चर्चा हिन्दी चिट्ठो के इस अंक के साथ मै पंकज मिश्रा !
ताऊ की शोले (एपिसोड - 6)
इस एपिसोड से बसंती का रोल कर रही हैं "अदा"बसंती सांभा से फ़ोन पर बात करते हुये
बसंती और धन्नो लडके को मूर्ख बनाकर बाईक झपट ले गई!
सांभा : अरे बसंती..ऐसे मत
सोचो..हम इतना परेशान हूं...सबके लिये...अब क्या करें? तुम्ही बताओ....उधर
वो कालिया अलग गिरोह बनाने की धमकी दे रहा है. इधर गिरोह के लोग इधर उधर
हो रहे हैं...गोली बारुद कुछ है नही..जो कोई शिकार करें....चारों तरफ़ से
पुलिस का शिकंजा अलग से...
हिंदी-दिवस के अवसर पर
"सर्वोदय हिन्दी सेवी"
एक मौत,मर कर मरे , तो क्या मरे आदमी है वो,जो हर पल, मर-मरकर जिया करे मौत भी हार जाती है उसके आगे जो ज़िन्दगी से मौत की ज़ंग लड़ा करे मौत क्या मारेगी उस जीवट को जो मौत को सामने देख हंसा करे हो ज़िन्दगी ऐसी आदमी की कि मौत भी ,उसकी मौत पर , रोया करेमाना के दरिया में कई क़तरे होते हैं
पर दरिया को क्या पड़ी कि,कितने क़तरे होते हैं
दरिया के बगैर क़तरे की,न कोई हकीक़त न वजूद
फिर भी तेवर लिए हुए,क़तरे होते हैं
मिटने का गुरुर या किस्मत कहें
ज़ज्ब-दरिया में फना,क़तरे होते हैं
अक्सर चला जाता हूँ
अपने किनारे से चलते हुए
तुम्हारे मंझधार तक
अनजाने हीं तुम्हारे बहाव में बहते हुए ओम आर्य
देव मंदिरों के कमनीय कला प्रस्तरों मैं
हम एक ओर जीवन की सच्ची व्याख्या और उच्च कोटि की कला का निर्देशन तो
दूसरी ओर पुरुष प्रकृति के मिलन की आध्यात्मिक व्याख्या पाते हैं | इन कला
मूर्तियों मैं हमारे जीवन की व्याख्या शिवम् है , कला की कमनीय अभिव्यक्ती
सुन्दरम है , रस्यमय मान्मथ भाव सत्यम है | इन्ही भावों को दृष्टिगत रखते
हुए महर्षि वात्सयायन मैथुन क्रिया, मान्मथ क्रिया या आसन ना कह कर इसे
'योग' कहा है | राकेश सिंह
मेरे भाव कुछ भी हों ,
पर अभिव्यक्त मैं, न कर पाती । कुसुम ठाकुर
ऐसा क्यों होता मेरे साथ ,
यह समझ न पाऊं मैं।
निद्रा विरहित पट खोल सुहृद मैं तिमिर बीच झाँकता रहा
विस्मित विस्फारित नयन खोल खोजता तुम्हारा पंथ कहाँ
कुछ भी न सूझ पड़ता आगे हो कहाँ तिमिर में मित्र प्रवर - हिमांशु
क्या दूर सुहृद ! प्रियतम ! निराश चित्कार रहा अम्बर-अन्तर ।
प्रयोग यदि सही तरीके से हो ,परिणाम खुद ब खुद रंग दिखाने लगते हैं । कुछ
ऐसा ही नजारा देखने को मिला । पास के एक गांव में । एक नुक्क्ड़ नाटक के
माध्यम से पर्यावरणीय जागरूकता को लेकर मंचन हो रहा था ।उसका मुख्य
उद्देश्य बुन्देलखण्ड व विन्ध्य क्षेत्र में कम से कम पांच सौ करोड़ पौधों
के वृक्षारोपण को ले कर था । गांव में मन्दिर के पास अपने उद्देश्यों को
ले कर जन जागरूकता के प्रति किया गया प्रयास कहीं से कमतर प्रतीत नहीं हो
रहा था । हेमंत कुमार
उस गली में
मुस्कराता है एक बच्चा
निकलता हूं जब मैं
अपने काम परमैं बदली सी लहराती हूँ
मैं लतिका सी बल खाती हूँ
निर्मला जी
मंद पवन का झोंका बन कर
साजन के मन बस जाती हूँ
लवीजा
एक तरफ मैं बातें करता बरछी, तीर, कटारों की
काली का करवाल, साथ में बहते शोणित-धारों की
क्षार-क्षार करने को आतुर दहक रहे अंगारों की
टूट-टूट कर पल-पल गिरते सत्ता के दीवारों की
जब कभी हम किसी अजाब में आ जाते हैं बाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं ढूंढ़ते फिरते हैं हम कितने सवालों का जवाब जाने कैसे वो ख़ुदा की क़िताब में आ जाते है कोशिशें मेरी डूबने की कर गए नाक़ामयाब जाल कसमों के लिए तालाब में आ जाते हैं
10 comments:
वाह ..बहुत ही सुंदर चर्चा है. डिजाईन पसंद आया.
रामराम.
रंग-रंगीली सजीली चर्चा । प्रविष्टियों का चयन बेहतर है । आभार ।
पंकज जी,
बहुत बहुत धन्यवाद .
पंकज जी
सच बहुत ही अच्छा लगा......बहुत बहुत शुक्रिया...
ये तो बड़ा काम पकड़ लिया आपने !
badhiya charcha hui!
Charcha Ghar jaana-pehechana hi hai.
Mangal kamnaye
Hey Prabhu Yeh Terapanth
aaां की चर्चा तो काफी बडी है । बहुत बहुत धन्यवाद्
AAPKI CHARCHA LAJAWAAB HAI PANKAJ JI ......
ये तो बडी मेहनत का काम है भई।
चर्चा का पहला अंक बढिया रहा!!
ham basanti bol rahein bhai.
ham aaye aap ka blog aapka blogvani ka kudrat hai
kabhi aapka fotu dekhte hain kabhi ham apna fotu dekhte hain
ha ha ha ha
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