नमस्कार. पंकज मिश्रा आपके साथ ! चर्चा हिन्दी चिट्ठों के इस अंक मे मै आपका हार्दिक स्वागत करता हु! आज रतन सिंह शेखावत जी के माध्यम से काफ़ी कुछ जानने का मौका मिला और उसी का नतीजा है हमारा यह नया वेब साईट जो कि मेरे बारे मे व्यक्तिगत जानकारी देता है आप इस साईट पर जाकर दो मिनट का समय दिजिये और यहा आकर बताईये कैसा लगा हमारा यह नया प्रयास?!
चलिये चर्चा की तरह चलते है .शुरुआत करते है आज कल चल रहे सबसे ज्वलंत मुद्दे पर चिट्ठा चर्चा डाट काम बनाम डोमेन ! आज इस बात को लेकर काफ़ी पोस्ट आयी है शुरुआत चच्चा टिप्पु सिंह जी के ब्लाग से . चच्चा पुछ रहे है चिठ्ठाचर्चा डोमेन डकैतों द्वारा लूटा गया? आप भी पढिये और बताईये!
आपका फ़रमाना है कि प्रथम दर्जे के लोग तो ब्रांड बनाते हैं. तो आप क्या ई कहना चाह रहे हैं कि शुकुलजी अऊर मगरुरवा ने लोगों की इज्जत खराब करके ..उनकी मौज लेके ये ब्रांड बनाया है? अऊर क्या इस ब्रांड की यही औकात है कि ये सडक पर पडा हुआ मिल रहा है? जरा किसी ब्रांड को आप खरीद कर तो बताईये. जो डोमेन लिया गया है उसकी औकात ये है कि जैसे सडक पर पडा हुआ मिल रहा हो. अब भी उस से संबंधित ब्रांड तमाम सडक पर बिखरे माल जैसा उपलब्ध है।
हम कहता हूं कि जब एतना ही ब्रांडेड माल रहा त क्युं नाही संभाल कर रखा? क्या आप अपना तिजोरी को सडक पर खुला छोड देंगे अऊर ई उम्मीद करेंगे कि दूसरा नेक नियती अऊर पुरातन के नाम पर कोई उसको उठायेगा नही?
और तभी बी एस पाबला जी का भी पोस्ट आया कि चिट्ठाचर्चा डॉट कॉम खरीदा गया तो अपराध की गर्त में चले गए!?
वहीं मैंने स्पष्ट कर दिया कि यह डोमेन मेरा नहीं है, छत्तीसगढ़ के ब्लॉगर्स का है, उनकी एसोसिएशन का है, इसकी घोषणा खुलेआम की गई है, चोरी छिपे यह कार्य नहीं हुया है। मंच से ही इस व्यवधान का समाधान पूछे जाने पर उपस्थित साथियों में से मात्र संजीत त्रिपाठी जी को छोड़ कर, अग्रिम पंक्ति के ब्लॉगरों ने इस डोमेन का उपयोग अन्यत्र किए जाने का विरोध किया। (इस संबंध में संजीत त्रिपाठी जी ने अपनी पोस्ट में कुछ प्रश्न उठाए हैं, जिनका उत्तर मैं व्यक्तिगत तौर पर अगली पोस्ट पर देना पसंद करूँगा।) उस समय इस मुद्दे पर अधिकतर ब्लॉगर उदासीन ही दिखे। बाद में आपसी बातचीत में मुझे ज्ञात हुया कि वे इससे अनभिज्ञ हैं, इस चिट्ठाचर्चा नाम की चिड़िया को जानते ही नहीं क्योंकि वह उनके घर (ब्लॉग) पर कभी आई ही नहीं! तब मुझे लगा इसे ले कर मेरा गंभीर होना शायद गलत है व नाहक ही इस नाम की अहमियत का ढिंढोरा पीटा जा रहा है।
समीर लाल जी के माताजी को हमारी श्रद्धांजलि।कहते हैं मेरी माँ की ५वीं पुण्य तिथि है आज!!
लगता है कि कल ही उससे बात करता था. ये ५ साल, एक खालीपन, कब निकल गये मैं नहीं समझ पाया. अभी भी वो रोज मिलती है मुझे ख्वाबों में. कोई रात याद नहीं जब वो न आई हो. जाने क्या क्या समझाती है. मैं झगड़ता भी हूँ वैसे ही जैसे जब वो सामने थी... फिर नींद खुलने पर रोता भी हूँ मगर वो रहती आस पास ही है. तन से नहीं...मन से तो वो गई ही नहीं. चुप करा देती है. कोई जान ही नहीं पाता उसके रहते कि मैं रोया भी.
मैं उसके नाम के साथ स्वर्गीय लगाने को हर्गिज तैयार नहीं आज ५ साल बाद भी. वो है मेरे लिए आज भी वैसी ही जैसी तब थी जब मैं उसे देख पाता था. तुम न देख पाओ तो तुम जानो
और आगे चलते है अजब ग़ज़ब दुनिया मे और जानकारी लेते है कि एड्स पीड़ितों के लिए वैवाहिक वेबसाइट की !
गुवाहाटी। देश के एचआईवी पीड़ितों के लिए एक अच्छी खबर है अब उन्हें भी अपना मन पसंद साथी मिल सकता है। जी हां एचआईवी संक्रमित लोगों के लिए जल्द ही एक वैवाहिक वेबसाइट शुरु होने वाली है। (डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट एचआईटीसीएचआईवी डॉट कॉम) नामक यह वेबसाइट इंडियन नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स (आईएनपी+) की ओर से शुरु किया जा रहा है।
असम में रहने वाली एक विधवा जुनाली देवी को एचआईवी-संक्रमित लोगों के लिए शुरू होने वाली देश की इस पहली वैवाहिक वेबसाइट का बेसब्री से इंतजार है। गुवाहाटी की 35 वर्षीय जुनाली (परिवर्तित नाम) पूर्वोत्तर भारत के हजारों एचआईवी-संक्रमित लोगों में शामिल हैं। जुनाली के पति की तीन वर्ष पहले एचआईवी/एड्स से मृत्यु हो गई थी और अन्य एचआईवी-संक्रमित लोगों की तरह ही वह भी वेबसाइट के जरिए अपने लिए उचित साथी खोजना चाहती
डा. अमर कुमार जी है और कह रहे है मुला चिट्ठाचर्चा से इसका कउनौ रिलेशन नहिं है!
एक्ठो रहें बड़े ओहदे वाले बड़का ब्लॉगर.. सो डिस्केशन डिस्केशन में उनका डिलेवर भी ब्लॉग-श्लॉग लिख लेने लगा रहा । उनकी काम वाली बाई भी कुछ कविताई की बेहयाई कर ले ती रही, सो वहू ब्लॉगर को पकड़ लिहिस । उनका नौकर भी कहीं से कुछ टीप टाप कर एक रेजिस्टर में चेंप देता रहा, छापे में कौन छापता.. सो खुदै कम्पूटर नामक एकु मशीन में लिख कर टाँग देता रहा । ई-सब आदत पकड़ लिहै से उनकी अकड़ की तो आप पूछौ मति ! एहर साहब को डीप-रेस्सन का शौक रहा, जब वह गोली खाय के मूड़ झुकाय के बईठें, तो यहि देख के, ई दुईनो तीनों जन उनके ठियाँ पर जाँय अउर टिपिया आवत रहें । गँज़ी चाँद पर टिपियावै में नौकरी जाय का खतरा, पर ईहाँ टिपियाये पर पगार बढ़वाय का जतरा । दफ़तर जाये से पहिले साहब जी नाश्ते में एक छोटा-कप बीति-ताहि बिलागरस ज़रूर लेत रहें । कुल मिला कर ज़ायज़ा यह कि उनकी एक सुसम्पन्न ब्लॉगर परिवार की छवि बनती रही..
पाल ले इक रोग नादां... पर है गौतम राजरिशी जी !
"love means not ever having to say you are sorry"...हम जैसे कितने ही आशिकों के लिये परम-सत्य बन चुकी इस पंक्ति के लेखक एरिक सिगल की मृत्य हो गयी इस 17 जनवरी को और मुझे इस बात का पता चला बस कल ही। यहाँ कश्मीर वादी के इस सुदूर इलाके में राष्ट्रीय अखबार वैसे ही एक दिन
विलंब से आते हैं और विगत कुछ दिनों से छब्बीस जनवरी के मद्देनजर से बढ़ी हुई चौकसी की वजह से अखबारों पे नजर नहीं फेर पा रहा था।...अचानक से कल निगाह पड़ी इस खबर पर तो धक्क से रह गयी धड़कनें एकदम से।
वर्ष 1993 की बात थी। सितम्बर या अक्टूबर का महीना। राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में मेरा पहला सत्र। हम कैडेटों को एक-एक प्रोजेक्ट मिला था करने को। मेरे प्रोजेक्ट का विषय था "20th Century's Best-sellers"...और अपने उसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में मेरा वास्ता पड़ा LOVE STORY से। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़...!!! जेनिफर औरओलिवर की इस अद्भुत प्रेम-कहानी ने मुझे मेरे पूरे वज़ूद को तरह-तरह से छुआ था और जाने
कितनी बार पढ़ गया था मैं इस सौ पृष्ठ वाले उपन्यास को। उपन्यास की पहली ही पंक्ति में लेखक नायिका को मार देता है और फिर इस ट्रेजिक प्रेम-कहानी का ताना-बाना कुछ इतनी खूबसूरती से बुना गया है...विशेष कर जेनिफर-ओलिवर के बीच के संवाद इतने मजेदार हैं कि आह...और अचानक से जो पता चला कि एरिक सिगल नहीं रहे तो दुखी मन मेरा ये पोस्ट लिखने बैठ गया। लव-स्टोरी की वो पहली पंक्ति याद आती है:
कुछ कल्पनाऐं, थोड़ा चिन्तन ओर बहुत सारी बकवास..पर चिट्ठाद्योग सेवा संस्थान............
मूल्य सूची:---
1. कविता----मूल्य 100 रूपये
2.गजल----मूल्य पचास रूपये प्रति शेर के हिसाब से
3.कहानी---250 रूपये
4.कहानी(धारावाहिक)----200 रूपये प्रति किस्त के हिसाब से(न्यूतम 3 किस्तें), 5 किस्तों की कहानी पर कुल मूल्य पर 15% की छूट दी जाएगी।
5.सामयिक लेख----कीमत विषय अनुसार निश्चित की जाएगी ।
6 हास्य-व्यंग्य----मूल्य 250 रूपये
7 चुटकुले/लतीफे----मूल्य प्रति चुटकुला 20 रूपये (एक साथ 10 चुटकुलों के साथ में 1 पहेली फ्री)
डा. मनोज मिश्रा जी है अभी तक आदमी बनकर तुम्हे जीना नहीं आया..........पर
तु म्हारे पास बल है बुद्धि है विद्वान भी हो तुम
इसे हम मान लेतें हैं बहुत धनवान भी हो तुम
विधाता वैभवों के तुम इसे भी मान लेते हम
मगर यह बात कैसे मान लें इंसान भी हो तुम।
और TSALIIM पर है ज़ाकिर अली ‘रजनीश जी कह रहे है .... का दूध पिया हो, तो सामने आओ।
एक किलो सोयाबींस से लगभग 10 लीटर दूध बनाया जा सकता है। यही कारण है कि यह सामान्य दूध की तुलना में सस्ता भी पड़ता है। हालाँकि सोया मिल्क के स्वाद में हल्की सी गंध होती है, जिसके कारण इसको बिना फ्लेवर के पीना मुश्किल होता है। इस दूध से आप पनीर भी बना सकते हैं। इससे बने पनीर को टोफू कहा जाता है। साथ ही सोया मिल्क का दही भी जमाया जा सकता है।
काफी समय पहले से सोया मिल्क चीन के जरिए भारत में प्रवेश पा चुका है। यह दूध भारत सहित लगभग पूरी एशिया में उपयोग में लाया जा रहा है। यहाँ तक कि जापान, कोरिया और मलेशिया जैसे देशों में तो सोया मिल्क के बहुत सारे खाद्य पदार्थ भी बनाए जाने लगे हैं, जिनमें सूप प्रमुख है।
और अंत मे चलते –चलते दो कविताये ताऊ डाट इन और काव्यमंजूषा से!
जीने दो मुझे (कन्या भ्रूण-हत्या ) जीने दो मुझे, मैं भी जिंदा हूँ क्या दोष मेरा ? हूँ मैं अंश तेरा ऐसे समाज पर, मैं बहुत शर्मिंदा हूँ !! कहलाती पराई सदा ही रही जन्म मिला तो, मृत्यु सी पीर सही हैवानो मुझ पर दया ना कुक्ष में कुचलो हया करो !! अमानवीयता से, सदा मैं हार रही सुन बिलख-बिलख कर, पुकार रही तेरे भीतर नन्ही जान हूँ मैं तेरी ममता का सम्मान हूँ मैं माँ तू भी, मुझे क्यों मार रही !!! | नदी में उगा एक शहर- वेनिस!! : उडनतश्तरी नदी में उगा एक शहर- वेनिस!! अथाह जल राशि और उनके बीच ऊग आया एक शहर.. ऐसा शहर जिसमें मकान हैं बाजार हैं दफ्तर हैं लोग हैं.. बस नहीं है तो इन सबको आपस मे जोड़ती उलझती, बल खाती रिश्ते निर्धारित करती काली काली सड़के.. उनको जोड़ता है यह तरल तार.. मद्धम थमा हुआ.. जिसका अपना कोई रंग नहीं.. चेहरे पर मुस्कराहट लिए.. रात चाँद उतरता है
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