आज शिक्षक दिवस है इसी उपलक्ष्य में कुछ पोस्ट भी किया गया है .
पहली पोस्ट है सतीश पंचम जी की जो कि अपने चिर-परिचित अंदाज़ में बता रहे है कि किस तरह होगा मास्टरों का दिनचर्या अगर उनको वेतन ना मिले -
पेशे से शिक्षक रहे विवेकी राय जी ने 'मनबोध मास्टर की डायरी' में व्यंगात्मक शैली में बताया है कि किस तरह वह एक बैंडबाजे वाले की खोज में चले और उन्हे पढे लिखे बैंडबाजे वालों के एक दल के बारे में जानकारी मिली।
एक जन ने बताया कि -
स्कूल के मास्टर लोग शादी-विवाह में बैंड बजाने का काम करने लगे हैं।
..... ये लोग बजनिया नहीं हैं लेकिन पेट और परिस्थिति जो न करावे । इनमें
बीएड, बीपीएड, विद्यालंकार, शास्त्री, आचार्य सभी शिक्षित लोग हैं। इनके
एक रात का सट्टा भी ज्यादा नहीं है - बस पांच सौ रूपये रात समझिये।
दूसरी पोस्ट है अविनाश वाचस्पती जी की जो कि बता रहे है मास्टरी के धंधे में होने वाले बेइन्तहा मुनाफा के बारे में .
बात तो सच है की मुनाफा तो है सौ टके पर मास्टर ही तो हमें भी मुनाफा करना सिखाते है .
शिक्षक दिवस पर विशेष - तीन ताकतों को समझने का सबक
!अब आगे बढ़ते है मीत के साथ उनकी ये कविता दिल तो खिलौना है
दिल तो खिलौना है,
आँखों को रोना है,
इस जहाँ में ना था कोई, अपना,
ना हम किसी के हैं,
ना किसी का होना है...
अजय कुमार झा बहूत ही सुधरे हुए गजब की कटिंग काटते है भाई कमाल का दो लाइना रेल लेकर निकल पड़े है अजय बाबू बहूत बहूत शुभकामनाये हमारी तरफ से
तनावमुक्ति का, सफल होने का उपाय : क्षमा करना">तनावमुक्ति का, सफल होने का उपाय : क्षमा करना
जी नहीं बुक इंस्टालनहीं खोला हूँ ये सारी तस्वीरे रवीस कुमार जी ने लिया है
थोडा देर से ही सही लेकिन एक और शिक्षक दिवस विशेष पर नजर पडी हमारी हिमांशु जी के द्वारा लिखा गया है
गुरु की पाती -
डा. शास्त्री जी का ये पोस्ट अपने मुल्क के नाम
हमारे दिल में नफरत
|
---|
फेल हो जाते-जाते हैं बड़े-बड़े बम
ब्लॉगर">
ताऊ रामपुरिया ने कहा…
वाह बहुत लाजवाब रेल है आपकी. ईश्वर करे ये राजधानी एक्सप्रेस की तरह दौडे.