मै पंकज मिश्रा "चर्चा हिंदी चिट्ठो की " के इस अंक के साथ .
ताऊ जी की शोले
अजब है तेरी माया , जिसे कोई समझ ना पाया .
गजब का खेल रचाया , सबसे बड़ा है तेरो नाम ,
साईं राम , साईं राम , साईं राम ।
दोस्तों वाकई कितनी बार ऊपर लिखी पंक्तियाँ सच लगाने लगती है जब कभी ऐसा मुकाम आ जाता है किबाप की लाश सामने और बेटी की परीक्षा उसी दिन.
पानी की समस्या विकट है . आप हम यात्रा में १५ रुपये लीटर पानी खरीद कर पीते है
लेकिन घर पहुचते ही वही पानी नालो में बहाते है पानी बचाइए नहीं तो
पानी की समस्या इतिहास बनने की कगार पर
हाल ही ब्लॉगर ने पोस्ट एडिटर का एडवांस्ड वर्जन जारी किया है . आशीष खंडेलवाल
देहरी पर दीपक जलते तो हैं पर सभी उधार के
फूटे हुए कुमकुमों में था शेष नहीं अवशेष ज्योति का
संचय की झोली में आकर रह नहीं पल भी उजियारा
मुरझा गये फूटने से पहले ही अंकुर प्यार के
राकेश खंडेलवाल
********************************************लेकिन घर पहुचते ही वही पानी नालो में बहाते है पानी बचाइए नहीं तो
पानी की समस्या इतिहास बनने की कगार पर
हाल ही ब्लॉगर ने पोस्ट एडिटर का एडवांस्ड वर्जन जारी किया है . आशीष खंडेलवाल
देहरी पर दीपक जलते तो हैं पर सभी उधार के
फूटे हुए कुमकुमों में था शेष नहीं अवशेष ज्योति का
संचय की झोली में आकर रह नहीं पल भी उजियारा
मुरझा गये फूटने से पहले ही अंकुर प्यार के
राकेश खंडेलवाल
इतना तो बता जाओ
कैसे तुम्हारी
जोगन बनूँ मैं
कैसे इस अंतस की
पीर सहूँ मैं
तुम्हारी कैसे बनूँ मैं
वन्दना गुप्ता
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कुत्ते से क्या बदला लेना गर कुत्ते ने काटा है
जी के अवधिया जी का लेख
विचित्र प्राणी होता है कुत्ता। ऊपर वाले ने विशेष तौर पर रचा है इसे,
इंसान याने कि मनुष्य के सहायक के रूप में। कुत्ते वहीं पाये जाते हैं
जहाँ इंसान रहते हैं। जंगली कुत्ते नहीं पाये जाते क्योंकि कुत्ता इंसान
के बिना रह ही नहीं सकता।
आज न जाने क्यूँ रोने को मन किया।माँ के आंचल में सर छुपा के सोने को मन किया।
दुनिया की इस भाग दौड़ में,खो चुका था रिश्तेय सब।
आज फिर उन रिश्तो को इक सिरे से संजोने का मन किया।
दिल तोद्ता हूँ सब का अपनी बातों से,
लड़ने का मन भी तो आपनो के मन से किया।
कैलाश मानसरोवर की यात्रा कैलाश जी के साथ
जिन्होने ये विज्ञापन नही देखा उन्हे मै बता दूं कि विज्ञापन मे बस स्टाप
पर खड़ी एक महिला का पर्स छीन कर एक लफ़ंगा भागता है और तभी एक गाड़ी
रूकती है उसका दरवाज़ा खुलता है लफ़ंगा दरवाज़े से टकरा जाता है पर्स हवा
मे उछलता है जिसे गाड़ी से उतरता एक गबरू हवा मे ही कैच करता है और शान से
अकड़ता हुआ सीधे महिला के पास जाता है और उसे पर्स लौटा कर ब्रेक लगाने से
गाड़ी से गिरे भारी सामान को खुद उठाकर वापस लादता है।तब तक़ उसकी सुपरमैन
स्टाईल हरक़तो को देख रही महिला मुस्कुराती है,फ़िर शरमा कर चुन्नी नीचे
खींच कर मंगलसूत्र को छीपाने लगती है।
शराब!
बाप पिए तो ठीक, बेटा पिए ख़राब!
जुआरी!
कभी न जीते, कभी न माने हारी!
क्यों देर हुई साजन तेरे यहाँ आने में?
क्या क्या न सहा हमने अपने को मनानेमें।
तुने तो हमें ज़ालिम क्या से क्या बना डाला?
अब कैसे यकीँ कर लें, हम तेरे बहाने में।
7 comments:
बढ़िया चर्चा !
मनोरम चिट्ठों की चर्चा । यूँ ही अविरत जारी रहिये । आभार ।
बहुत सुंदर चर्चा चल रही है, बडी विविधता है. शुभकामनाएं.
रामराम.
SUNDAR CHITHA CHARCHA .... BAHOT BAHOT SHUBHKAAMNAAYEN ...........
बहुत सुन्दर चर्चा है कई ब्लाग छूट गये थे अपकी चर्चा ने याद दिला दिये आभार्
सराहनीय प्रयास.. हैपी ब्लॉगिंग
सुन्दर चर्चा । आभार ।
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