~~~पंकज मिश्रा चर्चा हिन्दी चिट्ठो के साथ ~~~
शुरुआत हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में लिखे चिट्ठो के साथ .
"आज पहली बार ऐसा संविधान बना है जबकि हमने अपने संविधान में एक भाषा रखी है जो संघ की भाषाहोगी।"
- डा० राजेन्द्र प्रसाद
हिन्दी का प्रवेश लोक की संश्लिष्ट चेतना का प्रवेश है - चाहे सत्ता में,
चाहे पाठ्यक्रम में, चाहे व्यवहार में, चाहे हमारी अंतश्चेतना में ।
हिन्दी के आने से सत्ता में नये वर्ग, नये विचार प्रवेश करेंगे । हिन्दी
के एक कठिन शब्द के प्रति (खासतौर पर जो इतनी आत्मीयता से ब्लॉग-जगत में
उपस्थित है) इतनी उदासीन मनोवृत्ति । ऐसे अनगिन शब्द हमें सीखने होंगे
अध्यवसाय से, क्योंकि इसी अध्यवसाय से विकास की नयी दिशायें खुलेंगीं ।
देश में स्वावलंबन का उदय होगा । फिर जागेगी देश के प्रति स्वाभिमान की
मनोवृत्ति और स्वभूति का अनुभव कर सकेंगे हम ।
बुजुर्ग बताते थे कि सपनों का आधार आपके दिमाग के कोने में पड़े वो विचार होते हैं जिन्हें आप पूरा होता देखना चाहते हैं किन्तु जागृत अवस्था में कुछ कर नहीं पाते. कह नहीं पाते और मूक दर्शक बने उन्हें अपने आसपास होता देखते रहते हैं. ऐसे विचार सपनों में आकर आपको झकझोरते हैं, जगाते हैं.
राग आलापते जिन्दगी कट गई,
तेल कानों में हमने है डाला हुआ।
बीनने हमको टुकड़े हैं परदेश के,
इसलिए रोग इंग्लिश का पाला हुआ।
बाहें फैलाए हुए वो ख़्वाब में आ जाते हैं
ढ़ूँढ़ते-फिरते हो तुम जितने सवालों के जवाब
सब के सब ही मेरे पेचोताब में आ जाते हैं
डूबने की कोशिशें मेरी करें नाकामयाब
जाल कसमों की लिये तालाब में आ जाते हैं
तकनीक - आशीष भाई के ब्लॉग पर ~
हिन्दी ब्लॉग टिप्स ब्लॉगर साथियों के लिए दो ऐसे डिक्शनरी विजेट जारी कर रहा है, जो इंटरनेट पर उपलब्धसंसाधनों से हिन्दी-अंग्रेजी अर्थ विजेट के
भीतर ही लाते हैं।
कैसे कैसे हादसे सहते रहे,
हम यूँ ही जीते रहे हँसते रहे,
उसके आ जाने की उम्मीदें लिए,
रास्ता मुड़ मुड़ के हम तकते रहे,
वक्त तो गुज़रा मगर कुछ इस तरह,
हम चरागों की तरह जलते रहे,
ज़िन्दगी का मेला चलता,सालों साल बराबर चलता.लो यहाँ इक बार फिर, बादल कोई बरसा नहीं,
खोज रहीं हैं मंजिल अपनी,
दर दर भटक रहीं साँसे.
बाँटता जा खुशियों को जग में,
निकल जायेंगी सब फांसें.
ज़िन्दगी का मेला चलता,
सालों साल बराबर चलता.
स्वर्ग नर्...
तपती जमीं का दिल यहाँ, इसबार भी हरषा नहीं .
उड़ते हुए बादल के टुकड़े, से मैंने पूछा यही,
क्या हुआ क्यों फिर से तू, इस हाल पे पिघला नहीं.
गुरुद्वारा और गिरजाघर में ढूंढा...राह में मिलने वाले हर बंदे से उसका
ठिकाना पूछा...मगर हर चौखट पर उसका रूप बदला हुआ था...और हर गली में उसका
नाम अलग था...उसके इतने सारे रूप देख और नाम सुन तो पागल मन और बावला हो
गया...
सीख: प्रशासन का हाथ जिस पर हो और जो
प्रशासन से सांठ गांठ करने की कला जानता हो, वो ऐसे ही तरक्की करता है.
माना कि मीडिया बहुत ताकतवर है लेकिन देखा न!! कहीं न कहीं उन्हें भी दबना
ही पड़ता है.
यही है सत्य और यही है 'सच का सामना'!!!!
भोला बाबा के गीत
हे हर मन द करहुँ प्रतिपाल ,
सब बिधि बन्धलहुँ माया जाल ।
हे हर मन ........................... ।
सब दिन रहलहुँ अनके आश ,
अब हम जायब केकरा पास ।
हे हर मन .......................... ।
बीतल बयस तीन पल मोरा ,
धयल शरण शिव मापन तोरा ।
हे हर मन ......................... ।
उस अजनबी क यू ना इंतजार करो,
इस आशिक दिल का ना एतबार करॊ ।संजय तिवारी ’संजू’
रोज निकला करे किसी की याद में आसूं ,
इतना कभी किसी से प्यार ना करॊ ।
हर शब्द पर हम क्षुब्ध है
हर वाक्य पर हम मौन है
ये कैसी आधुनिकता है ?
जहाँ आत्मसम्मान गौण है।
हर क्षण में अंतर्द्वंद है
अपनी भाषा के सवाल पर
मर चुकी है सोच
ख़ुद से आशा के ख़्याल पर
अभिव्यक्ति की परतंत्रता का
आख़िर अपराधी कौन है ?
7 comments:
बेहतर श्ब्दावलियों से सजा कर आपकी शानदार प्रस्तुति के लिए आभार ।
आपका पारखीपन बडा़ मारक है ।
आभार ..!
चिट्ठों की इस चर्चा में एक ग़जल के कुछ शेर उद्धृत किये हैं आपने -
"कैसे कैसे हादसे सहते रहे
फिर भी हम जीते रहे हँसते रहे.." । यह है पूरी जिन्दगी का फलसफा । इंसान की जीवनी शक्ति का परिचय । हिन्दी दिवस के परिप्रेक्ष्य में भी देख रहा हूँ इसे । हिन्दी ने क्या न सहा पर आज भी वह एक जीवंत जागृत हँसती हुई भाषा बन कर खड़ी है ।
चिट्ठों की यह चर्चा बेहतर रही । आभार ।
बहुत बेहतर चर्चा के लिये आभार. शुभकामनाएं.
रामराम.
ये चिठा चर्चा तो दिन पर दिन रंग पकड रही है बधाई
आपकी चर्चा लाजवाब है ..........
चर्चा अपना असर छोड़ती जा रही है .. हैपी ब्लॉगिंग
आपके श्रम को नमन।
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