नमस्कार आप सब को दशहरा की शुभ कामनाये.
कल दशहरा था दशानन, मेघनाद और कुम्भकर्ण के गगनचुम्बी पुतले मैदान में सजे
थे रामलीला मैदान में मेला लगा था हजारों लोगों की भीड़ थी श्री राम जी की
जय के उद्घोष के साथ पुतलों का दहन शुरू हो चुका था इस मेले से चार बालाएँ
गुम हो गई थी. डा. रूपचंद शास्त्री

जिन भावों की मैं, वर्षों से प्यासी ,
वह भाव आज, फ़िर से जगी है ।
जिस चाहत को मैं तो, भूल ही गई थी ,
वह चाहत मन में, जागृत हुई है । कुसुम
उसका दर्द बन गया है अब दवा देखो,
हर पत्ता है खामोश कहां है हवा देखो ।
तुम मनाने की जिद लिये बैठे हो वहां,
कह रहा है दिल कौन है हमनवा देखो ।
तुझसे दूर होकर खुद से बिछड़ गया हूं, सदाजलते जलते मुझे यूं ख्याल आया है
कि मुझे खड़े करके इंसान ने क्यूं जलाया है
या समझ रहा इंसान है
कि जिंदा हूं मैं राम के बिना
जबकि राम ने मुझे मारा है अविनाश वाचस्पति
न पूछो हिज्र ने क्या क्या हमें जलवे दिखाए हैं

इधर आँखों में अश्क़ आये उधर हम मुस्कुराए हैं

तुम्हारी एक दुनिया है
किलकारियों और विश्वास की .....
जिसमे जाने के लिए
तुम
गुजरते हो एक मानसिक तैयारी से ........
सारे फ़ोन स्विच ऑफ़ करके .... दीप्ती भारद्वाज
देख कैसी बेशर्म है? टुकर टुकर जवाब दिये जा रही है।भगवान का शुक्र नहीं
करती कि किसी शरीफ आदमी ने इसे ब्याह लिया है। छ: महीने मे ही इसके पर
निकल आये हैं। सास को जवाब देने लगी है।* दादी न जाने कब से बुडबुडाये जा
रही थी। कहानी वीर बहुटी पर
ख्याल आते रहे
सोहबत में
ज़रुरत के
ज़िन्दगी गुज़रती रही

इशारों को कैसे
जुबां दे दें हम
मोहब्बत बच जाए
दुआ निकलती रही अदा
उठो,
देखो खिड़की खोल कर,
बालकनी से झाँक कर
सूरज, लाया है आज
कुछ ख़ास कशीदे बुनकर किरणों की!! ओम भाई
माँ : बेटा लड्डू खा लो ...
माँ : बेटा राजीव ये लड्डू खा लो, हनुमान जी का प्रसाद है
|राजीव : माँ मैंने कितनी बात तुम्हें कहा है कि मुझे मीठा बिलकुल पसंद नहीं, फिर क्यों मुझे बार-बार लड्डू खाने को कहती हो ?राकेश सिंह
आदी
|राजीव : माँ मैंने कितनी बात तुम्हें कहा है कि मुझे मीठा बिलकुल पसंद नहीं, फिर क्यों मुझे बार-बार लड्डू खाने को कहती हो ?राकेश सिंह