आप सभी को ईद की ढेर सारी शुभकामनाये .
चर्चा शुरू करते है -
ईद मुबारक
गाव के लोग अब बैनर पर नहीं बल्की नेट पर अपने गाव की महिमा लिखते है आप यहाँ से पढ़ लीजिये पुरी बात
मुझे वो याद आते है
जिन्हें हम याद न आए..
सुनते हैं उस पार कुहरा छाया है.
बबली जी आज फिर से एक शायरी प्रस्तुत किया है आप यहाँ जाकर पढ़ सकते है
कौन बदल पाया है नसीबा
जिद अपनी बेमानी छोड़
रेत समय की क्या लिक्खूं
हसरत भरी जवानी छोड़
एक दिन तुझको भी जाना है
अपनी कोई निशानी छोड़
बेवकूफ जाहिल औरत
कैसे कोई करेगा तेरा भला
नाम तक नहीं सुना
बमुश्किल तमाम बस इतना ही
जान सकी होचरजि गयी थी फेरी चरजन लागी री
कहें पद्माकर लवन्गन की लोनी लता
उधार खाते रहे हरदम
आप पैसे ना दें
यहाँ से ना टलें
ताकि फूटे हमारे करम
अटलजी ने कहा -"कैसे ?" रामजी ने कहा - "ये जब चाहे मुझे अपने "एजेंडे" में रख लेते है ओर जब चाहे निकाल देते है ."
कदम-दर-कदम हौसला कर चले
उबरते रहे हादसों से सदा
मां तेरे ही हम गुण गाएंगे,
हम बच्चें तेरे हैं, तू है मैया,
मां पार लगा दे नैया, मां पार लगा दे नैया।
19 सितम्बर के विशेष ग्रहयोग से हिन्दी चिट्ठा जगत अछूता नहीं रह सका !!
कई दिन से रोटी मिली ही नहीं थी
सपने में देख रोटी डर ही गया
हुआ क्या बहू जो जल कर मरी है
अख़बार का रंग निखर ही गया
काली सी गाड़ी का पहिया चढ़ा था
लाल रंग आपको अखर ही गया
जब भी चूम लेता हूँ
श्वेत-श्याम तस्वीर में
तेरे होठों को,
अनजाने में छू गया था हाथ तेरा ,
पल को लगा मिल गया साथ तेरा ।
आओ, सबको गले लगाओ आज ईद है
सेवई खाओ और खिलाओ आज ईद है
बैर न कोई दिल में पालो मेरे भाई
दुश्मन को भी पास बुलाओ आज ईद है
कितना अच्छा होता है जब
पास हमारे तुम होती हो
त्राण सदृश, अस्तित्व तुम्हारा, मुझको ढँक लेता है
दुःख, चिंता के हर प्रवेग को बाधित कर देता है
प्राणों को कर प्रणय सिन्धु, सुख की तरिणी खेता है
नहीं यह अप्रैल फूल नहीं है. ऐसा एक आमंत्रण मुझे ई-मेल से प्राप्त हुआ है
और सूचना है कि मेरा पता आयोजकों को देश के किसी युवा संगठन ने भेजा है.
जागो मेरे संकल्प मुझमें
कि भोग की कँटीली झाड़ियों में उलझे,
भरपेट खाकर भी प्रतिपल भूख से तड़पते
स्वर्ण-पिंजर युक्त इस जीवन को
मुक्त करूँ कारा-बंधों से,
दग्ध करूँ प्रेम की अग्नि-शिखा में ।
हिन्दी साहित्य मंच
नदी का तट है वो फिर भी नदी सा बहता है ,
तेज़ धूप में उसमें महक है फूलों की ,
अपना दर्द जो बस आंसुओं से कहता है ,
अपने चिटके हुए आइने में देखता दुनिया ,
एक ही उम्र मे सौ अक्स बन के रहता है ,
जहाँ हर एक के हैं बंद दरो दरवाजे ,
खुली सड़क पे मस्त मौज जैसा बहता है ,
जिनके ताज अजायबघरों मे रखे हैं ,
उन्ही बुजुर्गों के टूटे किलों सा ढहता है ,
उसका लिखा हुआ हर लफ्ज़ ग़ज़ल होता है ,
8 comments:
बहुत बढ़िया चर्चा. जारी रहो!!! अच्छा प्रयास है.
शुरू तो कर दिया इस कठिन काम का अब निर्वाहने का व्रत भी लीजिये !
बहुत सुंदर और विस्तृत चर्चा. आभार.
रामराम.
आज की चर्चा बहुत बडिया है आज भी कई पोस्ट छूट गये थे अभी देखे है धन्यवाद्
चर्चा बेहतर है, तनिक विस्तार से भी । आभार ।
वाह कई अनदेखी पोस्ट्स मिल जाती हैं आपकी चर्चा के बहाने..और चिट्ठाचर्चा का दायरा भी बढ़ता जा रहा है..बधाई..इस सराहनीय प्रयास के लिये..
बहुत सुंदर और विस्तृत चर्चा. आभार.
ham to bas yahi kahenge .
hamesha ki tarah zabardast hai ji.
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