Thursday, September 24, 2009

एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी (चर्चा हिन्दी चिट्ठो की )

नमस्कार , पंकज मिश्रा आपके साथ समीर जी के आर्शीवाद सहारे . और आप लोगो के स्नेह के तले.
चर्चा शुरू करते है .

अगर हम सब मिलकर कोशीश करे तो गांधी जी द्वारा देखे गए भारत को साकार कर सकते है कैसे तो आज नीचे की दो पोस्ट पढ़ लीजिये .

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1- प्रेय को मन से हटाओ, श्रेय की बातें करो।
देह के मत गीत गाओ, नेह की बातें करो।।

अल्पना को रंग की होती जरूरत,
कल्पना को ढंग की होती जरूरत,
स्वप्न कोरे मत दिखाओ, गेह की बातें करो।


देह के मत गीत गाओ, नेह की बातें करो।।

2-
अगर तुम्हें कहीं वो मिले,
तो उसे उसके घर छोड़ आना
उसका पता है :
सभ्यता वाली गली,
वो नैतिकता नाम के मकान में रहती है


और उस युवती को हम
"मानवता" कहते हैं
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ब्लागिंग की लत और जज्बा हिमांशु भाई बता रहे है हेमंत भाई के बारे में .




सितारों के
टूटने के बाद
रात के अंधेरे में
जब
दर्द पास


मुस्कुराने लगता हैMy Photo


तब दिल के किसी गोशे में
खिल उठाते हैं
कई सुर्ख गुलाब ....
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नीचे की लाइन मीनू खरे जी की है मेरी नहीं क्युकी मै कहुगा तो मेरा भी टी आर पी बढा देगी कई ब्लॉगर क्युकी मै पुरुष होकर महिला के बारे में ऐसा नहीं कह सकता :)


औरतों में प्रतिभा नही होती

पर होती हैं उनके पास बिन्दी, चूड़ियाँ, काजल..

My Photo





औरतों मेहनत भी नही कर पातीं

पर उन्हे आता है चहकना, खिलखिलाना, मुस्कुराना...
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ब्लॉग का नाम है भंगार लेकिन लिखाई झक्काश
उसकी आँखें ही ...
देख कर ब्याह किया था ,


अब उसकी आँखें देख ...

डर लगने लगा ,
अपनी कमल जैसी आंखों से
खुशबू उडाती .....
चंदन जैसी महक से ,
डर अब लगता ....,
है तो मेरी पत्नी ....

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सरस्वती गायत्री मंत्र



ऊं ऐं वाग्देव्यै विदमहे
कामराजाय धीमहि
तन्नो देवी प्रचोदयात
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मैं तेरा हूँ, ये मुझे यकीन हैं
तु इसे अपनी यकीन में ले जरा



रात है घनी और तन्हाई टूटी हुई


सुबह तक तो हौसले में ले जरा
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सपने बुनते-बुनते,



आंखे थक सी गईं थीं

मां की कभी



वह कहती मेरा लाल

जल्‍दी से बड़ा हो जाए

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व्यंग्य
परमेश्वर की रिपोर्ट
वीरेन्द्र जैन
''थानेदार साब कहां हैं?'' एक महिला ने थाने में प्रवेश करने के बाद कुर्सी पर बैठे हुये हैड कानिस्टबिल से पूछा।
''वे काम से गये हैं, कहिये आपको क्या काम है?'' कानिस्टबिल बोला।

''मुझे रिपोर्ट लिखानी है'' महिला ने कठोर स्वर में कहा।
''क्या हुआ है, किसके खिलाफ रिपोर्ट लिखाना है?' बाकी वहा जाकर पढिये



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जो जैसा सोचते करते हैं वैसा कुछ नहीं होता

अगर होता भी है तो उनके हक़ में कुछ नहीं होता


हैं दौलत के भंवर में डूबने तैयार सब लेकिन


कभी नदी नहीं होती कभी मौका नहीं होता


गलती है धोखा है सरासर ये हिमाकत है

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किसी की पोटली में चुड़वा और दही देखा है तो किसी की पन्नी में बंधा पूडी
और आम का अचार देखा है।भूखे प्यासे मासूम की टकटकी आखों को भी देखा है जो
बिना खाये घंटों की यात्रा कर लेता है। मैंने गुजरा हुआ कल देखा है

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फैल गया भ्रष्टाचार,

अब इसे लगाम दो,


विराम की ठान लो,

तभी क्रांति आएगी,

सारे में शांति छाएगी।

हरेक को प्रतिज्ञा करनी है,

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जो छूट गई है दुनिया में,, मेरी ही कुछ हस्ती थी
साहिल छोर के दरिया डूबी , मजबूत बड़ी वो कश्ती थी



उनका घर तो रौशन था पर डर था सबके चेहरे पर
एक उनके घर में रौनक थी और जलती सारी बस्ती थी

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मैं शाख से लिपटा हुआ पत्ता नहीं कोई !


के हर खिजां मैं तुमने, मुझको जुदा किया !!



मैं रास्ते पे मील के पत्थर की तरहा !

हर आने जाने वाले मैं, तुमको देखा किया !!



मुझे इल्म था, तू बुत के सिवा कुछ भी नहीं !


बस मुहोब्बत है क्या करुँ , तुझको पूजा किया !!

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मन करता है
में [bird.jpg]परिन्दा बन
अम्बर को छू लूं
तेज़ हवा के संग
उड़ जाऊं

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एक ख़त पापा के नाम

आजकल खामोश क्यों?
कलम
क्या जज्बा संघर्ष का
कुछ टूटने लगा है,
या फिर

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बादल भैया, बादल भैया, मैं छोटी सी बच्ची हूँ।


नहीं किसी से झग़ड़ा करती, सब कहते मैं अच्छी हूँ।



बादल भैया, बादल भैया, मैं पढ़ने भी जाती हूँ।

खूब लगन से पढ़ती हूँ मैं, अव्वल नम्बर पाती हूँ।

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यानी जब तक पेट खाली रहता है तो स्वाद है और जैसे ही पेट भर गया स्वाद मर गया | यही फर्क है एक भूखे और एक भरे पेट का| RJ Murari

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20 comments:

संगीता पुरी said...

अच्‍छी चर्चा !!

Randhir Singh Suman said...

nice

Gyan Darpan said...

बढ़िया चर्चा :)

Rakesh Singh - राकेश सिंह said...

badhiyaa hai ...

Arvind Mishra said...

आपका हाई टेक हुनर भी रंग ला रहा है -एक ब्लॉग पोस्ट लिंक को दूसरी से बिलकुल अलग दिखने की लक्ष्मण रेखा को और गाढी कर सकते हैं क्या ?

गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

बढ़िया चर्चा। आजकल चिठ्ठा चर्चा का जोर पकड़ रहा है। बाकी चर्चाकार ब्लॉगों का यहाँ लिंक दे दें तो अच्छा हो ताकि एक ही स्थान से सब जगह जाया जा सके।

@
ऊं ऐं वाग्देव्यै च विदमहे
कामराजाय धीमहि
तन्नो देवी प्रचोदयात

'कामराजाय' वह भी सरस्वती के मंत्र में? कुछ समझ में नहीं आया। कोई समझाए भाई !

रंजन (Ranjan) said...

बहुत अच्छी चर्चा..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

चिट्ठा चर्चा बढ़िया रही।
बहुत-बहुत आभार!

निर्मला कपिला said...

बहुत अच्छी चर्चा है शुभकामनायें

हेमन्त कुमार said...

बेहतर चर्चा । आभार ।

ताऊ रामपुरिया said...

वाह मिश्राजी, आज तो तकनीकी कारीगरी कर रखी है आपने भी, चर्चा वाकई बहुत सुंदर और सजीली लग रही है.

गिरजेश राव जी की बात पर ध्यान दिया जाये तो यह एक बहुत ही उम्दा मंच बन सकेगा.

रामराम.

सदा said...

बहुत ही अच्‍छी चर्चा थी चिठ्ठे की, आभार के साथ शुभकामनाएं ।

प्रेमलता पांडे said...

dhanyvad meri rachna ko charcha mein shamil karane hetu.

ओम आर्य said...

BAHUT HI SUNDAR HAI CHITHA CHARCHA.......BAHUT BAHUT DHANYAWAAD......

स्वप्न मञ्जूषा said...

हर दिन आप चिट्ठों की अनुपम चर्चा चलाते हैं
सुन्दर चित्रों से सजा हर पोस्टिंग दिखाते हैं
हमने भी अनुसरण कर लिया आपके इस चिट्ठे का
रोज-रोज हम भी अब दौडे-दौडे आते हैं

अपूर्व said...

दिन ब दिन विस्तृत होता जा रहा है आपकी चिट्ठा चर्चा का फ़लक..बधाई

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर चर्चा ।

दर्पण साह said...

acchi chittha charcha...

Kulwant Happy said...

बहुत खूबसूरत चर्चा।

Udan Tashtari said...

बढ़िया विस्तार है. लगे रहिये. बधाई.

पसंद आया ? तो दबाईये ना !

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