का खाका खींचा है अनवरत पर ; और अनवरत ही लिख रहे हैं शब्दों का सफर में बकलम खुद । देख लीजिये दोनों ही प्रविष्टियाँ -
दिनेश राय द्विवेदी अनवरत व शब्दों का सफर में -
दीवाली बाद एक उदास दिन
घर-शहर की बदलती सूरत [बकलम खुद]
हमारे यहाँ हाड़ौती में कच्चे घरों में गेरू मिला कर गोबर से घर के फर्श को लीपा जाता है। फिर खड़िया के घोल से उन पर मांडणे बनाए जाते हैं जो रंगोली की अपेक्षा अधिक स्थाई होते हैं और अगली लिपाई तक चलते हैं, जो घर में कोई और मंगल उत्सव न होने पर अक्सर होली पर होती है। इन मांडणों के बाद कच्चे घर पक्के घरों की अपेक्षा अधिक सुहाने लगते हैं।
पूछने लगे कितना कमाते हो? -मैं जितना कमाता हूँ उतना खर्च हो जाता है। हाथ में कुछ बचता ही नहीं। खर्च कितना करते हो? -बस कुछ ढंग से जी लेता हूँ। मामाजी कहने लगे –तुम बहुत कम खर्च करते हो। -आखिर उतना ही तो खर्च कर सकता हूँ जितना कमाता हूँ? तुम जितना खर्च करोगे उतना कमाओगे। इसलिए अपना खर्च बढ़ाओ। मामाजी के इस उत्तर पर सरदार अपना सिर खुजाने लगा।

मैंने दो चिट्ठाकारों को अभी-अभी पढ़ना शुरु किया है - विनीत और मनीषा पांडे को । कुछ और पढ़ूँगा तो कुछ कहूँगा इनके लिये, वैसे मुग्ध हूँ इनकी लिखावट से । आज तो विनीत की प्रविष्टि ही ज्यादा मौजूँ लगी बजरिये मेरी रुचि । दिलवाले दुल्हनियाँ ले जायेंगे ने निश्चय ही मुझमें भी एक दीवानापन भर दिया था- हाँ अनुभव काश, विनीत जैसे हो पाते! प्रस्तुत है इन दोनों चिट्ठाकारों की प्रविष्टियों की झलक -


 गाहे-बगाहे में विनीत कुमार व बेदखल की डायरी में मनीषा पांडे  
आज चौदह की हुई दिलवाले दुल्हनियां
स्‍वेटर बुनने वाले प्रोफेसर
पहली बार किसी लड़की के हाथ छू जाने से झुरझुरी होती है महसूस किया। पहली बार ये बयान सुना कि किस करते समय लड़कियां आंखें इसलिए बंद कर लेती है कि वो सुंदर चीजें देखना पसंद नहीं करती। टीनएज की कई बेतुकी बातें,लड़कियों से दूसरों के बहाने अपने मन की बातें धर देने की कला,सबकी आजमाइश इन सात दिनों में हमने की।
उनकी कई किताबें और शोध प्रबंध छप चुके हैं। उन्‍होंने कई साल जापान, अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों में बिताए हैं। यूनिवर्सिटी में स्‍टूडेंट्स के चहेते हैं। उनके फेसबुक एकाउंट में मनोविज्ञान से जुड़े दिलचस्‍प शोधों और बातों के साथ-साथ किसी दिन उस गुलाबी स्‍वेटर की तस्‍वीर भी होती है, जो उन्‍होंने अपनी बेटी के लिए बुना है।

’ये त्यौहार ही हमारी मुनिसपेलिटी है’ प्रविष्टि लिखकर शेफाली पाण्डेय जी ने भारतेन्दु के इस आलेख की याद तो दिलायी ही, एक शीर्षक में दो-दो प्रविष्टियाँ लिखने का उद्यम भी किया, राह भी सुझायी । इसी त्यौहार के ही बहाने एक बेहतरीन खबर दी ललित शर्मा जी ने अपने चिट्ठे पर, और एक ऐसे गाँव का जिक्र किया जहाँ डेढ़-सौ साल बाद ये दीपावली मनायी गयी । झलक तो यह रही, पूरी खबर यहाँ पढ़ लीजिये -
छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में स्थित छुरा ब्लोक के केडीआमा ग्राम (अब रमनपुर) में १५० वर्षों के बाद दिये जले और ग्रामीणों द्वारा दीवाली मनाई गई .दीयों के प्रकाश से केडीआमा ग्राम एक बार फिर से रौशन हुआ.
विज्ञान की निश्चित पदावली मेरा कवि-मन कभी न समझता यदि अरविन्द जी के चिट्ठे इस चिट्ठाजगत में न होते, और इस चिट्ठाकारी की अनिश्चित पदावली कभी समझ में नहीं आती यदि अरविन्द जी इस चिट्ठाकारी मे नहीं होते । वैसे आज की प्रविष्टि साईं ब्लॉग पर कुछ ऐसी ही है कि डिस्क्लेमर न लगाने के बावजूद भी अरविन्द जी पहली ही पंक्ति (बोल्ड है) में डिस्क्लेमर लगा बैठे हैं - विश्वास न हो तो देख ही लीजिये -


नारियां क्यों बनाती है यौन सम्बन्ध ? एक ताजातरीन जानकारी !
विश्वप्रसिद्ध साप्ताहिक पत्रिका टाईम(अक्टूबर ६ ,२००९) का यह ताजातरीन लेख  महिला सेक्सुअलिटी में रूचि रखने वालो /वालियों के लिए रोचक हो सकता है ! एलायिसा फेतिनी द्बारा लिखा  'व्हाई वीमेन हैव सेक्स " शीर्षक यह लेख हो सकता है यौन कुंठाओं वाले एक बड़े भू भाग के  भारतीय उपमहाद्वीप  का प्रतिनिधि  चित्रण न करता हो मगर एक प्रजाति के रूप में मनुष्य की सहचरी के गोपन व्यवहार का कुछ सीमा तक अनावरण करता ही है ! नैतिक मान्यताओं को लेकर आज बहुत कुछ अस्पष्ट और संभ्रमित  भारतीय मानस भले ही ऐसे अध्ययनों से प्रत्यक्षतः दूरी बनाए रखना चाहता हो मगर  ऐसे अध्ययनों के अकादमीय महत्व को सिरे से नकारा नहीं जा सकता !

यद्यपि हूँ मैं कविता लिखने वाले बहुसंख्यक ब्लॉगरों के परिवार का सदस्य पर जब चर्चा करने बैठा हूँ तो अबतक केवल आलेख ही सम्मिलित हुए हैं, किसी कविता की चर्चा नहीं हुई ।कविताओं की कुछ प्रभावित करने वाली प्रविष्टियाँ यूँ रहीं -

लाडली बेटियों का ब्लॉग एवं नारी का कविता ब्लॉग 
मां का दुपट्टा ....
राह.
वो अपने
छोटे-छोटे हांथों से
मां का दुपट्टा
सर पे डाल कर
कभी दुल्‍हन बन
बन जाती
झांक कर कभी शर्माती
उसके इस खेल में
शामिल होता हर कोई
चेहरे पर मुस्‍कान
सजाये वह दौड़ कर
गोद में छुप जाती ....
वो अपने ....।
नई दिल्लीउत्ताल तरंगों को देखकर
नही मिलती सागर की गहराई की थाह
शांत नजरों को देखकर ,
नही मिलतीनारी मन की राह
टुकडों में जीती जिन्दगी पत्नी ,प्रेमिका ,मां
अपना अक्स निहारती कितनी है तनहा
सूरज से धुप चुराकर सबकी राहें रोशन करती
उदास अंधेरों को मन की तहों में रखती
सरल सहज रूप को देखकर
नही मिलतीनारी मन की राह

विवेक सिंह एवं राजेय शा की प्रविष्टियाँ  -
बन्द कर अब मेरा धीरज जा लिया
हरदम खुद को खो देता हूँ
कर रहा है धृष्टता पर धृष्टता ।
चैन की वंशी का सुर चुरा लिया ॥

वाहवाही दी बहुत मैंने मगर ।
आज तूने सत्य ही बुलवा लिया ॥

बीते बचपन की यादों में
मैं ख्वाबों में रो देता हूँ

मेरे सपने किसी ने पढ़े नहीं
बस लिखता हूँ धो देता हूँ ।

दो ऐसे प्यारे टिप्पणीकार हैं, जिनकी बहुत-सी टिप्पणियाँ कविताओं की शक्ल में होती हैं । श्यामल सुमन जी ने ऐसी ही अपनी टिप्पणियों का संकलन देना शुरु किया है । दूसरी किस्त भी आ चुकी है । अपने शास्त्री जी भी रम्य कविता के साधक हैं । उच्चारण पर उनकी प्रविष्टि पर भी गौर फरमायें -

श्यामल सुमन मनोरमा में एवं रूप चन्द्र शास्त्री उच्चारण में
सबरंग दोहे -(२)
."सब बच्चों का प्यारा मामा"
प्रश्न अनूठा सामने अपनी क्या पहचान?
छुपा हुआ संघर्ष में सारे प्रश्न-निदान।।

कई समस्या सामने कारण जाने कौन?
कारण अबतक न मिला समाधान है मौन।।

नभ में कैसा दमक रहा है।
चन्दा मामा चमक रहा है।।

 कभी बड़ा मोटा हो जाता।
और कभी छोटा हो जाता।।

संवादघर पर बेहतर संवाद हो रहा है । एक मौजूँ पैरोडी लिखी है संजय जी ने -
"ओज़ोन पे आह करो
मौजों पे वाह करो
शांति को तलाक दे दो
शोर से निकाह करो
यारों सब धुंआं करो...."
जम गय़ी हो तो वहीं जाइये और पढ़ ही डालिये ।वन्दना जी के ब्लॉग पर भी एक बेहतर कविता बुला रही है -
सुरमई शाम ने झाँका बाहर
निशा दामन फैला रही थी ...

हेमन्त मेरे कस्बे के इकलौते ब्लॉगर बच रहे हैं इन दिनों (मुझे छोड़कर ) । मैं उन्हें कलरव के चिट्ठाकार के तौर पर ही जान सकने की हद-जद में था । पर वह भी उस्ताद ही हैं , अनजाने में एक लघुकथा पोस्ट हो गयी है कलरव पर (उन्होंने बताया मुझे कि वो इस लघुकथा को अपने ब्लॉग अक्षरशः पर पोस्ट करने वाले थे ) । इस नये साहित्य-रूप में बेहतर हाँथ दिखाये हैं उन्होंने । नजर डालिये -
राहुल दो लड़कों व एक लड़की समेत तीन बच्चों का बाप था । कायदे से  दो वक्त की रोटी भी जुटाना मुहाल था । सोचा कि पहले इसके पैसे से घर बनवा लूं  बीबी और बच्चों को बाद में मना लूंगा । तब तक इसे इधर ही किराये के मकान में रखुंगा । किसी को पता भी न चलेगा । आसानी से घर भी जाया करूंगा और बीबी और बच्चों की परवरिश भी होगी  और इधर कमा धमा एक नया घर बना इसे अलग रखूंगा । दोनों बीबियां अलग-अलग रहेंगी किसी को क्या ऐतराज मैं एक बीबी रखूं या दो |

चर्चा की तमीज नहीं है अभी । जो दिख गया, जो जम गया,  यहाँ आ गया । कुछ जानकारियों वाली प्रविष्टियों से विराम लूँ तो हर्ज क्या !

रवि रतलामी जी एवं जी०के०अवधिया जी की प्रविष्टियाँ -
विंडोज 7 सीखने के लिए आपके लिए कुछ मुफ़्त वेबकास्ट 
क्या आपका फायरफॉक्स ब्राउसर बहुत धीमा है? ... गति ऐसे तेज कर सकते हैं ...
विंडोज का हर संस्करण चलने चलाने में अपने पूर्व के संस्करणों से बहुत कुछ भिन्न होता है. विंडोज 7 में हिन्दी कैसे चलाएँ? विंडोज 7 में नया क्या है? विंडोज 7 में इंटरनेट-नेटवर्किंग कैसे करें? इत्यादि. यह सब और बहुत कुछ जानिए मुफ़्त वेबकास्ट से.
सामान्यतः आपका ब्राउसर एक बार में एक ही वेबपेज को रिक्वेस्ट करता है किन्तु पाइपलाइनिंग को सक्षम कर देने से यह एक ही समय में एक से अधिक वेबपेजेस को एक साथ रिक्वेस्ट करने लगता है और आपके ब्राउसिंग की गति तेज हो जाती है।

काजल कुमार एवं नवीन प्रकाश की प्रविष्टियाँ
ओह ! कहीं आप भी ये एंटी वायरस तो नहीं ले बैठे ? 
फोटो से बनाइये मजेदार शो 
वास्तव में कंप्यूटर पर कोई वायरस था ही नहीं अलबत्ता, इस बीच एक स्पाइवेयर कंप्यूटर में बस ज़रूर गया. ऐसे कुछ प्रचलित वायरस हैं SpywareGuard2009, AntiVirus 2009, AntiVirus 2010, Spyware Secure,XP AntiVirus इत्यादि. 
ढेर सारे टेम्पलेट में से अपनी पसंद का एक चुनिए एनीमेशन, साउंड या अपनी आवाज़ मिलाइए और बनाइये एक मजेदार शो ।

गन्ने के रस से चल सकती है कार ! चौंकिये मत ! विनय बिहारी जी की प्रविष्टि पढ़िये और सच जानिये -

एक डच माइक्रोबायलाजिस्ट ने प्रयोग कर दिखा दिया है कि पेट्रोल या डीजल के बदले गन्ने के रस से कार चलाई जा सकती है। यही नहीं, मकई (कार्न) से सुंदर कपड़े बन सकते हैं। इसके बाद से ही यह बहस छिड़ गई है कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ है। गन्ने का रस मिठास के लिए है तो उसे वही रहने दिया जाए। इससे कार का ईंधन बनाना अनुचित है। अगर पेट्रोल की जगह गन्ने का रस इस्तेमाल होने लगा तो फिर चीनी की भारी कमी हो जाएगी क्योंकि कारें लगातार बढ़ रही हैं और पेट्रोल की खपत का कोई अंत नहीं दिख रहा है। ऐसे में लोग मिठास के लिए तरसने लगेंगे। इसी तरह मकई का पौधा अगर कपड़े बनाने में इस्तेमाल होने लगा तो लोग कार्न से बनने वाली पौष्टिक चीजों से वंचित रह जाएंगे।
 चर्चा का यह बड़ा काम पूरा हुआ । शाम छः बजे तक की प्रविष्टियाँ लेने की कोशिश की है शुक्रवार की । रात को मेरे कस्बे में बिजली नहीं रहती । छूटे सभी चिट्ठे मेरी सीमाओं के कारण छूटे हैं । शायद बाद के चिट्ठाकारों का काम मैंने बढ़ा दिया है । धन्यवाद । फिर अगली बुधवार !

48 comments:

हेमन्त कुमार said...

"खुदी को कर बुलन्द इतना कि खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ।"
शानदार प्रस्तुति...!
जानदार प्रस्तुति..!
अभिनव प्रस्तुति.!
आभार...!

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! अच्छी तरह से चर्चा की। बधाई!

IMAGE PHOTOGRAPHY said...

हिन्दी के चिठ्ठो की चर्चा के इस कडी मे बेहतरीन चिठ्ठाकरी को स्थान मिला है ।
आप की बेहतरीन प्रस्तुती के लिये धन्यवाद....

स्वप्न मञ्जूषा said...

हिमांशु जी,
आपकी चिटठा चर्चा :
कमाल है,
धमाल है,
बवाल है,
झपताल है
तीन ताल है
और सौ बात की एक बात..
बेमिसाल है....
बधाई...

वाणी गीत said...

लेखन के विविध आयाम प्रस्तुत कर हिमांशु चौंकाते रहते हैं...यह भी ऐसा ही एक प्रयास नजर आ रहा है ...मगर इसे प्रयास कहना ठीक नहीं होगा..सटीक व् सधे शब्दों में चिटठा चर्चा में साहित्यिकता को कहीं भी परे नहीं धकेला है... कहने को यह चिटठा चर्चा है पर आपकी साहित्यिक समझ और कलात्मक लेखन ने इसे बहुत रोचक बना दिया है ...पूरे निष्पक्ष भाव से चुने हैं आपने सभी आलेख ...बहुत सारे नए और अच्छे लिंक मिले ...
बहुत शानदार रही चिटठा चर्चा...बहुत शुभकामनायें ...!!

Randhir Singh Suman said...

nice

शरद कोकास said...

चर्चा अच्छी रही । आपके कस्बे में विद्युत प्रवाह निरंतर बना रहे त्तकि यहाँ भी निरंतरता बनी रहे, यह कामना ।

Dr. Shreesh K. Pathak said...

इस मोती की माला में धागे का सौन्दर्य भी अलग से परिलक्षित हो रहा है...हिमांशु जी की प्रतिभा से वरिष्ठ ब्लोगरों को आश्वस्त रहना चाहिए कि जो परंपरा उन्होंने विकसित की है वो अनवरत और अक्षुण्ण बनी रहेगी. हिमांशु जी आपकी चर्चा एक आलेख की तरह लगी..हार्दिक बधाइयाँ..उन्हें जो आज की माला के मोती हैं और युवा माली को भी....

Mishra Pankaj said...

कहने के लिए शब्द नहीं है , आपने लय, ताल से चर्चा की , चर्चा क्या पूरी की पूरी साहित्यिक पत्रिका ही प्रस्तुत कर दी है आपने .............हिमांशु जी आपने हमारा आमंत्रण स्वीकारा मै धन्य हुआ ........

विवेक रस्तोगी said...

बहुत अच्छी चर्चा बन पड़ी है और एक ही जगह सभी चिट्ठों की लिंक मिल जाये तो बात ही क्या है।

Arvind Mishra said...

"वहाँ सुमेरु पुरुषों के जमावड़े में अपने पाँव लचक गये । मन में एक अतृप्त इच्छा थी, चर्चा करने की ।"
पहले तो आपका इस मंच पर स्वागत ,अभिनन्दन ! इस मंच को गुरुता मिली ! पकज को भी बधाई !
सुमेरु को छोडिये आप खुद मैनाक कुल के हैं जहां हनुमान सरीखे महाबली भी पनाह माँगेंगे !
चर्चा जारी रखें -यही स्नेहाशीष !

विनोद कुमार पांडेय said...

अत्यन्त सुंदर चिट्ठा चर्चा..बेहतरीन प्रस्तुति...धन्यवाद

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

शीर्षक पंक्तियाँ मेरी बहुत पसन्दीदा रही हैं। हिमांशु जी से इसी की उम्मीद थी। इसके आगे की पंक्तियाँ भी, मतलब कि पूरी कविता यहाँ दे दें - ऐसा अनुरोध है। बहुत बलदायी कविता है - कराह के साथ भी निबाह की बात करती है।
___________________________

चर्चा बहुत अच्छी रही। मुझे दिन ब दिन निखरते हिन्दी ब्लॉग जगत पर गर्व है। इतनी वेराइटी और इतनी गुणवत्ता ! भई वाह !!

मनोज कुमार said...

बहुत अच्छी चर्चा। सुन्दर विश्लेषण। अच्छी शैली।

Khushdeep Sehgal said...

मैं कौन सा गीत सुनाऊं, क्या गाऊं
जो बस जाऊं तेरे चिट्ठा-चर्चा में...

जय हिंद...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर चर्चा,उम्दा विश्लेष्ण-गागर मे सागर

Meenu Khare said...

बहुत बढ़िया चर्चा. हर रोज़ निखर रही है लेखनी.

ताऊ रामपुरिया said...

आपकी चिट्ठाचर्चा देखकर यकीन नही हुआ की इतनी स्निग्ध और मधुर चिट्ठाचर्चा भी हो सकती है. फ़िर मजबूर होकर चर्चाकार का नाम देखा तो यकीन होगया कि इतनी स्निग्धता और मधुरता का राज क्या है?

हिमांशुजी मेरे द्वारा पढी गई चंद चर्चाओं मे यह अभी तक की सर्वोत्कृष्ट चर्चा है और मैं आपका अभिनंदन करता हूं. आप जैसे गुणी चर्चाकारों से ही यह विधा आगे विकसित होगी.

अंत मे आपकी चर्चा के बारे मे इतना ही कहुंगा कि आज तपते रेगिस्तान की तपती धूप मे शीतल वर्षा की फ़ुहारों जैसी चर्चा की आपने. बहुत शुभकामनाएं आपको और पंकज जी को भी कि आप जैसे गुणी जनों को जोडने का कार्य वो कर रहे हैं.

रामराम.

Unknown said...

ये नहीं है सिर्फ चर्चा!!
चर्चा के साथ है इसमें साहित्य का मजा!!

L.Goswami said...
This comment has been removed by the author.
L.Goswami said...

शुभकामनाये आपको. आपका नाम देखकर ही आकर्षित हुई इस चिठ्ठे की ओर...बस आप नियमित रहिये शेष आप को कुछ कहने की आवश्यकता नही दिख रही(न कभी दिखती है).

Alpana Verma said...

हिमांशुजी,उम्दा चिट्ठाचर्चा!बढ़िया विश्लेषण,धन्यवाद.

Anil Pusadkar said...

गागर मे सागर।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत उम्दा चर्चा है हिमांशु जी ........... बहुत मसाला है पढने को .......

सदा said...

बहुत ही बेहतरीन तरीके से अपने हर चिट्ठे को बखूबी अपने अल्‍फाजों से संयोजित किया है बधाई के साथ आभार ।

rashmi ravija said...

बहुत अच्छी चर्चा रही....अलग अलग विषयों पर लिखे चिट्ठों का समावेश अच्छा लगा..

निर्मला कपिला said...

carcaa acchee rahee aabhaar

निर्मला कपिला said...

हा हा हा वही गलती चर्चा अच्छी रही आभार उपर वल कमेट गलती से दिया गया देखा ही नहीं कि हिन्दी मे नहीं लिख रही

ghughutibasuti said...

बहुत विस्तृत व बेहतरीन चर्चा की है।
घुघूती बासूती

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आज की चर्चा में बहुत ही उन्नत पोस्टों को शामिल किया गया है।
हिमांशु जी।
आपको बहुत-बहुत बधाई!

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

विस्तृत व बेहतरीन चर्चा

अजित वडनेरकर said...

बहुत मेहनत से की चर्चा।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत ही उम्दा चर्चा....प्रस्तुतिकरण अच्छा लगा !!

Manish Kumar said...

aapne kafi mehnat ki hai is charcha ke liye.

Udan Tashtari said...

एक बेहतरीन चिट्ठाचर्चा..आप बेवजह घबराहट की बात करते हैं..अच्छे अच्छे पानी भरेंगे इस चर्चा को देखकर...बधाई. जारी रहें...श्रीकान्त वर्मा जी पंक्तियाँ मेरी डायरी में नोट हो गई हैं. आपका आभार.

Kavita Vachaknavee said...

अच्छा संकलन

अजय कुमार झा said...

वाह हिंमाशु भाई..अब बढिया रहा...कम से कम हमें भी ये मौका तो मिलेगा कहने का कि देखिये हमें छोड दिये न चर्चा में....हा....हा....हा..पंकज जी की टीम बढिया बन रही है। शुभकामना..और चर्चा का क्या कहें..एक दम कमाल है...

अजय कुमार झा

Himanshu Pandey said...

अभिभूत हूँ इस स्नेह से । ऐसा उत्प्रेरण क्या न करवा देगा ! इस किंचित गति को तीव्रता क्यों न मिलेगी ? सबको धन्यवाद ।

@ अजय जी, आपको क्यों और कैसे छोड़ा जा सकता है ! आप तो हमारी दृष्टि में ही समाये हैं । स्नेह बनाये रखें । आभार ।

नीरज गोस्वामी said...

अद्भुत, विलक्षण, सर्व श्रेष्ठ चर्चा...और क्या कहूँ...वाह...आनंद आ गया...
नीरज

गौतम राजऋषि said...

हिमांशु जी, आपका ये अवतार भी मन मोह रहा है।

बहुत मेहनत से जुटायी गयी सामग्री और लिंक...

प्रेमलता पांडे said...

कोई आश्चर्य नहीं हुआ पढ़कर आपकी गुणवता निःसंदेह है। बहुत सुंदर चर्चा!
शुभकामनाएँ!

प्रेमलता पांडे said...

पुनश्च - हाँ पंकज मिश्र, आ० शास्त्रीजी सहित पूरी टीम को बधाई!

शेफाली पाण्डे said...

बहुत अच्छे चर्चा ...चर्चा में मेरे चिट्ठे को शामिल करने के लिए धन्यवाद ....

दर्पण साह said...

Pankaj ji maine kaha tha na ki Himanshu ji agar charcha kareinen....
to kuch aisa hoga jo aaj taki hua hi nahi...
43 tippaniya !!
Pankaj ji aapke liye dil se kitni duaaein nikal rhai hai bahat nahi sakta....

...shudhh hindi lehkahkon main 'Himanshu ji' blogging main dwitiya sthan rakhte hain.....

Pratham?
Pankil sir !!

man kar raha hai ki kay kaya aur kitna kitna likha jaaon....
is post ki taarif main !!

Himanshu ji aap nahi jaante ki ye ek chittha charcha se badhkar apne aap main sahityik kriti hai...
...jhooth nahi boolonga ek bhi link pe chatka nahi lagaya !!
is post ko hi baar baar.....

...baar baar!
AND THE FIRST PRIZE GOES TO.....

HIMANSHU JI.
NAHI HIMANSHU JI NAHI HIMANSHU KAHOONGA.....
...BUS HIMANSHU !!

दर्पण साह said...

कहने के लिए शब्द नहीं है , आपने लय, ताल से चर्चा की , चर्चा क्या पूरी की पूरी साहित्यिक पत्रिका ही प्रस्तुत कर दी है आपने .............हिमांशु जी आपने हमारा आमंत्रण स्वीकारा मै धन्य हुआ ........


HAAN PANKAJ BHIA HUM SABHI DHANYA HUE HAIN...

दर्पण साह said...

कोई आश्चर्य नहीं हुआ पढ़कर आपकी गुणवता निःसंदेह है।

हिमांशु जी, आपका ये अवतार भी मन मोह रहा है।

एक बेहतरीन चिट्ठाचर्चा..आप बेवजह घबराहट की बात करते हैं..अच्छे अच्छे पानी भरेंगे इस चर्चा को देखकर..

आपका नाम देखकर ही आकर्षित हुई इस चिठ्ठे की ओर...बस आप नियमित रहिये (HIMANSHU JI RAHEINGE NAA NIYAMIT?)

Shastri JC Philip said...

प्रिय हिमांशू, चर्चा करने का आपका अंदाज बडा अनोखा है. डाईनेमिक!! लगे रहें, अभी बहुत आगे जायेंगे!!

सस्नेह -- शास्त्री

हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है
http://www.Sarathi.info

Gyan Dutt Pandey said...

ओह गजब! अति सुन्दर। आजकाल पढ़ कम रहा हूं तो पहले देखा न था।

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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