Sunday, January 17, 2010

“वो, जो प्रधानमंत्री न बन सका….” (चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

अंक : 129

चर्चाकार : डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"

ज़ाल-जगत के सभी हिन्दी-चिट्ठाकारों को डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक""

का सादर अभिवादन!
आज
“चर्चा हिन्दी चिट्ठों की” में बिना किसी लाग-लपेट के

कुछ महत्वपूर्ण चिट्ठों की ओर आपको ले चलता हूँ!

कस्‍बा qasbaकहने का मन करता है...

वो जो प्रधानमंत्री न बन सका, चला गया

ज्योति बसु चले गए। ९५ साल की उम्र। उम्र के आखिरी पड़ाव तक सियासी सक्रियता। पश्चिम बंगाल से केंद्र की राजनीति में धुरी बने रहने वाले वे आखिरी मुख्यमंत्री साबित हुए। एक राज्य की ज़मीन में मजबूती से पांव गड़ाए ज्योति बाबू दिल्ली में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति से पहले कांग्रेसवाद के खिलाफ गोलबंदी को सक्रिय करने वाले नेताओं में से रहे। संयुक्त मोर्चा का प्रयोग कई नाकामियों से निकलता हुआ यूपीए सरकार में आकर परिपक्व हुआ। अब सीपीएम केंद्र सरकार के साथ नहीं है,लेकिन पांच साल तक सरकारी की नीतियों पर उसका राजनीतिक प्रभाव गज़ब का रहा। इतना सख्त रहा कि मनमोहन सिंह अपनी आर्थिक नीतियों के कारण नहीं बल्कि सामाजिक नीतियों के कारण दुबारा सत्ता में आए। ये सीपीएम की दूसरी बड़ी ऐतिहासिक गलती थी। न्यूक्लियर डील पर इतनी घोर कम्युनिस्ट लाइन ली कि उस धुरी से बाहर ही छिटक गई जो उनके दम पर ही घूम रही थी। ज्योति बसु न्यूक्लियर डील के समर्थन में थे। प्रकाश करात नहीं थे। लेकिन तब शायद एक पार्टीमैन के नाते ज्योति बसु ने अपनी हैसियत का बेज़ा इस्तमाल नहीं किया। बल्कि इस बार भी पार्टी के नेताओं की बात मान ली।………….

ताऊजी डॉट कॉम

खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (174) : आयोजक उडनतश्तरी - बहनों और भाईयों, मैं उडनतश्तरी इस फ़र्रुखाबादी खेल में आप सबका हार्दिक स्वागत करता हूं. जैसा कि आप जानते हैं कि आज मैं आयोजक के बतौर यह अंक पेश कर रहा हूं...


लगी झूमने फिर खेतों में : डॉ॰ देशबंधु शाहजहाँपुरी का एक बालगीत

लगी झूमने फिर खेतों में


कुहू-कुहूकर कोयल सबको मधुरिम गीत सुनाती!
फूलों के चेहरों पर खिलकर मुस्काहट सज जाती!!


मस्त पवन के साथ महककर झूम उठी हरियाली!
पीपल के पत्तों ने मिलकर ख़ूब बजाई ताली!!.. ....

नुक्कड़

स्मृति शेष रांगेय राघव - जन्म तिथि १७ जनवरी - *जन्म तिथि १७.०१.१९२३ * *निधन १२.०९.१९६२* आज जिनका जन्म दिवस है प्रतिभाशाली लोगो का जीवन बहुत छोटा होता है लेकिन वो इस अल्प समय मे इतना कुछ कर जाते है कि..

chavanni chap (चवन्नी चैप)

  • खबरों को लेकर मची जंग है रण-रामगोपाल - एक समय था कि राम गोपाल वर्मा की फैक्ट्री का स्टांप लगने मात्र से नए एक्टर, डायरेक्टर और टेक्नीशियन को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री और आईडेंटिटी मिल ज..

गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

आइए जानते हैं .. फलित ज्योतिष आखिर क्‍या है ??.... एक सांकेतिक विज्ञान या मात्र अंधविश्वास !! - आसमान के विभिन्‍न भागों में विभिन्‍न ग्रहों की स्थिति के कारण पृथ्‍वी पर या पृथ्‍वी के जड चेतन पर पडनेवाले प्रभाव का अध्‍ययन फलित ज्‍योतिष कहलाता है। यह विज्..

bhartimayank

"रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-16" (अमर भारती) - रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-16 में आप सबका स्वागत है। आपको पहचान कर निम्न चित्र का नाम और स्थान बताना है। ** * उत्तर देने का समय 19 जनवरी,2010 सायं 7 बजे तक। ..

आदित्य (Aaditya)

कुमारी.. श्यांऊ... - बाबा का इस बार का कन्याकुमारी दौरा ज़रा लंबा था.. करीब ११ दिनों का.. अब इतने दिन तक दिल्ली की सर्दी में कौन रहेगा.. तो मैं भी उनके साथ कन्याकुमारी जा रहा ह...

अंधड़ !

तू निश्चिन्त रह, तू मेरा हिन्दुस्तान है ! - आज लोभ का मारा इन्सान, बन बैठा हैवान है, पर तू व्यग्र न हो, तू तो मेरा हिन्दुस्तान है ! माना कि कलयुग अपने चरम पे है, पर पाप-पुण्य तो अपने करम पे है, सतपुर..

ज़ख्म

मत करो ऐसा ........... - मैं कोई वस्तु नही क्यूँ मेरी बोली लगाते हो दुनिया की इस मंडी में क्यूँ खरीदी बेचीं जाती हूँ कभी धर्म के ठेकेदारों ने मेरी बलि चढ़ाई है कभी समाज के ठेकेदारों ...

अंतर्मंथन

आइये निवेदन करें गूगल वासियों से , की भई, कम से कम भारत में तो इसे बंद मत करिए। - *चिकित्सा है पेशा, समाज सेवा जिम्मेदारी * *फोटोग्राफी का शौक, हंसना हँसाना है जिंदगी हमारी। * नए साल में हमने यही सोचा था की अब सारी पोस्ट इन्ही चार विषय..

गीत-ग़ज़ल

रन्ज न रखना तुम दिल में - ** *दुनिया को इधर उधर तुम कर लेना पर रन्ज न रखना तुम दिल में , मेरे लिए कह पाते नहीं जब ज़ज्बात दिल के तुम नज़रों की भाषा पढ़ लेना तोहफों की कीमत आँकों मत जो..

वीर बहुटी

- संजीवनी **इन्विट्रो फर्टेलाईजेशन* जैसे अविष्कार ने आज कल जिस तरह एक व्यापार का रूप ले लिया है,जैसे कि कुछ लोग तो सही मे औलाद चाहते हैं इस लिये कोख किराये पर..

भीगी गज़ल

हमको भी समझ फूल या पत्थर नहीं आते - हमको भी समझ फूल या पत्थर नहीं आते दुश्मन की तरह दोस्त अगर घर नहीं आते नज़दीक बहुत गर रहे, बन जाओगे आदत ये सोच के, मिलने तुझे अक्सर नहीं आते जिस दिन से मै...

हास्यफुहार

आज का स्पेशल - *आज का स्पेशल* एक होटल में उस दिन के मेनू में *आज का स्पेशल* के नीचे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था *अंगूर-कद्दू सब्जी*। फाटक बाबू ने नया आइटम देख सो..

MUMBAI TIGER मुम्बई टाईगर

पढ़ना है तो पिटना होगा!!! - विदेशी वस्तुए , विदेशी कोच , विदेशी डिग्री , यह हमारी गुलाम मानसिकता का परिणाम है. विदेश में पढ़े - लिखे की इज्जत ओर घरेलू सस्थानों में पढ़े लिखे *हेय नजर*.

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून

कार्टून :- पूरे घर के बदल डालूंगा, अहा... - संदर्भ के लिए यहां पढ़ा जा सकता है

Gyanvani

दुष्टों की चारित्रिक विशेषताएं ..... ..(बालकाण्ड) - पिछले दिनों नजदीकी सम्बन्धी का ऑपरेशन , पिता की पुण्यतिथि और मकर संक्रांति के कारण कुछ व्यस्तता रही ...कभी कभी व्यस्तता मन मस्तिष्क में सुन्नता , खिन्नता य..

ललितडॉटकॉम

एक बार दाढ़ी हिला दो महाराज! - एक राजा रात को प्रजा का हाल जानने के लिए भेष बदल कर घूमता था. एक बार उसे पॉँच चोर मिले. राजा ने पूछा " आप कौन हो" चोरों जवाब दिया " हम चोर हैं.""पर आप कौन ..

मसि-कागद

मिलन==== अंतिम किश्त.... दीपक मशाल - अचानक किसी ने तेज़ी से कमरे का दरवाजा खटखटाया तो स्तव्या लौटकर वर्तमान में आई. आवाज़ मम्मी की थी- ''स्तव्या! बाहर आओ, दिन भर से कमरे में पड़ी हो और यहाँ ...

अनवरत

जब इतिहास जीवित हो उठा - 1976 या 77 का साल था। मैं बी. एससी. करने के बाद एलएल.बी कर रहा था। उन्हीं दिनों राजस्थान प्रशासनिक सेवा के लिए पहली और आखिरी बार प्रतियोगी परीक्षा में बैठा..

अज़दक

संगीन, रंगीन - कहानी के कितने गहीन रंग. सोचता है आदमी, अचकचाए, असमंजस के तार पर सवार देखने निकलता है बनी-बुनी जाती होगी कहानियों की शराब, खिली खिली बहार. इतनी आसानी से कु...

यही है वह जगह

कॉमनवेल्थ गेम्स : गुलामी और लूट का तमाशा : सुनील - आजाद भारत के लिए यह एक शर्म का दिन था। २९ अक्टूबर २००९ को आजाद और लोकतांत्रिक भारत की निर्वाचित राष्ट्रपति सुश्री प्रतिभा पाटील अगले राष्ट्रमंडल खेलों के प..

नारी

वाईटनिंग क्रीम गोरा बनाए के नुक्सान - रंग को लेकर लोग मे बहुत भ्रांतिया हैं । गोरे रंग को हमेशा से खूबसूरती का पैमाना माना जाता रहा हैं और सांवला और काला रंग बदसूरत । ये सोच केवल हमारे देश मे ह...

Harkirat Haqeer

इमरोज़ का एक ख़त हीर के लिए.......... " -आकाशवाणी की उस रंगीन शाम के बाद मौसम के भी मिजाज़ बदल गए ... ....सूरज कोहरे की ओट में धूप को साथ लिए कई दिनों की छुट्टियों पर .......ऐसे में जिस्म में हलकी...

कबाड़खाना

अमन की आशा के नाम गुलज़ार की नज़्म - प्रमुख अंग्रेज़ी दैनिक टाइम्स ऑफ़ इण्डिया द्वारा भारत पाकिस्तान के बीच बन गई रिश्तों की खाई को पाटने के इरादे से अमन की आशा उन्वान से एक अभियान आहूत किया गया ह..

प्रेम का दरिया

आधी दुनिया को आधी पंचायत - *गांव की राजनीति में बड़े बदलावों की आहट है, वही गांव जिसे हिंदुस्तान का चेहरा कहा जाता है। पहली बार पंचायतों में महिलाओं को पचास फीसदी आरक्षण के साथ राजस्..

बतंगड़ BATANGAD

गलत नीति से सही समाधान की उम्मीद - केंद्र सरकार ने राज्यों से कहा है कि वो, टीचरों के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाकर 65 साल कर दें। साथ ही प्रोफेसरों को 70 साल तक पढ़ाने दिया जाए। केंद्र सरकार का...

सबद...

तब एक फूल का जन्म होता है... - *गायत्री-फूल* वृक्ष जब प्रार्थना करता है तब एक फूल का जन्म होता है, तभी तो वृक्ष की गायत्री को फूल कहा जाता है. मैं जब भी तुम्हारा नाम सम्पूर्ण भी नह...

अमीर धरती गरीब लोग

मैने उससे कहा कि तुम ब्लाग लिखना शुरू करो और उसने कर दिया!स्वागत करिये बिंदास नये ब्लागर मगर पुराने पत्रकार राजकुमार सोनी का! - राजकुमार सोनी यंहा का जाना-माना पत्रकार्।उस दिन मैं प्रेस क्लब मे प्रवेश कर रहा था और वो बाहर निकल रहा था,मैने उसे रोका और कहा चलो तुमसे बहुत दिनों से बात ..

रेडियो वाणी

'लो अपना जहां दुनिया वालो' आसासिंह मस्‍ताना की विकल याद - पिछली पोस्‍ट में दूरदर्शन के सुहाने दिनों से निकालकर 'सरब सांझी गुरबानी' का सबद 'कोई बोले राम राम' क्‍या सुनाया यादों का पिटारा ही खुल गया है । हल्‍की..

तीसरा खंबा

मद्रास और मुंबई में अभिलेख न्यायालय : भारत में विधि का इतिहास-39 - *अभिलेख न्यायालय * मद्रास और मुंबई की प्रेसीडेंसियों में आबादी निरंतर बढ़ रही थी। लेकिन उस के अनुरूप न्यायिक व्यवस्था का विकास नहीं हो पा रहा था। वहाँ अभी 1..

Albelakhatri.com

बेईमानी चुभती है .......... - कमज़ोरी को मैं बुरा नहीं मानता, मूर्खता को मैं माफ़ कर देता हूँ, लेकिन बेईमानी मुझे तीर सी चुभती है - जवाहरलाल नेहरू

"ज़रा सोचिये ----------ऐसा आखिर कब तक ?"

श्रीमती वन्दना गुप्ता की
मासूमों को समर्पित
एक रचना......

देशनामा

टंकी पर श्री श्री ब्लॉग शिरोमणि...खुशदीप - आज *महेंद्र मिश्र* जी ने समय चक्र में एक पोस्ट डाली-आख़िर जा टंकी का है भला ?.... महेंद्र जी ने बड़े दिलचस्प और रोचक ढंग से ब्लॉगर नगर और उसकी टंकी का ज़िक...

Darvaar दरवार

लगाकर आग दौलत में हमने यह खेल खेला है - हम कहते है ब्लॉग और घर वाले कहते झमेला है - सच में ब्लोगिंग बहुत खर्चीली लग रही है .पहले तो चूहे भगाने वाली कम्पनी के इंटरनेट कैफे का मेंबर बना २५०० जमा करके ५००० रु मिलने का वादा मिला लेकिन बाप का स..

एक कार्टून...........

दुबे जी DOOBE JI

सम्मानित ब्लॉगर मित्रों!

मेरी दृष्टि में चर्चा का अर्थ चिट्ठों को

आप तक पहुँचाना ही होता है!

यह कार्य मैंने पूरी निष्ठा से कर दिया है।

आप इनको पढ़िए और अपनी राय

टिप्पणियों के माध्यम से दीजिए!

धन्यवाद सहित-
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”
आपका

यह चर्चा कल 18 जनवरी को प्रकाशित
होनी थी परन्तु टाइम जोन ठीक न होने
के कारण शैड्यूल में न जाकर प्रकाशित
हो गई है।

22 comments:

दीपक 'मशाल' said...

naya praaroop sundar laga sir...
shukriya Milan' kahani logon tak pahunchaane ke liye..
Jai Hind...

मनोज कुमार said...

एक नये कलेवर में बहुत अच्छी चर्चा।

डॉ. मनोज मिश्र said...

बहुत सुंदर चर्चा.

गगन शर्मा, कुछ अलग सा said...

हर चीज बहुत सुंदर। गेट अप, सेट अप सब कुछ। वाह!

Unknown said...

बहुत सटीक चर्चा

आनन्द आया....

Arvind Mishra said...

सुन्दर संकलन सुन्दर चर्चा

अजय कुमार झा said...

वाह बहुत सुंदर चर्चा शास्त्री जी ये सबसे संभव नहीं है
अजय कुमार झा

अजय कुमार said...

बहुत बढ़िया चर्चा

Gyan Darpan said...

एक नये कलेवर में बहुत अच्छी चर्चा

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

बहुत बढिया चर्चा, शास्त्री जी
आभार

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रही शास्त्री जी आप की चर्चा

ताऊ रामपुरिया said...

शाश्त्री जी आज तो चर्चा म्ह कीले ही गाड दिये. घणी जोरदार.

रामराम.

रावेंद्रकुमार रवि said...

"मयंक जी
चाहे किसी भी कलेवर में चर्चा करें
और चाहे किसी भी मंच पर -
उसमें नव्यता और गांभीर्य
स्वयं प्रभावशाली हो जाते हैं!"
--
"सरस पायस" पर प्रकाशित
डॉ. देशबंधु शाहजहाँपुरी की कविता को
इस चर्चा में स्थान देने के लिए आभार!
--
ओंठों पर मुस्कान खिलाती,
कोहरे में भोर हुई!, मिलत, खिलत, लजियात ... ... .
संपादक : सरस पायस

Udan Tashtari said...

बहुत बेहतरीन चर्चा.

दुखद समाचार।

श्री ज्योति बसु जी को श्रृद्धांजलि एवं उनकी आत्म की शांति के लिए प्रार्थना।

उनके अवसान से एक युग की समाप्ति हुई।

विनोद कुमार पांडेय said...

बहुत बहुत बधाई शास्त्री जी पहले की तरह ही एक सुंदर चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद!!

वाणी गीत said...

नए रंग रूप की चिटठा चर्चा से बहुत सारे अच्छे लिंक मिले ...
प्रविष्टि शामिल करने का भी बहुत आभार ....!!

Randhir Singh Suman said...

nice.















कामरेड़ ज्योति बसु को लाल सलाम

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

बहुत सुंदर चर्चा शास्त्री जी

Himanshu Pandey said...

बेहद खूबसूरत चर्चा । आभार । ढंग से संकलित किया है ।

siddheshwar singh said...

अच्छी चर्चा!

बवाल said...

हमेशा की तरह सुन्दर चर्चा की आपने शास्त्री जी। प्रणाम।

Dinesh Dadhichi said...

इस नए कलेवर में 'गागर में सागर' भर दिया है आपने !

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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