चर्चा कुछ एक हिन्दी चिट्ठो की !
शुरुआत दिगंबर नासवा जी से .
गीत कोई विरह का गाया न जाएगा
इन आंसुओं का भार उठाया न जाएगा
गोलियों से बात होती है जहां दिन भर
मैं तो क्या मेरा वहां साया न जाएगा
ताऊ जी के ब्लॉग पर इंटरव्यू
रहे पीटते लीक पुरानी नया न कुछ कर पाए जो;
देख कामयाबी औरों की लगते बस बिसराने लोग।
दरवाजे पर दस्तक देते अपने मतलब की खातिर; मगर न मुड़ कर आते फिर जो होते बहुत सयाने लोग।
कहानी ऐसी भी
सूराखअली के मित्रों को किसी ने
बता दिया कि सूराख का मतलब छेद होता है। बस फिर क्या था सारे मित्र उन्हें
छेदी छेदी कहने लग गए। अब सूराखअली बेचारे बड़े परेशान। वे इतने परेशान हुए
कि अपना नाम ही बदल डालने का निश्चय कर लिया। पहुँच गए पण्डित जी के पास
नाम बदलवाने के लिए (मौलवी जी के पास इसलिए नहीं गए क्योंकि मौलवी साहब ने
ही तो उनका नाम सूराखअली रखा था)। पण्डित जी ने ज्योतिष की गणना की और
बोले भाई हमारी गणना के अनुसार तो तुम्हारा नाम गड्ढासिंह
बनता है। बेचारे सूराखअली की परेशानी और बढ़ गई मौलवी जी ने छेद ही बनाया
था अब ये पण्डित जी तो छेदा से गड्ढा बना दे रहे हैं। अब क्या करें? सोचा,
चलो पादरी से नाम बदलवा लेते हैं और पहुँच गए चर्च के फादर के पास। पादरी
ने भी अपना हिसाब किताब लगाया और कहा, "डियर सन, हम तुम्हारा नाम Mr. Hole रख देते हैं।"
मेरी ज़िन्दगी के सच से वो अनजान बहुत हैं..
फट गयी कमीज तो भी पहन लेंगे हम
अब टाट का पैबंद लगाया न जाएगा
हाय़ गजब कही तारा टूटा
इक पेंडुलम डोलता है आगे पीछे आगे पीछे । दीदी ने फोटो वापस बैग में डाल
लिया है । जानती हो , वो धीमे उसाँस भरती कहतीं हैं , पिछली दफा गई थी
वहाँ । घर नहीं था सिर्फ मलबा था । शायद वहाँ एक मल्टीस्टोरी अपार्टमेंट
बन रहा है । जिन्होंने मकान खरीदा था उनका बेटा कैनडा जा रहा है , तो सब
बन्दोबस्त ... । उनकी आवाज़ बीच में थमती ठिठकती है । उस लकड़ी की आलमारी की
याद है तुझे ? जाने कहाँ किसके पास होगा ? बुलु के पास क्या ? या तुपु ?
और वो फ्रेम में नाना की वर्दी वाली तस्वीर ? और तेरा बनाया नदी और घर और
नारियल के पेड़ वाली बचकानी पेंटिंग , मेरे स्कूल के मार्कशीट्स और जूट का
वो झोला जो तेरे स्कूल के नीडलवर्क क्लास के लिये मैंने बनाया था ?
आठ तरह के इंधन से चलने वाले विमान - विश्वकर्मा पूजा पर विशेष
बीच का पूलटूट जाये
तो भी
रिश्ते
भर-भरा कर
मौसम का जादू है ये
सावन का महीना जाने के बाद देर से ही सही, झमाझम बरसात का मौसम आया है।
गर्मियों से मुक्त हो रहा मन प्रसन्न है, नदियां उफन रही हैं। कहीं-कहीं
जन का जीवन डिस्टर्ब जरूर है पर मन सभी का खुश। चमकती-कड़कती बिजली, घनघोर
घटायें, रंग-बिरंगे बादल, अधखिली धूप, हरे-भरे और बरसात के पानी से
धुले-पुछे पेड़-पौधे, कल-कल बहतीं नदियां, लबालब तालाब, उसमें खिलते कमल
के फूल, झरनों की खूबसूरती, बारिश में भीगती-छिपतीं जवानी, किलोल करता
बचपन, सड़कों पर भरे जल से निकलने की जद्दोजहद, हर ओर हंसी-खुशी। यही तो
कला के दिन हैं। बारिश का ये मौसम कलाकारों का सबसे फेवरेट है।
रोज दिखावे करते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर,ज़ख़्मों पे मरहम धरते हैं,बस झूठी शोहरत के खातिर.
घर तक है नीलाम पड़ा,दारू की ठेकेदारी में,देखो फिर भी दम भरते हैं, बस झूठी शोहरत के खातिर.
वामन वृक्ष करे पुकार ,
झेल रहा मनुज की मार ।
वरना मैं भी तो सक्षम ,
रहता वन मे स्वछंद ।
धरा सुसज्जित होती जिनसे, वो ही वृक्ष कहाते हैं, जो गौरव और मान बढ़ाते, वो ही दक्ष कहाते हैं।
हरित क्रान्ति के संवाहक, ये जन,गण के रखवाले, प्राण प्रवाहित करने वाली, मन्द समीर बहाते हैं।
जिनके हक के लिए बाँधा सिर पर कफन;
उनकी संतानें यूँ धन की प्यासी हुईं-
कर रहीं हैं गमन पर गमन सथियों॥
साक्षरता निवारण की अनेक परियोजनाओं के बावजूद अभी तक निरक्षरता पर विजय
नहीं पाई जा सकी. 2001 की जनगणना के अनुसार देश में साक्षरता दर 64% ही
पाई गयी थी. जिसमें 75% पुरुषों की तथा महिलाओं की यह दर 54% ही थी.
हँसी भी लब पे है उसके,हमें आबाद करने को
मगर क्यूं जां मेरी,उसके हमेशा दर्द खाती है
हकीकी-इश्क कहिये या मजाजे-इश्क,पर हमको
खुदा की बुत की तरह ही हमेशा याद आती है
4 comments:
खूबसूरत चर्चा । प्रत्यक्षा जी का ब्लॉग लिंक महत्वपूर्ण है ।
बहुत सुंदर चर्चा . आभार आपका.
रामराम.
badhiya rahi aapki charcha..
VAAH PANKAJ JI ... SHUKRIYA .... AAJ TO MAHAARA ZIKR BHI HO GAYA...... VAISE AAPKI CHITTHA CHARCHA LAJAWAAB HOTI HAI ...
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