दोस्तो कुछ दिन से मै एक बात नोट कर रहा हु लोग पोस्ट लिखने के चक्कर मे गूगल को भी नही बख्श रहे है . कभी कभी हम इन्टरनेट पर कुछ खोजने जाते है और सबसे पहले गूगल डाट काम पर ही जाते है और अगर कही कोइ आपत्तीजनक लेख आदि दिख जाता है तो सिधे गूगल का गला पकडते है ऐसा क्यु?
मान लिजिये आज मै यह लिख दू कि ताजमहल आगरा मे नही देलही में है तो कभी जब आप गूगल पर जाकर ताजमहल खोजेगे तो मेरे साईट पर आपको देलही ही दिखेगा ना .
तो आप बोलोगे कि गूगल को सबक सिखाना पड़ेगा वो ताजमहल को आगरा में नहीं देलही में बता रहा है .
अरे वो कहा बता रहा है वो तो बेचारा सिर्फ जो लिखा है ओ दिखा रहा है .
ये कहा कि मानसिकता कि जिसने हमें इतना बड़ा मंच दिया अपनी बात कहने का आज हम उसी को उसी मंच से गरिया रहे है :)
अब चलते है आज के चर्चा की तरफ !!!
अनुराग शर्मा और उनके साथियो द्वारा लिखी गए पुस्तक की समीक्षा प्रकाशीत हुई है समीक्षक है श्री पंकज सुबीर जी , पंकज जी कहते है -अमेरिका में रहने वाले भारतीय कवि श्री अनुराग शर्मा का नाम वैसे तो
साहित्य जगत और नेट जगत में किसी परिचय का मोहताज नहीं है । किन्तु फिर
भी यदि उनकी कविताओं के माध्यम से उनको और जानना हो तो उनके काव्य
संग्रह पतझड़, सावन, वसंत, बहार को पढ़ना होगा । ये काव्य संग्रह छ:
कवियों वैशाली सरल, विभा दत्त, अतुल शर्मा, पंकज गुप्ता, प्रदीप मनोरिया
और अनुराग शर्मा की कविताओं का संकलन है । यदि अनुराग जी की कविताओं की
बात की जाये तो उन कविताओं में एक स्थायी स्वर है और वो स्वर है सेडनेस
का उदासी का । वैसे भी उदासी को कविता का स्थायी भाव माना जाता है ।
अनुराग जी की सारी कविताओं में एक टीस है, ये टीस अलग अलग जगहों पर अलग
अलग चेहरे लगा कर कविताओं में से झांकती दिखाई देती है । टीस नाम की उनकी
एक कविता भी इस संग्रह में है ’’एक टीस सी उठती है, रात भर नींद मुझसे आंख
मिचौली करती है ।‘’
ताऊ जी की शोले का आज अगला एपिसोड रिलीज हुआ है ।
अब चलते है अगली पोस्ट पर कल आपने निर्मला कपिला जी के ब्लॉग पर पढा था संवेदनाओं के झरोखे से -1 और आज आप पढ़ सकते है संस्मरण -२ बहूत ही गहरे भावो की अभिव्यक्ती .
लोग वही और देश वही है,
नाम नया, परिवेश वही है,
वही तंत्र का मंत्र अभी तक,
शासक ही तो बदल गये हैं।
जी हां ऊपर लिखी चाँद लाइन मै श्री श्यामल सुमन जी के ब्लॉग से लिया हु . ब्लॉग का नाम है मनोरमा और पोस्ट का शीर्षक है प्रतीति .
लवी की विडियो पहेली में आपका स्वागत है .
आज के नए चिट्ठो में शामिल है एक पौराणिक कथाओ का चिट्ठा . लेखक है श्री विजय मिश्रा . यहाँ आप महाभारत और गीता से जुडी कुछ अद्भूत बातें पढ़ सकते है
चाँद देखा है यारों
बस चांदनी की तलाश है !! सूर्य तो दिख रहा है
बस उसकी तपिश उदाश है !!
ये भावनाए है सोनू चंद्रा " उदय " की .
बगीची में आज अविनाश जी है पप्पू के पिज्जे के साथ
डा. शास्त्री जी का आज की कविता बिंदी के बिना मेरा श्रृंगार ?
3 comments:
बहुत बडिया चर्चा है आज के बताये सभी बलाग शायद पढने से रह जाते अगर आप ना बताते बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत लाजवाब चर्चा रही जी. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
अरे वाह !! अपनी लवी यहाँ भी मौजूद है.... शुक्रिया जनाब
...चर्चा अच्छी रही.
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