इस कड़ी आज की पोस्ट है हमारे हिन्दी जगत के सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर में से एक माननीय डा. रूपचंद शास्त्री " मयंक जी " और पोस्ट है उनके ब्लॉग शब्दों के दंगल से .
शास्त्री जी ने यह पोस्ट लिखा था बुधवार 29 April २००९ को .
शब्दों के हथियार संभालो, सपना अब साकार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
करो वन्दना सरस्वती की, रवि ने उजियारा फैलाया,
नई-पुरानी रचना लाओ, रात गयी अब दिन है आया,
गद्य-पद्य लेखनकारी में शामिल यह परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
देश-प्रान्त का भेद नही है, भाषा का तकरार नही है,
ज्ञानी-ज्ञान, विचार मंच है, दुराचार-व्यभिचार नही है,
स्वस्थ विचारों को रखने का, माध्यम ये दरबार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
सावधान हो कर के अपने, तरकश में से तर्क निकालो,
मस्तक की मिक्सी में मथकर, सुधा-सरीखा अर्क निकालो,
हार न मानो रार न ठानो, दंगल अब परिवार हो गया।
ब्लॉगर मित्रों के लड़ने को, दंगल अब तैयार हो गया।।
6 comments:
सुन्दर।
बहुत बधाई और शुभकामनाएं,
रामराम.
यह रचना मैं पढ चुकी हूं .. बहुत सुंदर रचना है .. फिर से पढवाने का आभार !!
पहली पोस्ट पढ़वाने का कंसेप्ट बहुत निराला है..
शास्त्री जी के ब्लॉग्स की मैं हर पोस्ट पढ़ता हू. उनके लेखन की गहराई उनकी सादगी मुझे बहुत पसंद है।
हैपी ब्लॉगिंग
धन्यवाद इस पोस्ट के लिये शास्त्री जी की मै भी हर पोस्ट पढती हूँ
धन्यवाद!
मान्यवर!
मुझे तो याद ही नही रहता कि मैंने क्या कुछ लिख मारा है।
क्योंकि मै पीछे मुड़कर कभी देखता ही नही हूँ।
आपका आभार!
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