आज कल पद्म श्री को लेकर काफी चर्चाएँ मीडिया और ब्लाग दोनों पर आ रही हैं. सैफ अली खां को पद्म श्री देने पर विश्नोई समाज ने अपना मुखर विरोध दर्ज कराया है तथा विरोध प्रदर्शन करते हुए पद्म श्री वापस लेने की मांग की है. सैफ अली द्वारा हिरण का शिकार करने के बाद भी पद्म श्री से नवाजे जाने से झुब्ध विश्नोई समाज अब प्रदर्शन पर उतर आया है. अब मै ललित शर्मा आपको ले चलता हूँ आज की हिंदी चिट्ठों की चर्चा पर................ | आज की चर्चा प्रारंभ करते हैं अदा जी की पोस्ट से वे पुछ रही है कौन है ??? बेनामी जी के लेखन से चकित हैं।आज कल ब्लॉग जगत में बेनामी जी अपनी सही और सधी हुई बातों के लिए बहुत पसंद किये जा रहे हैं...पहले दिन ही मुझे लगा कि ये ज़रूर मुफलिस जी हैं..उनसे मैंने पूछ भी लिया ...लेकिन ज़ाहिर सी बात है उनका जवाब ..'ऋणात्मक' था..हा हा हा..फिर मुझे लगा गिरिजेश राव हैं, उनसे भी पूछ लिया.. .उनका जवाब गोल-मोल था....आज गौतम राजरिशी की टिपण्णी देखी उनपर भी लोगों ने शक किया है... आज आप लोगों से पूछती हूँ कौन है ये 'बेनामी जी' ?? वैसे तो ये बेनामी ही रहे तो अच्छा है..क्यूंकि 'बेनामी' रह कर ये जो काम कर पा रहे हैं शायद 'नाम' के साथ नहीं कर पाते...मैं तो इनकी मुरीद हो ही गयी हूँ...आप लोग क्या कहते हैं...ज़रा अपने विचार दीजिये अखीर हैं कौन ये..? कोई महिला भी हो सकती हैं.. चलिए अब गेसियाइये ज़रा.....हा हा हा | मिथलेश दुबे जी आज कि पोस्ट में बड़ी गंभीरता से कह रहे हैं कि शरीर दिखाने वाले कपडे पहनने को आजादी कतई नहीं माना जा सकता आजादीको परिभाषित करना बहुत मुश्किल है। हर इंसान अपनी बुद्धि का सही उपयोग करते हुए आजादी की सीमा तय करता है। हर व्यक्ति स्वतंत्र रहना चाहता है,परंतु इसकी अधिकता कभी-कभी नुकसानदेह साबित होती है। आज बेटी-बेटे को समानता का दर्जा दिया जाता है, लेकिन समाज का माहौल देखते हुए लडकियों की सुरक्षा की दृष्टि से माता-पिता उनकी आजादी की सीमाएं तय कर देते हैं, जो कि किसी दृष्टि से गलत नहीं है। यही बात बेटों पर भी लागू होती हैं।उन्हेंभी अनुशासित करने के लिए समय-समय पर उनकी आजादी की सीमाएं तय करना बहुत जरूरी है। आजादी में संतुलन बहुत जरूरी है। मेरे विचार से आजादी का सही अर्थ है-सामंजस्य। | राजकुमार सोनी जी भी एक से एक पोस्ट लेकर आ रहे हैं ब्लाग जगत को समृद्ध करने के लिए इनके लेखन के तो हम कायल हैं आज लाये हैं केमिकल लोचा . कोई सही तरीके से बताने को तैयार नहीं है कि ‘केमिकल लोचा’ शब्द की उत्पति कहां से हुई है, लेकिन समझा जाता है कि राजकुमार हिरानी की फिल्म लगे रहो मुन्ना भाई में संजय दत्त ने इस शब्द की महिमा को अपने तरीके से समझाने का प्रयास किया था। मोटे तौर पर केमिकल का मतलब रसायन और लोचा का अर्थ लफड़ा होता है। कुल मिलाकर ऐसा विवाद जिसमें कई तरह की रासायनिक क्रियाएं शामिल हो गई हों उसे केमिकल लोचे की श्रेणी में रखा जा सकता है।बताते हैं कि जब आरएसएस का जुलूस निकल रहा था तो निगम में पत्नी की जगह स्वयं ही आमद देने वाले एक पार्षद ने श्रीमती नायक को भारतीय संस्कृति का हवाला देते हुए यह सुझाव दिया था कि वे पथ संचलन करने वाले लोगों का स्वागत जरूर करें। आनन-फानन में फूल एकत्रित किए गए और फूल बरसाओ कार्यक्रम संपन्न हो गया। | संजीव तिवारी जी ने काहिरा में महफ़ूज़ और तिल्दा का चांवल दोनों से मुलाकात की ये काहिरा पहुँच गए और उनको वहां हमारे छत्तीसगढ़ के तिल्दा के चांवल की खुशबु आ गई और महफूज भाई के रेस्तरां में भी पहुँच गए जम के आन्नद लिया.पिछले दिनों ब्लॉग जगत में अदा जी के घर के चित्रों को ब्लॉग में प्रस्तुत करने के संबंध में प्रकाशित एक पोस्ट पर सबने दांतो तले उंगली दबा ली थी और जिस प्रकार पाबला जी ने कनाडा यात्रा की वैसी यात्रा करने के लिए अनेक ब्लॉगर उत्सुक थे. कल पाबला जी हमारे पास आये तो हमने भी बिना पासपोर्ट वीजा के कनाडा यात्रा के गुर के संबंध में पाबला जी से पूछा पर वे बाद में बतलाता हूं कह कर टाल गए. हमने अपनी जुगत और जुगाड लगाई. इन दिनो हिन्दी ब्लॉगजगत में आभासी दुनिया के भूगोल पर बडी-बडी विद्वतापूर्ण पोस्टें आ रही है सो हमने भी इस आभासी दुनिया का सहारा लिया और उड चले तूतनखामीन और पिरामिडो के देश मिश्र की ओर. | फ़र्रुखाबादी विजेता (185) : सुश्री सुनीता शानुनमस्कार बहनों और भाईयो. रामप्यारी पहेली कमेटी की तरफ़ से मैं समीरलाल "समीर" यानि कि "उडनतश्तरी" फ़र्रुखाबादी सवाल का जवाब देने के लिये आचार्यश्री यानि कि हीरामन "अंकशाश्त्री" जी को निमंत्रित करता हूं कि वो आये और रिजल्ट बतायें.प्यारे साथियों, मैं आचार्य हीरामन "अंकशाश्त्री" आपका हार्दिक स्वागत करता हूं और रामप्यारी पहेली कमेटी का भी शुक्रिया अदा करता हूं कि उन्होने मुझे इस काबिल समझा और यह सौभाग्य मुझे प्रदान किया. इससे पहले की मैं आपको रिजल्ट बताऊं आप सवाल का मूल चित्र नीचे देख लिजिये जिससे की यह सवाल का चित्र लिया गया था. | रतन सिंग जी इतिहास से सम्बन्धी विषय पर बहुत ही बढ़िया कहानी लिख रहे हैं. सुख और स्वातंत्र्य -२ यमराज ने एक 'वाह ' भरी और चित्रगुप्त ने उसकी और उडती निगाहों से देखकर पुन: कहना शुरू किया -' ऐसे कठिन समय में जब इसके समक्ष भिनाय की जनता ने आकर पुकार कि वे उसके शासक मादलिया के अत्याचारों से त्राहि त्राहि कर रहे है तब ' क्षतात त्रायते ' के मन्त्र को चरितार्थ करता हुआ यह शक्ति व्यय की बिना चिंता किये भिनाय में आ धमका | मादलिया के यहाँ महफ़िल चल रही थी , शराब के दौर में मानवता निगली जा रही थी और अचानक इस चन्द्रसेन की तलवार चमक उठी | प्याले टूट गए , पैमाने लुढ़क गए , सूरा के साथ मादलिया के जुल्मों की कहानी भी सदा के लिए भूमि पर छितरा गयी |' | तुम गुलकन्द हो हमारी.....हम मीठे पान तुम्हारे .....१२० का तम्बाकू अब्बू तुम्हारे तुम नदिया हो हमारी.....हम मछ्ली तुम्हारे .....बेरहम मछुहारे अब्बू तुम्हारे तुम खबर हो हमारी......हम अखबार तुम्हारे .....कैचीं छाप एडिटर अब्बू तुम्हारे तुम गज़ल हो हमारी.....हम सुर तुम्हारे ....बेवकूफ़ फ़नकार अब्बू तुम्हारे तुम कविता हो हमारी......हम शिल्प तुम्हारे ....कचरा कवि अब्बू तुम्हारे तुम शहनाई हो हमारी......हम तानपुरा तुम्हारे ....फ़टा हुआ ढोलक अब्बू तुम्हारे तुम खुशबू हो हमारी.....हम परफ़्युम तुम्हारे .....पसीने की बदबू अब्बू तुम्हारे |
'' तेरी निगाह की सूरत में पल गया , जानां !
मैं अपनी जीस्त में कितना बदल गया , जानां ! मुद्दतों बाद तेरी डरी - डरी 'कॉल' आयी म्हारे दिल का वो बच्चा उछल गया , जानां ! वो मुश्ते-ख़ाक थी,तुझ संग उड़ाई पुर्वा में अब वक्ते-ख़ाक में चेहरा ही मल गया , जानां ! ख़ता की राह से हम दोनों बहोत दूर रहे मंजिले-इश्क़ को क्यूँ कोई छल गया , जानां ! खिला गुलाब हँसाता है तेरी यादों को हँसी के जिस्म में अफ़सोस ढल गया , जानां ! '' | कभी कुहरा, कभी सूरज, कभी आकाश में बादल घने हैं। दुःख और सुख भोगने को, जीव के तन-मन बने हैं।। आसमां पर चल रहे हैं, पाँव के नीचे धरा है, कल्पना में पल रहे हैं, सामने भोजन धरा है, “पिल्लू” जब तुम थे प्यारे से बच्चे, मुझको लगते कितने अच्छे.
मैं गोदी में तुम्हें खिलाता, ब्रेड डालकर दूध पिलाता,
दस वर्षों तक साथ निभाया, आज छोड़ दी तुमने काया,
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इक बुत बनाऊंगा तेरा और पूजा करूंगा अरे मर जाऊंगा प्यार अगर मैं दूजा करूंगा...इक बुत बनाऊंगा... (असली नकली, 1962)किसी पत्थर की सूरत से मुहब्बत का इरादा है.परस्तिश की तमन्ना है, इबादत का इरादा हैकिसी पत्थर की सूरत से...(हमराज,1967)ये दोनों गाने आज अचानक लब | मुझे वह समय पूरी तरह याद है , जब मैने मित्तव्ययिता शब्द को पहली बार सुना था। उस वक्त जाने पहचाने शब्दों पर ही लेख लिखने की आदत के कारण इस अनजाने शब्द पर लेख लिख पाना बहुत कठिन लग रहा था। घर आकर लेख लिखने की कई पुस्तकों में इस शब्द को ढूंढा , | 19 टिप्पणियाँ: Arvind Mishra ने कहा…आगे बढ़ते चलिए और इस जन्म को सार्थक करिए !स्वप्नदर्शी ने कहा…You can also visit my blog, I do write often about science, biotech and society and science often.बालसुब्रमण्यम ने कहा…यह बहुत अच्छा प्रयास |
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में एक ऐसे सज्जन हैं जो यह दावा करते हैं कि गर्भ में पल रहे शिशु को वे अभिमन्यू बना सकते हैं। वैसे ये सज्जन लोगों को पिछले जन्म का राज बताने का भी काम करते हैं। अब तक करीब तीन सौ लोगों को ये पिछले जन्म की सैर कराने की बात कहते | गज़ल इस गज़ल को भी आदरणीय प्राण भाई साहिब ने संवारा है।बेशक अभी गज़ल मे गज़ल जैसा निखार नहीं आया मगर सीखने की राह पर हूँ। आपसब के प्रोत्साहन से और भाई साहिब के आशीर्वाद से शायद कुछ कर पाऊँगी। तब तक पढते रहिये इन को । धन्यवाद्जो बनाये यूँ फसाने ये जवानी ठीक | मैंने एक पोस्ट लिखा था "मैं टिप्पणी क्यों करता हूँ"। पोस्ट में मैंने सीधे सरल शब्दों में सिर्फ यह बताया था कि टिप्पणी करने के मेरे अपने क्या कारण हैं। पर वहाँ की कुछ टिप्पणियों | प्रीत का यह रूप मेरे अंतस को छू गया शायद आप भी पसंद करेंगे | 26 जनवरी को देश ने अपना गणतंत्र दिवस मनाया और हमने एक प्रकार का स्वतन्त्रता दिवस। एक पोस्ट लिखी थी जिसमें अब हमने टिप्पणी-द्वार बंद करने का निर्णय लिया था। आश्चर्य अपनी सबसे अच्छी समझी जाने वाली पोस्ट पर भी इतनी टिप्पणियां नहीं आईं जितनी इस एक पोस्ट पर | साहित्य समय की सीमाओं में कभी नहीं बंधता . वह तो शाश्वत होता है . १९२४ की इस साहित्यिक रचना को आज के परिवेश में केन्द्रित कर देखें . क्या ७० वर्ष पूर्व की धड़कनें आज आपके चतुर्दिक फैले परिवेश में नहीं धड़क रही है ? आज की बात को सात दशक पहले ही रचनाकार ने | डा. प्रदीप भटनागर उदयपुर पहुंच गए हैं लेकिन चंडीगढ़ की उनकी रजाई पराए की लुगाई की तरह पता नहीं कहां गुम हो गई है. अनिल त्रिवेदी अभी भी चंडीगढ़ में ही हैं और मेरी फोल्डिंग फिर उनके पास पहुंच गई है. जिंदगी की कुछ छोटी-छोटी बातें ऐसी होती हैं जो बार-बार याद | तुम मानो या ना मानोमुझे पता हैप्यार करती हो मुझेतुम स्वीकारो या ना स्वीकारोमुझे पता हैतुम्हारा हूँ मैंअश्क भी आते नहीदर्द भी होता नहीतू पास होकर भीअब पास होता नहीइक आती सांस के साथतेरे आने की आस बँधीऔर जाती सांस के साथहर आस टूट गयीतेरी पुकार में ही दम ना | खबर आई है कि टेनिस सनसनी सानिया मिर्जा की सगाई टूट गई है। कुछ के लिए यह खबर राहत देने वाली हो सकती है। खुद सानिया के लिए भी। नहीं तो सानिया खुद इस बात का ऐलान क्यों करतीं। खैर।बात सानिया की हो और अफवाहें जन्म न ले संभव नहीं। शायद सानिया और अफवाहों का | हालत पे मेरी न दिल उनके पसीजे ,न शरमाया उन्हें मेरे इस फटे-हाल ने !सिद्दत से बड़ी हमने संजो के रखे है , जो कुछ गुल खिलाये थे गए साल ने !!यादों की गठरी को सीने पे रख कर,किया मजबूर चलने को हमें पातळ ने !क़दमों को अब तक संभाले हुए है, डगमगाया बहुत रास्तों के | मैंने सोचा आज मैं भी जरा मौज ले लूँ!ना तो राजीव तनेजा जैसा कुछ कर रहा हूँ न ही कार्टूनिस्ट सुरेश शर्मा जैसा और न ही रचना सिंह जैसाआप तो बस इस ब्लॉगर को पहचानिएकोई हिंट, कोई बात, कोई पहचान नहीं बता रहा हूँ।आप बस नाम बताईए इनका और ब्लॉग बता सकें तो | हर पल,इक नया ,वक़्त ,तलाशता हूँ मैं॥जो मुझ संग,हँसे रोये,वो बुत,तराश्ता हूँ मैं॥मेरी फितरत ,ही ऐसी है कि,रोज़ नए दर्द,संभालता हूँ मैं॥परवरिश हुई है,कुछ इस तरह से कि,कभी जख्म मुझे, कभी,जख्मों को पालता हूँ मैं॥सुना है कि, हर ख़ुशी के बाद,एक गम आता है, |
- ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandeyकल एक टिप्पणी मिली अमैच्योर रेडियो के प्रयोगधर्मी सज्जन श्री बी एस पाबला की। मैं उनकी टिप्पणी को बहुत वैल्यू देता हूं, चूंकि, वे (टिप्पणी के अनुसार) एक जुनूनी व्यक्ति लगते हैं ...मैं पाबला जी को मैच नहीं कर सकता ... | मेरी यह दूसरी व्यंग जिसे हरिभूमि में स्थान मिला जिसके लिए मैं चाचा अविनाश वाचस्पति जी का भी बहुत आभारी हूँ, जिनके आशीर्वाद से आज यह कवि एक व्यंग रचनाकार के रूप | देश भर की अदालतों में मुकदमे बहुत इकट्ठे हो गए हैं। निर्णय बहुत-बहुत देरी से आ रहे हैं, पूरी की पूरी पीढ़ी मुकदमों में खप रही है। जजों को बड़ा आराम है। वे अपने निर्धारित काम के आँकड़े से दो-ढाई गुना काम कर दे रहे हैं। लेकिन किए जाने वाला काम ऐसा है |
आज एक खबर पढ़ी कि महाराष्ट्र में ई-कम्प्लेंट दर्ज होगी. अब व्यक्ति के लिए थाने जाने की आवश्यकता नहीं होगी, इन्टरनेट के जरिये ही प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज हो जायेगी तथा उसकी एक प्रतिलिपि मोबाइल पर उपलब्ध होगी. डीसीपी स्तर का अधिकारी शिकायत की जांच करेगा और | अब देता हुँ चर्चा को विराम-आपको ललित शर्मा का राम-राम |
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28 comments:
सुम्दर चर्चा के लिए ललित जी को बधाई!
बहुत विशद और लाजवाब चर्चा.
रामराम.
बहुत बेहतरीन चर्चा रही. कितने ही लिंक यहाँ से लिए. वाह!! आभार ललित भाई. जारी रखें यह कार्य. साधुवाद!
BADIYA HAI EK SATH MAIN SABKO LAPET LIYA HAI AAPNE
nice
बढ़िया अंदाज में बढ़िया चिट्ठा चर्चा...लाइन से क्लिक कीजिए और कविता, आलेखों और समाचारों सब से अवगत हो जाइए इस चिट्ठा चर्चा के खजाने से...बधाई ललित जी
ललित जी की झकझोर देने वाली चर्चा ।
आभार..!
बहुतेच बढ़िया चरचा करे हस ललित भाई!
बहुत अकन बढ़िया बढ़िया लिंक घलो के मिल गे।
ललित जी,
बहुत ही fantastik रही charcha....
लिंकों का मेला है
मेरा पोस्ट भी खड़ेला है....
अरे क्या बात है...!!
वाह जी वाह मजा बांध दिया
जो पढ़ना भूल गये हम
सब यहां पर टांग दिया
यह तो एक नये किस्म का सांग दिया।
बढिया चर्चा रही।
बहुत सुन्दर चर्चा, हमारे चिट्ठे को शामिल करने के लिये धन्यवाद.
बहुत सुन्दर चर्चा ... HAMAARI BHI RAAM RAAM ......
बहुत लाजवाब चर्चा.
क्या बात है ललित भईया , पता नहीं कैसे आप इतने चिट्ठे को एक साथ पिरो देते हैं ,। बहुत बढिया रही चर्चा ।
यहाँ भी ललित, वहाँ भी ललित, इधर भी ललित ओर उधर भी ललित....भाई आपने चर्चा करने के लिए कहीं कहीं दिहाडी पर आदमी तो नहीं रखे हुए :) अभी अभी तेताला पर चर्चा बाँच कर आ रहा हूँ...
लाजवाब चर्चा.
वाह जी बढ़िया है ये चर्चा भी. नए नए ब्लाग / पोस्ट.
आदरणीय शर्मा साहब,
आप इतनी बेहतरीन चर्चा मत किया की कीजिए,प्लीज़।
आपकी शानदार मूछों को नज़र लग जाएगी भाई।
"चर्चा हिंदी चिट्ठों की"
महिमा इसकी बरनी न जाई.
ब्लॉग जगत में धुनी रमा के
बैठे हैं ललितहि भाई
देना होगा सारे ब्लॉग जगत को
इसकी दुहाई.
सुंदर चिट्ठाचर्चा
इन चर्चाओं का औचित्य क्या है ? ये प्रश्न सभी से है क्यों कि अकसर देखा है चर्चा उन पोस्ट की अधिक होती है जो रोज़ टिप्पणी करने आते हैं या अपने खास होते हैं कई मंच यानि ब्लाग ऐसे हैं जो बहुत अच्छा और मेहनत से काम कर रहे हैं मगर कभी चर्चा मे नहीं देखे तब मन मे स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि आखिर ये चर्चा किस लिये और क्यों या फिर कुछ ब्लाग जो केवल नये लोगों की ही चर्चा इस लिये कर रहे हैं ताकि हमेशा के लिये उनकी टिप्पणी सुरक्षित कर ली जाये। क्या ये केवल वक्त की बर्बादी नहीं क्या और नये विषय पोस्ट लिखने के लिये तलाश नहीं किये जा सकते ? इसे क्रिटिसिज़्म मत समझा जाये बस कई बार मन मे उठता एक सवाल है, समय की बर्बादी को ले कर फिर या तो कुछ पोस्ट्स की समीक्षा की जाये तब भी बात कुछ जंचती है ऐसे मे रोज ये कहना कि चर्चा अच्छी है आदि आदि और ये बतना कि किस ने क्या लिखा है क्या समय की बर्बादी नहीं? एक चर्चा लिखने के लिये चर्चाकार को कितनी मेहन्त भी करनी पडती है\शायद उस समय का प्रयोग वो कोई अच्छी रचना लिख कर भी कर सकता है। शास्त्री जी आप सच्चे दिल से सोच कर मेरी शंका का समाधान करें। और इसे सभी चिट्ठा चर्चाओं के लिये ही समझा जाये----- सच कहूँ तो मैं इन चर्चाओं मे इस लिये ही आती हूँ कि इन मे मेरी पोस्ट की चर्चा भी होती है अगर मैं कुछ दिन न आओओँ तो सब चर्चा करने वाले भूल जाते हैं । क्या इस से बेहतर कोई और विकल्प नही है ? आशा है इसे सकारात्मक रूप मे लिया जाये बस मन की बात है कह दी। धन्यवाद्
@ निर्मला कपिला
अपना कर्म है, कर्म करो (न चाहे तो न भी सही)...बस्स्स्स्स.
मियाँ जे जरा सुनो आप मेरी बात का अर्थ नही समझे शायद मैने ये टिप्पणी की बात नहीं की मैने ये कहा है कि इस चर्चा से किसी को क्या लाभ होता है अगर ये सिर्फ टिप्पणी के लिये ही है तो टिप्पणे उन ब्लाग्ज़ पर जा कर सब देते हैं मै भी देती हूँ और वो सब मेरे ब्लाग पर आते हैं वहाँ जा कर कम से कम कोई रचना तो पढने को मिलती है? टिपाणी हमेशा रचना के लिये होती है मैं तो इसकी सार्थकता पर कह रही हूँ अपकी ये पोस्ट देख कर ही कोई मुझे पढने नहीं आयेगा। मैं जब लोगों को प्रोत्साहित करती हूँ तो मुझे भी लोग प्रोत्साहित करते हैं । मै ये चाहती थी कि इस चर्चा को सार्थक बनाया जाये किसी रचना या किसी ब्लागर्ज़ के बारे मे हर बार पूरी जानकारी दी जाये या रचना की समीक्षा की जाये बस मेरा यही ख्याल थ आगर आपको बुरा लगा है तो क्षमा चाहती हूँ आप बेशक मेरे ब्लाग का जिक्र ना करें मैं किसी झगडे मे न पडती हूँ न पडोपोँगी बस मुझे केवल अपना काम करना है। धन्यवाद्
हाँ ये बात इस लिये भी की है कि इस चर्चा से हतोत्साहित हो कर किसी ने अपना ब्लाग बन्द करने की मुझ से चर्चा की तो क्या ये प्रोत्साहन है कि कोई इस चर्चा की वजह से ब्लाग बन्द कर दे? कोई बहुत अच्छा काम कर रहा है मगर उस के काम को अनदेखा कर मेरे जैसे लोगों की हे चर्चा होती रहे तो उसे निराशा जरूर होगी । इस लिये भी मैने इसे सार्थक करने की बात कही लेकिन आआपने उसके सही आशय को न समझ कर बुरा मान लिया है।आपसे ऐसी अपेक्षा नहीं की थी कि सुझाव को नकारात्मक रूप मे लें क्यों न कुछ सार्थक करने के लिये हमेशा तत्पर रहें मेरे ब्लाग पर अक्सर लोग बहुत से सुझाव देते हैं तो मैं बुरा नहीं मानती बल्कि उन से कुछ अच्छा करने की कोशिश करती हूँ। वही अपेक्षा आप से थी। बस
आदरणीया बहिन निर्मला कपिला जी!
आप मुझे सम्बोधित करके
टिप्पणियाँ क्यों कर रही हैं?
मैं आपको क्या उत्तर दे सकता हूँ?
क्योंकि यह चर्चा मैंने नही की है!
जैसा आप चाहती हैं वैसा तो
में अक्सर करता ही हूँ!
आप मेरे द्वारा की गई एकल चर्चा
देखती ही होंगी!
आप दोनों इस विवाद को यहीं पर
समाप्त कर दीजिए!
आपने लिखा है कि
"ऐसी चर्चाओं से क्या लाभ है?"
मेरा यह मानना है कि
ऐसी विवादास्पद टिप्पणियों से कोई लाभ नही है!
शास्त्री जी मैने कहीं आपको सम्बोधित नही किया जिस ने मुझे जवाब दिया उसे ही सम्बोधित किया है मुझे नही पता कि जवाब आपने दिया है मै आपका बहुत सम्मान करती हूँ । मैने अपने मन की बात रखी है बस । मेरी तरफ से बहस खत्म ।
@मियां जी..जरा सुनो!
मै आपसे पुछता हु आप कबसे हो गये हमारे इस ब्लाग के शंका समाधान करने वाले ..?
आप सिर्फ़ अपनी बात कहिये आप ये कहने वाले कौन होते है कि अगर आपको नही अच्छा लगता तो आप मत आईये चर्चा पढने।
आपकी टिप्पणी मिटा रहा हु मुझे नही चाहिये आप जैसे का समर्थन हम जितने भी सदस्य है काफ़ी है और निर्मला जी प्रणाम जो गलती हो आप बे झिझक बता दिया करिये और इस मियां की बात का कोई और मतलब मत निकालियेगा!
सादर
पंकज
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