नमस्कार..पंकज मिश्रा आपके साथ… आज तो सप्ताह का अन्त है अतः आप सब मजे मे आराम कर रहे है ..अच्छी बात है..चलिये चर्चा कर लेते है…
शुरुआत करते है शास्त्री जी के ब्लाग से …"जन्म दिन का केक बिटिया ने काटा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
प्राची की नानी जी, उनका पौत्र लक्की, पौत्री कु0 भारती,
प्राची का भाई प्राञ्जल, चाचा जी विनीत शास्त्री, पापा जी
नितिन शास्त्री,प्राची की सहपाठी सेजल गुप्ता, पीयूष गुप्ता,
दादी जी श्रीमती अमर भारती
और बड़े दादा जी श्री घासीराम आर्य और बड़ी दादी जी
श्रीमती श्यामवती देवी भी साथ थीं।
अब चलते है स्वार्थी जी के ब्लाग पर अनुप शुक्ला फुरसतिया, कितने अजीब हो तुम।
मगर अलसेट यह हो रही थी कि चित्र अपन से बनते कहाँ हैं ?बस इसको ही पढ़कर आनंदित हो गये। ऐसे शब्द /वाक्य आपके यहां ही सुनने/पढ़ने को मिलते हैं। आप नियमित लिखते रहा करें।
बाकी पहेली के बारे में हम क्या कहें? आप बेहतर समझते हैं। लोग इसी के माध्यम से हिन्दी की सेवा में चिपटे हैं। कुछ कहना उनको हिन्दी सेवा से विरत करने जैसा पाप करना होगा।
आशा यह है कि आप अपनी फुरसतिया पर साल २००९ में प्रकाशित पोस्टें देखें। साल भर में सिवाय ३ या ४ पोस्ट छोड़ कर, केवल इसने ये कहा, उसने वो कहा, झगड़ा लगवाना और रिपोर्टॊं के, आपने लिखा ही क्या है जिसे हिन्दी की सेवा कहा जा सकता है। खुद तो कुछ किया नहीं। जब मौज लेना हो ले लें। दूसरा लोगों के चहेरे पर मुस्कान लाये तो जल भुन जाते हैं। छीः है तुम पर. शायद सब साथ छोड़ गये तो कटख्न्नी बिल्ली हो गये हो।
कितनी साजिश करोगे, अब कलई खुल चुकी है तुम्हारी।
जितना नुकसान आपने हिन्दी के विकास को पहुँचाया है, शायद ही इतिहास माफ कर पाये। सब अब आपको समझ गये हैं। अब तो बस बैठे हुये चिठ्ठा चर्चा पर आई टिप्पणियाँ पोंछने का सफाईकर्मी के काम में लग जओ। वो ही शोभा देता है।
प्राथमिक विद्यालय, बिहार का विकास , सच या झूठ (ग्राम प्रवास -३ ) बता रहे है अजय भाई
अब इसके पहले कि और किसी मुद्दे पर बात छेडूं , पहले अपने ग्राम के प्राथमिक विद्दालय की खोज ली जाए । मेरे गांव के लगभग मध्य में स्थित और ग्राम के बींचो बीच से गुजरने वाली मुख्य सडक के किनारे स्थित इस विद्यालय में मैं कभी नहीं पढा, (क्योंकि पिताजी की फ़ौज की नौकरी के दौरान हम सब उनके साथ बाहर ही बाहर रहे ) मगर फ़िर भी इस विद्दालय के प्रति एक अजीब सा लगाव रहा मुझे । यही कारण था कि मैं जब भी गांव आता इस विद्यालय का एक चक्कर जरूर लगाता , शिक्षकों से मिलता, उनसे बातचीत करता , और जो भी कठिनाईयां होती उन्हें सुनने समझने की कोशिश भी करता । नौकरी में आने के बाद गांव जाना उतना तीव्र नहीं रहा सो उदासीनता बढती गई । और शायद ये कारण भी था कि उस विद्यालय में पढाई का, खुद विद्यालय का, पानी , शौच आदि की व्यवस्था सभी का कुल मिला के ऐसा
ऐसा नव वर्ष स्मार्ट इंडियन
विलुप्त
सहिष्णुता प्रकर्ष
प्रेम की विजय
लुप्तप्राय अमर्ष
बहुजन हिताय
जीवन उत्कर्ष
शोषण का नाश
इस पर विमर्श
विकसित सुशिक्षित
सबके हिय हर्ष
पहला दिन .....सदा जी की कविता
सूरज को सोने दो, उसको गढ़ना है एक दिन नया, हौले से कहकर चांद ने सितारों को जगाया चांदनी निखर –निखर उठी बदलियों में छिपा चांद जब निकलकर आया कल नये साल का पहला दिन निकलना था नववर्ष की बधाई देने.
खुल्ला खेल फ़र्रुखाबादी (159) : आयोजक उडनतश्तरी ताऊजी डाट काम..
आपका इस खेल को संचालित करने मे मुझे पुर्ण सहयोग मिलता आया है जो की अब बाकी बचे दिनों मे भी जारी रहेगा. और इस खेल मे आप लोगो के सहयोग से रोचकता बरकरार है. सभी इसका आनंद ले रहें हैं. आगे भी लेते रहें और अब रिजल्ट पेश करने के लिये आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" भी मौजूद है. तो आईये अब आज का सवाल आपको बताते हैं :-
और अंत मे ….सायास ही किसी का रुदन नहीं होता......
शाम होते- होते वह बालक अपने मित्र व उसके माता - पिता के साथ घर आया । अब क्या था......? गले से लगा रो पड़ी वह...। छोटा सा बालक सूचना का हाल तो जानता ही न था कि घर बताना या न बताना जैसी भी कोई बात होती है .....! उसे तो बस छुट्टी में मौज करना था । मां के लिये पल भर भी बालक ओझल हो जाय, कितना मुश्किल होता है खुद को संभालना । यहां .......सुबह से शाम हो चली थी .........!मां के लिए पति की अनुपस्थिति में बेटा ही आधिकारिक संबल होता है । घर का खर्चा किसी तरह से सिलाई - बुनाई, फाल- पीको आदि से चलाना इस इक्कीसवीं सदी की दुनिया में आसान नहीं । उसकी मां को किसी प्रकार से विश्वास दिलाने की कोशिश कब से की जा रही थी कि धीरज रखिये कुछ लोग उसे ढूढने में लगे हैं । मुहल्ले में किये गये सद व्यवहार की परख ऐसे ही समय में होती है जब व्यक्ति विपरीत परिस्थिति से गुजर रहा होता है ।
आज मेरा भी आराम करने का मूड है अतः इतना ही बकिया कल …अगर ज्यादे कम हो तो बता दिजियेगा आपके कहने के बाद फ़िर से शाम तक लिख दूगा…
लेकिन पता है आप सब दयावान हो यही कहोगे कि नही पंकज आराम कर लो …तो ठीक है भईया जयराम जी की
नमस्ते
20 comments:
नहीं महराज पर्याप्त है आप आराम करो आज
अरे पंकज मिश्र जी!
बहुत खूब!
आपने तो 6 चिट्ठों में ही चर्चा सागर समेट दिया!
सुन्दर चर्चा!
पूरी तो है चर्चा..
आनन्द आया...आराम करके फिर भी आयें और विस्तार दें.
बहुत अच्छी चर्चा। बधाई।
nice
अच्छी चर्चा ...!!
सुंदर चर्चा, शाश्त्रीजी को बधाई.
रामराम.
पंकज जी-सुंदर चर्चा-आभार
अच्छी चर्चा ...!
अच्छी चर्चा की गई है, कुछ और चिट्ठे शामिल किए गए होते तो और अच्छा रहता।
अच्छी चर्चा ...!
नव वर्ष की शुभकामनाएँ
सुंदर चर्चा!
आज मेरा भी आराम करने का मूड है
अरे काम करने को तो अभी पूरा साल पडा है, शुरू में तो थोड़ा आराम करना ही चाहिए मिश्र जी.
आज माल कुछ कम रह गया है
एक चिट्ठे की चर्चा थोड़े ही है कि गुहार कर रहे हैं, पूरे सात आ गए हैं - कम नहीं है यह !
आराम कीजिये !
चर्चा अच्छी रही | आभार |
बढिया रही चर्चा...लेकिन लगता है कि शायद डोज कुछ कम रह गई :)
कम से कम 11 चिट्ठे तो शामिल करना ही चाहिए!
नया वर्ष हो सबको शुभ!
जाओ बीते वर्ष
नए वर्ष की नई सुबह में
महके हृदय तुम्हारा!
अच्छी चर्चा की गई है, कुछ और चिट्ठे शामिल किए गए होते तो और अच्छा रहता।
कुछ और चिट्ठे!?
अरे बच्चे की जान लोगे क्या? :-)
बी एस पाबला
बहुत बढ़िया चिट्ठा चर्चा..थोड़ा देर से पढ़ पाया पर प्रस्तुति लाज़वाब की है..धन्यवाद पंकज जी!!
पंकज जी, बहुत-बहुत धन्यवाद, चर्चा में कविता को स्थान देने के लिये, बहुत ही सुन्दर एवं विस्त़त चर्चा के लिये आभार के साथ बधाई ।
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