नमस्कार ,
पंकज मिश्रा आपके साथ आपके द्वारा लिखे गये चिट्ठो की चर्चा लेकर ! एक प्रयास भर है नही तो मेरी क्या बिसात !
शरद कोकाश जी ने बहुत ही सुन्दर बात कह गये है ..ब्लाग बिरादरी से जुडने के बाद इतना तो अच्छा है कि आप जैसे महानुभाव के विचारो से परिचित होने का अवसर मिलता है …कोकाश जी ने लिखा है चलो..मिट्टी खराब नहीं हुई आदमी की । सही ही कहा है आपने!
अब आगे चलते है हिमान्शु भाई के ब्लाग पर सौन्दर्य लहरी – 2
और आगे बढिये ताऊ रामपुरिया जी के साथ विजेता बने है
ताऊ पहेली - 57 विजेता श्री उडनतश्तरी बधाई समीर जी कभी हमे भी मौका दिजिये :)
गाँववाले सुबह आते हैं और दीवारों पर बने देवी देवताओं की पूजा भी करते हैं. ऐसा भी कहा जाता है कि दीवारों पर बने नव ग्रहों की प्रतिमाएँ इस कुएँ की रक्षा करती हैं. गाँव के लोग अब भी यहाँ पानी भरने और गर्मी के मौसम में ठंडक में बैठने यहाँ आते हैं.
ऐसा कहा जाता है की यहाँ एक मुस्लिम सुल्तान बेघारा ने हमला किया था जिसमें राजा वीर सिह मारे गये थे.बेघारा ने उनकी पत्नी की सुंदरता देख विवाह का प्रस्ताव रखा, जिस पर रानी ने नियत समय पर इस वाव को पूरा कराने की शर्त रखी. वाव नियत समय पर पूरा हुआ.
[दीवारों पर इस्लामिक प्रभाव वाले चित्रों को भी बना देखा जा सकता है.]
रानी वाव देखने आईं , चूँकि रानी सुल्तान से शादी नहीं करना चाहती थी इसीलिए पाँचवी मंज़िल से ही पानी में कूद कर अपनी जान दे दी. ऐसा सुना जाता है कि आज भी रानी की आत्मा वहाँ भटकती है.
वाव के पास ही इस वाव को डिज़ाइन करने वाले मुख्य कामगारों की क़ब्रें हैं जिन को इस के पूरा होने के बाद मुस्लिम राजा ने मरवा दिया था ताकि दोबारा फिर कोई इस तरह की वाव ना बनवा सके.
मानव निर्मित इस अद्भुत कलाकारी की इमारत को Archeological Survey of India द्वारा संरक्षित किया गया है.
दो कविताये बबली जी और श्यामल सुमन जी के ब्लाग से
|   
 पानी से तस्वीर नहीं बनती,  |  किनारा लगाते रहे मैं भी हँसता रहा वो हँसाते रहे  | 
अमीर धरती गरीब लोग पर है अनिल पुसादकर जी और बता रहे है बिके हुये लोग मीडिया को बिकाऊ कह रहे हैं,हद हो गई बेशर्मी की और बर्दाश्त की भी!अब किसी ने कुछ कहा तो मुंह-तोड़ जवाब दिया जायेगा!
खैर ये उनका अपना विचार हो सकता है,उनकी नीति हो सकती है मगर इसका मतलब ये तो नही है जो उनके साथ है वे सही है और जो उनके साथ नही है वे सब गैरज़िम्मेदार और बिकाऊ हैं।आपको अपने धर्म का पालन करने का तो अधिकार है लेकिन इसका मतलब ये तो नही की आप दूसरे के धर्म को गालियां बकें।नक्सलियों और उनके समर्थक संस्थाओं,कथित समाजसेवी और मानवाधिकार संगठनो के साथ यंहा आकर उनके हिसाब से दौरा कर और उनके नज़रिये से बस्तर की हालत देख कर उनके हिसाब से उसका प्रचार करने वाले भाड़े के भोंपू जब यंहा चिल्लाते है कि सब बिकाऊ हैं तो उनकी बुद्धी पर तरस आता है।जो यंहा न पैदा हुआ,न पला बढा,न यंहा रहा वो बताता है कि सच क्या है?वो बताता है जिसे मोटी रकम न मिले तो कभी बस्तर की सूरत तक़ न देखे?वो बताता है जो महज़ कुछ घण्टे ही पूरा बस्तर घूम लेता है?वो बताता है जो लौट कर फ़िर कभी नही आने वाला होता है बिना फ़ीस लिये?वो बताता है जिसे छत्तीसगढ या बस्तर से ज्यादा अपनी फ़ीस और अपने रिश्तेदारों के विदेशी मदद से चलने वाले एनजीओ को यंहा काम करने के बड़े-बड़े कांट्रेक्ट मिलने की चिंता होती है।
युवा सोच युवा खयालात पर है कुलवन्त हैपी जी और कह रहे है कोकिला का कुछ करो
'जेनु खिस्सा गरम ऐनी सामे सहू नरम' अर्थात जिसकी जेब गरम उसके सामने सब नरम एक जोरदार कटाक्ष आज के समय पर, सचमुच एक जोरदार कटाक्ष, भले ही इसकी विषय वस्तु पर कई फिल्में बन गई हों विशेषकर बागबाँ, लेकिन इसकी संवाद शैली सोचने पर मजबूर करती थी। टिंकू टलसानिया को टीवी पर तो बहुत देखा, लेकिन शनिवार की रात जो देखा वो अद्भुत था, और वंदना पाठक का अभिनय भी कोई कम न था। कहूँ तो दोनों एक से बढ़कर एक थे। टिंकू टलसानिया और वंदना पाठक का नाटक जहां एक स्वार्थी परिवार का वर्णन करता है, वहीं हेमंत झा, संजय गारोडिया अभिनीत एवं विपुल मेहता द्वारा निर्देशित 'आ कोकिला नूं क्योंक करो' एक दर्पण का काम कर गया।
हिंदी का शृंगार पर है रविन्द्र कुमार जी महिला कवियित्री को मिला "प्रियदर्शिनी" पुरुस्कार
एक में अनेक दिखाने के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है -
"महिला कवियित्री सुश्री सरोज वाला को
अपनी कविता "श्रृंगार-बर्षा" के लिए
इस बर्ष का "प्रियदर्शिनी" पुरुस्कार दिया गया!"
क्या आप दिखा सकते हैं?
अंत में फ़ुनसुक बांगडू बनना जरूरी है !!!! आप बताइये पुछ रहे है अजय भाई
यदि ज्ञान पाने के लिए पढोगे तो जब वो मिल जाएगा तोदेर सवेर तुम्हें सफ़लता भी मिलेगी ही , मगर यदि सिर्फ़सफ़लता के लिए पढोगे तो फ़िर निश्चित रूप से उसमें जोसीमीतता होगी वो तुम्हारे ज्ञान को भी एक हद तक समेटकर रखेगी ।
और अंतिम बात ये कि , सफ़लता ही अंतिम मंजिल है ।दुनिया चाहे जो भी कहे मगर यथार्थ की दुनिया में तो सचयही है कि जो सफ़ल है वही सफ़ल है । ज्ञान तो तुम्हाराभी तभी दिखेगा न जब सफ़ल होगे ।
शास्त्री जी नेपाल के महेन्द्र नगर की बात बता रहे है “विदेश-यात्रा” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
 
एक शहर
नाम था उसका
महेन्द्रनगर
वहाँ बहुत थे
आलीशान मकान
एक खोके में थी
चाय की दुकान
दुकान में
अजीब नजारा था
रंगीन बोतलों का
कल्पतरु पर है विवेक रस्तोगी और बता रहे है पुल पर बहुत सारी लड़कियाँ खड़ी हुई थीं… सब की सब एक ही लड़्के की दीवानी थीं.. सोचो कि वह किस्मत वाला लड़का कौन था… [Guess who was the lucky guy ????]
और मसिजीवी जी बात कर रहे है चिट्ठाचर्चा साइबर स्क्वैटिंग का शिकार : आइए पतन की कुछ और गहराइयॉं नापें
अनूपजी व पाबला साहब (संयोग ही है कि इन पाबला साहब से मेरा कोई विशेष संपर्क नहीं है इसलिए उनकी प्रकृति पर कोई भी टिप्पणी कयास ही होगी) के बीच कोई छाया युद्ध चल रहा है इसका आभास कुछ कुछ हमें भी है पर यह सब चिट्ठा संसार में होता ही रहता है कोई अनोखी बात नहीं है। पर इतना तय है कि इस तरह के पंगो की एक मर्यादा रही है। नारद के जितेंद्र को हम कतई पसंद नहीं थे पर पासवर्ड बताने/पाने तक में कोई संकोच नहीं था बाकी लागों के साथ भी ऐसा ही रहा। हिन्दी चिट्ठाकारी में अब तक गिरावट केवल भाषिक रही है...एक दूसरे के खिलाफ अपराध करने के रिवाज नए हैं। खुद अक्षरग्राम मिर्ची सेठ के नाम दर्ज रहा है किसी को नहीं लगा कि इसे हथियाया जाएगा
बाबा ताऊनंद महाकुम्भ से प्रवचन बांच रहे है कुंभ शिविर से बाबा ताऊआनंद के प्रवचन
भक्त - बाबाश्री, आपने बहुत ही सुंदर शंका समाधान किया है. आपने ब्लागजगत का उदाहरण देकर बडे ही रोचक तरीके से समझाया है जो सीधे दिमागमे फ़िट होगया है. बाबाश्री मैं
एक शंका का समाधान चाहता हूं.
बाबाश्री ताऊआनंद - भक्त, सर्वप्रथम तो अपना नाम बताओ तदुपरांत अपना प्रश्न प्रस्तुत करो. तुम्हारी जिज्ञासा हम अवश्य शांत करेंगे.
भक्त - बाबाश्री, मेरा नाम ललित शर्मा है. मुझे यह पूछना है कि आजकल मौज के नाम बहुत कुछ चल रहा है. क्या आप इस मौज लेने पर कुछ प्रकाशडालेंगे. हे बाबा शिरोमणी, इस मौज शब्द ने ब्लागजगत मे तहलका मचा रखा है, चारों तरफ़ अशांति छा गई है. मेरा मन बहुत ही व्यथित है. वो तोआपका आजका प्रवचन सुनकर मुझे समझ आगया वर्ना मैं तो स्वयम टंकी पर चढने की घोषणा करने वाला था.
मीनु खरे जी बता रही है अवधी दस्तरख्वान के लज़्ज़तदार पकवान
 
अगर आप लखनऊ आ रहे हैं तो लज़्ज़तदार व्यंजनों की एक लम्बी फ़ेहरिस्त आपके इंतज़ार में है जनाब. खाने का मीनू हाज़िर है ----कबाब, पुलाव, कोरमा, अकबरी
जलेबी, खुरासानी खिचड़ी, दही के कोफ्ते , तरह की बिरयानीयां, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा ,काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब, 'दमपुख़्त', सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। चकरा गए न? बताइए क्या खाएँगे आप?
और अंत मे कविता हरकीरत ' हीर' जी के ब्लाग से
इमरोज़ का एक ख़त हीर के लिए.......... "
|   वह इक अल्हड सी लड़की  |  ![]()  | 

यदि ज्ञान पाने के लिए पढोगे तो जब वो मिल जाएगा तोदेर सवेर तुम्हें सफ़लता भी मिलेगी ही , मगर यदि सिर्फ़सफ़लता के लिए पढोगे तो फ़िर निश्चित रूप से उसमें जोसीमीतता होगी वो तुम्हारे ज्ञान को भी एक हद तक समेटकर रखेगी ।
जलेबी, खुरासानी खिचड़ी, दही के कोफ्ते , तरह की बिरयानीयां, नाहरी कुल्चे, शीरमाल, ज़र्दा, रुमाली रोटी और वर्की परांठा ,काकोरी कबाब, गलावटी कबाब, पतीली कबाब, बोटी कबाब, घुटवां कबाब और शामी कबाब, 'दमपुख़्त', सीख-कबाब और रूमाली रोटी का भी जवाब नहीं है। चकरा गए न? बताइए क्या खाएँगे आप?


22 comments:
आज की चर्चा बहुत बढ़िया रही!
हर सोमवार को मेरी चर्चा नियमितरूप से आयेगी!
आप निश्न्चित रहें!
बहुत बढ़िया रही....
सुंदर अति सुंदर,
रामराम.
सुंदर बहुत बढ़िया आज की चर्चा ...
sundar charcha ... poorwawat ,,, aabhar ... ...
सुंदर चर्चा .
"ठीक है जी!"
--
मिलत, खिलत, लजियात ... ... ., कोहरे में भोर हुई!
लगी झूमने फिर खेतों में, ओंठों पर मुस्कान खिलाती!
संपादक : सरस पायस
बहुत सुंदर चर्चा पंकज जी,
आभार
पंकज भाई बहुत ही सुंदर चर्चा बन पडी है , मगर एक बात पिछले दिनों से गौर कर रहा हूं कि यहां टीप बक्सा कुछ देर से खुल रहा है , पता करिये तो क्या मुझे ही ऐसा लग रहा है क्या
अजय कुमार झा
अच्छी चर्चा, अभिनंदन।
एकदम बढिया चर्चा...जिससे कि बहुत सारे अच्छे लिंक मिले....
आभार्!
wah bhai wah
सारे सुन्दर, उपयोगी लिंक सज गये हैं यहाँ । काबिलेतारीफ काम कर रहे हो मेरे भाई !
आभार ।
बढ़िया लिंक्स पंकज जी। यहाँ से सूत्र पकड़कर उम्दा जगहों पर जायेंगे कितु एक बात यह कहनी है कि :
" पानी से तस्वीर नहीं बनती,
ख्वाबों से तक़दीर नहीं बनती,
चाहो किसीको तो सच्चे दिल से,
ये अनमोल सी ज़िन्दगी फिर कभी नहीं मिलती !"
कविता बबली जी के ब्लाग पर है 'लवली कुमारी' के ब्लाग पर नहीं। यदि संभव हो तो सुधार लें।
बहुत ही बेहतरीन चर्चा
बहुत बढ़िया पंकज जी..एक से बढ़कर एक विविधता ..सुंदर चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद!!
बहुत उम्दा और विस्तृत चर्चा, बधाई!!
@sidheshwer,
Thanks Sir,
Information Updated .
best regards,
Pankaj
अच्छी चर्चा , आभार
बहुत ही सुन्दर ढंग से आपने चर्चा प्रस्तुत किया है! बढ़िया लगा! मेरी शायरी शामिल करने के लिए धन्यवाद!
रोचक चर्चा !
धन्यवाद पंकज ।
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