Sunday, January 24, 2010

"तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा"(चर्चा हिन्दी चिट्ठों की)

नमस्कार, पंकज मिश्रा  आपके साथ…चर्चा हिन्दी चिट्ठों की –मे

मुंबई बम कांड का अपराधी आजकल मराठी भाषा का बहुत प्रयोग कर रहा है ,,अदालत के सवाल जवाब मे भी वह मराठी भाषा का प्रयोग करता है..राज साहब ठाकरे तो बहुत खुश होगे कि कोई तो उनकी पीडा समझता है :)

न्युज चैनल अखबार समाचार सभी जगह कसाब के इस भाषा प्रयोग का चर्चा हो रहा है और उन खबरिया बाजार मे कोई भी माई का लाल ये पुछने की जुर्रत नही कर रहा है कि ऐसे अपराधी से जेल मे दोस्ती कौन किया है जो उसको मराठी भाषा और सभ्यता सिखा रहा है ..क्या यह एक नेक काम है कि आप जेल के समय मे उस्का टाईम पास कर रहे है भाषा सिखाकर ?

चलिये चर्चा की तरफ़ चलते है…

रतन सिहः शेखावत जी है आज के चर्चा पर और बता रहे है एलोवेरा (ग्वार पाठा ) के बारे में जानकारी के अन्तर्गत -shekhawatji

Aloe Vera Plant एलोवेरा लिलेक परिवार का पौधा है जिसका उपयोग मनुष्य हजारों वर्षों से करता आ रहा है | दुनिया में २०० से अधिक  प्रकार की किस्मो का एलोवेरा पाया जाता है | इसमें एलो बाबिड़ेंसिस को मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा लाभदायक मन जाता है | इस पौधे का रस बुढ़ापा प्रतिरोधी तत्व है | इसके प्रयोग से इंसान लम्बे समय तक अंदरूनी और बाहरी तौर पर जवान बना रह सकता है | पौधे का सबसे ज्यादा महत्वपूरण है इसका रस जिसे बाजार में एलो जेल के नाम से जाना जाता है | एलोवेरा का रस इसके पत्तों से तब निकला जाता है जब पत्ते तीन साल के हो जाते है | तभी उस रस में अधिकतम पोष्टिक तत्व मौजूद होते है | गवार पाठे का पौधा गरम और खुश्क जलवायु में पनपता है इसे ज्यादा खाद या सिंचाई की जरुरत नहीं होती | किसान अपनी खेतों के मेड़ों पर व बंजर पड़ी भूमि में भी इसकी खेती कर सकते है |

समीर लाल जी का व्यंग लेख कैसे सच का सामना??

policeप्रोग्राम हमारा है, यह स्टेटमेन्ट चैनल की तरफ से, याने अगर हमने कह दिया कि ’यह सच नहीं है’ तो प्रूव करने की 1447094209_600c819d47_oजिम्मेदारी प्रतिभागी की. हमने तो जो मन आया, कह दिया. पैसा कोई लुटाने थोड़े बैठे हैं. जो हमारे हिसाब से सच बोलेगा, उसे ही देंगे.

पहले ६ प्रश्न तो लाईसेन्स, पासपोर्ट और राशन कार्ड आदि से प्रूव हो गये मसलन आपका नाम, पत्नी का नाम, कितने बच्चे, कहाँ रहते हो, क्या उम्र है आदि. लो जीत लो १०००००. खुश. बहल गया दिल.

आगे खेलोगे..नहीं..ठीक है मत खेलो. हम शूटिंग डिलीट कर देते हैं और चौकीदार को बुलाकर तुम्हें धक्के मार कर निकलवा देते है, फिर जो मन आये करना!! मीडिया की ताकत का अभी तुम्हें अंदाजा नहीं है. हमारे खिलाफ कोई नहीं कुछ बोल सकता.

तो आगे खेलो और तब तक खेलो, जब तक हार न जाओ.

प्रश्न ५ लाख के लिए :’ क्या आप किसी गैर महिला के साथ उसकी इच्छा से अनैतिक संबंध बनाने का मौका होने पर भी नाराज होकर वहाँ से चले जायेंगे.’

जबाब, ’हाँ’

एक मिनट- क्या आपको मालूम है कि आज पॉलीग्राफ मशीन के खराब होने के कारण यहाँ उसके बदले दो पुलिस वाले हैं. एक हैं गेंगस्टरर्स के बीच खौफ का पर्याय बन चुके पांडू हवलदार और दूसरे है मिस्टर गंगटोक, एन्काऊन्टर स्पेश्लिस्ट- एक कसूरवार के साथ तीन बेकसूरवार टपकाते हैं. बाई वन गेट थ्री फ्री की तर्ज पर.

आगे है अनिल पुसादकर जी और कह रहे है चोर-डाकूओं को तो पकड़ पा नही रहे हैं,धूल-मिट्टी से परेशान जनता को मुंह ढांक कर घूमने से मना कर रहे हैं,कंही देखा है ऐसा सड़ेला सिस्टम!

My Photoधूल और धुयें के लिये शायद दुनिया भर के प्रदूषित शहरों को टक्कर दे रहे रायपुर मे लोगों ने इससे निज़ात नही मिलती देख,मज़बूरी में मुंह पर स्कार्फ़,रूमाल,गमछा या चुनरी लपेट कर अपना बचाव करना शुरू कर दिया था।ये सिस्टम सालों से चल रहा था मगर राजधानी की एक्सपर्ट पुलिस की जितनी तारीफ़ की जाये कम ही होगी।उसने हाल ही में अपनी नाकेबंदी के बावज़ूद बैंक लूट कर भाग रहे लूटेरों और दिनदहाड़े हत्या करके फ़रार होने वाले हत्यारों को पकड़ने मे असफ़ल रहने के लिये ज़िम्मेदार समझा मुंह ढांक कर धूल-धुयें से बचने के तरीके को।सो तुगलक भी शरमा जाये ऐसा फ़रमान जारी कर दिया।अब शहर के लोगों को धुल-धुयें को पुलिस की मेहरबानी से निगलते हुये जीना होगा और उससे बचने के लिये मुंह ढांक कर घुमने का तरीका छोड़ना होगा।छोड़ा तो ठीक नही तो पुलिस के मुस्टंडे हर चौक-चौराहों पर तैनात रहेंगे और आपसे बदतमीजी करके आपके मुंह पर पड़ा कपड़ा नोच कर देखेंगे कंही आप डाकू,हत्यारे,लूटेरे या कोई बड़े शातिर आतंकवादी तो नही है।


रंजना [रंजू भाटिया] जी है  कुछ मेरी कलम से kuch meri kalam se ** पर और एक चित्र कविता उनके ब्लाग पर [kuch+sawal.jpg]
आगे है गिरिजेश राव जी 
कविताएँ और कवि भी..पर पुरानी डायरी से -12 : श्रद्धा के लिए

तुम्हारा बदन

स्फटिक के अक्षरों में लिखी ऋचा 
प्रात की किरणों से आप्लावित
तुम्हारा बदन।
दु:ख यही है
मेरे दृष्टिपथ में
अभी तक तुम नहीं आई।
कहीं  ऐसा तो नहीं
कि तुम हो ही नहीं !
नहीं . . . .
पर मेरी कल्पना तो है -
"तुम्हारा बदन

स्फटिक के अक्षरों में लिखी ऋचा

प्रात की किरणों से आप्लावित

तुम्हारा बदन।"

निर्मला कपिलाजी है वीर बहुटी – पर और कहानी का अन्तिम भाग प्रस्तुत है

मुझ अतृप्त की कितनी बडी परीक्षा लेना चाहती थी आप। मैं निराश हो गया। आपका तर्क था कि अगर मैं काम मे व्यस्त रहूँगी तो सुधाँशू के गम को भूल पाऊँगी, दूसरा मैं तिम पर बोझ बनना नहीं चाहती।क्या यही दुख हम दोनो मिल कर नहीं बाँट सकते थी? मैने तो सुना था कि माँ बाप बच्चों पर बोझ नहीं होते । बच्चे कभी उनका कर्ज़ नहीं चुका सकते। मगर माँ वो आपकी सोच थी मैं ऐसा नहीं सोचता था। मुझे लगता था कि मैं आपका और आप मेरा बोझ बाँट लेंगी--- जीवन भर की अतृप्त इच्छाओं का बोझ। खैर सारी आशायें छोड मैं फिर से लखनऊ आ गया। आते वक्त पिता जी की कुछ फाईलें और एक डायरी आप से बिना पूछे उठा लाया था। इतना तो उन पर मेरा हक बनता था। मुझे लगा था कि शायद मैं फिर कभी लखनऊ न आ पाऊँगा।यहाँ भी मन नहीं लगता कई बार आपको फोन किया महज औपचारिक बातें हुयी। मैं उसके बाद घर न

आज मिलेगे दिल से दिल-सजेंगी रायपुर में ब्लागरों की महफिल राजकुमार ग्वालानी जी कह रहे है!मेरा फोटो
छत्तीसगढ़ के ब्लागरों की एक महफिल सजाने की योजना करीब 10 दिनों से पहले बनी थी। पिछले रविवार को प्रेस क्लब में मजमा लगने वाला था, लेकिन अचानक शनिवार को रविवार का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा। छत्तीसगढ़ के ब्लागरों के चहेते और आदरणीय भाई अनिल पुसदकर जी उस दिन प्रेस क्लब की बैठक के साथ कुछ और कार्यक्रमों में बहुत ज्यादा व्यस्त थे। ऐसे में उनका महफिल में शामिल होना मुश्किल था। उन्होंने जब अपनी यह व्यथा हमें बताई तो हमने ब्लागर मित्रों से चर्चा की। सभी का एक स्वर में यही मानना था कि अनिल जी के बिना बैठक कदापि नहीं। वैसे भी बहुमत का जमाना है। जब बहुमत यही रहा कि अनिल जी के बिना महफिल नहीं सजेगी, मतलब नहीं सजेगी। सो महफिल स्थगित कर दी गई। इस स्थगन की सूचना यूं तो सबको दे दी गई, पर बिलासपुर के एक ब्लागर मित्र भाई अरविंद कुमार झा को संभवत: यह सूचना नहीं मिल सकी थी और वे रायपुर आ गए थे।

ताऊ पहेली – 58 अंक है आप भी मजा लिजिये अगले अंक के साथ अगले शनिवार

ये आप पढ सकते है तेरे बाप के पास तो मस्त पटाखा मॉल है न खुद चलता है न औरो को चलाने देता है।

मोहल्ले वाले कहते हैं की तेरे बाप के पास तो मस्त पटाखा मॉल है न खुद चलाता है न औरो को चलाने देता है। (एक छोटी सी बच्ची बोली) .अरे पागल वो सब तो तेरी माँ के बारे मैं कह रहे होंगे। उस छोटी सी बच्ची का बाप बोला। (मैं आप सभी लोगो से माफ़ी मांगता हूँ इसे लिखना नहीं चाहता था मगर लिखना पड़ा) ये शब्द हैं एक टी वी प्रोग्राम्म मैं एक छोटे से बच्ची की जो गंगुं बाई के रोल मैं सब को हँसाने का काम करती है।
काल शाम को बार बार टी वी मैं एड आ रही थी , मैंने भी ध्यान दिया तो पता चला की वाह रे भारतीय संस्कृत और व्यस्था, सब बड़े मजे से उस छोटी सी बच्ची के द्वारा कहे गए शब्दों के उपर हँसे जा रहे थे, हँसने वाले सब बड़े थे बच्चे नहीं। और उस बच्ची के माँ बाप भी थे।
परिकल्पना पर रवीन्द्र प्रभात

मैंने कभी महाप्राण निराला को नहीं देखा मगर एक व्यक्ति की आँखों में मैंने देखी है निराला की छवि
सुने नगमा ग़ज़ल की किताब आई थी जिसपर विस्तार से चर्चा हुयी . मैंने उन्हें उसी दौरान उन्हें सीतामढ़ी में होने वाले विराट कवि सम्मलेन सह सम्मान समारोह में आने हेतु ससम्मान आमंत्रित किया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया ...आदरणीय आचार्य जानकी बल्लभ शास्त्री जी के उस सान्निध्य को याद करते हुए इस अवसर पर प्रस्तुत है उनकी वसंत पर आधारित उनकी एक अनमोल रचना -  


जब भी वसंत की चर्चा होती है राधा और कृष्ण की चर्चा अवश्य होती है , इस सन्दर्भ में आचार्य जी ने कभी कहा था ,कि - - कृष्ण सबके मन पर चढ़ते हैं। जीवन के यथार्थ में राधा ने कृष्ण को आत्मसात कर लिया। इसीलिए राधा वाले कृष्ण सबको भाते हैं। कृष्ण में तन्मय होने के कारण  राधा ने स्वयं को अलग से जानने की जरूरत ही नहीं समझीं। स्वयं वही हो गयीं, यानी कृष्णमय हो गयी । राजनीति ने कृष्ण को भिन्न-भिन्न रूपों में बांटा, पर एकमात्र प्रणय ने राधा को कृष्णमय बना दिया। प्रेम का यही शाश्वत रूप सही मायनों में वसंत का रूप है ।

रंग लाए अंग चम्पई

नई लता के

धड़कन बन तरु को

अपराधिन-सी ताके

निरंतर पर महेन्द्र जी है और बता रहे है
नेताजी जयंती "तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा" नेताजी और जबलपुर शहर ....


तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद बोस की आज जयंती है. स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी का यह नारा आज भी जनमानस के दिलो पर छाया हुआ है जो दिलो में जोश और उमंग पैदा कर देता है . वे कांग्रेस के उग्रवादी विचारधारा के सशक्त दमदार नेता थे . उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को खुली चुनौती दी थी . महात्मा गाँधी ने नेताजी को दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर आसीन कराया था पर वे नेताजी की कार्यप्रणाली से असंतुष्ट थे .दूसरे विश्व युद्ध के समय महात्मा गाँधीनिरन्तर अंग्रेजो की मदद करने के पक्ष में थे परन्तु नेताजी गांधीजी की इस विचारधारा के खिलाफ थे और उस समय को वे स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए उपयुक्त अवसर मानते थे .
सुभाष चंद बोस का जबलपुर प्रवास पॉंच बार हुआ है . स्वतंत्रता के पूर्व सारा देश अंग्रेजो से त्रस्त था . स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने वाले वीर क्रांतिकारियो को चुन चुन कर अंग्रेजो द्वारा जेलों में डाला जा रहा था . नेताजी ने भूमिगत होकर अंग्रेजो से लोहा लिया और आजाद हिंद फौज का गठन किया . सबसे पहले सुभाष जी को पहली बार 30 मई 1931 को गिरफ्तार कर जबलपुर स्थित केन्द्रीय जबलपुर ज़ैल लाया गया और यहं उन्हें बंदी बनाकर रखा गया जहाँ की सलाखें आज भी उनकी दास्ताँ बयान कर रही है .. दूसरी बार 16 फ़रवरी 1933 को तीसरी बार 5 मार्च 1939 को त्रिपुरी अधिवेशन मे सुभाष जी का बीमारी की हालत मे नगर आगमन हुआ था.

तस्मै सोमाय हविषा विधेम! (वैदिक बूटी सोम ,सोमरस और सोमपान ).....ऐसा कहना है साहब जी का हमारे बडे भाई श्री मान अरविन्द मिश्रा जी का!

101_0482 अध्ययनों से पता चलता है कि वैदिक काल के बाद यानी ईसा  के काफी पहले ही इस बूटी /वनस्पति की पहचान मुश्किल होती गयी .ऐसा भी कहा जाता है किसोम[होम] अनुष्ठान करने वाले ब्राह्मणों ने इसकी जानकारी आम लोगो को नही दी ,उसे अपने तक ही सीमित रखा और कालांतर मे ऐसे अनुष्ठानी ब्राह्मणों की पीढी/परम्परा के लुप्त होने के साथ ही सोम की पह्चान भी मुश्किल होती  गयी .सोम को न पहचान पाने की विवशता की झलक रामायण युग मे भी है -हनुमान दो बारहिमालय जाते हैं ,एक बार राम और लक्ष्मण दोनो की मूर्छा पर और एक बार केवल लक्ष्मण की मूर्छा पर ,मगरसोम की पहचान न होने पर पूरा पर्वत ही उखाड़ लाते हैं:दोनो बार -लंका के सुषेण वैद्य ही असली सोम की पहचान कर पाते हैं यानी आम नर वानर इसकी पहचान मे असमर्थ हैं [वाल्मीकि रामायण,युद्धकाण्ड,७४ एवं १०१ वांसर्ग] सोम ही संजीवनी बूटी है यह ऋग्वेद के नवें 'सोम मंडल ' मे वर्णित सोम के गुणों से सहज ही समझा जा सकता है .
सोम अद्भुत स्फूर्तिदायक ,ओज वर्द्धक  तथा घावों को पलक झपकते ही भरने की क्षमता वाला है ,साथ ही अनिर्वचनीय आनंद की अनुभूति कराने वाला है .सोम केडंठलों को पत्थरों से कूट पीस कर तथा भेंड के ऊन की छननी से छान कर प्राप्त किये जाने वाले सोमरस के लिए इन्द्र,अग्नि ही नही और भी वैदिक देवता लालायितरहते हैं ,तभी तो पूरे विधान से होम [सोम] अनुष्ठान मे पुरोहित सबसे पहले इन देवताओं को सोमरस अर्पित करते थे , बाद मे प्रसाद के तौर पर लेकर खुद स्वयम भीतृप्त हो जाते थे .कहीं आज के 'होम'  भी उसी परम्परा के स्मृति शेष तो नहीं  हैं?  पर आज तो सोमरस की जगह पंचामृत ने ले ली है जो सोम की प्रतीति भर है.कुछपरवर्ती  प्राचीन धर्मग्रंथों मे देवताओं को सोम न अर्पित कर पाने की विवशता स्वरुप वैकल्पिक पदार्थ अर्पित करने की  ग्लानि और क्षमा याचना की सूक्तियाँ भी हैं

कल्पतरु पर है विवेक रस्तोगी जी चैन्नई में भी कम लूट नहीं है.. लुटने वाला मिलना चाहिये..

यहाँ पर ऑटो मीटर से चलाने का रिवाज ही नहीं है, हमें अपने गंतव्य तक जाने के लिये रोज ही मगजमारी करना पड़ती है, रोज इन ऑटो वालों से उलझना पड़ता है, जितनी दूरी का ये लोग यहाँ ८० रुपये मांगते हैं, उतनी दूर मुंबई में मीटर से मात्र १५-१८ रुपये में जाया जा सकता है।

आशीष खन्डेल्वाल जी तकनिकी ब्लाग-लगाइए सर्च को धार - रिफाइन सर्च के चंद फॉर्मूले

इंटरनेट पर मनचाही सामग्री की तलाश के लिए मदद ली जाती है सर्च इंजन की। सामग्री से जुड़े की-वर्ड को जैसे ही सर्च इंजन में डाला जाता है, हजारों रिजल्ट मिलते हैं। अब समस्या शुरू होती है कि इनमें से कौनसे पेज को खोलकर देखा जाए, जिसमें जरूरत के मुताबिक सामग्री मिल सके। एक-एक कर पेज खोले जाते हैं और उसी रफ्तार से बंद भी कर दिए जाते हैं। अगर किस्मत अच्छी है तो जल्द ही सामग्री मिल जाती है और अगर आप किसी खास चीज को तलाश कर रहे हैं, तो हो सकता है कि इसके लिए कई घंटे लग जाएं

खंडहर हुए इन्द्र प्रस्थ में धृतराष्ट्र की तरह राज करना!!

सुरेश शर्मा की तुलिका सेअभी महाराष्ट्र सरकार ने जो निर्णय लिया है उसके दूर गामी परिणाम होंगे. समुद्र के किनारे मुंबई को बसाने और बनाने में उत्तर भारतीयों का भी हाथ है. उन्होंने ने भी अपने खून और पसीने से इस शहर को सींचा है. जितना हक़ तुम्हारा बनता है उतना ही हक़ उत्तर भारतियों का भी है. क्या मराठी भारत में महाराष्ट्र में ही बसते हैं? और कहीं नहीं?. जरा अकल से काम लो. जिस दिन ये कामगार मजदुर मुंबई से चले जायेंगे उस दिन तुम्हे दाल आटे का भाव पता चल जायेगा. अगर पीने को पानी भी मिल जाये तो वह बहुत बड़ी बात होगी. मुंबई में मराठी भाषियों से अधिक अन्य भाषा-भाषी लोग रहते है. जो उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, राजस्थान,  गुजरात केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश से आते है.मुंबई के कल कारखानों को अपने पसीने और मेहनत के दम चलाने वाले यही लोग हैं.

और अंत मे दो कविता शास्त्री जी और विनोद पांडेय जी के ब्लाग से

“नवगीत” (ड़ॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक

नीड़ में अब भी परिन्दे सो रहे,
फाग का शृंगार कितना है अधूरा,
शीत से हलकान बालक हो रहे,
चमचमाती रौशनी का रूप भूरा

रश्मियों के शाल की आराधना है।

छा रहा मधुमास में कुहरा घना है।।

सेंकता है आग फागुन में बुढ़ापा,

चन्द्रमा ने ओढ़ ली मोटी रजाई,
खिल नही पाया चमन ऋतुराज में,
टेसुओं ने भी नही रंगत सजाई,

"अपने ही समाज के बीच से निकलती हुई दो-दो लाइनों की कुछ फुलझड़ियाँ-3"

कुछ ऐसे भी वीर हैं,भारतवर्ष में आज,जिनकी अम्मा रोरहीं,देख पूत के काज.
मलमल का कुर्ता पहिन,घूम रहें हैं गाँव,खबर नही क्या चल रहा,आटा-दाल का भाव.
आलस में डूबे हुए,इतने हैं उस्ताद,घर में आते हैंमियाँ,दिन ढलने के बाद.
बीड़ी व सिगरेट में,फूँक दिए कुल देह,बेच दिए बर्तन कई,घर में मचा कलेह.
नही कोई परवाह इन्हें,घर हो या परिवार,चाहे भैया फेल हो,या हो बहिन बीमार.
जिंदा जब तक बाप है,तब तक है आराम,फ्यूचर इनका क्या कहें,इज़्ज़त राखे राम.

दिजिये इजाजत मिलते है अगले अंक मे तब तक के लिये नमस्कार!

 

18 comments:

Himanshu Pandey said...

बहुत ही महत्वपूर्ण प्रविष्टियों की चर्चा ! आभार ।

Arvind Mishra said...

प्रशस्त चर्चा ...स्नेहाशीष !

Gyan Darpan said...

बहुत ही महत्वपूर्ण प्रविष्टियों की चर्चा

डॉ. मनोज मिश्र said...

पंकज जी जरा अच्छी चर्चा के क्रम को बरकरार रखते हुए व्याकरण पर भी थोडा ध्यान देते रहें.

ब्लॉ.ललित शर्मा said...

वाह पंकज जी-सुंदर चर्चा

Randhir Singh Suman said...

nice

राजकुमार ग्वालानी said...

लाजवाब चर्चा- नहीं छूटा कोई पर्चा

Udan Tashtari said...

अब तो बहुत रात हो गई...ये सारे लिंक पर जाना बकी ही है लगभग!! कल सुबह उठकर यहीं से शुरु होंगे. :)

धन्यवाद कह कर सोता हूँ.

ताऊ रामपुरिया said...

बहुत सुंदर चर्चा.

रामराम.

निर्मला कपिला said...

पंकज जी बहुत सुन्दर चर्चा है धन्यवाद्

रावेंद्रकुमार रवि said...

मेहनत तो ख़ूब की जा रही है,
पर कुछ अच्छे ब्लॉग चर्चा से वंचित रह जाते हैं!
कृपया, ध्यान देने की कोशिश कीजिए!

--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
संयुक्ताक्षर "श्रृ" सही है या "शृ"?
--
संपादक : सरस पायस

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

बहुत सुन्दर चर्चा!!!
आभार्!

महेन्द्र मिश्र said...

बहुत सुन्दर चर्चा...धन्यवाद्.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चर्चा में निखार!
पंकज जी का आभार!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत सुंदर चर्चा.

मनोज कुमार said...

प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है।

विनोद कुमार पांडेय said...

आज थोड़ा हटकर पर बेहतरीन चिट्ठा चर्चा..धन्यवाद पंकज जी!!

My Blog said...

USE THIS NAMES IN GOOGLE OK?
VAI COLOCANDO ESSES NOMES QUE ESTÃO AÍ EMBAIXO E PESQUISANDO NO GOOGLE OK?:
LUIZA GOIANAPOLIS MY BLOG
GOIANÁPOLIS LUIZA CABELEIREIRA
luizacabeleireira2009@hotmail.com
LUIZA BOLLYWOOD
LUIZA GOIANAPOLIS ENRIQUE IGLESIAS
LUIZA GOIANAPOLIS ENRIQUE IGLESIAS MY BLOG
LUIZA SANTOS GOIANAPOLIS
luizacabeleireira@yahoo.com
BOLLYWOOD LUIZA
LUIZA BRAZILIAN INDIAN
MSN LUIZA GOIANAPOLIS
LUIZA GOIANAPOLIS
BOLLYWOOD GOIANAPOLIS LUIZA INDIA
BOLLYWOOD GOIANAPOLIS
GOIANAPOLIS LUIZA
LUIZA INDIA GOIANAPOLIS
GOIANAPOLIS BOLLYWOOD
LUIZA GOIANAPOLIS INDIA
LUIZA GOIANAPOLIS SCRAPS,
LUIZA GOIANAPOLIS ATIF ASLAM ,
LUIZA GOIANAPOLIS KATRINA KAIF,
LUIZA GOIANAPOLIS SALMAN KHAN,
LUIZA GOIANAPOLIS Ranbir Kapoor,
LUIZA GOIANAPOLIS Shahrukh Khan,
LUIZA GOIANAPOLIS PRIYANKA CHOPRA,
LUIZA GOIANAPOLIS Aishwarya Rai,
LUIZA GOIANAPOLIS KAREENA KAPOOR,
LUIZA GOIANAPOLIS ABHISHEK BACHCHAN,
LUIZA GOIANAPOLIS AJAY DEVGAN,
LUIZA GOIANAPOLIS AAMIR KHAN,
LUIZAGOIANAPOLIS Hrithik Roshan ,
GOIANAPOLIS BOLLYWOOD AMAZON,
LUIZA GOIANAPOLIS Imran Khan,
LUIZA GOIANAPOLIS Himesh Reshammiya,

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

Followers

जाहिर निवेदन

नमस्कार , अगर आपको लगता है कि आपका चिट्ठा चर्चा में शामिल होने से छूट रहा है तो कृपया अपने चिट्ठे का नाम मुझे मेल कर दीजिये , इस पते पर hindicharcha@googlemail.com . धन्यवाद
हिन्दी ब्लॉग टिप्स के सौजन्य से

Blog Archive

ज-जंतरम

www.blogvani.com

म-मंतरम

चिट्ठाजगत