Sunday, January 10, 2010

मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा सर मेरा झुक ही जाता है(चर्चा हिन्दी चिट्ठो )

नमस्कार, मै पंकज मिश्रा आपके साथ आपके चर्चा को लेकर !

जैसा कि हमारे बडे भाई साहब अपने कल के चर्चाकार चर्चा मे कह चुके है कि .....और ये हैं , युवा चिट्ठा चर्चाकार पंकज मिश्रा (चिट्ठाकार चर्चा ) तो मै आशा करता हु कि अब आप सब लोगो से हमेशा इस बच्चे को प्यार मिलता रहगा और अगर किसी प्रकार की गल्ती होगी तो आप उसमे सुधार करवायेगे और क्षमाa दान देगे …

रही बात कि मै अपनी उर्जा पंजा लडाने मे खर्च कर रहा हु कि नही ये मै अच्छी तरह जानता हु और अगर आप मेरे बारे मे इतना सब जानने के बाद भी मुझे प्रोत्साहित करने के बजाय अन्य बातों मे उलझाना चाहेगे तो आपकी मर्जी मै उसमे कुछ नही कर सकता हु..मेरा तो सिर्फ़ इतना कहना है कि जहा भी आप सब बडे-बुजुर्ग हो मेरा सर हमेशा अदब से झुका रहेगा!

dogs जैसा कि हमारे सम्मानित ब्लागर श्री मान समीर लाल जी ने लिखा है कि सर मेरा झुक ही जाता है... तो यही हाल मेरा भी रहेगा ..मै ऐसा नही कहुगा कि है क्युकि मै इतना बडा अभी नही हुआ हु कि समीर लाल जी के लिखे बातों मे किसी प्रकार का जोड घटाना कर सकू आप तो जैसा उन्होने लिखा है वैसा ही पढ लो !मेरे घर से दक्षिण में कुछ मकान छोड़ कर एक बरगद का पेड़ है. रात अंधेरे उस तरफ देखो तो बड़ा अजीब सा दिखता है, भयावह. जाने कौन शाम को उसके चबूतरे पर दिया जला कर रख जाता है. टिमटिमाता दिया देर रात तक जलता रहता है. दूर से देखने पर जान पड़ता है को कोई जानवर बैठा है और उसकी आँख टिमटिमा रही है. जानवर भी कैसा-एक आँख वाला. कोशिश तो करता हूँ कि रात गये उस तरफ न जाऊँ मगर कभी मजबूरी में जाना भी पड़ा तो मेरी नजर उस पेड़ को बचा कर निकलती है हमेशा

मंदिर, मस्जिद या गुरुद्वारा
सर मेरा झुक ही जाता है.

माँ ने ये सिखाया था मुझे

अब चलते है एक अनोखे तरह के ब्लाग पर जो कि सनद रखता है आपके द्वारा कहे गये /किये गये टिप्पणियो की , जी हा ये है आज की पोस्ट मैं चंद्रमौलेश्वर जी को एक ज़िम्मेदार ब्लॉगर के रूप में देखता हू.. वे क्षमा माँग लें

कुश-मैं चंद्रमौलेश्वर जी को एक ज़िम्मेदार ब्लॉगर के रूप में देखता हू.. मैने अब तक उनकी जितनी टिप्पणिया देखी है वे भाषा की दृष्टि में बेहद संतुलित और उर्जात्मक होती थी.. उपरोक्त टिप्पणी के लिए भी उनके अपने दृष्टिकोण हो सकते है.. हो सकता है की उन्होने किसी और बात को ध्यान में रखते हुए ये कमेंट किया हो.. परंतु कही ना कही बात कहने में थोड़ी सी चूक हुई है..

अब आगे बढते है रतन सिंहः शेखावत जी के साथ और जानते है वेब होस्टिंग बिलिंग टूल सोफ्टवेयर

ये सोफ्टवेयर आपके ग्राहकों को आपके होस्टिंग प्लान चुनने , डोमेन नेम चुनने आदि की सुविधा देते है |
२- जो ग्राहक आपके होस्टिंग प्लान खरीदता है उसका खाता बनाकर पूरा रिकार्ड रखते है जिसका आप सहित आपका ग्राहक अपने खाते को प्रबंधित कर सकता है |
३- आपके द्वारा ग्राहक का आदेश स्वीकार करने का इ मेल भेजना , बिल बनाने व ई मेल से ग्राहक को भेजना , यदि भुगतान बाकि है तो उसका तकादा मेल भेजना , डोमेन के नवीनीकरण की अग्रिम सूचना मेल भेजना आदि सभी काम ये सोफ्टवेयर स्वचालित तरीके से कर देते |
४- इन सोफ्टवेयर में लगभग सभी भुगतान प्राप्त करने वाले गेटवे से जुड़ने के मोड्यूल उपलब्ध होते है जिनके द्वारा आप अपने ग्राहकों से अपनी सेवाओं का भुगतान प्राप्त कर सकते है |

दरवार पर आज है धीरु सिंहः और कह रहे है गोरी या काली हो या नखरेवाली हो कैसा भी चक्कर चला दे राहुल बाबा की शादी करा दे - प्राथमिकता २०१० मिशन २०१०

अरे मेरे गुस्से की वजह नहीं जानना चाहेंगे जायज है मेरा गुस्सा , मेरा गुस्सा है सब पर.......... क्यों ? अब बता ही देता हूँ मै आक्रोशित हूँ सब पर क्योकि हम राहुल 100_0066बाबा .......... राहुल गाँधी के बारे में सोचते ही नहीं वह गाँव गाँव जा कर घर घर घूम रहे है अब जवान सभ्रांत लड़का अपने मुहं  से तो नहीं कहेगा मेरी शादी करा दो . हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है राहुल बाबा की शादी कराने की . माता जी तो देश चलाने में व्यस्त है मनमोहन जी तो कार्य वाहक से ही है . ऐसे में बेटे की चिंता नहीं कर पा रही है .

अब जानिये एक अजीब बात जो कि मानी जाती है सच आज भी हनुमान से नाराज हैं लोग

Hanuman12 इस बारे में द्रोणागिरि गांव में एक दूसरी ही मान्यता प्रचलित है। बताते हैं कि जब हनुमान बूटी लेने के लिये इस गांव में पहुंचे तो वे भ्रम में पड़ गए। उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था कि किस पर्वत पर संजीवनी बूटी हो सकती है। तब गांव में उन्हें एक वृद्ध महिला दिखाई दी। उन्होंने पूछा कि संजीवनी बूटी किस पर्वत पर होगी? वृद्धा ने द्रोणागिरि पर्वत की तरफ इशारा किया। हनुमान उड़कर पर्वत पर गये पर बूटी कहां होगी यह पता न कर सके। वे फिर गांव में उतरे और वृद्धा से बूटीवाली जगह पूछने लगे। जब वृद्धा ने बूटीवाला पर्वत दिखाया तो हनुमान ने उस पर्वत के काफी बड़े हिस्से को तोड़ा और पर्वत को लेकर उड़ते बने। बताते हैं कि जिस वृद्धा ने हनुमान की मदद की थी उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया।

आगे है आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" और बता रहे है जवाब ताऊ की चौपाल मे : दिमागी कसरत - 41 का जवाब

सवाल था : आप रात में एक जंगल में फंस जाते हैं. वहाँ जाकर आप देखते हैं कि एक मोमबत्ती, एक तेल भरी ढिबरी और एक लकड़ी जलाने का स्टोव है. आप अपनी जेब टटोलते है तो माचिस मिल जाती है, जिसमें सिर्फ एक तीली है. आप सबसे पहले क्या जलायेंगे?
सही जवाब है :- सबसे पहले माचिस की तीली ही जलायेंगे.
और सबसे पहले सही जवाब दिया
सुश्री रेखा प्रहलाद ने और उसके बाद श्री दिनेशराय द्विवेदी, सुश्री अल्पना वर्मा, और श्री अंतर सोहिल ने. सभी को बधाई और शुभकामनाएं.

खुशदीप भाई से मिलिये और जानिये पत्नियों को समझने के 10 Commandments...खुशदीप

nainital-8_edited अगर आप की पत्नी को कोई आपसे चुरा लेता है तो उससे सबसे बड़ा बदला यही होगा कि पत्नी को उसके पास ही रहने दिया जाए...David Bissonette
2.शादी के बाद पति-पत्नी की हालत एक सिक्के के दो पहलुओं जैसी हो जाती है जो हमेशा साथ तो रहते हैं लेकिन एक दूसरे को आमने-सामने बर्दाश्त नहीं कर सकते...Sacha Guitry
3.संसार की सबसे बड़ी पहेली- जिसे बड़े से बड़े सूरमा भी नहीं सुलझा पाए हैं...आखिर एक महिला चाहती क्या है...Dumas
4.मेरी पत्नी बड़ी दयालु है...मैं उससे कुछ शब्द बोलता हूं और वो पूरे पैराग्राफ के पैराग्राफ मुझे सुनाती है...Sigmund Freud

 

टिपण्णी पार्टी और टिप्पणी विरोध पार्टी-

आज दोपहर वाणी जी का ब्लॉग पढ़ा। पहले अवधिया जी के तर्कों से प्रभावित था अबमैं वाणी जी के तर्कों को भी नहीं काट सकता। भैया, अभी तो कह दिया किटिपण्णीकारो के दम पर ही हिंदी ब्लॉग जगत टिका हैं। और उनकी बात भी सही हैं किप्रोत्साहन के बिना काम भी नहीं चलता। नहीं तो पागलो कि तरह कोई अपना ब्लॉगलिखता रहे और खुद ही टिपण्णी मारकर खुस होता रहे। बोलिए कोई ब्लॉग चलसकता हैं बिना टिपण्णी के? बिलकुल नहीं।
कदापि नहीं।

अब बारी कविताओ की -

कविताएँ और कवि भी..-गिरिजेश राव

सोचती रही
कपोल पर ढुलक आए आँसू
वापस आँखों में ले ले।
सोचता रहा
निकल आई आह सिसकी
शरीर में वापस ले ले।


आपस में टकराना क्या-दिगम्बर नासवा

हिंदू मंदिर, मस्जिद मुस्लिम, चर्च ढूँढते ईसाई
सब की मंज़िल एक है तो फिर, आपस में टकराना क्या
चप्पू छोटे, नाव पुरानी, लहरों का भीषण नर्तन

मौन के खाली घर में... ओम आर्य

थोडी देर वो
दस्तक देती रही
बंद बदन पर
फिर इन्तेज़ार किया थोडा
खुलने का
फिर दी दस्तक
फिर इन्तेज़ार किया
और आखिरकार बैठ गयी
बदन के चौखटे पे
बदन, अक्सर रूहों की नहीं सुनते!

My Photo

 

इस उम्मीद के साथ आओ भूलके सारे नफ़रत,
नया साल २०१० को करें हम सब स्वागत,
आनेवाला हर दिन लाये खुशियों का त्यौहार,
सबके दिलों में हो सबके लिए प्यार !

कांवर रथी :एक धार्मिक लोक परम्परा जो कि अब अवसान पर है .......

पंडित जी नें बताया कि जब वे १५ साल के थे तभी से यहाँ मेरे घर आ रहे हैं और आज वे ८१ साल के हैं.उन्होंने हमारे स्व.दादा जी"वैद्य प्रवर " पंडित उदरेश मिश्र एवं पिता जीDSC05858 स्व.डॉ राजेंद्र प्रसाद मिश्र के साथ बिताये पलों को भी आज ताजा किया.आज इतनालम्बा अनुभव लिए वे हम सब के साथ हैं.ऐसा नहीं है कि ये पुरोहित हर घर जाते हों ,बल्कि हर एक पुरोहित के पीढी दर पीढी एकयजमान है ये केवल उस परिवार तक ही अपने आपको सीमित रखते हैं .पंडित पारस नाथ जी नें बताया कि उनके पितास्व.महाबीर प्रसाद एवं दादा स्व.हंसराज भी परम्परागत रूप से इस परिवार के पूर्वजों से जुड़े थे।

और अंत मे आज हम तुम पर तनु जी के द्वारा मेरी पसंद...

स्नेह-निर्झर बह गया है!
रेत ज्यों तन रह गया है।
आम की यह डाल जो सूखी दिखी,
कह रही है-"अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते; पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ-"
जीवन दह गया है।
दिये हैं मैने जगत को फूल-फल,
किया है अपनी प्रतिभा से चकित-चल;
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल-
ठाट जीवन का वही
जो ढह गया है।
अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा।
बह रही है हृदय पर केवल अमा;
मै अलक्षित हूँ; यही
कवि कह गया है।

दिजिये इजाजत ..आप सब से मुलाकात दो दिन बाद होगी ..तब तक के लिये नमस्कार ..

अरे हां , एक बात तो भुल ही गया , अरे ये तो बताईये ये टेम्पलेट कैसा लग रहा है जो कि कल ही बदला हु ..साहब जी :)

28 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

टेम्प्लेट तो यह भी अच्छा है मगर पहले वाला ज्यादा सुन्दर लगता था!
हैडर में "चर्चा हिन्दी चिट्ठो की" में चिट्ठो में बिन्दी लगा दें।
सही "चर्चा हिन्दी चिट्ठों की" होगा!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इस पोस्ट के शीर्षक में भी कुछ त्रुटि रह गई है "चर्चा हिन्दी चिट्ठो"
ही लिखा है। शायद जल्दी में भूल गये होंगे। सही कर लें।

वाणी गीत said...

सोच तो रहे हैं कि टिपण्णी लिख दे ...हमारी पोस्ट का लिंक नहीं दिया ...काहे ....??
फिर भी अच्छी रही चर्चा ...:) ...!!

Smart Indian said...

बहुत बढ़िया रही आज की चर्चा.
अगर किसी प्रकार की गल्ती होगी तो आप उसमे सुधार करवायेगे...
अब आपने सलाह माँगी है तो हम इतना ही कहेंगे की चर्चा का दायरा बढाने का प्रयास करें और इसे नित-नूतन बनाने का प्रयास करें, शुभकामनाएं!

Arvind Mishra said...

टेम्पलेट जोरदार है और चर्चा भी और हाँ शाष्त्री जी का बताया संशोधन करिए

अविनाश वाचस्पति said...

पोस्‍ट तो पोस्‍ट
टेम्‍पलेट पर भी
टिप्‍पणी की दरकार है
टेम्‍पलेट सिर्फ दिखाओ ही नहीं
सिखाओ भी
ऐसी सब ब्‍लॉगरों की पुकार है
वैसे आपके टेम्‍पलेट की तो
भैया खूब जय-जयकार है।

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

धन्यवाद

Khushdeep Sehgal said...

पंकज भाई,
चश्मेबद्दूर, आज तो पूरी फॉर्म में हो...

न जाने क्यों मुझे अपनी पोस्ट के पतियों और गुरुदेव समीर जी की पोस्ट के फोटो में कुछ समानता नज़र आ रही है...आपको दिख रही है क्या...

जय हिंद...

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

सुंदर चर्चा- नया टेम्पलेट अच्छा है-जल्दी भी खुल रहा है।
धांसु चर्चा के लिए,आभार

Anonymous said...

चर्चा भी बढ़िया है, टेम्पलेट भी

बी एस पाबला

Gyan Darpan said...

बढ़िया चर्चा :)

डॉ. मनोज मिश्र said...

टेम्पलेट जोरदार है और चर्चा भी,जारी रहें.

मनोज कुमार said...

सार्थक शब्दों के साथ अच्छी चर्चा, अभिनंदन।

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत बढिया और सुंदर चर्चा, जोश बना रहे.

रामराम.

तनु श्री said...

बढियां चर्चा के लिए आपको धन्यवाद.

निर्मला कपिला said...

बडिया चर्चा बधाई

अपूर्व said...

मस्त लिन्क्स मस्त चर्चा मस्त टेम्पलेट..:-)

दिनेशराय द्विवेदी said...

सुंदर चर्चा!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कल सोमवार है अतः चर्चा करने का मेरा ही दिन है।
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ पंकज जी को।

Amrendra Nath Tripathi said...

चर्चा दिनोदिन अच्छी होती जा रही है ..

दिगम्बर नासवा said...

सुंदर चर्चा .......... नया टेम्पलेट .......... मज़ा आ गया ........ धन्यवाद हमको भी शामिल करने का ...........

ghughutibasuti said...

बढ़िया चर्चा रही।
घुघूती बासूती

अजय कुमार झा said...

वाह जी एक दम धांसू टेम्पलेट और क्या कमाल की चर्चा है , लगे रहो भाई मियां

अजय कुमार झा

KULDEEP SINGH said...

bahut badiya bahut sundaer nice blog

रावेंद्रकुमार रवि said...

चर्चा का शीर्षक बहुत प्रभावी है!

ओंठों पर मधु-मुस्कान खिलाती, रंग-रँगीली शुभकामनाएँ!
नए वर्ष की नई सुबह में, महके हृदय तुम्हारा!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ", उर्दू कौन सी भाषा का शब्द है?
संपादक : "सरस पायस"

गौतम राजऋषि said...

आज एक लंबे अंतराल के बाद आया तो चर्चा के नये अंदाज और मंच के खूबसूरत कलेवर ने एकदम से ध्यान खींचा...बहुत खूब पंकज जी।

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर said...

SUNADER

Udan Tashtari said...

टेम्पलेट मस्त हो गया...और चर्चा तो हमेशा की तरह उम्दा ही है...बहुत से लिंक्स तक आजकल यहीं से पहुँच पाता हूँ....आभार कहता चलूँ.

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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